Tuesday, January 17, 2017

मुरली 18 जनवरी 2017

18-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– एवरहेल्दी बनना है तो एवर याद में रहो, इस याद की यात्रा में ही सच्ची कमाई है, इससे ही सतोप्रधान बनेंगे”
प्रश्न:
सबसे बड़ा पुण्य कौन सा है? संगम पर पुण्यात्मा किसे कहेंगे?
उत्तर:
अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करना– यह सबसे बड़ा पुण्य है। संगम पर पुण्यात्मा वह है जो ज्ञान रत्नों को धारण करता है। अभी तुम उस विनाशी धन से बेगर बनते हो और अविनाशी ज्ञान धन से भरपूर हो 21 जन्मों के लिए साहूकार बन जाते हो।
गीत:–
यह कौन आज आया सवेरे-सवेरे...  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। जब परमात्मा बाप आकर आत्माओं से मिलते हैं तो जीव-आत्मा को अपना जीवपना भूल जाता है। उसे निश्चय हो जाता है कि हम आत्मा शिवबाबा की सन्तान हैं। हम आत्माओं का बाप इस मुख द्वारा बोल रहे हैं। हम आत्मा इन कानों द्वारा सुन रहीं हैं। ऐसी अपनी आदत डालने की मेहनत करनी होती है। बाप कहते हैं मीठे बच्चे मामेकम् याद करो, अन्त में यही वशीकरण मन्त्र काम में आयेगा। इस याद की यात्रा से तुम अथाह सच्ची कमाई करते हो, जितना याद करेंगे उतना सतोप्रधान बनते जायेंगे और खुशी भी बढ़ती जायेगी, क्योंकि यह है आत्मा और परमात्मा का शुद्ध लव। तुम्हें ईश्वरीय आज्ञा मिली है मीठे बच्चे, अमृतवेले उठ बाप को बहुत प्यार से याद करो। बाबा आप कितने मीठे हो, आप हमें राजाओं का राजा, स्वर्ग का मालिक बनाते हो, हम आपकी श्रीमत पर जरूर चलेंगे। बाबा आपने तो कमाल किया है, 21 जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही देते हो। हम तो आप पर बलिहार जाऊं। तो बलिहार जाना भी है, सिर्फ कहना नहीं है। जितना समय याद में रहेंगे तो उसका असर सारा दिन रहेगा। बच्चों को देही-अभिमानी बनना है और ईश्वरीय गुण धारण करने हैं। ईश्वरीय गुण धारण करना अर्थात् ईश्वर बाप के समान बनना। ईश्वरीय अधिकार अर्थात् ऊंच पद को पाना है। इस पुरानी दुनिया और पुरानी देह को भूल जाना है, इसमें नष्टोमोहा होना पड़े। मीठे बच्चे, तुम अपनी डिग्री खुद ही देख सकते हो, सारे दिन में हम कितना याद करते हैं! भोजन पर भी देखो हमने बाप की याद में रह हर्षितमुख हो भोजन खाया? माशूक को याद करने से कशिश बढ़ेगी, बहुत खुशी रहेगी और बहुत जमा होता जायेगा। याद में रहते-रहते इस पुरानी खाल को छोड़ जाए नई लेंगे। कांटे से फूल बन जायेंगे। जितना याद का अभ्यास होगा तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। अन्त में शरीर छूटे तो भी बाबा की याद हो। वशीकरण मंत्र याद हो तब प्राण तन से निकलें। याद में रहने से जो भी किचड़ा है वह भस्म हो आत्मा पावन बनती जायेगी। अभी तुम बच्चों को निश्चय है कि हमको पढ़ाने वाला कौन है! इस चैतन्य डिब्बी में चैतन्य हीरा बैठा है, वही सत-चित- आनंद स्वरूप है। सत बाप तुम्हें सच्ची-सच्ची श्रीमत देते हैं। बाप के बने हो तो कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। एवरहेल्दी बनना है तो एवर याद में रहना है, तब ही अन्त मती सो गति होगी। इसमें धक्के खाने की बात नहीं है। चुप रहना है और पढ़ना है, एक बाप को याद करना है। याद से ही तुम सारे विश्व को शान्ति का दान दे सकते हो। हर एक बच्चे को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाने हैं। मुरली कोई भी मिस नहीं करनी चाहिए। बाप बहुत प्यार से समझाते हैं मीठे बच्चे अपने पर रहम करो, कोई अवज्ञा न करो। देही-अभिमानी बनो। बाप की नजर सदैव उन बच्चों पर रहती है जो खुशबूदार फूल बने हैं। जो आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करते और जहाँ सर्विस देखते वहाँ भागते रहते हैं। ऐसे सर्विसएबुल, आज्ञाकारी बच्चे ही बाप को प्यारे लगते हैं। बाप की दिल अन्दर बच्चों को सदा सुखी बनाने के लिए कितनी फर्स्टक्लास आश रहती है कि बच्चे लायक बन स्वर्ग के मालिक बनें। तुम बच्चे जानते हो इस पुरानी दुनिया नर्क में कोई सुख नहीं है। इसमें कोई से दिल लगाना गोया अपना ही नुकसान करना है। कोई भी चीज में आसक्ति नहीं रहनी चाहिए। समझना चाहिए यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर तो खत्म होने वाला है। देही-अभिमानी बच्चे ही इस पुरानी दुनिया और पुरानी देह से उपराम रहते हैं। उन्हों की बुद्धि में रहता हम यहाँ दो घड़ी के मेहमान हैं, यह तो पुरानी जुत्ती है। भल कितना भी इनको साबुन पाउडर आदि लगाओ फिर भी पुराना शरीर है, इसको छोड़ हमें नया लेना है। यहाँ तुम बच्चे अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भर रहे हो फिर औरों को भी ज्ञान रत्नों का दान देना है। यह सबसे बड़ा पुण्य है। ज्ञान रत्न धारण कर पुण्य आत्मा बनना है फिर औरों को दान करना है। उस विनाशी धन से तो तुम अभी बेगर बनते हो और अविनाशी ज्ञान धन से तुम 21 जन्मों के लिए साहूकार बनते हो। इस समय तुम बहुत बड़ा मट्टा-सट्टा (अदली-बदली) करते हो। पुराना तन-मन-धन सब बाबा को देते हो। बाबा फिर ज्ञान रत्नों से तुमको मालामाल कर देते हैं, जिससे भविष्य में तन-मन-धन सब नया मिल जाता है। अभी तुम फकीर हो और भविष्य में फिर तुम अमीर बनते हो। फकीर से अमीर बनने के लिए बातें ही दो हैं– मनमनाभव, मध्याजी भव बस। बाप को याद करते-करते तुम स्वर्ग के अमीर बन जायेंगे। तुम बेहद बाप की गोदी में आये हो– फकीर से अमीर बनने के लिए। तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियों के पास सेन्टर्स पर मनुष्य आते हैं जीयदान लेने। किसको जीयदान देना बहुत बड़ा पुण्य है। यहाँ आकर खुशनशीब बनते हैं, तो उन्हों के लिए सदैव दरवाजा खुला रहना चाहिए। ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए जहाँ बहुत मनुष्य आकर अपना सौभाग्य बनावें। जीवन हीरे जैसी बनावें। बड़े प्यार से एक-एक को सम्भालना पड़ता है, कहाँ विचारों के पाँव न खिसक जाएं। जितने जास्ती सेन्टर्स होंगे उतने जास्ती आकर जीयदान पायेंगे। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं, वह बहुतों को जीयदान देते हैं। उन्हों को बाप भी याद करते हैं। देखता हूँ यह किस प्रकार का फूल है! इनमें क्या-क्या गुण हैं! बाप सब बच्चों की अवस्था को जानते हैं, नम्बरवार तो है ना। किसम-किसम के वैरायटी फूल हैं। जो खुशबूदार फूल हैं वह खींचते हैं। जो जैसा है ऐसी सर्चलाइट लेने की कोशिश करते हैं। खुशबूदार, गुणवान बच्चों को देख प्यार में खुशी में नयन गीले हो जाते है। उन्हें कुछ तकलीफ होती है तो बाप सर्चलाइट देते हैं। तुम बच्चों का बाप के साथ बहुत लव होना चाहिए। बाबा जो कहे बच्चे वह फौरन करके दिखा दें तब समझेंगे इनका बाप के साथ लव है। आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार हैं। बाप कितना प्यार से समझाते हैं। बाप बेहद का व्यापारी है, सौदा बड़ा फर्स्टक्लास है परन्तु इसमें साहस भी चाहिए। कई बच्चे चावल मुठ्ठी ले आते हैं परन्तु ऐसा कभी नहीं समझना चाहिए कि हम बाबा को देते हैं। यह तो रिटर्न में सौगुणा लेते हैं। बाबा को थैंक्स देनी चाहिए, कहना चाहिए बाबा आप हमारे दो मुठ्ठी चावल लेते हो आपका शुक्रिया जो आप हमें भविष्य में मालामाल कर देते हो, परन्तु इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल, आज्ञाकारी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

अव्यक्त महावाक्य - (पर्सनल) अभी बाप सभी बच्चों को सम्पन्न रूप में देखना चाहते हैं, लेकिन सम्पन्न बनने में वन्डरफुल बातें देखेंगे क्योंकि सम्पन्न बनने के प्रैक्टिकल पेपर होते हैं। किसी भी प्रकार का नया दृश्य वा आश्चर्यजनक दृश्य सामने आये, लेकिन दृश्य साक्षी दृष्टा बनावे, हिलाये नहीं। कोई भी ऐसा दृश्य जब सामने आता है तो पहले साक्षी दृष्टा की स्थिति की सीट पर बैठ देखने वा निर्णय करने से बहुत मजा आयेगा, भय नहीं आयेगा। जब हुआ ही पड़ा है, विजय निश्चित है, तो घबराना वा भयभीत होना हो ही नहीं सकता। जैसेकि अनेक बार देखी हुई सीन फिर से देख रहे हैं-इस कारण क्या हुआ? क्यों हुआ? ऐसे भी होता है, यह तो नई बातें हैं! यह संकल्प वा बोल नहीं होगा। और ही राजयुक्त, योगयुक्त हो, लाईट हाउस हो, वायुमण्डल को डबल लाईट बनायेंगे। घबरायेंगे नहीं। ऐसे अनुभव होता है ना? इसको कहा जाता है पहाड़ समान पेपर राई के समान अनुभव हो। कमजोर को पहाड़ लगेगा और मास्टर सर्वशक्तिवान को राई अनुभव होगा। इसी पर ही नम्बर बनते हैं। प्रैक्टिकल पेपर पास करने के ही नम्बर बनते हैं। सदैव पेपर पर नम्बर मिलते हैं। अगर पेपर नहीं, तो नम्बर भी नहीं इसलिए श्रेष्ठ पुरूषार्थी पेपर को खेल समझते हैं। खेल में कब घबराया नहीं जाता है। खेल तो मनोरंजन होता है। अच्छा। आप सबको विनाश की डेट का पता है? कब विनाश होना है? जल्दी विनाश चाहते हो वा हाँ और ना की चाहना से परे हो? विनाश के बजाय स्थापना के कार्य को सम्पन्न बनाने में सभी ब्राह्मण एक ही दृढ़ संकल्प में स्थित हो जाएं तो परिवर्तन हुआ ही पड़ा है। कोई भी सम्पन्न बनने की विशेष बात लक्ष्य में रखते हुए डेट फिक्स करो-होना ही है, तब सम्पन्न हो जायेंगे। अभी संगठित रूप में एक ही दृढ़ संकल्प परिवर्तन का नहीं करते हो। कोई करता है कोई नहीं करता है इसलिए वायुमण्डल पावरफुल नहीं बनता है। मैनारिटी होने कारण जो करता है उसका वायुमण्डल में प्रसिद्ध रूप से दिखाई नहीं देता है इसलिए अब ऐसे प्रोग्राम बनाओ, जो ऐसे विशेष ग्रुप का कर्तव्य विशेष हो-दृढ़ संकल्प से करके दिखाना। जैसे शुरू में पुरूषार्थ के उत्साह को बढ़ाने के लिए ग्रुप्स बनाते थे और पुरूषार्थ की रेस करते थे, एक दूसरे को सहयोग देते हुए उत्साह बढ़ाते थे, वैसे अब ऐसा तीव्र पुरूषार्थियों का ग्रुप बने, जो यह पान का बीड़ा उठाये कि जो कहेंगे वही करेंगे, करके दिखायेंगे। जैसे शुरू में बाप से पवित्रता की प्रतिज्ञा की कि मरेंगे, मिटेंगे, सहन करेंगे, मार खायेंगे, घर छोड़ देंगे, लेकिन पवित्रता की प्रतिज्ञा सदा कायम रखेंगे-ऐसी शेरनियों के संगठन ने स्थापना के कार्य में निमित्त बन करके दिखाया, कुछ सोचा नहीं, कुछ देखा नहीं- करके दिखाया, वैसे ही अब ऐसा ग्रुप चाहिए। जो लक्ष्य रखा उस लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए सहन करेंगे, त्याग करेंगे, बुरा-भला सुनेंगे, परीक्षाओं को पास करेंगे लेकिन लक्ष्य को प्राप्त करके ही छोड़ेंगे। ऐसे ग्रुप सैम्पल बनें तब उनको और भी फॉलो करें। जो आदि में सो अन्त में। ऐसे मैदान में आने वाले, जो निन्दा- स्तुति, मान- अपमान सभी को पार करने वाले हों-ऐसा ग्रुप चाहिए। कोई भी बात में सुनना वा सहन करना, किसी भी प्रकार से, यह तो करना ही होगा, कितना भी अच्छा करेंगे, लेकिन अच्छे को ज्यादा सुनना, सहन करना पड़ता है-ऐसी सहन शक्ति वाला ग्रुप हो। जैसे शुरू में पवित्रता के व्रत वाला ग्रुप मैदान में आया तो स्थापना हुई, वैसे अब यह ग्रुप मैदान में आए तब समाप्ति हो। ऐसा ग्रुप नजर आता है? जैसे वह पार्लियामेन्ट बनाते हैं ना-यह फिर सम्पन्न बनने की पार्लियामेन्ट हो, नई दुनिया, नया जीवन बनाने का विधान बनाने वाली विधान सभा हो। अब देखेंगे कौन-सा ग्रुप बनाते हो। विदेशी भी ऐसा ही ग्रुप बनाना। सच्चे ब्राह्मण बनकर दिखाना। जहाँ भी जाओ वहाँ पहुंचते ही सब समझें कि यह तो अवतार अवतरित हुए हैं। जब एक अवतार दुनिया में क्रान्ति ला सकता है तो इतने सभी अवतार जब उतरेंगे तो कितनी बड़ी क्रान्ति हो जायेगी। विश्व में क्रान्ति लाने वाले अवतार हो, ऐसे समझते हुए कार्य करना। अच्छा।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) No Dharna points as such on Avyakt Divas
2) No Dharna points as such on Avyakt Divas
वरदान:
अपनी आकर्षणमय स्थिति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले रूहानी सेवाधारी भव
रूहानी सेवाधारी कभी यह नहीं सोच सकते कि सेवा में वृद्धि नहीं होती या सुनने वाले नहीं मिलते। सुनने वाले बहुत हैं सिर्फ आप अपनी स्थिति रूहानी आकर्षणमय बनाओ। जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं को नहीं खींच सकती! तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो जिससे आत्मायें स्वत: आकर्षित होकर आपके सामने आ जायें, यही आप रूहानी सेवाधारी बच्चों की सेवा है।
स्लोगन:
समाधान स्वरूप बनना है तो सबको स्नेह और सम्मान देते चलो।