Wednesday, October 12, 2016

मुरली 13 अक्टूबर 2016

13-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– माया से डरो मत, भल कितना भी भुलाने की कोशिश करे लेकिन थको नहीं, अमृतवेले उठ याद में रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो”
प्रश्न:
पुरूषार्थ में आगे नम्बर कौन से बच्चे लेते हैं?
उत्तर:
जो बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ते हैं अर्थात् कुर्बान जाते हैं, सबसे आगे वही जाते। बाप पर बच्चे कुर्बान जाते और बच्चों पर बाप कुर्बान जाते। तुम अपना कखपन, पुराना तन-मन-धन बाप को देते और बाप तुम्हें विश्व की बादशाही देता इसलिए उसे गरीब निवाज कहा जाता है। गरीब भारत को ही दान देने बाप आये हैं।
गीत:-
नयनहीन को राह दिखाओ....   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे अति मीठे, ऐसे कहेंगे ना! बेहद का बाप और बेहद का प्यार है। कहते हैं मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना। राह एक बाप ही दिखाते हैं। भक्ति मार्ग में राह बतलाने वाला कोई है नहीं। वहाँ ही ठोकरें खाते रहते हैं। अभी भल राह मिली है फिर भी माया बाप के साथ बुद्धियोग लगने नहीं देती है। समझते भी हैं एक बाप को याद करने से हमारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे, फिकरात की कोई बात नहीं रहेगी, फिर भी भूल जाते हैं। बाप कहते हैं– अपने को आत्मा समझ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो। बाप ज्ञान का सागर है ना। वही गीता ज्ञान दाता है। स्वर्ग की बादशाही अथवा सद्गति देते हैं। कृष्ण को ज्ञान का सागर नहीं कह सकते। सागर एक ही होता है। इस धरती के चारों तरफ सागर ही सागर है। सारा सागर एक ही है। फिर उनको बांटा गया है। तुम विश्व के मालिक बनते हो तो सारा सागर, धरनी के मालिक तुम बनते हो। ऐसे कोई कह न सके, यह हमारा टुकड़ा है। हमारी हद के अन्दर न आओ। यहाँ तो सागर में भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं। तुम समझते हो सारा विश्व ही भारत था, जिसके तुम मालिक थे। गीत भी है बाबा आपसे हम विश्व की बादशाही लेते हैं जो कोई छीन न सके। यहाँ देखो पानी के ऊपर भी लड़ाई है। एक दो को पानी देने के लिए लाखों रूपया देना पड़ता है। तुम बच्चों को सारे विश्व की राजाई कल्प पहले मिसल मिल रही है। बाप ने ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है। ज्ञान दाता है ही परमपिता परमात्मा। इस समय आकर ज्ञान देते हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण के पास यह ज्ञान नहीं होगा। हाँ, ऐसे कहेंगे आगे जन्म में ज्ञान लेकर यह बने हैं। तुम ही थे। तुम कहते हो बाबा आप वही हो। आपने हमको विश्व का मालिक बनाया था। बाप कहते हैं– मेरी मत कोई लम्बी चौड़ी नहीं है। वह पढ़ाई कितनी लम्बी चौड़ी होती है। यह तो बहुत सहज है। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानकर औरों को बताते रहते हो। कैसे 84 का चक्र लगाया है। अभी वापिस जाना है बाप के पास। यह भी बाप ने बतलाया है– माया के तूफान बहुत आयेंगे, इनसे डरो मत। सुबह को उठकर बैठेंगे, बुद्धि और-और ख्यालातों में चली जायेगी। दो मिनट भी याद नहीं रहेगी। बाप कहते हैं थकना नहीं है। अच्छा एक मिनट याद रही फिर कल बैठना, परसों बैठना। अन्दर में यह पक्का जरूर करो कि हमें याद करना है। अगर कोई विकार में जाता होगा फिर तो बहुत तूफान आयेंगे। पवित्रता ही मुख्य है। आज यह दुनिया पतित वेश्यालय है। कल पावन शिवालय होगा। जानते हो यह पुराना शरीर है। बाप को याद करते रहेंगे तो कोई भी समय शरीर छूट जाए तो स्वर्ग में चलने लायक बन जायेंगे। बाप से कुछ न कुछ ज्ञान तो सुना है ना। ऐसे भी हैं जो यहाँ से भागन्ती हो गये हैं फिर भी आकर अपना वर्सा ले रहे हैं। यह भी समझाया है अन्त मती सो गति होगी। समझो कोई शरीर छोड़ते हैं, संस्कार ज्ञान के ले जाते हैं तो छोटेपन में ही इस तरफ उनको खींच होगी। भल आरगन्स छोटे हैं, बोल नहीं सकते परन्तु खींच लेंगे। छोटेपन से ही संस्कार अच्छे होंगे। सुखदाई बनेंगे। आत्मा को ही बाप सिखलाते हैं ना। जैसे बाप मिलेट्री वालों का मिसाल समझाते हैं। संस्कार ले जाते हैं तो लड़ाई में फिर भरती हो जाते हैं। जैसे शास्त्र पढ़ने वाले संस्कार ले जाते हैं तो छोटेपन में ही शास्त्र कण्ठ हो जाते हैं। उनकी महिमा भी निकलती है। तो यहाँ से जो जाते हैं तो छोटेपन में महिमा निकलती है। आत्मा ही ज्ञान धारण करती है ना। बाकी रहा हुआ हिसाब-किताब चुक्तू करना पड़ता है। स्वर्ग में तो आयेंगे ना। बाप के पास आकर मालेकम् सलाम करेंगे। प्रजा तो ढेर बनेगी। बाप से तो वर्सा लेंगे। पिछाड़ी में कहा है ना– अहो प्रभू तेरी लीला... अभी तुम समझते हो– अहो बाबा आपकी लीला ड्रामा प्लैन अनुसार ऐसी है। बाबा आपका एक्ट सभी मनुष्य मात्र से न्यारा है। जो बाप की अच्छी सर्विस करते हैं उनको फिर इनाम भी बड़ा अच्छा मिलता है। विजय माला में पिरोये जाते हैं। यह है रूहानी ज्ञान, जो बाप रूह, रूहों को देते हैं। मनुष्य तो सब शरीरों को ही याद करेंगे, कहेंगे शिवानन्द, गंगेश्वरानंद... आदि यह ज्ञान देते हैं। यहाँ तो कहेंगे निराकार शिवबाबा ज्ञान देते हैं। मैं ऊंच ते ऊंच हूँ। मुझ आत्मा का नाम है शिव। शिव परमात्माए नम: कहते हैं। फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर को कहेंगे देवताए नम:, यह भी रचना है, उनसे कोई वर्सा नहीं मिल सकता। तुम आपस में भाई-भाई हो। भाई को याद करने से वर्सा नहीं मिलेगा। यह (ब्रह्मा दादा) भी तुम्हारा भाई है, स्टूडेन्ट है ना। पढ़ रहे हैं, इससे वर्सा नहीं मिलेगा। यह खुद ही वर्सा पा रहे हैं शिवबाबा से। पहले यह सुनते हैं। बाप को कहता हूँ बाबा हम तो आपका पहला-पहला बच्चा हूँ। आप से हम कल्प-कल्प वर्सा लेते हैं। कल्प-कल्प आपका रथ बनता हूँ। शिव का रथ ब्रह्मा। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना। तुम ब्राह्मण भी मददगार हो फिर तुम मालिक बनेंगे। अभी तुम जानते हो हम 5 हजार वर्ष पहले मुआिफक बाप द्वारा राज्य भाग्य लेते हैं, जिन्होंने कल्प पहले राज्य भाग्य लिया है, वही आयेंगे। हर एक के पुरूषार्थ से पता लग जाता है– कौन महाराजा-महारानी बनेंगे, कौन प्रजा बनेंगे। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होगा। सारा पुरूषार्थ पर मदार है। कुर्बान भी होना होता है। बाप कहते हैं– मैं गरीब निवाज हूँ। तुम गरीब ही मुझ पर कुर्बान होते हो। दान हमेशा गरीबों को ही दिया जाता है। समझो कोई कॉलेज बनवाते हैं, वह कोई गरीबों को दान नहीं होता। वह कोई ईश्वर अर्थ होता नहीं है, परन्तु दान तो करते हैं ना। कॉलेज खोलते हैं तो उनका फल मिलता है। दूसरे जन्म में अच्छा पढ़ेंगे। यह आशीर्वाद मिलती है। भारत में ही सबसे जास्ती दान-पुण्य होता है। इस समय तो बहुत दान होता है। तुम बाप को दान करते हो। बाप तुमको दान करते हैं। तुमसे कखपन ले तुमको विश्व की बादशाही देते हैं। इस समय तुम तन-मन-धन सब बाप को दान में देते हो। वे लोग तो मरते हैं तो विल करके जाते हैं। फलाने आश्रम को देना या यह आर्यसमाज ले लेवे। वास्तव में दान गरीबों को देना होता है, जो भूखे होते हैं। अभी भारत गरीब है ना। स्वर्ग में भारत कितना साहूकार होता है। तुम जानते हो वहाँ जितना अनाज धन आदि तुम्हारे पास होता है उतना और कोई के पास नहीं हो सकता। वहाँ तो कुछ भी पैसा नहीं लगेगा। मुठ्ठी चावल दान करते हैं, तो रिटर्न में 21 जन्मों के लिए महल मिल जाते हैं। जागीर भी मिलेगी। अभी तत्व भी तमोप्रधान होने कारण दु:ख देते हैं, वहाँ तत्व सतोप्रधान होते हैं। तुम जानते हो– सतयुग में कौन-कौन आयेंगे। फिर द्वापर में फलाने-फलाने आयेंगे। कलियुग के अन्त में छोटी-छोटी टालियाँ मठ पंथ आदि निकलते रहते हैं ना। अभी तुम्हारी बुद्धि में झाड़, ड्रामा आदि की नॉलेज है। बाप के पार्ट को भी जानते हो। महाभारत लड़ाई में दिखाते हैं– 5 पाण्डव बचे। अच्छा फिर क्या हुआ? जरूर जो राजयोग सीखे वही जाकर राज्य करेंगे ना। आगे तुम भी कुछ जानते थोड़ेही थे। बाबा भी गीता आदि पढ़ते थे। नारायण की भक्ति करते थे। गीता के साथ भी बहुत प्यार था। ट्रेन में जाते थे तो भी गीता पढ़ते थे। अब देखते हैं कुछ भी समझा नहीं, डिब्बी में ठिकरी। भक्तिमार्ग में जो कुछ करते आये परन्तु उद्वार तो हुआ नहीं। दुनिया में तो कितना झगड़ा है। यहाँ भी तो सब पवित्र बन न सकें, इसलिए झगड़ा पड़ता है। बाप शरण लेते भी हैं फिर कहते हैं बीमारी उथलेगी जरूर। बच्चे आदि याद पड़ेंगे, इसमें नष्टोमोहा होना पड़े। समझना है हम मर गये। बाप के बने गोया इस दुनिया से मरे। फिर शरीर का भान नहीं रहता। बाप कहते हैं- देह सहित जो भी सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है। इस दुनिया में जो कुछ देखते हो वह जैसे कुछ भी है नहीं। यह पुराना शरीर भी छोड़ना है। हमको जाना है घर। घर जाकर फिर आकर नया सुन्दर शरीर लेंगे। अभी श्याम हैं फिर सुन्दर बनेंगे। भारत अभी श्याम है, फिर सुन्दर बनेगा। अभी भारत है कांटों का जंगल। सब एक दो को काटते रहते हैं। कोई बात पर बिगड़ पड़ते हैं तो गाली देते हैं, लड़ पड़ते हैं। तुम बच्चों को घर में भी बहुत मीठा बनना है। नहीं तो मनुष्य कहेंगे इसने तो 5 विकार दान दिये हैं फिर क्रोध क्यों करते। शायद क्रोध दान नहीं दिया है। बाप कहते हैं– बच्चे झोली में 5 विकार दान में दे दो तो तुम्हारा ग्रहण छूट जाए। चन्द्रमा को ग्रहण लगता है ना। तुम भी अब सम्पूर्ण बनते हो तो बाप कहते हैं यह विकार दान में दे दो। तुमको स्वर्ग की बादशाही मिलती है। आत्मा को बाप से वर्सा मिलता है। आत्मा कहती है इस पुरानी दुनिया में बाकी थोड़ा टाइम है। काम उतार देना है। ख्यालात कोई भी उतार देने चाहिए। बाबा जानते हैं अनेक प्रकार के ख्यालात आयेंगे। धन्धे के ख्यालात आयेंगे। भक्ति मार्ग में भक्ति करते समय ग्राहक, धंधाधोरी याद पड़ता है तो फिर अपने को चुटकी से काटते हैं। हम नारायण की याद में बैठा हूँ फिर यह बातें याद क्यों आई! तो यहाँ भी ऐसे होता है। जब इस रूहानी सर्विस में अच्छी रीति लग जाते हैं तो फिर समझाया जाता है– अच्छा छोड़ो धन्धेधोरी को। बाबा की सर्विस में लग जाओ। कहते हैं छोड़ो तो छूटे । देह-अभिमान छोड़ते जाओ। सिर्फ बाप को याद करो तो बन्दर से मन्दिर लायक बन जायेंगे। भ्रमरी का, कछुओं का भी सब मिसाल बाप देते हैं जो फिर भक्ति मार्ग में वो लोग दृष्टान्त देते हैं। अभी तुम जानते हो कीड़े कौन हैं। तुम हो ब्राह्मणियाँ। तुम भूँ-भूँ करती हो। यह दृष्टान्त अभी का है। वह बता न सकें। त्योहार आदि सब इस समय के हैं। सतयुग त्रेता में कोई त्योहार होता नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग के। अब देखो कृष्ण जयन्ती थी। कृष्ण मिट्टी का बनाया, उनकी पूजा की फिर जाकर लेक में डुबो दिया। अभी तुम समझते हो यह क्या करते हैं। यह है अन्धश्रद्धा। तुम किसको समझायेंगे, वह समझेंगे नहीं। कोई को बीमारी आदि हुई तो कहेंगे देखो तुमने कृष्ण की पूजा छोड़ दी है इसलिए यह हाल हुआ है। ऐसे बहुत ही आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती भागन्ती हो जाते हैं इसलिए ब्राह्मणों की माला बन नहीं सकती। ऊंच ते ऊंच यह ब्राह्मण कुल भूषण हैं। परन्तु उनकी माला बन नहीं सकती। तुम्हारी बुद्धि में है यह शिवबाबा की माला है फिर हम जाकर सतयुग में नम्बरवार विष्णु की माला के दाने बनेंगे। तुम्हारा एक-एक अक्षर ऐसा है जो कोई समझ न सके। बाप पढ़ाते रहते हैं। वृद्धि को पाते रहते हैं। प्रदर्शनी में कितने आते हैं। कहते भी हैं हम आकर समझेंगे फिर गये घर में और खलास। वहाँ की वहाँ रही। कहते हैं प्रभू से मिलने के लिए राह बहुत अच्छी बताते हैं। परन्तु हम उस पर चलें, वर्सा लेवें यह बुद्धि में नहीं आता। बहुत अच्छी सेवा कर रही हैं ब्रह्माकुमारियाँ। बस, अरे तुम भी समझो ना। जिस्मानी सेवा करते रहते हो। अब यह रूहानी सेवा करो। सोसाइटी की सेवा तो सभी मनुष्य करते रहते हैं। मुफ्त में तो कोई सेवा नहीं करते। नहीं तो खायेंगे कहाँ से। अभी तुम बच्चे बहुत अच्छी सेवा करते हो। तुमको भारत के लिए बहुत तरस रहता है। हमारा भारत क्या था फिर रावण ने किस गति में लाया है। अब हम बाप की श्रीमत पर चल वर्सा जरूर लेंगे। अभी तुम जानते हो हम हैं संगमयुगी, बाकी सब हैं कलियुगी। हम उस पार जा रहे हैं। जो बाप की याद में अच्छी रीति रहेंगे वह ऐसे बैठे-बैठे याद करते-करते शरीर छोड़ देंगे। बस फिर आत्मा वापिस आयेगी नहीं। बैठे-बैठे बाप की याद में गया। यहाँ हठयोग आदि की कोई बात नहीं। जैसे देखते हो ध्यान में बैठे-बैठे चले जाते हैं, वैसे तुम बैठे-बैठे यह शरीर छोड़ देंगे। सूक्ष्मवतन जाकर फिर बाप के पास चले जायेंगे। जो याद के यात्रा की बहुत मेहनत करेंगे वह ऐसे शरीर छोड़ देंगे। साक्षात्कार हो जाता है। जैसे शुरू में तुमको बहुत साक्षात्कार हुए वैसे पिछाड़ी में भी तुम बहुत देखेंगे। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन्दिर लायक बनने के लिए देह-अभिमान छोड़ देना है। रूहानी सेवा में लग जाना है।
2) अब घर जाने का समय है इसलिए जो भी हिसाब-किताब है, धन्धे धोरी के ख्यालात हैं, उन्हें उतार देना है। याद के यात्रा की मेहनत करनी है।
वरदान:
मेहमानपन की वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को श्रेष्ठ, स्टेज को ऊंचा बनाने वाले सदा उपराम भव
जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वे अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते हैं। मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तुएं लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा। वे सब साधनों को अपनाते हुए भी जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे रहते हैं। देह, देह के संबंध और वैभवों से सहज उपराम हो जाते हैं। जितना मेहमानपन की वृत्ति रहती उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहती है।
स्लोगन:
अपने स्वभाव को निर्मल बना दो तो हर कदम में सफलता समाई हुई है।