Sunday, January 1, 2017

मुरली 2 जनवरी 2017

02-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– ज्ञान की बुल-बुल बनकर आप समान बनाने की सेवा करो, अपनी दिल से पूछो मेरी याद की यात्रा ठीक है”
प्रश्न:
किस विशेष पुरूषार्थ से बेगर टू प्रिन्स बन सकते हो?
उत्तर:
बेगर टू प्रिन्स बनने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। एक बाप के सिवाए और कोई भी याद न आये। यह शरीर भी मेरा नहीं। ऐसा जीते जी मरने का पुरूषार्थ करने वाले ही बेगर हैं, उनकी ही वानप्रस्थ अवस्था है क्योंकि बुद्धि में रहता अब तो बाप के साथ घर जाना है फिर सुखधाम में आना है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं पढ़ाई में जास्ती ध्यान किस बात पर देना है। सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरूषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म बनना है। देखना है– हमारे में यह सब गुण हैं? जो बनना है उस तरफ ही ध्यान जायेगा ना। यह बनेंगे कैसे? पढ़ने और पढ़ाने से। बेहद के बाप को सारे दिन में कितना याद करते हैं, कितनों को पढ़ाते हैं! सम्पूर्ण तो अब तक कोई बना नहीं है। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं। बाप एक-एक बच्चे पर नजर रखते हैं कि यह बच्चा क्या कर रहा है! मेरे अर्थ क्या सर्विस करते हैं! कितनों की तकदीर ऊंचे ते ऊंची बना रहे हैं? हर एक अपनी अवस्था और अपनी खुशी को भी जानता है। अतीन्द्रिय सुख का जीवन हर एक को अपना भासता है। यह तो बच्चों को निश्चय है कि बाप की याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हैं। सहज उपाय है ही याद की यात्रा। अपनी दिल से पूछना है– हमारी याद की यात्रा ठीक है? दूसरे को आप समान बनाते हैं? ज्ञान बुल-बुल बनें हैं? तुम ब्राह्मण ही दैवीगुण धारण कर मनुष्य से देवता बनते हो। तुम्हारे सिवाए कोई देवता बनने वाला है नहीं। तुम ही दैवी घराने के भाती बनते हो। वहाँ तुम्हारा है दैवी परिवार। अभी तुम जानते हो हम दैवी परिवार का बनने लिए खूब पुरूषार्थ कर रहे हैं। बच्चों को पढ़ना भी कायदेसिर है। एक दिन भी अबसेन्ट नहीं रहना है। भल बीमार हो, खाट पर पड़े हो तो भी बुद्धि में शिवबाबा की याद रहे। आत्मा जानती है हम बाबा के बच्चे हैं, बाबा हमको घर ले चलने आया है। कितनी सहज याद है। यह भी प्रैक्टिस चाहिए। बुद्धि में एक बाबा की ही याद रहे। बाबा आया है, हम शान्तिधाम में जाकर फिर सुखधाम में आने वाले हैं। पिछाड़ी तक इतनी मेहनत करनी है जो एक शिवबाबा की ही याद रहे। और संग तोड़ एक संग जोड़ना है। मुख से कोई जाप नहीं करना है औरों को आप समान बनाने के लिए पढ़ाना भी है। बाप समझाते हैं तुमको उस अवस्था में जाना है, जिस सतोप्रधान अवस्था में तुम यहाँ आये थे, उस अवस्था में जाकर फिर उसी अवस्था में आना है सतयुग में। कितना सहज है। तुम भक्ति मार्ग में गाते थे आप जब आयेंगे तो हम और संग तोड़ एक तुम संग जोड़ेंगे, इसमें मेहनत है। पवित्रता की बात भी मुख्य है। गृहस्थ व्यवहार में रह कमल फूल समान बनना है। वह कमल भी पानी से, धरनी से ऊपर रहता है। तुम चैतन्य फूल भी धरनी के ऊपर हो तो तुमको भी प्रतिज्ञा करनी है– हम पवित्र रहते हुए एक आपको ही याद करेंगे। जो अन्त में सिवाए आपके और कोई की याद न आये। कोई अवगुण भी न रहे। जो बच्चे ऐसे बनते हैं वह सदैव हर्षित रहते हैं। यह प्रैक्टिस अच्छी रीति करनी है। बच्चे जानते हैं कभी-कभी अवस्था मुरझा जाती है। माया झट छुईमुई कर देती है। हर एक को अपने आपसे पूछना बहुत जरूरी है। हम कितना बाप की याद में रह हर्षित रहते हैं! कितना बाप की सर्विस में टाइम देते हैं! भल कोई कैसा भी है, तुम बच्चों को सर्विस करते ही रहना है। जांच करते हैं कौन वर्सा पाने के लायक है! जैसे बिच्छू को मालूम पड़ता है– यह पत्थर है या नर्म चीज है, तो पत्थर पर कभी डंक नहीं लगायेगी। तुम्हारा धन्धा ही यह है। तुम बेहद बाप के स्टूडेन्ड हो ना। पढ़ाई पर बहुत मदार है। शुरू में बच्चे मुरली बिगर एक दिन भी रह नहीं सकते थे, कितना तड़पते थे। (क्लास में बड़ी बहिनों ने गीत सुनाया- तेरी मुरली में जादू..) बांधेलियों को कैसे मुरली पहुंचाते थे! मुरली में ही जादू है ना। कौन सा जादू? विश्व का मालिक बनने का जादू। इससे बड़ा जादू कोई होता नहीं। तो उस समय मुरली का तुमको कितना कदर था। मुरली पहुंचाने के लिए कितना प्रयत्न करते थे। समझते थे पढ़ाई बिगर बिचारे का क्या हाल होगा! यहाँ बाबा जानते हैं बहुत ऐसे बच्चे हैं जो मुरली पर पूरा ध्यान ही नहीं देते हैं। मुरली तो बच्चों को रिफ्रेश करती है। भगवान जो तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनकी मुरली नहीं सुनेंगे तो भगवान टीचर क्या कहेंगे। बाबा को वन्डर लगता है। चलते-चलते बहुत बच्चों को माया का तूफान ऐसा लगता है जो मुरली पढ़ना, क्लास में आना छोड़ देते हैं। ज्ञान से नफरत माना बाबा से नफरत। बाप से नफरत माना विश्व की बादशाही से नफरत। माया बिल्कुल नीचे ले जाती है। बुद्धि को एकदम मार डालती है, जो कुछ भी समझते नहीं। भल भक्ति तो बहुत करते परन्तु एकदम ब्लाइन्ड फेथ, बेसमझ बन गये हैं। बाप खुद कहते हैं तुम कितना लायक थे। अब न लायक बन गये हो। अब मैं फिर आया हूँ तुम बच्चों को लायक बनाने इसलिए श्रीमत पर जरूर चलना है। बाप कहते हैं इसमें और कुछ करना नहीं है सिर्फ बाप को याद करो और पढ़ो। स्कूल में बच्चे पढ़ते भी हैं और टीचर को भी याद करते हैं। कैरेक्टर भी सुधारने हैं। तुम्हारी भी एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। तुमको यह बनना है, उन्हों के कैरेक्टर अच्छे हैं तब तो सारा दिन मनुष्य गाते हैं– आप सर्वगुण सम्पन्न.. मनुष्य को जब तक बाप का परिचय नहीं मिला है तब तक अन्धियारे में हैं। सारी दुनिया के मनुष्य इस समय निधनके हैं। उन्हों को बाप का पैगाम पहुंचाना है। तुम बेहद बाप के बच्चे हो ना। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बच्चों को युक्ति निकालनी है कि सबको पैगाम कैसे पहुंचायें, अखबार द्वारा ही सबको पैगाम पहुंचेगा कि एक बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे। सभी आत्मायें पहले पावन थी अब सब अपवित्र हैं। यहाँ कोई पवित्र आत्मा हो न सके। पवित्र आत्मायें होती हैं पवित्र दुनिया में। आत्मा पवित्र बन जाती है फिर यह पुराना चोला छोड़ना ही है। यह हो नहीं सकता कि आत्मा पावन हो और शरीर पतित हो तो बाबा को याद करते-करते अपने को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाना है। पहले-पहले जब तुम आये तो पवित्र थे अब फिर पवित्र बनना है। आत्मा पवित्र बनकर जायेगी फिर पवित्र दुनिया में आयेगी। शान्तिधाम से होकर फिर गर्भ महल में आयेंगे। वहाँ दु:ख का नाम निशान नहीं रहता है। रावणराज्य ही नहीं है। परन्तु पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाना है, इसके लिए यह पढ़ाई है। स्वर्ग में तो सब जायेंगे। लेकिन ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करना है। यह तो जानते हो स्वर्ग की स्थापना और नर्क का विनाश हो रहा है। शिवालय स्थापन होगा तो वेश्यालय खत्म हो जायेगा। शिवालय में तो आना ही है। कोई ये शरीर छोड़ जाकर प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। कोई प्रजा में चले जायेंगे। जिनकी बिल्कुल लाइन क्लीयर है, एक बाप के सिवाए और कोई की याद नहीं आती है, उनको कहा जाता है पूरे बेगर। शरीर को भी याद नहीं करना है अर्थात् जीते जी मरना है। हमको तो अब अपने बेहद के घर जाना है। अपने घर को भूल गये थे। अब बाप ने याद दिलाया है। बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं तुम वानप्रस्थी हो। इस समय तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। अब मैं आया हूँ वाणी से परे स्थान पर सब बच्चों को ले जाने के लिए। वानप्रस्थ अवस्था में जाने के लिए सब भगत भक्ति करते हैं। अब बाप समझाते हैं सब वानप्रस्थ अवस्था में कैसे जाते हैं। उन्हों को इस अक्षर के अर्थ का भी पता नहीं सिर्फ नाम सुना है। भल द्वापर से लेकर लौकिक गुरूओं द्वारा बहुत पुरूषार्थ किया है परन्तु वापिस तो कोई जा नहीं सकता। बाप कहते हैं अब छोटे अथवा बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। सच्ची-सच्ची वानप्रस्थ अवस्था तो तुम्हारी है क्योंकि वापिस जाना है। बेहद का बाप सबको वापिस ले जाने आया है। तो बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। तुम जानते हो सबको बाप ही स्वीट साइलेन्स होम में ले जाते हैं क्योंकि आत्माओं को अब शान्ति चाहिए। यहाँ तो शान्ति हो न सके। शान्तिधाम का मालिक तो एक बाबा ही है, जब मालिक आये तब सबको ले जाये। भक्ति करते थे शान्तिधाम में जाने के लिए। ऐसे कोई नहीं कहते हम सुखधाम में जायें। बाबा कहते हैं हम तुम बच्चों को प्रॉमिस करता हूँ कि तुम सबको घर ले जाऊंगा अगर मेरी श्रीमत पर चलेंगे तो। सुखधाम में कोई न भी चले, शान्तिधाम में तो जरूर ले जाऊंगा। छोड़ूगाँ किसको भी नहीं। नहीं चलेंगे तो सजायें देकर, मारपीट दिलाकर भी ले चलूंगा। जैसे बच्चों को सजा दी जाती है ना। तुम बच्चों को भी ऐसे ले चलेंगे क्योंकि ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है इसलिए अपनी कमाई कर चलो तो अच्छा है। पद भी अच्छा मिलेगा। पिछाड़ी में आने वाले क्या सुख पायेंगे। बाबा कहते तुम चाहो वा न चाहो तुम्हारे सब शरीरों को आग लगाकर आत्माओं को जरूर ले चलना है। मेरी मत पर चल अगर सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे तो ऊंच पद पायेंगे क्योंकि मुझे बुलाया ही है कि आओ घर ले चलो अर्थात् मौत दो। यह तो सब जानते हैं, मौत आया कि आया। छी-छी कोई यहाँ रहना नहीं है। बाप कहते हैं मैं सबको छी-छी दुनिया से जरूर ले जाऊंगा। जो अच्छी तरह पढ़ेंगे वही सुखधाम में आयेंगे। सुखधाम वा स्वर्ग कोई आसमान में नहीं है। तुम्हारा यादगार मन्दिर देलवाड़ा है। आदि देव बैठा है। बापदादा है ना। इनके ही शरीर में बाबा विराजमान होता है। तुम जानते हो यह बाप-दादा दोनों बैठे हैं। तुम बच्चे देलवाड़ा मन्दिर में जाते हो तो फिर इस ख्याल से जाओ, यह बापदादा है। इस समय तुम बच्चे जो राजयोग सीख रहे हो उनकी निशानी है। महारथी घोड़ेसवार भी हैं। इस दादा में बाबा प्रवेश करते हैं। तो वह है जड़, यह है चैतन्य, माडल देखकर आते हैं ना। दिलवाला मन्दिर कितना रमणीक है। कल्प-कल्प हूबहू ऐसा ही मन्दिर बनेगा जो तुम जाकर देखेंगे। तुम कहेंगे यह सब टूट जायेंगे, फिर कैसे बनेंगे? यह ख्याल नहीं करना चाहिए। स्वर्ग अभी कहाँ है फिर स्वर्ग के महल होंगे। यह पहाडि़यां आदि टूट जायेंगी, फिर बनेंगी, आबू फिर भी बनेगा! बहुत बच्चे इस बात में बहुत मूंझते हैं। बाप कहते हैं मूंझने की दरकार नहीं। कहते हैं– द्वारिका समुद्र के नीचे चली गई फिर निकलेगी। नीचे जो चीज गई सो गई, खत्म हो जायेगी। तुम जानते हो स्वर्ग में हम अपने महल आदि बनायेंगे। वहाँ बिल्कुल ही सतोप्रधान सब नई-नई चीजें होगी। तुम वहाँ के फल आदि देखकर आते हो। तुम जानते हो हम वहाँ जाने वाले हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है तो स्वर्ग भी रिपीट होगा। यह निश्चय होना चाहिए। परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो कहेंगे यह कैसे हो सकता है। इतने सब फिर आयेंगे फिर महल आदि बनेंगे! तुम जानते हो सोमनाथ के मन्दिर को लूटकर ले जाते हैं फिर भी मन्दिर बनायेंगे। यह खेल ही पूज्य से पुजारी, पुजारी से पूज्य बनने का है। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र... यह चक्र है। तुम बच्चे पदमापदम भाग्यशाली बनते हो। तुम्हारे कदम में पदम का छाप लग जाता है। तुम जानते हो हमारे कदम में पदम हैं अर्थात् पढ़ाई के कदम में पदम समाये हुए हैं। जितना पढेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। सतयुग है गोल्डन एज। वहाँ की धरनी भी कितनी सुन्दर होती है। कितने सुन्दर महल बनते हैं। हर चीज सतोप्रधान होती है। देखने से ही नैन ठण्डे हो जाते हैं। ऐसी राजधानी के तुम मालिक बन रहे हो, तो कितना अच्छी रीति पुरूषार्थ करना चाहिए। पुरूषार्थ से ही प्रारब्ध बनती है। बच्चों को ज्ञान तो बुद्धि में है। बाप को याद करना है, लौकिक सम्बन्ध से ममत्व मिटाना है सिर्फ एक बाप को याद करना है। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की याद में रह सदा हर्षित रहना है। कभी मुरझाना नहीं है। बीमारी में भी मुरली जरूर सुननी व पढ़नी है।
2) पढ़ाई से कदम-कदम में पदम जमा करने हैं और संग तोड़ एक बाप से जोड़ना है।
वरदान:
परमात्म श्रीमत के आधार पर हर कदम उठाने वाले अविनाशी वर्से के अधिकारी भव!
संगमयुग पर आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को जो परमात्म श्रीमत मिल रही है-यह श्रीमत ही श्रेष्ठ पालना है। बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी उठा नहीं सकते। ऐसी पालना सतयुग में भी नहीं मिलेगी। अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कहते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान है। यह नशा सदा इमर्ज रहे तो बेहद के खजानों से भरपूर स्वयं को अविनाशी वर्से के अधिकारी अनुभव करेंगे।
स्लोगन:
सपूत बच्चा वह है जो सम्पूर्ण पवित्र और योगी बन स्नेह का रिटर्न देता है।