Wednesday, October 19, 2016

मुरली 20 अक्टूबर 2016

20-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हें अब आवाज से परे जाना है इसलिए मुख से शिव-शिव कहने की भी दरकार नहीं है”
प्रश्न:
एक बाप को ही सर्वशक्तिमान्, ज्ञान का सागर कहेंगे, दूसरों को नहीं– क्यों?
उत्तर:
क्योंकि एक बाप को ही याद करने से आत्मा पतित से पावन बन जाती है। बाप ही है जो पतितों को पावन बना देते हैं, बाकी कोई भी देहधारी मनुष्य पावन बना नहीं सकते। बाप तुम्हें रावण राज्य से मुक्त कर देते हैं। तुम शिवबाबा से शक्ति लेते हो, जितना जास्ती याद करेंगे उतना शक्ति मिलेगी और खाद निकलती जायेगी।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने भक्ति की महिमा सुनी। तुम भी महिमा गाते थे। अब महिमा नहीं गाते हो और न तुम्हारे लिए महिमा की जरूरत है। जो भगत करते हैं वह तुम बच्चे नहीं कर सकते हो। तुम भगत थे, अब तुमको भगवान मिला है। सबको इकठ्ठा तो मिल नहीं सकता है। बाप सबको इकठ्ठा कैसे पढ़ाये? यह तो हो नहीं सकता। सभी भक्त भी इकठ्ठे नहीं हो सकते। हाँ, बाप को पढ़ाना है जरूर क्योंकि यह राजयोग है। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य स्थापन होना है। बच्चों को प्रदर्शनी में समझाना है। त्योहार होंगे तब तो सर्विस करेंगे। तुम्हें अपने लिए ही राज्य स्थापन करना है। तुम शिव शक्ति, महारथी सेना हो और कोई ड्रिल आदि तुम नहीं सीखते हो। तुम रूहानी ड्रिल सीखते हो। यह ड्रिल भारत की नामीग्रामी है। यह है योग की ड्रिल। आत्मा को परमपिता परमात्मा से योग लगाना है, उनसे वर्सा लेना है। इसमें लड़ाई की कोई बात नहीं। तुम बाप से वर्सा लेते हो, इसमें लड़ाई का कनेक्शन नहीं है। तुम हो बेहद बाप के वारिस। तो बाप का बनकर बाप की श्रीमत पर चलना है। बाप की मत लड़ाई आदि की नहीं है। बाप सिर्फ कहते हैं– मीठे-मीठे बच्चे तुम सतोप्रधान थे, राज्य करते थे अब तुमको स्मृति आई है। बाप कहते हैं– तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। गाते भी हैं 84 जन्म मनुष्य लेते हैं। 84 लाख यह तो गपोड़े हैं। भक्ति मार्ग में जिसको जो आया सो पढ़ते रहते हैं। ड्रामा अनुसार यह भक्ति मार्ग की सामग्री है। सतयुग त्रेता में भक्ति होती नहीं। भक्ति अलग है, ज्ञान अलग है। तुम बच्चों के सिवाए और कोई ऋषि मुनि आदि की बुद्धि में यह ज्ञान नहीं है। उन्हों को यह भी मालूम नहीं कि सुख अलग है, दु:ख अलग है। सुख बाप देते हैं, दु:ख रावण देते हैं। जो तुम सूर्यवंशी चन्द्रवंशी थे, सो 84 का चक्र लगाकर शूद्रवंशी बनें। बाप स्मृति दिलाते हैं– तुम विश्व के मालिक थे। तुम 84 जन्म भोग नीचे उतरते, तुच्छ बुद्धि, तमोप्रधान बन गये हो। सतोप्रधान वाले को स्वच्छ ऊंच बुद्धि कहा जाता है। तमोप्रधान को नीच बुद्धि कहा जाता है। नीच बुद्धि वाले ऊंच बुद्धि वालों को नमस्ते करते हैं। यह तुमको भी मालूम नहीं था कि हम ही ऊंच थे, अब हम ही नीच बने हैं। बाबा ने समझाया है, जिसने पहले नम्बर में जन्म लिया होगा वही सतोप्रधान बनेगा। 84 जन्म भी सूर्यवंशी ही लेंगे। अब तुम समझते हो हम विश्व के मालिक थे तो पावन सतोप्रधान थे। पतित थोड़ेही विश्व के मालिक बन सकते हैं। उन्हों की महिमा देखो कितनी ऊंची है। सर्वगुण सम्पन्न... त्रेता में 14 कला सम्पूर्ण नहीं कहेंगे। सूर्यवंशी को 16 कला सम्पूर्ण कहेंगे। 14 कला के पीछे सम्पूर्ण अक्षर नहीं आयेगा। सम्पूर्ण 16 कला वालों को लिखना है। अभी तुम बच्चे 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। यह भी बच्चों को समझाया है कि यह ज्ञान अति सहज है, इससे सहज कोई बात होती नहीं। बाबा रहमदिल है ना। बाबा जानते हैं बच्चे भक्ति में धक्के खा-खाकर थक गये होंगे इसलिए दिखाया है द्रोपदी के पांव दबाये। बाबा के पास बुढ़ी-बुढ़ी मातायें आती हैं। बाबा कहते हैं तुम भक्ति के धक्के खाकर थके हुए हो, इसलिए बाबा अभी तुम्हारी थक सब दूर कर देते हैं। भक्ति में राम-राम जपते, माला फेरते रहते हैं। बाबा का पादरियों से भी सम्पर्क रहा है। पादरी भी बाइबिल लेकर बैठ समझाते रहते हैं। बहुत क्रिश्चियन बन जाते हैं। यहाँ माला आदि फेरने की बात नहीं। बाप कहते हैं– अपने को आत्मा समझ बाबा को याद करो। शिव-शिव मुख से कहना नहीं है। हम तो आवाज से परे जाने वाले हैं। बाबा बहुत सहज युक्ति बताते हैं कि मुझे याद करो तो खाद निकल जाए और गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है। कमल फूल बड़ा नामीग्रामी है। उनकी बड़ी पंचायत होती है, परन्तु फिर भी न्यारा और प्यारा रहता है। तुम भी विषय सागर में रहते न्यारे प्यारे रहो। यह विषय सागर है, इसको नदी नहीं कहेंगे। तुम बच्चे अभी कितना समझदार बनते हो, इसी समझ से तुम महाराजकुमार बन जाते हो। तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए। पुरूषार्थ करना चाहिए, बच्चा अथवा बच्ची दोनों की आत्मा को पुरूषार्थ करना है। लौकिक सम्बन्ध में बाप का वर्सा सिर्फ बच्चों को मिलता है, बच्ची को नहीं। यहाँ सब आत्माओं को वर्सा मिलता है। बाप समझाते हैं याद की यात्रा से ही तुम ऊंच पद पा सकते हो। प्रदर्शनी में पहले-पहले बाप का परिचय देना है फिर उनके बाद है बाप का वर्सा। पहले यह निश्चय बिठाओ कि यह तुम्हारा बेहद का बाप है। उनको समझाना है भगवान एक है– ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी भगवान नहीं हैं, देवता हैं। भगवान पतित-पावन निराकार बाप है। उनकी महिमा ही अलग है। आजकल प्रदर्शनी में त्रिमूर्ति पर समझाना होता है। वह बाप, यह दादा। वर्सा उनसे मिलता है। वह निराकार है उनसे वर्सा कैसे मिले! वह है सबका रचयिता। ब्रह्मा विष्णु शंकर भी रचना हैं। रचना को रचता से ही वर्सा मिल सकता है। वह तो निराकार बाप इस द्वारा वर्सा देते हैं। रचता सबका एक है इसलिए गाया जाता है सर्व का सद्गति दाता एक। उसको ज्ञान सागर कहा जाता है। बाकी वह सब शास्त्रों की अथॉरिटी हैं। यह है ज्ञान सागर खुद अथॉरिटी। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी खुद कहते हैं कि मैं वेदों शास्त्रों को जानता हूँ और तुमको सार समझाता हूँ। यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री जो सतयुग त्रेता में होती नहीं। भक्ति से ही सीढ़ी नीचे उतरनी होती है। सर्वशक्तिमान् एक बाप को ही गाया जाता है। उनके साथ योग लगाने से ही हम पवित्र बन जाते हैं तो सर्वशक्तिमान् हुआ ना। हम सबको पतित से पावन बना देते हैं। रावणराज्य से मुक्त कर देते हैं। तुम अब शिवबाबा से शक्ति ले रहे हो। जितना जास्ती याद करेंगे उतना शक्ति मिलेगी और खाद निकल जायेगी। तुमको दिन-रात यही फुरना रहना चाहिए कि पतित से पावन, तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायें। माया के तूफान आयेंगे। बाबा कहते हैं खबरदार रहना चाहिए। तुम्हारी माया के साथ युद्ध है। फालतू विकल्प बहुत आयेंगे। जो कभी अज्ञान में नहीं आये होंगे वह भी आयेंगे। तुम युद्ध के मैदान में हो। मेहनत सारी याद की यात्रा में है। भारत का योग नामीग्रामी है। योग के लिए ही बाबा समझाते हैं कि तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। ऐसे और कोई मनुष्य समझा न सके। वह कह देते हैं सब भगवान के रूप हैं। जिधर देखता हूँ– परमात्मा ही परमात्मा है। बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो, 84 जन्म भोगते हो। अगर सब परमात्मा हैं तो क्या परमात्मा जन्म-मरण के चक्र में आते हैं? आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। आत्मा में अच्छे बुरे संस्कार रहते हैं। अच्छे संस्कार वालों की महिमा गाते हैं। बुरे संस्कार वालों को कहते हैं पापी नीच। बाबा पवित्र बनने की सहज युक्ति बताते हैं। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख नहीं देना है। अपने को भी दु:ख नहीं देना है। कोई भी विकर्म, चोरी आदि नहीं करना चाहिए। अगर कहाँ झूठ बोलना पड़ता है तो बाबा से राय पूछो। सबसे बड़ा पाप है– काम कटारी चलाना, वह मत चलाओ। बाप कहते हैं– बच्चे हाथों से काम करते बुद्धि का योग मेरे से लगाओ। (हथ कार डे...... बुद्धि यार डे) बाबा सर्जन भी है। सबकी बीमारी एक जैसी हो न सके। कर्म भी एक जैसे हो न सकें। तो कदम-कदम पर पूछना चाहिए। मंजिल बड़ी भारी है। अमरनाथ की यात्रा पर जाते हैं तो कहते हैं अमरनाथ की जय, बद्रीनाथ की जय। हे बद्रीनाथ हमारी रक्षा करना। अब तुमको तीर्थ यात्रा आदि कुछ नहीं करना है। यह ज्ञान की बातें बाप ही समझाते हैं। उनका ही पार्ट है। तुम भी बाबा के साथ-साथ पार्टधारी हो। जितना जो पढ़ेगा उतना ऊंच पद मिलेगा। इसमें कोई की बड़ाई नही। बड़ाई एक की ही है, जो सर्व मनुष्यों को सद्गति देता है। सर्व बच्चों को पतित से पावन बनाते हैं। ड्रामा में मुझे भी पार्ट मिला हुआ है। 5 तत्वों को भी अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, सो बजाना है। धरती को उथलना है, विनाश होना है। तुम्हारा भी ड्रामा में पार्ट है, इसमें बड़ाई क्या है। राज्य करते-करते पतित बन गये। तुम भी पहले क्या थे? वर्थ नाट ऐ पेनी। अब तुम विश्व के मालिक बनते हो, यह तुम्हारा पार्ट है फिर भी हमको ऐसा बनना ही है। इसमे बड़ाई की वा महिमा की कोई बात नहीं। यह ड्रामा बना हुआ है। बाबा भी आकर अपना पार्ट बजाते हैं। भगत लोग बड़ाई देते, महिमा गाते, वह काम हम नहीं कर सकते। यहाँ तो बाप को याद करना है। बाबा इस ड्रामा का राज तो बड़ा वन्डरफुल है! जो कोई को पता नहीं। बाबा हम सतयुग में यह भी भूल जायेंगे! बड़ा विचित्र ड्रामा है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। कोई पार्टधारी अच्छा पार्ट बजाते हैं तो ताली बजाते हैं। हम भी कहते हैं मीठे बाबा का, शिवबाबा का बहुत अच्छा पार्ट है। हम भी बाबा के संग अच्छा पार्ट बजाते हैं। कितना अच्छी रीति समझाते हैं, फिर भी किन्हों को समझ में नहीं आता तो समझ जाते हैं कि हमारी राजधानी में इन्हों को आना नहीं है। यह भी जानते हैं जो ब्राह्मण बने थे वही ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे। देवताओं में भी प्रजा आदि सब बनेंगे। सबको अनादि पार्ट मिला हुआ है। सृष्टि भी एक ही है, वह चलती रहती है। गॉड इज वन, क्रियेशन इज वन। वही चक्र फिरता रहता है। मनुष्य खोज करते हैं, देखें मून में क्या है! उनके ऊपर क्या है! उनके ऊपर है सूक्ष्मवतन। वहाँ क्या देखेंगे? लाइट ही लाइट। बहुत कोशिश करते हैं– साइंस की भी हद है ना। माया की भी बहुत पाम्प है। साइंस सुख के लिए भी है तो दु:ख के लिए भी है। वहाँ एरोप्लेन कभी गिरेंगे नहीं। दु:ख की बात नहीं। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। चोर लूट जाते, आग जला देती। वहाँ मकान बहुत बड़े होते। सारे आबू जितनी जमीन एक-एक राजा की होगी। तुम आये हो स्वर्गवासी बनने। बाबा को याद करो तो खाद निकले। तुम सब आशिक हो, अब माशूक तुमको कहते हैं– मामेकम् याद करो तो अमरपुरी के मालिक बन जायेंगे। वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। सतयुग में है श्रेष्ठाचारी दुनिया, यह है भ्रष्टाचारी दुनिया। कितने बी.के. बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुम भी वर्सा ले लो। अगर श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। हर 5 हजार वर्ष के बाद बाबा स्वर्ग बनाने आते हैं। कलियुग में ढेर मनुष्य, सतयुग में थोड़े, तो विनाश जरूर होगा, इसलिए महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन्सा, वाचा, कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है। बुरे संस्कारों को निकाल अभी अच्छे संस्कार धारण करने हैं। कोई विकर्म न हो इसका ध्यान रखना है।
2) इस विचित्र ड्रामा में अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखते हुए अपने आपसे बातें करनी है कि हम भगवान के साथ पार्टधारी हैं। कितना अच्छा हमारा पार्ट है।
वरदान:
साकार और निराकार बाप के साथ द्वारा हर संकल्प में विजयी बनने वाले सदा सफलमूर्त भव
जैसे निराकार आत्मा और साकार शरीर दोनों के सम्बन्ध से हर कार्य कर सकते हो, ऐसे ही निराकार और साकार बाप दोनों को साथ वा सामने रखते हुए हर कर्म वा संकल्प करो तो सफलमूर्त बन जायेंगे क्योंकि जब बापदादा सम्मुख हैं तो जरूर उनसे वेरीफाय करा करके निश्चय और निर्भयता से करेंगे। इससे समय और संकल्प की बचत होगी। कुछ भी व्यर्थ नहीं जायेगा, हर कर्म स्वत: सफल होगा।
स्लोगन:
रूहानी स्नेह सम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवान है इसलिए मास्टर स्नेह के सागर बनो।