Tuesday, October 4, 2016

मुरली 5 अक्टूबर 2016

05-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हें योगबल से रावण दुश्मन पर जीत पानी है, मनुष्य से देवता बनने के लिए दैवीगुण धारण करने हैं”
प्रश्न:
सभी बच्चे बाप की श्रीमत पर एक जैसा नहीं चलते हैं– क्यों?
उत्तर:
क्योंकि बाप जो है, उसको सभी ने एक जैसा पहचाना नहीं है। जब पूरा पहचानेंगे तब श्रीमत पर चलेंगे। 2- माया दुश्मन श्रीमत पर चलने से रोक लेती है इसलिए बच्चे बीच-बीच में अपनी मत चला देते हैं। फिर कहते बाबा माया के तूफान आते हैं, आपकी याद भूल जाती है। बाबा कहते बच्चे– रावण माया से डरो मत। जोर से पुरूषार्थ करो तो वह थक जायेगी।
गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे...   
ओम् शान्ति।
तुम सिंगल आत्मा हो। हर एक कहेंगे ओम् शान्ति। यह डबल है इनको दो बार कहना पड़े– ओम् शान्ति, ओम् शान्ति। अब बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं– तुम यहाँ युद्ध के मैदान में बैठे हो। ऐसे नहीं कि जैसे वो लोग आपस में लड़ते हैं। ऐसे तो घर-घर में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। मैजारिटी की बात की जाती है। नम्बरवन है देह-अभिमान, सेकेण्ड है काम। अभी तुम याद के बल से 5 विकारों रूपी रावण पर जीत पाते हो। याद का बल है तो तुम गिरेंगे नहीं। तुम्हारी एक रावण से ही युद्ध है। वहाँ तो अनेक प्रकार की बातें होती हैं। यहाँ एक ही बात है। तुम्हारी युद्ध है ही रावण के साथ। तुमको सिखलाने वाला कौन है? पतित-पावन भगवान। वह है ही पतित से पावन बनाने वाला। पावन अर्थात् देवता, तुम विश्व के मालिक बनते हो। यह कोई मनुष्य समझते नहीं कि रावण द्वारा तुम पतित बने हो। बाप ने समझाया है इस समय सारी दुनिया में रावण का राज्य है। वैसे रामराज्य होता है सतयुग, त्रेता में। तो भी सारी दुनिया में कहेंगे। परन्तु वहाँ इतने मनुष्य नहीं होते। तुम विश्व का राज्य ले रहे हो योगबल से। ऐसे भी नहीं यहाँ बैठते हो तब ही बाप को याद करना है वा स्वदर्शन चक्र फिराना है, बस। यह तो हर वक्त बुद्धि में रहना चाहिए। हमने स्वर्ग में आधाकल्प राज्य किया फिर रावण का श्राप मिलने से उतरते हैं। उतरने में टाइम तो लगता है। 84 पौढ़ी (सीढ़ी) उतरनी पड़ती हैं। चढ़ती कला में पौढि़याँ तो हैं नहीं, अगर पौढि़यां हों तो सेकेण्ड में जीवनमुक्ति कैसे कहा जाए? कहाँ तुमको 2500 वर्ष उतरने में लगते हैं और कहाँ तुम थोड़े ही वर्षों में चढ़ती कला में आ जाते हो। तुम्हारा है योगबल। उनका है बाहुबल। द्वापर से लेकर उतरते हैं फिर बाहुबल शुरू होता है। सतयुग में मारने की बात हो नहीं सकती। कृष्ण के लिए जो दिखाया है– उखरी से बांधा। ऐसी कोई बात हो नहीं सकती। वहाँ बच्चा कभी चंचल होता नहीं। वह तो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण होता है। कृष्ण को कितना याद करते आते हैं। अच्छी चीज की याद आती है ना। जैसे दुनिया में 7 वन्डर्स हैं तो मनुष्यों को याद आते हैं, देखने जाते हैं। आबू में अच्छे ते अच्छी क्या चीज है, जो मनुष्य देखने आते हैं? रिलीजस आदमी तो आते ही हैं मन्दिर देखने। भक्ति मार्ग में तो मन्दिर बहुत होते हैं। सतयुग त्रेता में कोई मन्दिर होता नहीं। मन्दिर बाद में बनते हैं, यादगार के लिए। सतयुग में त्योहार आदि कोई होते नहीं। दीपावली भी ऐसे नहीं होती। हाँ, तख्त पर बैठते हैं तो कारोनेशन डे मनाते हैं। वहाँ तो ज्योत सबकी जगी हुई होती है। तुम्हारे पास एक गीत भी है– नवयुग आया... यह सिर्फ तुमको पता है हम नवयुग अर्थात् सतयुग के लिए, देवी-देवता बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। पढ़ाई तो पूरी रीति पढ़नी चाहिए। जहाँ जीना है ज्ञान अमृत पीना है। यह नॉलेज है सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानना है। इसमें कोई भाषा आदि नहीं सीखी जाती है। सिर्फ बाप को याद करना है और स्वदर्शन चक्र फिराना है, बस। यहाँ तुम बैठे हो। स्वदर्शन चक्रधारी हो। बुद्धि में है– हमारा 84 जन्मों का चक्र पूरा हुआ। अब पुराना शरीर, पुराना सम्बन्ध छोड़कर नया लेना है। विष्णुपुरी का मालिक बनने के लिए बाबा पुरूषार्थ करा रहे हैं। दुनिया में और सब हैं आसुरी सम्प्रदाय। भगवानुवाच– यह वही गीता का युग चल रहा है। यह है कल्प-कल्प का संगमयुग। बाप कहते हैं– मैं इस कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। मैं वही गीता का भगवान हूँ। यहाँ आता हूँ नई दुनिया स्वर्ग रचने, मैं द्वापर में कैसे आऊंगा। यह एक बड़ी भूल है। कोई छोटी कोई बड़ी भूल होती है। यह बड़े ते बड़ी भूल है। शिव भगवान जो पुनर्जन्म रहित है, उनके बदले 84 जन्म लेने वाले का नाम लिख दिया है। तुम अभी जानते हो कि श्रीकृष्ण तो ऐसे कह न सके कि मामेकम् याद करो। सब धर्म वाले थोड़ेही उनको मानेंगे। शिव तो निराकार है। तुम शिव शक्ति सेना हो। शिवबाबा के साथ योग लगाकर शक्ति लेते हो। इसमें मेल-फीमेल की बात नहीं। तुम आत्मायें सब ब्रदर्स हो। सभी बाप से शक्ति ले रहे हो। वर्सा बाप ही देगा ना। वह बाप ही सर्वशक्तिमान् है। इन लक्ष्मी-नारायण को भी कहेंगे सर्वशक्तिमान् क्योंकि सारे विश्व के मालिक हैं। उन्होंने यह राज्य कैसे पाया? अभी भारत तो क्या सारी दुनिया में रावण राज्य है। कोई राजायें होते हैं तो मालूम होता है, उनके बड़ों ने यह राजाई की है, जो चलती आती है। यह तो सतयुग आदि से चले हैं तो जरूर आगे जन्म में ऐसा पुरूषार्थ किया होगा। पतित राजाई मिलती है दान-पुण्य करने से। यहाँ तो इस संगम पर ज्ञान और योगबल से 21 जन्म के लिए राज्य पाते हो। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया सारी विनाश होनी है। यह देह भी नहीं रहेगी, इसलिए अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बाबा-बाबा कहना सीखो। जैसे जिस्मानी बच्चों को सिखाया जाता है तो वह उसी बाप को याद करते हैं। अभी रूहानी बाप तुम बच्चों को कहते हैं हे बच्चे, यह नई बात है। बाप कहते हैं- अब मुझ रूहानी बाप को याद करो क्योंकि वापिस घर चलना है। आत्मा तो अविनाशी है, शरीर विनाशी है तो ताकत वाला कौन ठहरा? शरीर आत्मा के आधार पर चलता है। आत्मा चली जाती है तो शरीर को आग में जलाना पड़ता है। आत्मा तो है ही अविनाशी। वह बिन्दी की बिन्दी ही है। उस आत्मा को कोई भी नहीं जानते हैं। भल करके कोई को साक्षात्कार होता है फिर भी क्या! उनको तो यह पता ही नहीं है कि आत्मा जो बिन्दी है, उनमें 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। यह बातें तुम्हारी ही बुद्धि में हैं। राजयोग सिखलाने वाला है ही वह बाप। बाकी बैरिस्टर, वकील, इन्जीनियर आदि तो चले आते हैं। यहाँ बनना है मनुष्य से देवता। हैं वह भी मनुष्य परन्तु उनको देवता कहा जाता है। देवता अर्थात् दैवी गुण धारण करने वाले। तुमको पुरूषार्थ कर ऐसा दैवीगुणों वाला बनना है। यह है एम आबजेक्ट। तुम जानते हो इन देवताओं में कौन से गुण हैं! ऐसा हमको बनना है। प्रजा भी होगी ना। प्रजा ढेर की ढेर बनती है। बाकी राजा-रानी बनने में मेहनत लगती है। जो मेहनत बहुत करेंगे वह राजा-रानी बनेंगे। जो बहुतों को नॉलेज देंगे, वह हर एक अपनी दिल से समझ सकते हैं। आत्मा कहती है– हम बेहद बाप का बन ही जाऊंगा। उन पर वारी जाऊंगा, कुर्बान जाऊंगा। जो कुछ मेरे पास है सब वारी जाऊंगा। ईश्वर को तो देते हैं ना। आप आयेंगे तो हम कुर्बान जायेंगे। उसके बदले आपसे नया तनमन- धन लेंगे। मन नया कैसे लेंगे? आत्मा को नया (पवित्र) बनायेंगे। फिर शरीर भी नया लेंगे। राजधानी भी लेंगे। अब तुम ले रहे हो ना। आत्मा कहती है हे बाबा इस शरीर सहित आपकी हूँ। बाबा हम आपकी शरण आता हूँ। सब रावण राज्य में बहुत दु:खी हुए हैं इसलिए बाबा अब इससे लिबरेट कर अपनी राजधानी में ले चलो। शिवबाबा तो मिल गया तो बाकी क्या! तुम जानते हो कि शिवबाबा की श्रीमत से स्वर्ग बनता है। आसुरी रावण की मत से नर्क बनता है। अब फिर से स्वर्ग बनना है, श्रीमत से। जरूर जो कल्प पहले आये होंगे वही आयेंगे। श्रीमत से ऊंच बनेंगे। रावण मत पर चलने से गिर पड़ेंगे। तुम्हारी अब होती है चढ़ती कला, बाकी सबकी उतरती कला है। कितने अनेक धर्म हैं। सतयुग में एक देवी-देवता धर्म ही था। अब वह प्राय:लोप हो गया है। (बड के झाड़ का मिसाल) तुम जानते हो देवी-देवता धर्म की निशानियाँ तो हैं। बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था। 5 हजार वर्ष की बात है। तुम सिद्ध कर बतलाते हो यह 5 हजार वर्ष का चक्र है। इसमें 4 युग हैं। हर एक युग की आयु 1250 वर्ष है। उन्होंने तो लाखों वर्ष लगा दिये हैं। बहुत फर्क होने के कारण किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। समझते हैं जैसे और-और संस्थायें हैं वैसे यह भी बी.के. की संस्था है। यह गीता को उठाते हैं। अब गीता तो कृष्ण भगवान ने गाई। यह दादा तो जवाहरी बैठा है, तो मनुष्य मूँझेंगे ना। बाप कहते हैं- मैं जो हूँ, जैसा हूँ, इस समय तक कोई ने मुझे जाना नहीं है। पिछाड़ी में तुम पूरी रीति जानेंगे। अभी तक नम्बरवार जाना है, तब तो श्रीमत पर चलना बड़ा मुश्किल समझते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे भी श्रीमत पर नहीं चलते। रावण चलने नहीं देता। अपनी मत चला देते हैं। थोड़े हैं जो श्रीमत पर पूरा चलने वाले हैं। आगे चल पूरा पहचानेंगे तब श्रीमत पर चलेंगे। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, वह आगे चल समझेंगे। अभी समझते जाते हैं। पूरा समझ लें तो बाकी क्या चाहिए! रहना भी अपने गृहस्थ में है परन्तु दुश्मन माया ऐसी है जो श्रीमत पर चलने से रोक लेती है। कहते हैं बाबा माया के तूफान बहुत आते हैं। माया आपकी याद भुला देती है। हाँ पुरूषार्थ जोर से करते-करते फिर आखरीन माया भी थक जायेगी। माला भी 8 की है। मुख्य 8 रत्न हैं। 8 तो हैं– जोड़ी। नवाँ रत्न बीच में शिवबाबा को रखते हैं। कोई लाल बनाते हैं, कोई सफेद। अब शिवबाबा तो है बिन्दी। बिन्दी लाल नहीं होती। बिन्दी तो सफेद ही होती है। वह बहुत सूक्ष्म है। दिव्य दृष्टि के सिवाए कोई देख न सके। डाक्टर आदि कितनी कोशिश करते हैं देखने की। परन्तु देख न सकें क्योंकि अव्यक्त चीज है ना इसलिए पूछा जाता है– तुम कहते हो हम आत्मा हैं, अच्छा आत्मा को कब देखा है? अपने को ही नहीं देख सकते तो बाप को कैसे देख सकेंगे। आत्मा को जानना है कि कैसे उनमें पार्ट भरा हुआ है। यह बिल्कुल ही कोई नहीं जानते। 84 के बदले 84 लाख कह देते हैं। बाप आकर बच्चों को भी सब बातें समझाते हैं। आज का भारत क्या है, कल का भारत क्या होगा! महाभारत लड़ाई भी है। गीता का ज्ञान भी दिया है, यह रूद्र यज्ञ भी है। सब धर्मो का विनाश, एक धर्म की स्थापना हो रही है। यह शिवबाबा का भण्डारा है, इससे तुमको पवित्र भोजन मिलता है। ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ही बनाते हैं, इसलिए इनकी महिमा अपरमअपार है। इससे तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनते हो, इसलिए पवित्र भोजन अच्छा है। जितना तुम ऊंच होते जायेंगे उतना भोजन भी शुद्ध तुमको मिलेगा। योगयुक्त कोई भोजन बनाये तो बल बहुत मिल जाए, वह भी आगे चल मिलेगा। सर्विसएबुल बच्चे जो सेन्टर पर रहते हैं, वह अपने ही हाथों से भोजन बनाकर खायें तो भी उसमें बहुत बल मिल सकता है। जैसे पतिव्रता स्त्री, पति के बिगर किसी को याद नहीं करती। ऐसे तुम बच्चे भी याद में रहकर बनाओ, खाओ तो बहुत बल मिलेगा। बाबा की याद में रहने से तुम विश्व की बादशाही लेते हो। बाबा राय तो देते हैं परन्तु अभी किसकी बुद्धि में नहीं आता। आगे चल हो सकता है– कहेंगे हम अपने हाथ से योगयुक्त हो भोजन बनाते हैं, तो सबका कल्याण हो जाए। बाप बच्चों को हर प्रकार की मत देते हैं ना। त्रिमूर्ति चित्र सामने रखा हो। वर्सा शिवबाबा से लेना है। कुछ न कुछ युक्ति करते रहो। बाबा अपना मिसाल देते हैं– भक्ति मार्ग में हम नारायण के चित्र को बहुत प्यार करते थे। बस उनको याद करने से आंसू आ जाते थे क्योंकि उस समय वैराग्य था। छोटेपन में वृत्ति वैराग्य की थी। यह हैं फिर बेहद की बातें। फिर भी कहते हैं मनमनाभव। योग में रहने से ही तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। याद में रहने का फुरना रखना है। श्रीमत मिलती है, बाप कहते हैं याद करो। मैं सृष्टि का रचयिता हूँ तो तुम भी नई दुनिया के मालिक बनेंगे ना। नहीं तो सजा भी खायेंगे और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। मरने के पहले बच्चों को यह फुरना (फिक्र) रखना है कि हम सतोप्रधान कैसे बनें। बाप को याद तो जरूर करना है। यह है बड़े ते बड़ा फुरना। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योगयुक्त हो अपने हाथ से भोजन बनाना और खाना है। पवित्र दुनिया में जाने के लिए पवित्र भोजन खाना है। उसमें ही बल है।
2) नया तन-मन-धन प्राप्त करने के लिए पुराना सब कुछ बाप पर वारी कर देना है। इस शरीर सहित बाप पर पूरा-पूरा कुर्बान जाना है।
वरदान:
सदा साथीपन की स्मृति और साक्षी स्टेज का अनुभव करने वाले शिवमई शक्ति स्वरूप कम्बाइन्ड भव
जैसे आत्मा और शरीर दोनों का साथ है, जब तक इस सृष्टि पर पार्ट है तब तक अलग नहीं हो सकते, ऐसे ही शिव और शक्ति दोनों का इतना ही गहरा सम्बन्ध है। जो सदा शिव मई शक्ति स्वरूप में स्थित होकर चलते हैं तो उनकी लगन में माया विघ्न डाल नहीं सकती। वे सदा साथीपन का और साक्षी स्टेज का अनुभव करते हैं। ऐसे अनुभव होता है जैसे कोई साकार में साथ हो।
स्लोगन:
निर्विघ्न और एकरस स्थिति का अनुभव करने के लिए एकाग्रता का अभ्यास करो।