Friday, December 9, 2016

मुरली 10 दिसंबर 2016

10-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप आये हैं तुम्हें भक्ति का फल देने, भक्ति का फल है ज्ञान, ज्ञान से ही सद्गति होती है”
प्रश्न:
इस ब्राह्मण कुल में बड़ा किसको कहेंगे? उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर:
ब्राह्मण कुल में बड़े से बड़े वह हैं जो अच्छी सर्विस करने वाले हैं। जिन्हें सदैव अपनी उन्नति का ही ओना (ख्याल) रहता है, जो पढ़ाई कर बहुत तीखे जाते हैं। ऐसे महावीर बच्चे अपना तन-मन-धन सब ईश्वरीय सेवा में ही सफल करते हैं। अपनी चलन पर बहुत ध्यान देते हैं।
गीत:-
तूने रात गवाई सोके...   
ओम् शान्ति।
यह गीत अनकरेक्ट है। इस दुनिया में तुम जो भी सुनते हो सब है अनकरेक्ट अर्थात् झूठ। बाप बैठ समझाते हैं हे भारतवासी बच्चों, बच्चे जो सम्मुख हैं, उन्हों को ही कहेंगे। तुमको अभी मालूम पड़ा है वह है भक्ति मार्ग। वेद, शास्त्र, उपनिषद आदि कितने भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर पढ़ते आते हैं। गंगा स्नान करते आये हैं। पूछो, यह कुम्भ का मेला कब से लगता आया है? कहेंगे यह तो अनादि है। कब से करते आये हैं? यह बता नहीं सकेंगे। उनको यह पता ही नहीं है कि भक्ति मार्ग कब से शुरू होता है। कल्प की आयु ही उल्टी कर दी है। कहते हैं शास्त्रों में लिखा हुआ है– ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। यह एक गीता में ही है। अब बाप समझाते हैं तुम ब्राह्मणों का दिन और रात है बेहद की। आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात। जरूर इक्वल चाहिए ना। आधाकल्प से भक्ति मार्ग शुरू होता है, यह किसको पता नहीं है। सोमनाथ का मन्दिर कब बना? पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर ही बना है– अव्यभिचारी भक्ति के लिए। तुम जानते हो आधाकल्प पूरा होता है तब ब्रह्मा की रात शुरू होती है। लाखों वर्ष की तो बात हो न सके। कहते हैं 13-14 सौ वर्ष हुए होंगे जबकि मुहम्मद गजनवी मन्दिर से खजाना लूटकर ले गया। अब तुम समझते हो इस पुरानी दुनिया से हमारा कोई तैलुक नहीं है, और-और धर्म वाले जो आते हैं वह सब बीच-बीच के बाइप्लाट हैं। अभी तो उन्हों की भी अन्त है। तमोप्रधान हैं। कितनी वैरायटी है। सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी हुए, दो कला कम हुई फिर दूसरे वैरायटी आते गये हैं। इस समय है ही भक्ति मार्ग। ज्ञान से होता है दिन, सुख। भक्ति से होती है रात, दु:ख। जब भक्ति पूरी हो तब ज्ञान मिले। ज्ञान देने वाला एक ही ज्ञान सागर बाप है। वह कब आते हैं, शिव जयन्ती कब मनाई जाती है, यह भी किसको पता नहीं है। अभी तुमको बाबा बैठ समझाते हैं कि भक्ति कितना समय चलती है फिर ज्ञान कब मिलता है। आधाकल्प से यह भक्ति मार्ग चलता ही आया है। सतयुग त्रेता में यह भक्ति मार्ग के चित्र आदि कुछ भी होते नहीं। भक्ति का अंश भी नहीं रहता। अब कलियुग का अन्त है तब भगवान को आना पड़ता है। बीच में किसको भगवान मिलता ही नहीं। कहते हैं पता नहीं किस रूप में भगवान मिलेगा? गीता का भगवान अगर कृष्ण है तो वह फिर कब आयेंगे– राजयोग सिखाने? मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है। भक्ति मार्ग बिल्कुल ही अलग है, ज्ञान बिल्कुल अलग है। गीता में है भगवानुवाच। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। एक तरफ पुकारते रहते हैं; दूसरे तरफ फिर गंगा स्नान करने जाते हैं। निश्चय कुछ भी नहीं है कि पतित-पावन परमात्मा कौन है। तुम बच्चों को अब ज्ञान मिला है। तुम जानते हो अभी हम योगबल से सद्गति को पाते हैं। बाबा कहते हैं– मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। मैं गैरन्टी करता हूँ– पतित-पावन बाप कहते हैं मैंने 5 हजार वर्ष पहले भी ऐसे कहा था कि हे बच्चे देह सहित देह के सब सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ मुझे याद करो। यह गीता के महावाक्य हैं। परन्तु गीता मैंने कब सुनाई, यह किसको मालूम नहीं है। मैं बतलाता हूँ तो 5 हजार वर्ष पहले मैंने तुमको गीता सुनाई थी। इस समय सारा मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। तुमको भी अब बाप ने आकर ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का, सारे चक्र का राज समझाया है। बाप तो जरूर अन्त में ही आयेगा ना। तुम जानते हो नई दुनिया की स्थापना, पुरानी दुनिया का विनाश कैसे हो रहा है। अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हम नई दुनिया स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह राजयोग है तो फिर हम प्रजा क्यों बनें। जबकि मम्मा बाबा राजा-रानी बनते हैं तो हम भी क्यों न राजारानी बनें। मम्मा तो जवान थी। यह बाबा तो बूढ़ा है फिर भी सबसे ऊंच पढ़ते रहते हैं ना। जवान तो सबसे तीखे होने चाहिए ना। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो, जितना हो सके। बाकी सबको भूल जाओ। पुरानी दुनिया से वैराग्य। जैसे नया मकान बनता है तो बुद्धि उस तरफ चली जाती है ना। वह आंखों से देखा जाता है। यह बुद्धि से जानते हो। बहुतों को साक्षात्कार भी होता है। बरोबर वैकुण्ठ पैराडाइज, हेवन भी कहते हैं। जरूर कब था ना। अभी नहीं है। अभी फिर तुम राजाई प्राप्त करने के लिए राजयोग सीख रहे हो। पहली-पहली मुख्य बात ही यह है– शिव भगवानुवाच। कृष्ण तो भगवान हो न सके। वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। भगवान तो जन्म-मरण में आ न सके, यह तो बड़ा साफ है। कृष्ण का वह रूप सतयुग में जो था वह तो फिर हो न सके। पुनर्जन्म लेते-लेते नाम रूप बदल जाता है। इस समय वह आत्मा भी तमोप्रधान है। कोई कहे कृष्ण द्वापर में थे परन्तु उनका वह रूप तो द्वापर में हो न सके। द्वापर में पतित से पावन बनाने आ नहीं सकता। कृष्ण तो सतयुग में ही रहते हैं। उनको पतित-पावन कहा नहीं जा सकता। गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है। वह आते भी जरूर हैं। शिव जयन्ती भी है, जरूर कोई रथ में प्रवेश करेंगे। खुद भी कहते हैं मैं साधारण तन में आता हूँ, जिनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। यह नॉलेज अच्छी तरह बुद्धि में याद रखनी है। बुद्धि में यह याद रहे कि हम स्टूडेन्ट हैं। बाप पढ़ा रहे हैं। बाकी थोड़ा समय है। फिर बाबा हमको वापिस ले जायेंगे। जो अपने को ऊंच बनायेंगे, वही ऊंच पद पायेंगे। परन्तु माया ऐसी है जो एकदम तवाई बना देती है। कई बच्चों को सर्विस का बहुत शौक है। छोटे-छोटे गांव में प्रोजेक्टर लेकर सर्विस कर रहे हैं। बहुत प्रजा बनाते हैं तो खुद जरूर राजा बनेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र भी रहना है। बहुत मेहनत करनी है। मातायें पवित्र बनती हैं तो पति बनने नहीं देते, तो झगड़ा भी चलता है। सन्यासी खुद पवित्र बनते हैं तो स्त्र को छोड़ देते हैं। फिर उनको कोई कुछ नहीं कहता कि अपनी रचना को छोड़ क्यों भागते हो। पवित्र बनने के लिए कोई मना नहीं कर सकता। हम किसको घरबार छोड़ने के लिए कहते नहीं हैं। सिर्फ कहते हैं पवित्र बनना चाहिए तो इसमें मना क्यों होनी चाहिए। परन्तु इसमें ताकत बहुत चाहिए बात करने की। भगवानुवाच– तुम पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। इसमें अवस्था बड़ी अच्छी मजबूत चाहिए, मोह आदि नहीं चाहिए, जो फिर याद पड़ती रहे। बुद्धियोग कुटुम्ब की तरफ जाता रहे, इसलिए फिर सर्विस लायक बन नहीं सकते। यहाँ तो बेहद का सन्यास चाहिए। यह तो कब्रिस्तान है। हमको याद करना है– बाप को। वह परिस्तान में ले चलने वाला है। इस ब्राह्मण कुल में जो अच्छी सर्विस करते हैं, वह बड़े ठहरे। उन्हों का बड़ा रिगार्ड रखना चाहिए, उन जैसी सर्विस करनी चाहिए तब ही ऊंच पद पायेंगे। अभी तो अपनी उन्नति का ओना रहना चाहिए। अपने को देखना चाहिए हम बाबा से वर्सा पाने के लायक बने हैं! बाप आया है पावन बनाकर साथ ले जाने। वह ठुकरायेंगे कैसे? बाबा सबसे पूछते हैं तो कहते हैं हम तो महारानी बनेंगे। तो ऐसी चलन भी हो ना। कई तो बहुत अच्छे बच्चे हैं। परन्तु जो पुरूषार्थ ही नहीं करेंगे तो वह क्या पद पायेंगे। हर बात में पुरूषार्थ से ही प्रालब्ध मिलती है। कोई बीमार पड़ जाते हैं फिर ठीक होने से ही दिन रात पुरूषार्थ में लग पढ़ाई में तीखे हो जाते हैं। यहाँ भी सर्विस में लग जाना है। सर्विस की युक्तियां तो बाबा बहुत बतलाते हैं। प्रदर्शनी पर समझाने का अभ्यास करो। बाबा तो कहते हैं अपनी उन्नति कर जीवन बनाओ। यह ओना रहना चाहिए कि मैंने कितनी सर्विस की, कितनों को आप समान बनाया। किसको आप समान नहीं बनाया तो ऊंच पद कैसे पायेंगे। फिर समझा जाता है प्रजा में चले जायेंगे अथवा दास दासियां बनेंगे। ढेर सर्विस पड़ी है। अभी तुम्हारा झाड़ छोटा है। मजबूत नहीं है। तूफान लगने से कच्चे गिर पड़ेंगे। माया बड़ा हैरान करती है। माया का काम ही है बाबा से बेमुख करना। चलते-चलते ग्रहचारी जब उतरती है तब कहते हैं अब तो हम बाबा से पूरा वर्सा लेंगे। तन-मन-धन से पूरी सेवा करेंगे। कहाँ-कहाँ माया गफलत कराती है फिर श्रीमत पर चलना छोड़ देते हैं। फिर कभी स्मृति आती है तो श्रीमत पर चलते हैं। इस समय दुनिया में है रावण सम्प्रदाय। यह देवतायें हैं राम सम्प्रदाय। रावण सम्प्रदाय वाले राम सम्प्रदाय के आगे माथा टेकते हैं। तुम जानते हो हम विश्व के मालिक थे। 84 जन्म लेते-लेते अब क्या हाल हो गया है। अब बाप सबको पुरूषार्थ कराते हैं। नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा। हम भगवान की श्रीमत पर न चले, बाबा तो रोज समझाते हैं बच्चे गफलत मत करो। सर्विस करने वालों को देखते हो कैसे अच्छी सर्विस करते हैं। फलाना फर्स्ट ग्रेड, फलाने सेकण्ड ग्रेड में सर्विस करने वाले हैं। फर्क तो रहता है ना। बाप बच्चों को समझायेंगे तो सही ना। अज्ञान काल में बाप थप्पड़ भी मारते हैं। यहाँ यह बेहद का बाप तो प्यार से समझाते हैं, अपनी उन्नति करो। जैसा हो सके पुरूषार्थ करना चाहिए। बाप को खुशी होती है कि 5 हजार वर्ष के बाद फिर आकर बच्चों से मिला हूँ। राजयोग सिखला रहा हूँ। गीत है ना– तुम भी वही हम भी वही हैं। तो बाप कहते हैं तुम बच्चे भी वही हो। इन बातों को और कोई समझ न सके। अच्छा।

मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वयं को सर्विस के लायक बनाना है। जो अच्छी सर्विस करते हैं उनका पूरा-पूरा रिगार्ड रखना है। अपनी उन्नति का ख्याल करना है।
2) तन-मन-धन से पूरी सेवा करनी है। श्रीमत पर चलना है, गफलत नहीं करनी है।
वरदान:
विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अंगुली देने वाले महान सो निर्माण भव
जैसे कोई स्थूल चीज बनाते हैं तो उसमें सब चीजें डालते हैं, कोई साधारण मीठा या नमक भी कम हो तो बढि़या चीज भी खाने योग्य नहीं बन सकती। ऐसे ही विश्व परिवर्तन के इस श्रेष्ठ कार्य के लिए हर एक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। सब अपनी-अपनी रीति से बहुत-बहुत आवश्यक, श्रेष्ठ महारथी हैं इसलिए अपने कार्य की श्रेष्ठता के मूल्य को जानो, सब महान आत्मायें हो। लेकिन जितने महान हो उतने निर्माण भी बनो।
स्लोगन:
अपनी नेचर को इजी (सरल) बनाओ तो सब कार्य इजी हो जायेंगे।