Sunday, December 25, 2016

मुरली 26 दिसंबर 2016

26-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– दिलवाला बाप आया है तुम बच्चों की दिल लेने, इसलिए साफ दिल बनो”
प्रश्न:
सतयुगी पद का मदार मुख्य किस बात पर है?
उत्तर:
पवित्रता पर। मुख्य है ही पवित्रता। सेन्टर पर जो आते हैं उनको समझाना है, अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो नॉलेज बुद्धि में ठहर नहीं सकती। योग सीखते-सीखते अगर पतित बन गये तो सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा। अगर कोई पवित्र नहीं रह सकते तो भले क्लास में न आयें, परवाह नहीं करनी है। जो जितना पढ़ेंगे पवित्र बनेंगे उतना धनवान बनेंगे।
गीत:–
आखिर वह दिन आया आज...   
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे जानते हैं कि अभी वह दिन फिर आया है। कौन सा? यह तो सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि भारत में फिर से स्वर्ग के आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है अर्थात् लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है। तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। जिस पतित-पावन बाप को हम पुकारते हैं वह आया हुआ है। वही लिबरेटर, गाइड है अथवा दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। एक बार लिबरेट किया फिर फँसे कैसे! यह किसको भी पता नहीं। ऐसे पत्थरबुद्धि मनुष्यों को समझाने में कितनी मेहनत लगती है। ड्युटी भी देखो कैसी रखी है? मूत पलीती कपड़ों को आकर साफ करो। आत्मा और शरीर दोनों पवित्र तो देवताओं के ही हैं। रावणराज्य में शरीर तो किसका पवित्र हो न सकें। शरीर तो पतित है ही। इन सब बातों को कोई जानते ही नहीं। करके आत्मा कुछ पवित्र है तो प्रभाव निकलता है परन्तु फिर भी पतित तो बनना ही है ना। बेहद का बाप पतित-पावन आकर कहते हैं यह 5 विकार शैतान हैं, इनको छोड़ो। अगर मेरी नहीं मानेंगे तो तुमको धर्मराज तंग करेंगे। तुम आलमाइटी अथॉरिटी का कहना नहीं मानते हो तो धर्मराज बहुत कड़ी सजा देंगे। बाप आया है पावन बनाने। तुम जानते हो हम ही पावन देवी-देवता थे, अब हम पतित बने हैं। तो अब फट से वह छोड़ देना चाहिए। देह-अभिमान भी शैतान की मत है, वह भी छोड़ना पड़े। पहले नम्बर का जो विकार है, वह भी छोड़ना पड़े। वह दिन भी आयेगा जो बाप के साथ इस सभा में कोई पतित बैठ नहीं सकता, किसको भी एलाउ नहीं करेंगे। मूत पलीती को निकालो बाहर। इन्द्र सभा में आने नहीं देंगे। फिर भल कोई कितना भी करोड़पति हो वा क्या हो, सभा में आ न सकें। बाहर में भल उनको समझाया जाता है। परन्तु बाप की सभा में एलाउ नहीं किया जाता है। अभी एलाउ किया जाता है– भीती के लिए। फिर नहीं। अभी भी बाबा सुनते हैं कोई पतित आकर बैठे हैं तो बाबा को अच्छा नहीं लगता है। ऐसे बहुत हैं जो छिपकर आकर बैठते हैं। ऐसे-ऐसे को बहुत सजा खानी पड़ेगी। मन्दिरों, टिकाणों में स्नान करके जाते हैं। बिगर स्नान कोई जाते नहीं होंगे। वह है स्थूल स्नान। यह है ज्ञान स्नान। इससे भी शुद्ध होना पड़े। कोई मांसाहारी भी आ नहीं सकते। जब समय आयेगा तो बाबा स्ट्रिक्ट हो जायेगा। दुनिया में देखो भक्ति का कितना जोर है। जो अधिक शास्त्र पढ़ते हैं वह शास्त्र का लकब लेते हैं। तुम अब संस्कृत आदि सीखकर क्या करेंगे? अब बाप तो कहते हैं कि सब कुछ भूल जाओ। सिर्फ एक बाप को याद करो तो तुम पवित्र बन विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे। जब इस बात को अच्छी रीति समझ जायेंगे तो यह शास्त्र आदि सब भूल जायेंगे। यह जो पढ़ाई पढ़कर बैरिस्टर आदि बनते हैं, उन सबसे ऊंच पढ़ाई यह है, जो परमात्मा नॉलेजफुल आकर पढ़ाते हैं। उनको कहते भी हैं पतित-पावन आओ। परन्तु यह नहीं जानते कि हम पतित हैं। बाबा तो यह समझाते रहते हैं– सतयुग को कहते हैं रामराज्य, कलियुग को कहते हैं रावण राज्य। इस समय सब पतित हैं, पावन देवी देवतायें तो मन्दिरों में पूजे जाते हैं और उनके आगे पतित जाकर माथा टेकते हैं। इससे सिद्ध हुआ कि वह पवित्रता में सबसे ऊंचे हैं। सन्यासियों से भी ऊंचे हैं। सन्यासियों का मन्दिर थोड़ेही बनता है। अब जब तमोप्रधान भक्ति में चले गये हैं तब फिर उनका चित्र रखते हैं। उसको कहा जाता है तमोप्रधान भक्ति। मनुष्यों की पूजा, 5 तत्वों की पूजा। जब सतोप्रधान भक्ति थी तो एक की पूजा होती थी। उसको कहा जाता है अव्यभिचारी भक्ति। देवताओं को भी ऐसा उसने ही बनाया है। तो पूजा भी होनी चाहिए एक की। परन्तु यह भी ड्रामा बना हुआ है। सतोप्रधान सतो रजो तमो में आना ही है। यहाँ भी ऐसे है। कोई सतोप्रधान बन जाते हैं, कोई सतो, कोई रजो, कोई तमो। सतयुग में फर्स्टक्लास सफाई रहती है। वहाँ शरीर का तो कोई मूल्य रहता नहीं। बिजली पर रखा और खलास। ऐसे नहीं हि·यां कोई नदी आदि में डालेंगे। ऐसे भी नहीं शरीर को कहाँ उठाकर ले जायेंगे। यह तकलीफ की बात होती नहीं। बिजली में डाला, खलास। यहाँ शरीर के पिछाड़ी कितना मनुष्य रोते हैं। याद करते हैं। ब्राह्मण खिलाते हैं। वहाँ यह कोई भी बात नहीं होगी। बुद्धि से काम लेना होता है। वहाँ क्या-क्या होगा। स्वर्ग तो फिर क्या! यह है ही नर्क, झूठ खण्ड। तब गाया हुआ है झूठी काया, झूठी माया... गवर्मेन्ट कहती है गऊ कोस बन्द करो। उन्हों को लिखना चाहिए– पहला यह कोस है बड़ा भारी। एक दो पर काम कटारी चलाना यह कोस बन्द करो। यह काम महाशत्रु है। आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं, उस पर जीत पहनो। तुम पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। वहाँ देवताओं का न्यु ब्लड है। वह कहते हैं– बच्चों का न्यु ब्लड है। परन्तु यहाँ नया ब्लड कहाँ से आया! यहाँ पुराना ब्लड है। सतयुग में जब नया शरीर मिलेगा तब नया ब्लड भी होगा। यह शरीर भी पुराना तो ब्लड भी पुराना। अब इनको छोड़ना है और पावन बनना है। सो तो बाप के सिवाए कोई बना न सके। सबका धर्म अलग-अलग है। और हर एक को अपने धर्म का शास्त्र पढ़ना है। संस्कृत में मुख्य है गीता। बाबा कहते हैं मैं संस्कृत थोड़ेही सिखाता हूँ। जो भाषा यह ब्रह्मा जानता है, मैं उसमें ही समझाऊंगा। मैं अगर संस्कृत में सुनाऊं तो यह बच्चे कैसे समझें। यह कोई देवताओं की भाषा नहीं है। कभी-कभी बच्चियां आकर वहाँ की भाषा बतलाती हैं। यह भाषायें सीखने से शरीर निर्वाह अर्थ कोई लाख, कोई करोड़ कमाते हैं। यहाँ तुम कितनी कमाई कर रहे हो। तुम जानते हो सतयुग में हम महाराजा महारानी बनेंगे। जितना जास्ती पढ़ेंगे उतना जास्ती धनवान बनेंगे। गरीब और साहूकार में फर्क तो रहता है ना। सारा मदार है पवित्रता पर। सेन्टर पर जो आते हैं उनको समझाना है अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो नॉलेज बुद्धि में ठहरेगी नहीं। 5-7 रोज आकर फिर पतित बने तो नॉलेज खत्म। योग सीखते-सीखते अगर पतित बने तो सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा। अगर कोई पवित्र नहीं बन सकता है तो भले न आओ। परवाह थोड़ेही रखनी चाहिए। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है। सो बिगर याद के कैसे उतरेगा! गाया भी हुआ है– सेकेण्ड में जीवन मुक्ति। जो बाप कहे सो करना है। सारी दुनिया बुलाती तो है हे पतित-पावन आओ, हम पतित हैं परन्तु पावन कोई बनते ही नहीं हैं। तो वापिस भी कोई जा नहीं सकते। वे लोग ब्रह्म को परमात्मा समझ याद करते हैं। यह ज्ञान ही किसको नहीं तो परमात्मा क्या है? ब्रह्म कोई परमात्मा नहीं है। न ब्रह्म में कोई लीन हो सकता है। फिर भी पुनर्जन्म में तो सबको आना ही है क्योंकि आत्मा अविनाशी है। वह समझते हैं बुद्ध वापिस चला गया। परन्तु उसने जो स्थापना की तो जरूर पालना भी करेंगे। नहीं तो पालना तब कौन करेंगे। वह वापिस कैसे जा सकते हैं। तुम ऐसे थोड़ेही कहते हो कि हम मुक्ति में जाकर बैठ जायें। तुम जानते हो हम अपना धर्म स्थापन कर रहे हैं फिर पालना भी करेंगे। वह पावन धर्म था, अब पतित बन पड़े हैं। आयेंगे भी वही जो इस धर्म के होंगे। यह कलम लग रहा है। सबसे मीठे ते मीठा झाड़ है यह देवी-देवता धर्म का। इसकी स्थापना का कार्य हो रहा है। शास्त्र आदि जो भी बनाये हैं, सब हैं भक्ति मार्ग के लिए। एक बाबा का ही गायन है जो आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं। तो ऐसे बनाने वाले बाप को कितना अच्छी रीति याद करना चाहिए। यह भी जानते हैं ड्रामा अनुसार भक्ति मार्ग को भी चलना ही है। वास्तव में सर्व का सद्गतिदाता एक है, तो पूजा भी एक की करनी चाहिए। देवी-देवता जो सतोप्रधान थे वह 84 जन्म भोगकर तमोप्रधान बने हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है। सो सिवाए बाबा की याद के बन न सकें। न किसी में बनाने की ताकत है सिवाए बाप के। याद भी एक को ही करना है। यह है अव्यभिचारी याद। अनेकों को याद करना– यह है व्यभिचारीपना। सबकी आत्मा जानती है कि शिव हमारा बाबा है इसलिए सब तरफ जहाँ भी देखो शिव को पूजते हैं। देवी-देवताओं के आगे भी शिव को रखा है। वास्तव में देवतायें तो पूजा करते नहीं हैं। गायन भी है– दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोई। फिर देवतायें पूजा कैसे करेंगे! वह है रांग। झूठी महिमा थोड़ेही दिखानी चाहिए। शिवबाबा को जानते ही कहाँ हैं जो याद करें। तो वह चित्र उठा देना चाहिए। बाकी पूजा करने वाले सिंगल ताज वाले दिखाने चाहिए। साधू-सन्त किसको भी लाइट का ताज नहीं है इसलिए ब्राह्मणों को भी लाइट का ताज नहीं दिखा सकते हैं। जिनका ज्ञान तरफ पूरा ध्यान होगा वह करेक्शन भी करते रहेंगे। अभुल तो कोई बना नहीं है। भूलें होती ही रहती हैं। त्रिमूर्ति का चित्र कितना अच्छा है। यह बाप यह दादा। बाबा कहते हैं– तुम मुझे याद करो तो यह बन जायेंगे। देही-अभिमानी बनना है। आत्मा कहती है मेरा सिवाए एक बाप के और किसी में ममत्व नहीं है। हम यहाँ रहते भी शान्तिधाम और सुखधाम को याद करते हैं। अभी दु:खधाम को छोड़ना है। परन्तु जब तक हमारा नया घर तैयार हो जाए तब तक पुराने घर में रहना है। नये घर में जाने लायक बनना है। आत्मा पवित्र बन जायेगी तो फिर घर चली जायेगी। कितना सहज है। मूल बात है ही यह समझने की कि परमात्मा कौन है और यह दादा कौन है? बाप इन द्वारा वर्सा देते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे मनमनाभव। मुझे याद करो तो तुम पावन देवता बन जायेंगे सतयुग में। बाकी सब उस समय मुक्तिधाम में रहते हैं। सभी आत्माओं को शान्तिधाम में ले जाने वाला बाप ही है। है कितना सहज। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। दिल बड़ी साफ होनी चाहिए। कहा जाता– दिल साफ तो मुराद हॉसिल। दिल आत्मा में है। सच्चा दिलवर आत्माओं का बाप है। दिल लेने वाला दिलवाला बाप को कहा जाता है। वह आते ही हैं सबकी दिल लेने के लिए। सभाr की संगम पर आकर दिल लेते हैं। आत्माओं की दिल लेने वाला परमात्मा। मनुष्यों की दिल लेने वाले मनुष्य। रावण राज्य में सब एक दो की दिल को खराब करने वाले हैं। तुम बच्चों को कल्प पहले भी इस त्रिमूर्ति के चित्र पर समझाया है तब तो अभी भी निकला है ना। तो जरूर समझाना पड़ेगा। अभी कितने चित्र निकले हैं समझाने के लिए। सीढ़ी कितनी अच्छी है। फिर भी समझते नहीं। अरे भारतवासी तुमने ही 84 जन्म लिये हैं। यह अभी अन्तिम जन्म है। हम तो शुभ बोलते हैं। तुम ऐसे क्यों कहते हो कि हमने 84 जन्म नहीं लिये हैं। तो तुम स्वर्ग में आयेंगे नहीं। फिर भी नर्क में आयेंगे। स्वर्ग में आने चाहते ही नहीं हैं। भारत ही स्वर्ग बनना है। यह तो हिसाब है समझने का। महारथी अच्छी तरह समझा सकते हैं। सर्विस करने का हुल्लास रखना चाहिए। हम जाकर किसको दान दें। धन होगा ही नहीं तो दान देने का ख्याल भी नहीं आयेगा। पहले पूछना चाहिए कि क्या आश रखकर आये हो? दर्शन की यहाँ बात नहीं। बेहद बाप से बेहद का सुख लेना है। दो बाप हैं ना। बेहद के बाप को सब याद करते हैं। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है सो आकर समझो। यह भी समझने वाले ही समझेंगे। राजाई लेने वाला होगा तो फट समझ जायेगा। यह तो बाप कहते हैं घर बैठे, काम काज करते सिर्फ बाबा को याद करो तो याद करने से ही पाप मिट जायेंगे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कभी भी एक दो की दिल खराब नहीं करनी है। सर्विस करने का हुल्लास रखना है। ज्ञान धन है तो दान जरूर करना है।
2) नये घर में चलने के लिए स्वयं को लायक बनाना है। आत्मा को याद के बल से पावन बनाना है।
वरदान:
अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित भव
सभी ब्राह्मण बच्चों को जन्म से ही ताज, तख्त, तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। तो इस भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो गुण सम्पन्न बन जायेंगे। अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो, प्रश्नों से पार रहो तब सदा प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त होगा। फिर दूसरों को भी सहज ही प्रसन्न कर सकेंगे।
स्लोगन:
एकनामी और इकॉनामी से चलना ही ब्राह्मण जीवन में सफलता का आधार है।