Saturday, October 22, 2016

मुरली 23 अक्टूबर 2016

23-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:26-11-81 मधुबन 

सहयोगी ही सहजयोगी
आज बापदादा अपने स्वराज्य अधिकारी राजऋषि भविष्य में राज्य वंशी बच्चों को देख रहे हैं। सभी सहजयोगी अर्थात् राजऋषि हो। बापदादा सभी बच्चों को वर्तमान वरदानी समय पर विशेष वरदान कौन-सा देते हैं? सहजयोगी भव! यह वरदान अनुभव करते हो? योगी तो बहुत बनते हैं लेकिन सहजयोगी सिर्फ संगमयुगी आप श्रेष्ठ आत्मायें बनती हो क्योंकि वरदाता बाप का वरदान है। ब्राह्मण बने अर्थात् इस वरदान के वरदानी बने। सबसे पहला जन्म का वरदान यही सहजयोगी भव का वरदान है। तो अपने आप से पूछो– वरदानी बाप, वरदानी समय और आप भी वरदान लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। इस वरदान को सदा बुद्धि में याद रखना– यह है वरदान को जीवन में लाना। तो ऐसे वरदान को सदा प्राप्त की हुई आत्मा, प्राप्ति स्वरूप आत्मा समझते हो? वा मेहनत भी करनी पड़ती है? सदा वरदानी आत्मा हो? इस वरदान को सदा कायम रखने की विधि जानते हो? सबसे सहज विधि कौन-सी है? जानते हो ना? सदा सर्व के और सेवा में सहयोगी बनो। तो सहयोगी ही सहज योगी हैं। कई ब्राह्मण आत्मायें सहज योग का अनुभव सदा नहीं कर पाती। योग कैसे लगायें? कहाँ लगायें? इसी क्वेश्चन में अब तक भी हैं। सहज योग में क्वेश्चन नहीं होता है। साथ-साथ वरदान है, वरदान में मेहनत नहीं होती है। और सहज, सदा स्वत: ही रहता है अर्थात् सहज योगी वरदानी आत्मा स्वत: निरन्तर योगी होती है। नहीं रहते इनका कारण? प्राप्त हुए वरदान को वा ब्राह्मण जन्म की इस अलौकिक गिफ्ट को सम्भालना नहीं आता। स्मृति द्वारा समर्था रखने में अलबेले बन जाते हो। नहीं तो ब्राह्मण और सहज योगी न हों तो ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही क्या रही। वरदानी होते भी सहज योगी नहीं तो और कब बनेंगे? यह नशा और निश्चय सदा याद रखो– यह हमारा जन्म का वरदान है। इसी वरदान को सर्व आत्माओं के प्रति सेवा में लगाओ। सेवा में सहयोगी बनना– यही विधि है सहजयोगी की। अमृतवेले से लेकर सहयोगी बनो। सारे दिन की दिनचर्या का मूल लक्ष्य एक शब्द रखो कि सहयोग देना है। सहयोगी बनना है। अमृतवेले बाप से मिलन मनाकर बाप समान मास्टर बीजरूप बन, मास्टर विश्व कल्याणकारी बन सर्व आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के द्वारा आत्माओं की वृत्ति और वायुमण्डल परिवर्तन करने के लिए सहयोगी बनो। बीज द्वारा सारे वृक्ष को रूहानी जल देने के सहयोगी बनो। जिससे सर्व आत्माओं रूपी पत्तों को प्राप्ति के पानी मिलने का अनुभव हो। ऐसे अमृतवेले से लेकर जो भी सारे दिन में कार्य करते हो हर कार्य का लक्ष्य “सहयोग देना” हो। चाहे व्यवहार के कार्य में जाते हो, प्रवृत्ति को चलाने के कार्य में रहते हो। लेकिन सदा यह चेक करो लौकिक व्यवहार में भी स्व प्रति वा साथियों के प्रति शुभ भावना और कामना से वायुमण्डल रूहानी बनाने का सहयोग दिया? वा ऐसे ही रिवाजी (साधारण) रीति से अपनी ड्युटी बजाकर आ गये। जैसा जिसका आक्युपेशन होता है, वह जहाँ भी जायेंगे, अपने आक्युपेशन प्रमाण कार्य जरूर करेंगे। आप सबका विशेष आक्युपेशन ही है– “सहयोगी बनना”। वह कैसे भूल सकते! तो हर कार्य में सहयोगी बनना है तो सहजयोगी स्वत: बन जायेंगे। कोई भी सेकण्ड सहयोगी बनने के सिवाए न हो। चाहे मंसा में सहयोगी बनो, चाहे वाचा से सहयोगी बनो। चाहे सम्बन्ध सम्पर्क के द्वारा सहयोगी बनो। चाहे स्थूल कर्म द्वारा सहयोगी बनो। लेकिन सहयोगी जरूर बनना है क्योंकि आप सभी दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चे सदा देते रहते हैं। तो क्या देना है? “सहयोग”। स्व परिवर्तन के लिए भी स्वयं के सहयोगी बनो। कैसे? साक्षी बन स्व के प्रति भी सदा शुभचिन्तन की वृत्ति और रूहानी वायुमण्डल बनाने के स्व प्रति भी सहयोगी बनो। जब प्रकृति अपने वायुमण्डल के प्रभाव में सभी को अनुभव करा सकती है जैसे सर्दा, गर्मा प्रकृति अपना वायुमण्डल पर प्रभाव डाल देती है, ऐसे प्रकृतिजीत सदा सहयोगी, सहज योगी आत्मायें अपने रूहानी वायुमण्डल का प्रभाव अनुभव नहीं करा सकती? सदा स्व प्रति और सर्व के प्रति सहयोग की शुभ भावना रखते हुए सहयोगी आत्मा बनो। वह ऐसा है वा ऐसा कोई करता है, यह नहीं सोचो। कैसा भी वायुमण्डल है, व्यक्ति है, “मुझे सहयोग देना है”। ऐसे सभी ब्राह्मण आत्मायें सदा सहयोगी बन जाएं तो क्या हो जायेगा? सभी सहज योगी स्वत: हो जायेंगे क्योंकि सर्व आत्माओं को सहयोग मिलने से कमजोर भी शक्तिशाली हो जाते हैं। कमजोरी समाप्त होने से सहयोगी तो हो ही जायेंगे ना! कोई भी प्रकार की कमजोरी, मुश्किल वा मेहनत का अनुभव कराती है। शक्तिशाली हैं तो सब सहज है। तो क्या मधुबन करना पड़े? सदा चाहे तन से, मन से, धन से, मंसा से, वाणी से वा कर्म से सहयोगी बनना है। अगर कोई मन से नहीं कर सकते तो तन और धन से सहयोगी बनो। मंसा, वाणी से नहीं तो कर्म से सहयोगी बनो। सम्बन्ध जुड़वाने वा सम्पर्क रखाने के सहयोगी बनो। सिर्फ सन्देश देने के सहयोगी नहीं बनो, अपने परिवर्तन से सहयोगी बनो। अपने सर्व प्राप्तियों के अनुभव सुनाने के सहयोगी बनो। अपने सदा हर्षित रहने वाली सूरत से सहयोगी बनो। किसी को गुणों के दान द्वारा सहयोगी बनो। किसी को उमंग-उत्साह बढ़ाने के सहयोगी बनो। जिसमें भी सहयोगी बन सको उसमें सहयोगी सदा बनो। यही सहज योग है। समझा क्या करना है? यह तो सहज है ना। जो है वह देना है। जो कर सकते हो वह करो। सब नहीं कर सकते हो तो एक तो कर सकते हो? जो भी एक विशेषता हो उसी विशेषता को कार्य में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो। यह तो कर सकते हो ना, यह तो नहीं सोचते हो कि मेरे में कोई विशेषता नहीं। कोई गुण नहीं। यह हो नहीं सकता। ब्राह्मण बनने की ही बड़ी विशेषता है। बाप को जानने की बड़ी विशेषता है इसलिए अपनी विशेषता द्वारा सदा सहयोगी बनो। अच्छा। ऐसे सदा सहयोगी अर्थात् सहजयोगी, सदा अपने श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा वायुमण्डल बनाने के सहयोगी आत्मा, कमजोर आत्माओं को उत्साह दिलाने की सहयोगी आत्मा, ऐसे अमृतवेले से हर समय सहयोगी बनने वाली आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। पार्टियों के साथ साइलेन्स की शक्ति से दैवी स्वराज्य की स्थापना साइलेन्स की शक्ति से सारे विश्व पर दैवी राजस्थान का फाउन्डेशन डाल रहे हो ना। वह आपस में लड़ते हैं और आप दैवी राजस्थान बना रहे हो, क्या बनना है? यह उन्हों को क्या पता, वह तो अपना-अपना प्रयत्न करते रहते हैं लेकिन भावी क्या है– उसको तो आप जानते हो? तो सभी बच्चे साइलेन्स की शक्ति से दैवी स्वराज्य बना रहे हो ना? उनकी है जबान की शक्ति या बाहुबल, शस्त्र की शक्ति और आपकी है साइलेन्स की शक्ति। इसी शक्ति के द्वारा दैवी राज्य स्थापन हो ही जायेगा– यह तो अटल निश्चय है ना। वे भी समझते हैं कि वर्तमान समय कोई ईश्वरीय शक्ति चाहिए जो कार्य करे। लेकिन गुप्त होने के कारण जान नहीं सकते हैं। आप जानते हो और कर भी रहे हो। पंजाब में वृद्धि तो हो रही है ना! पंजाब भी सेवा का आदि स्थान है। तो आदि स्थान से कोई विशेष कार्य होना चाहिए। रूहानी बाप के बच्चे होने के नाते रूहानी सेवा करना हर बच्चे का कार्य है। जो बाप का कार्य वही बच्चों का कार्य। जैसे रूहानी बाप का कर्तव्य है रूहानी सेवा करना, ऐसे बच्चों को भी इसी कार्य में तत्पर रहना है। यह रूहानी सेवा हर कदम में प्रत्यक्ष फल प्राप्त कराती है। प्रत्यक्ष फल है खुशी। जितनी सेवा करते, उतना खुशी का खजाना बढ़ता जाता है, एक का पदमगुणा मिलता है। ऐसे समझते हो? आपका आक्युपेशन ही है– रूहानी सेवाधारी। लौकिक में भल कोई भी पोजीशन हो लेकिन अलौकिक में रूहानी सेवाधारी हो। अगर कोई डाक्टर है, तो रूहानी और जिस्मानी डबल डाक्टर बनो। वह सेवा करते भी मूल कर्तव्य है रूहानी डाक्टर बनना। बार-बार रोगी आये, इससे तो रोग ही खत्म हो जाए, सदा के लिए। तो ऐसी दवाई देनी चाहिए ना। रोगी आता ही है सदा शफा पाने के लिए। सदा शफा होगी रूहानी सेवा से। अच्छा। लण्डन ग्रुप से बापदादा की

मुलाकात:- लण्डन के अच्छे-अच्छे रत्न जगह-जगह पर गये हैं। वैसे सभी विदेश के सेवाकेन्द्र एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, ऐसे खुलते हैं। अभी टोटल कितने सेवाकेन्द्र हैं? (1982में) (50) तो 50 जगह का फाउण्डेशन लण्डन है। तो वृक्ष सुन्दर हो गया ना। जिस तना से 50 टाल-टालियां निकलें, वह वृक्ष कितना सुन्दर हुआ। तो विदेश का वृक्ष भी विस्तार वाला अच्छा फलीभूत हो गया है। बापदादा भी बच्चों के, सिर्फ लण्डन नहीं सभी बच्चों के सेवा का उंमग-उत्साह देख खुश होते हैं। विदेश में लगन अच्छी है। याद की भी और सेवा की भी, दोनों की लगन अच्छी है। सिर्फ एक बात है कि माया के छोटे रूप से भी घबराते जल्दी हैं। जैसे यहाँ इंडिया में कई ब्राह्मण जो हैं, वे चूहे से भी घबराते हैं, काकरोच से भी घबराते हैं। तो सिर्फ विदेशी बच्चे इससे घबरा जाते हैं। छोटे को बड़ा समझ लेते हैं लेकिन है कुछ नहीं। कागज के शेर को सच्चा शेर समझ लेते हैं। जितनी लगन है ना उतना घबराने के संस्कार थोड़ा-सा मैदान पर आ जाते हैं। तो विदेशी बच्चों को माया से घबराना नहीं चाहिए, खेलना चाहिए। कागज के शेर से खेलना होता है या घबराना होता है? खिलौना हो गया ना? खिलौने से घबराने वाले को क्या कहेंगे? जितनी मेहनत करते हो उस हिसाब से, डबल विदेशी सभी नम्बरवन सीट ले सकते हो क्योंकि दूसरे धर्म के पर्दे के अन्दर, डबल पर्दे के अन्दर बाप को पहचान लिया है। एक तो साधारण स्वरूप का पर्दा और दूसरा धर्म का भी पर्दा है। भारतवासियों को तो एक ही पर्दे को जानना होता है लेकिन विदेशी बच्चे दोनों पर्दे के अन्दर जानने वाले हैं। हिम्मत वाले भी बहुत हैं, असम्भव को सम्भव भी किया है। जो क्रिश्चियन या अन्य धर्म वाले समझते हैं कि हमारे धर्म वाले ब्राह्मण कैसे बन सकते, असम्भव है। तो असम्भव को सम्भव किया है, जानने में भी होशियार, मानने में भी होशियार हैं। दोनों में नम्बरवन हो। बाकी बीच में चूहा आ जाता है तो घबरा जाते हो। है सहज मार्ग लेकिन अपने व्यर्थ सकंल्पों को मिक्स करने से सहज मुश्किल हो जाता है। तो इसमें भी जम्प लगाओ। माया को परखने की आंख तेज करो। मिसअन्डस्टैन्ड कर लेते हो। कागज को रीयल समझ लेना मिसअन्डरस्टैडिंग हो गई ना। नहीं तो डबल विदेशियों की विशेषता भी बहुत है। सिर्फ एक यह कमजोरी है-बस। फिर अपने ऊपर हंसते भी बहुत हैं, जब जान लेते हैं कि यह कागज का शेर है, रीयल नहीं है तो हंसते हैं। चेक भी कर लेते, चेन्ज भी कर लेते लेकिन उस समय घबराने के कारण नीचे आ जाते हैं या बीच में आ जाते हैं। फिर ऊपर जाने के लिए मेहनत करते, तो सहज के बजाए मेहनत का अनुभव होता है। वैसे जरा भी मेहनत नहीं है। बाप के बने, अधिकारी आत्मा बने, खजाने के, घर के, राज्य के मालिक बने और क्या चाहिए। तो अभी क्या करेंगे? घबराने के संस्कारों को यहाँ ही छोड़कर जाना। समझा! बापदादा भी खेल देखते रहते हैं, हंसते रहते हैं। बच्चे ग्हराई में भी जाते हैं लेकिन गहराई के साथ-साथ कहाँ-कहाँ घबराते भी हैं। लास्ट सो फास्ट के भी संस्कार हैं। पहले विदेशियों में विशेष फंसने के संस्कार थे, अभी हैं फास्ट जाने के संस्कार। एक में नहीं फंसते हैं लेकिन अनेकों में फंस जाते हैं। एक ही लाइफ में कितने पिंजरे होते हैं। एक पिंजरे से निकलते दूसरे में फंसते, दूसरे से निकलते तीसरे में फंसते। तो जितना ही फंसने के संस्कार थे उतना ही फास्ट जाने के संस्कार हैं। सिर्फ एक बात है, छोटी चीज को बड़ा नहीं बनाओ। बड़े को छोटा बनाओ। यह भी होता है क्या? यह क्वेश्चन नहीं। यह क्या हुआ? ऐसे भी होता है? इसके बजाए जो होता है कल्याणकारी है। क्वेश्चन खत्म होने चाहिए। फुलस्टाप। बुद्धि को इसमें ज्यादा नहीं चलाओ, नहीं तो एनर्जा वेस्ट चली जाती है और अपने को शक्तिशाली नहीं अनुभव करते। क्वेश्चन मार्क ज्यादा होते हैं। तो अब मधुबन की वरदान भूमि में क्वेश्चन मार्क खत्म करके, फुलस्टाप लगा के जाओ। क्वेश्चनमार्क मुश्किल है, फुलस्टाप सहज है। तो सहज को छोड़कर मुश्किल को क्यों अपनाते हो! उसमें एनर्जा वेस्ट है और फुलस्टाप में लाइफ ही बेस्ट हो जायेगी। वहाँ वेस्ट वहाँ बेस्ट। तो क्या करना चाहिए? अभी वेस्ट नहीं करना। हर संकल्प बेस्ट, हर सेकण्ड बेस्ट। अच्छा– लण्डन निवासियों के साथ रूहरिहान हो गई। लण्डन के सभी सिकीलधे बच्चों को बापदादा का पद्मापद्मगुणा यादप्यार स्वीकार हो। साकार में मधुबन में नहीं पहुंचे हैं लेकिन बापदादा सदा बच्चों को सम्मुख देखते हैं। जो भी सर्विसएबुल बच्चे हैं, एक-एक का नाम क्या लें, जो भी सभी हैं, सभी सहयोगी आत्मायें हैं, सभी बेफिकर बन फखुर में रहना क्योंकि सबका साथी स्वयं बाप है। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:
निंदा-स्तुति, जय-पराजय में समान स्थिति रखने वाले बाप समान सम्पन्न व सम्पूर्ण भव
जब आत्मा की सम्पूर्ण व सम्पन्न स्थिति बन जाती है तो निंदा-स्तुति, जय-पराजय, सुख-दु:ख सभी में समानता रहती है। दु:ख में भी सूरत व मस्तक पर दु:ख की लहर के बजाए सुख वा हर्ष की लहर दिखाई दे, निंदा सुनते भी अनुभव हो कि यह निंदा नहीं, सम्पूर्ण स्थिति को परिपक्व करने के लिए यह महिमा योग्य शब्द हैं-ऐसी समानता रहे तब कहेंगे बाप समान। जरा भी वृत्ति में यह न आये कि यह दुश्मन है, गाली देने वाला है और यह महिमा करने वाला है।
स्लोगन:
निरन्तर योग अभ्यास पर अटेन्शन दो तो फर्स्ट डिवीजन में नम्बर मिल जायेगा।