Sunday, October 30, 2016

मुरली 30 अक्टूबर 2016

30-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:27-10-81 मधुबन

दीपावली के शुभ अवसर पर अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए महावाक्य
आज दीपकों के मालिक अपनी दीपमाला को देखने आये हैं। जिन चैतन्य दीपकों की यादगार जड़ दीपकों की दीपमाला मनाते रहते हैं। भक्त लोग जड़ चित्र और जड़ दीपकों के साथ दीपावली मनायेंगे और आप चैतन्य दीपक सदा जगे हुए दीपक, दीपकों के मालिक से, बालक बन मिलन मना रहे हो अर्थात् दीपावली मेला मना रहे हो। हर एक दीपक कितना सुन्दर जगमगा रहा है। बापदादा हर एक बच्चे के मस्तक में जगे हुए दीपक को ही देख रहे हैं। इतनी बड़ी दीपमाला कहाँ हो ही नहीं सकती। कितने भी अनेक स्थूल दीपक जगायें लेकिन ऐसी दीपमाला जो अविनाशी, अमर ज्योति स्वरूप है, ऐसी दीपमाला कहाँ हो सकती है? ऐसी दीपावली, दीपराज और दीपरानियाँ, ऐसा मेला कब देखा? देखने वाले भी आप और मनाने वाले भी आप। बापदादा सिर्फ गुजरात के दीपकों को नहीं देख रहे हैं। बापदादा के सामने देश-विदेश के चारों ओर के चैतन्य दीपक हैं। (1000 से अधिक भाई-बहनें आये हैं इसलिए नीचे 3-4 स्थानों पर मुरली सुन रहे हैं) नीचे वाले भी नीचे नहीं हैं। बापदादा के नयनों में हैं। यहाँ स्थूल में स्थान नहीं हैं, लेकिन बापदादा के नयनों में ऐसे दीपकों का सदा स्थान है। आज दीपराज अपनी सर्व दीपरानियों को अमर ज्योति की बधाई दे रहे हैं। “सदा अमर भव”। विदेश वाले भी मुस्करा रहे हैं। (डिनिश बहन अमेरिका से आई हैं) यह एक नहीं है, एक में अनेक हैं। चारों ओर के देश वाले भी स्मृति की लव लगाये हैं। उसी लव के आधार पर दूर होते भी सम्मुख हैं। बापदादा बेहद दीपकों की दीपमाला देख रहे हैं। मधुबन के ऑगन में आज अनेक बच्चे फरिश्तों के रूप में हाजर-नाजर हैं। साकार रूप की सभा तो बहुत छोटी है लेकिन आकारी फरिश्तों की सभा बहुत बड़ी है। यह बड़ा हॉल जो बना रहे हो वह भी छोटा है। सागर के बच्चों के आगे कितना भी बड़ा हॉल बनाओ लेकिन सागर के समान हो जायेगा, फिर क्या करेंगे। आकाश और धरनी, इसी बेहद के हॉल में समा सकते हो। बेहद बाप के बच्चे चार दीवारों की हद में कैसे समा सकते हैं। ऐसा भी समय आयेगा जब बेहद के हॉल में यह चार तत्व चार दीवारों का काम करेंगे। कोई मौसम के नीचे ऊपर के कारण छत की वा दीवारों की आवश्यकता ही नहीं होगी। कहाँ तक बड़े हॉल बनायेंगे। यह प्रकृति भविष्य की रिहर्सल आपको यहाँ ही अन्त में दिखायेगी। चारों ओर कितनी भी किसी तत्व द्वारा हलचल हो लेकिन जहाँ आप प्रकृति के मालिक होंगे वहाँ प्रकृति दासी बन सेवा करेगी। सिर्फ आप प्रकृतिजीत बन जाओ। प्रकृति आप मालिकों का अब से आह्वान कर रही है। यह दिव्य दिवस जिसमें प्रकृति मालिकों को माला पहनायेगी, कौन सी माला पहनायेगी? चन्दन की माला पहनेंगे वा हीरे रत्नों की पहनेंगे? प्रकृति सहयोग की ही माला पहनायेगी। जहाँ आप प्रकृतिजीत ब्राह्मणों का पांव होगा, स्थान होगा वहाँ कोई भी नुकसान हो नहीं सकता। एक दो मकान के आगे नुकसान होगा लेकिन आप सेफ होंगे। सामने दिखाई देगा यह हो रहा है, तूफान आ रहा है, धरनी हिल रही है लेकिन वहाँ सूली, यहाँ कांटा होगा। वहाँ चिल्लाना होगा यहाँ अचल होंगे। सब आपके तरफ स्थूल-सूक्ष्म सहारा लेने के लिए भागेंगे। आपका स्थान एसलम बन जायेगा। तब सबके मुख से, “अहो प्रभू, आपकी लीला अपरमपार है” यह बोल निकालेंगे। “धन्य हो, धन्य हो। आप लोगों ने पाया, हमने नहीं जाना, गंवाया”। यह आवाज चारों ओर से आयेगा, फिर आप क्या करेंगे? विधाता के बच्चे विधाता और वरदाता बनेंगे। लेकिन इसमें भी एसलम लेने वाले भी स्वत: ही नम्बरवार होंगे। जो अब से अन्त तक वा स्थापना के आदि से अब तक भी सहयोग भाव में रहे हैं, विरोध भाव में नहीं हैं, मानना न मानना अलग बात है लेकिन ईश्वरीय कार्य में वा ईश्वरीय परिवार के प्रति विरोध भाव के बजाए सहयोग का भाव, कार्य अच्छा है वा कार्यकर्ता अच्छे हैं, यही कार्य परिवर्तन कर सकता है, ऐसे भिन्नभिन्न सहयोगी भावनायें वाले, ऐसे आवश्यकता के समय इस भावना का फल नजदीक नम्बर में प्राप्त करेंगे अर्थात् एसलम के अधिकारी नम्बरवन बनेंगे। बाकी इस भावना में भी परसेन्टेज वाले उसी परसेन्टेज प्रमाण एसलम की अंचली ले सकेंगे। बाकी देखने वाले देखते ही रह जायेंगे। जो अभी भी कहते हैं– देख लेंगे, तुम्हारा क्या कार्य है! वा देख लेंगे आपको क्या मिला है! जब कुछ होगा तब देखेंगे, ऐसे समय की इन्तजार करने वाले, एसलम के इन्तजाम के अधिकारी नहीं बन सकते। उस समय भी देखते ही रह जायेंगे। हमारी बारी कब आती है, इसी इन्तजार में ही रहेंगे और आप दूर में इन्तजार करने वाली आत्माओं को भी मास्टर ज्ञान सूर्य बन, शुभ भावना, श्रेष्ठ बनने के कामना की किरणें चारों ओर की आत्माओं पर विश्व कल्याणकारी बन डालेंगे। फिर कितनी भी विराधी आत्मायें हैं, अपने पश्चाताप की अग्नि में स्वयं को जलता हुआ, बेचैन अनुभव करेंगी। और आप शीतला देवियाँ बन रहम, दया, कृपा के शीतल छीटों से विरोधी आत्माओं को भी शीतल बनायेंगे अर्थात् सहारे के गले लगायेंगे। उस समय आपके भक्त बन “ओ माँ, ओ माँ” पुकारते हुए विरोधी से बदल भक्त बन जायेंगे। यह है आपके लास्ट भक्त। तो विरोधी आत्माओं को भी अन्त में भक्तपन की अंचली जरूर देंगे। वरदानी बन `भक्त भव' का वरदान देंगे। फिर भी हैं तो आपके भाई ना। तो ब्रदरहुड का नाता निभायेंगे, ऐसे वरदानी बने हो? जैसे प्रकृति आपका आह्वान कर रही है ऐसे आप सब भी अपने ऐसे सम्पन्न स्थिति का आह्वान कर रहे हो? यही दीपमाला मनाओ? वे लक्ष्मी का आह्वान करेंगे और आप क्या आह्वान करेंगे? वे तो धन देवी का आह्वान करते हैं, आप सभी `धनवान भव' की स्थिति का आह्वान करो। ऐसी दीपमाला मनाओ। समझा– क्या करना है? अच्छा! ऐसे दीपमाला के दीपकों को, सदा सर्व खजानों से सम्पन्न धनवान भव बच्चों को, सदा अमर ज्योति भव बच्चों को, सदा हर आत्मा को शुभ भावना का फल देने वाले, वरदानी महादानी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दीदी-दादी से :- बापदादा आज क्या देख रहे हैं? विशेष आज, अभी ब्रह्मा बाप देख रहे हैं। आज ब्रह्मा बाप के साथ जगदम्बा भी आई है। ब्रह्मा बाप और दोनों क्या देख रहे हैं? आज के दिन माँ को भी याद करते हैं ना! तो जगत माँ और ब्रह्मा बाप क्या देख रहे हैं? आज विशेष रूप में जगदम्बा वा चैतन्य होवनहार लक्ष्मी, अपनी विशेष सहयोगी हमशरीक साथियों से मिलने के लिए आई हैं। बचपन की सखी है ना। याद है ना बचपन, आज सखियों को बापदादा के सदा सहयोग में `जी हाजर'`जी हजूर' का प्रैक्टिकल पाठ कर्तव्य में देख खुश हो रही है। आज माँ बाप अपने राजवंश को देख रहे हैं। राज्य दरबार सामने आ रही है। कितनी सजी-सजाई दरबार है। अष्ट देवता अपने-अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। तो आप कहाँ बैठी हो? जितना सेवा की सीट में नजदीक हो उतना ही राज्य सिंहासन में भी नजदीक हैं। यहाँ तपस्या और सेवा ही आसन है और वहाँ राज्य भाग्य का सिंहासन। तो जो सदा तपस्या और सेवा के आसन पर हैं वह सदा सिंहासनधारी हैं। जितना यहाँ सेवा के सदा सहयोगी उतना वहाँ राज्य के सदा साथी। जैसे यहाँ हर कर्म में बापदादा की याद में साथी हैं, वैसे वहाँ हर कर्म में बचपन से लेकर राज्य करने के हर कर्म में साथी हैं। आयु में भी हमशरीक हैं, इसलिए पढ़ाई में, खेल में, सैर में, राज्य में, हर कर्म में हमशरीक साथी हैं। अगर यहाँ कोई-कोई कर्म में याद से साथी बनते हैं, तो वहाँ भी सर्व कर्म में साथी नहीं बनेंगे। कोई-कोई कर्म में साथ होंगे, कोई में अलग। कोई में नजदीक होंगे कोई में दूर। जो सदा समीप, सदा साथी, सदा सहयोगी, सदा तपस्या और सेवा के आसन पर रहते हैं वह वहाँ भी सदा साथ रहते हैं। तो स्मृति में आता है ना! जैसे यहाँ अलौकिक जीवन में, आध्यात्मिक जीवन में, किशोर जीवन से लास्ट तक साथी रहे हो ना, बचपन के साथी और अन्त तक के साथी, वैसे ही ब्रह्मा के रूप में जो आदि से अन्त हर कर्म में, हर चरित्र में हर सेवा के समय में साथी रहे हैं, वह भविष्य में भी साथी रहेंगे। अच्छा! टीचर्स के साथ:- गुजरात के सच्चे सेवाधारी। सच्चे सेवाधारी कहो वा रूहानी सेवाधारी कहो। रूहानी सेवाधारी अर्थात् सच्चे सेवाधारी। तो गुजरात के रूहानी सेवाधारियों की विशेषता क्या है? (एवररेडी है) एवररेडी स्थूल सेवा में तो हैं क्योंकि सेवा के जो भिन्न-भिन्न साधन हैं उसमें जहाँ बुलावा होता है वहाँ पहुंचने वाले हैं। लेकिन मन्सा से भी जो संकल्प धारण करने चाहो उसमें भी सदा एवररेडी हो? जो सोचो वह करो, उसी समय। इसको कहा जाता है एवररेडी। मन्सा से भी एवररेडी, संस्कार परिवर्तन में भी एवररेडी। रूहानी सम्बन्ध और सम्पर्क निभाने में भी एवररेडी। तो ऐसे एवररेडी हो या टाइम लगता है? संस्कार मिटाने में वा संस्कार मिलाने में टाइम लगता है? इसमें भी एवररेडी बनो क्योंकि गुजरात की रास मशहूर है। वह रास तो बहुत अच्छी करते हो, लेकिन रास मिलाना, बाप से संस्कार मिलाना यह है बाप के संस्कारों से रास मिलाने की रास। एक है रास करना, एक है रास मिलाना। जैसे रास करने में होशियार हो वैसे बाप से संस्कार मिलाने में, आपस में श्रेष्ठ संस्कार मिलाने में होशियार हो? संस्कार मिलाना यही बड़े ते बड़ी रास है। तो ऐसी रास करते हो ना? आज सब यही संकल्प करो कि सदा संस्कारों की रास मिलाते चलेंगे। आज के दिन लक्ष्मी के साथ आपका भी पूजन होता है। माँ के साथ बच्चों का भी होता है। किस रूप में होता हैं? लक्ष्मी के साथ गणेश की भी पूजा करते हैं। गणेश बच्चा है ना। तो सिर्फ लक्ष्मी की पूजा नहीं लेकिन आप सब गणेश अर्थात् बुद्धिवान हो। तीनों कालों के नॉलेजफुल, इसको कहा जाता है गणेश अर्थात् बुद्धिवान, समझदार। और गणेश को ही `विघ्न विनाशक' कहते हैं। तो जो तीनों लोक और त्रिमूर्ति के नॉलेजफुल हैं वही विघ्न-विनाशक हैं। तो नॉलेजफुल भी हो और विघ्न-विनाशक भी हो, इसलिए पूजा होती हैं। तो आज आपके पूजा का दिन है। आप सबका दिन है ना। तो सदा किसी भी परिस्थिति में विघ्न रूप न बन विघ्न-विनाशक बनो। अगर और कोई विघ्न रूप बने तो आप विघ्न-विनाशक बन जाओ तो विघ्न खत्म हो जायेंगे। ऐसा वातावरण है, ऐसी परिस्थिति है इसलिए यह करना पड़ा, यह बोल विघ्न विनाशक के नहीं। विघ्न विनाशक वातावरण, वायुमण्डल को परिवर्तन वाले। ऐसे विघ्न विनाशक हो? गुजरात विघ्न विनाशक हो गया तो फिर कोई भी विघ्न की बातचीत ही नहीं होगी ना। नाम निशान भी नहीं। जब आपकी रचना, हद का सूर्य अंधकार को समाप्त कर सकता है तो आप बेहद के मास्टर ज्ञान सूर्य क्या यह नहीं समाप्त कर सकते हो? जैसे गुजरात सेवा में नम्बरवन है ऐसे विघ्नविनाशक में नम्बरवन हो तब प्राइज देंगे। बहुत बढि़या प्राइý देंगे। जो बाप को सौगात मिलती है ना वह आप गुजरात को देंगे। अच्छा! दीपावली और नये वर्ष की मुबारक:- सदा ही आपका नया वर्ष तो क्या लेकिन हर घड़ी नई है इसलिए हर घड़ी में नया उमंग, नया उत्साह, नया सेवा का प्लैन। हर घड़ी नये ते नई। इसी नवीनता की सदा के लिए बधाई। लोगों के लिए नया वर्ष है और आप लोगों के लिए नवयुग है और नवयुग में हर घड़ी उत्साह होने के कारण उत्सव है। हर घड़ी दीवाली है। हर घड़ी उत्सव है क्योंकि उत्सव का अर्थ ही है उत्साह दिलाने वाला। तो हर घड़ी, हर सेकेण्ड उत्साह दिलाने वाला हो इसलिए वह तो वर्ष-वर्ष उत्सव मनाते हैं और आप हर घड़ी उत्सव मनाते हो। यह ब्राह्मण जीवन ही आपका उत्सव है जिसमें सदा हर घड़ी खुशी में झूलते रहो। ऐसा नया दिन कहो, नया वर्ष कहो, नया सेकेण्ड कहो, संकल्प कहो, हर नये रूप की बधाई। दीपावली भी मनाई, नया वर्ष भी मनाया, दोनों का संगम हो गया। गुजरात वाले लकी हैं, संगमयुग में भी `संगम' मनाया। अच्छा– अविनाशी बधाई।
वरदान:
अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति से निर्बन्धन बनने और बनाने वाले मरजीवा भव!  
जैसे बाप लोन लेता है, बंधन में नहीं आता, ऐसे आप मरजीवा जन्म वाले बच्चे शरीर के, संस्कारों के, स्वभाव के बंधनों से मुक्त बनो, जब चाहें जैसे चाहें वैसे संस्कार अपने बना लो। जैसे बाप निर्बन्धन है ऐसे निर्बन्धन बनो। मूलवतन की स्थिति में स्थित होकर फिर नीचे आओ। अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति में रहो, अवतरित हुई आत्मा समझकर कर्म करो तो और भी आपको फालो करेंगे।
स्लोगन:
याद की वृत्ति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाना-यही मन्सा सेवा है।