Tuesday, October 11, 2016

मुरली 12 अक्टूबर 2016

12-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हारे जैसा सौभाग्यशाली कोई नहीं, क्योंकि जिस बाप को सारी दुनिया पुकार रही है वह तुम्हें पढ़ा रहे हैं, तुम उनसे बातें करते हो”
प्रश्न:
जिन बच्चों को विचार सागर मंथन करना आता है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
उनकी बुद्धि में सारा दिन यही तात लगी रहती कि कैसे सबको रास्ता बतायें! कैसे किसका कल्याण करें! वह सर्विस के नये-नये प्लैन बनाते रहते हैं। उनकी बुद्धि में सारा ज्ञान टपकता रहता है। वे अपना टाइम वेस्ट नहीं करते।
ओम् शान्ति।
बच्चों के आगे निराकार परमपिता परमात्मा बोल रहे हैं, यह बच्चे ही जानते हैं। भगवान को ऊंच कहा जाता है। ऊंचा उनका ठांव है। रहने का स्थान तो मशहूर है। बच्चे जानते हैं हम मूलवतन में रहने वाले हैं। मनुष्यों को इन सब बातों का पता नहीं है। गॉड फादर बोलते हैं। तुम बच्चों बिगर ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसको पता हो कि निराकार भगवान बोलते हैं। निराकार होने के कारण कोई की बुद्धि में नहीं आता है कि भगवानुवाच कैसे हो सकता है। पता न होने के कारण गीता में कृष्ण का नाम दे दिया है। अब बच्चों के आगे बोल रहे हैं। सम्मुख होने बिगर तो सुन नहीं सकते। दूर से भल सुनते हैं परन्तु निश्चय नहीं होता। सुनते तो हैं भगवानुवाच। यथार्थ रीति तुम जानते हो। भगवान तो शिवबाबा है। प्रैक्टिकल में जानते हो बाबा हमको ज्ञान सुना रहे हैं। तुम्हारी बुद्धि झट ऊपर में चली जाती है। शिवबाबा ऊंच ते ऊंच रहने वाला है। जैसे कोई बड़े आदमी, क्वीन आदि आती है तो जानते हैं यह फलानी जगह की रहने वाली है, इस समय यहाँ आई है। तुम बच्चे भी जानते हो बाबा आया है– हमको ले जाने। हम भी बाबा के साथ वापिस जायेंगे। हम परमधाम के रहने वाले हैं। तुमको अब बाप और घर याद पड़ता है। वही बाप सृष्टि का रचयिता है। बाप ने आकर तुम बच्चों को मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन का राज समझाया है। जिसकी बुद्धि में है वही समझेंगे। बरोबर हम पुरूषार्थ कर रहे हैं– भविष्य 21 जन्मों के लिए, बाप से वर्सा लेने। पुरूषार्थ तो करना ही है। पुरूषार्थ को कभी भी छोड़ना नहीं है। स्कूल के बच्चे जानते हैं जब तक इम्तिहान हो तब तक हमको पढ़ना ही पढ़ना है। एम आब्जेक्ट रहती है। हम बड़े ते बड़ा इम्तिहान पास करेंगे। एक कॉलेज छोड़ दूसरे, तीसरे में जायेंगे। मतलब तो पढ़ते रहना है। बड़े आदमी का बच्चा होगा तो जरूर बड़ा इम्तिहान पास करने का ख्याल होगा। तुम जानते हो हम बहुत बड़े बाप के बच्चे हैं। दुनिया में किसको पता नहीं है– हम शिवबाबा की सन्तान हैं। तुम बहुत बड़े ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे हो। बहुत बड़ी पढ़ाई पढ़ते हो। जानते हो यह ऊंच ते ऊंच पढ़ाई है। पढ़ाने वाला बाप है तो कितना उमंग और खुशी में रहना चाहिए। यह किसको भी समझा सकते हो। हम बहुत बड़े ते बड़े बाप के बच्चे हैं। बहुत बड़े सतगुरू की मत पर हम चलते हैं। टीचर की, गुरू की मत पर चलना होता है ना। उनको फालोअर कह देते हैं। यहाँ बाप की मत पर भी चलना है, टीचर की मत पर भी चलना है, तो गुरू की मत पर भी चलना है। तुम जानते हो वह हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है। उनकी मत पर जरूर चलना है। यह तो एक ही है– ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा, वह बोलते हैं। बाबा बच्चों से पूछते हैं शिवबाबा बोलते हैं, अच्छा शंकर बोलते हैं? ब्रह्मा बोलते हैं? विष्णु बोलते हैं? (किसी ने कहा शिव और ब्रह्मा बोलते हैं– विष्णु वा शंकर नहीं बोलते) विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण कहते हो तो फिर क्या बोलते नहीं हैं? गूँगे हैं? (ज्ञान नहीं बोलते) हम ज्ञान की बात ही नहीं करते, बोलने की बात पूछता हूँ। विष्णु, लक्ष्मी-नारायण बोलते हैं? शंकर नहीं बोलते हैं– वह ठीक है। बाकी तीनों क्यों नहीं बोलेंगे। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं तो जरूर बोलेंगे ना। मनुष्य शिवबाबा के लिए समझते होंगे कि वह निराकार कैसे बोलेंगे। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा भी इसमें आकर बोलते हैं। ब्रह्मा को भी बोलना होता है। एडाप्टेड हैं ना। सन्यासी लोग भी अपना नाम सन्यास के बाद बदली करते हैं। तुमने भी सन्यास किया है। तो तुम्हारा नाम बदलना चाहिए। पहले बाबा ने नाम रखे। परन्तु देखा कि नाम रखे हुए भी मर पड़ते हैं– आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं, इसलिए कितने नाम रख कितने का रखें। आजकल तो माया भी बहुत तेज है। बुद्धि कहती है जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो उसको विष्णु पुरी कहा जाता था। यह एम आब्जेक्ट बुद्धि में है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण राज्य करते हैं तो बोलते क्यों नहीं होंगे! बाबा यहाँ की बात नहीं करते हैं। मनुष्य तो कहेंगे निराकार कैसे बोलेंगे। उनको यह पता ही नहीं है कि निराकार कैसे आते हैं। उनको पतित-पावन कहते हैं। वह ज्ञान का सागर भी है, चैतन्य भी है, प्यार का सागर भी है। अब प्यार प्रेरणा से तो होता नहीं है, वह भी इसमें प्रवेश कर बच्चों को प्यार कर सकते हैं ना, तब कहते हैं हम परमपिता परमात्मा की गोद में आते हैं। बस बाबा तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से सुनूँ... बुद्धि उस तरफ चली जाती है। श्रीकृष्ण बुद्धि में नहीं आता है। तो बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। तुम्हारे जैसा सौभाग्यशाली कोई है नहीं। तुम जानते हो हम कितने ऊंच पार्टधारी हैं। यह खेल है ना। इसके पहले तो तुम कुछ नहीं जानते थे। अभी बाप ने प्रवेश किया है तो ड्रामा प्लैन अनुसार उन द्वारा सुन रहे हैं। बाप कहते हैं– मीठे-मीठे बच्चों तुम जानते हो बाबा निराकार है। वह हम आत्माओं का बाप है। यह बातें कोई भी शास्त्र आदि में लिखी हुई नहीं हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि विशाल हुई है। स्टूडेन्ट पढ़ते हैं, बुद्धि में सारी हिस्ट्री-जॉग्राफी आ जाती है। परन्तु यह किसकी बुद्धि में नहीं है– बाबा कहाँ हैं! यथार्थ रीति तुम बच्चे ही समझते हो और प्रैक्टिकल में वह खुशी है। बाबा परमधाम से आते हैं, हमको पढ़ाते हैं। सारा दिन आपस में यही रूह-रिहान होनी चाहिए। सिवाए इस ज्ञान के बाकी सब हैं सत्यानाश करने वाली बातें। शरीर निर्वाह अर्थ तुमको धन्धा आदि भी करना है और साथ-साथ यह रूहानी सर्विस भी। तुम जानते हो बरोबर यह भारत स्वर्ग था। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। जो भी देवताओं के चित्र हैं, उनका यथार्थ ज्ञान बुद्धि में आ गया है। नम्बरवन लक्ष्मी-नारायण का चित्र उठाओ, विचार करो– बरोबर यह भारत में राज्य करते थे तो एक ही धर्म था। रात पूरी हो दिन शुरू हुआ अर्थात् कलियुग पूरा हो सतयुग शुरू हुआ। कलियुग है रात। सतयुग है सुबह। विचार सागर मंथन करना है कि इन्होंने यह राज्य कैसे पाया। जैसे कहा जाता है सागर में पत्थर डालो तो लहरें उठेंगी। तो तुम भी पत्थर मारो, मनुष्यों को समझाओ। यह ख्याल करो, भारत में देवी-देवताओं का राज्य था ना, जिन्होंने ही फिर भक्ति मार्ग में मन्दिर बनाये हैं, जिसको फिर लूट गये हैं। कल की बात है। अभी भक्ति मार्ग है तो जरूर उसके आगे ज्ञान मार्ग होगा। यह सब बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं। बाप भी आकर अपनी जीवन कहानी बताते हैं। तुमको यह याद क्यों नहीं पड़ती है। बाबा आकरके हमको यह सारी नॉलेज सुनाते हैं, समझ भी चाहिए ना। किसको भी यही बात सुनाओ। यह चित्र है एम आब्जेक्ट। यह लक्ष्मी-नारायण तो सबसे बड़े किंग क्वीन हो गये हैं। भारत स्वर्ग था ना। कल की बात है। फिर इन्होंने यह राजगद्दी कैसे गँवाई। अपने बच्चे भी भल यह सब सुनते हैं परन्तु कभी बुद्धि में टपकता नहीं है। बुद्धि में याद भी नहीं आता। अगर याद आता है तो औरों को भी समझा सकते हैं। है तो बहुत सहज। तुम यहाँ आते हो लक्ष्मी-नारायण जैसा बनने। समझाया गया है 5 हजार वर्ष की बात है। इससे लांग-लांग एगो कोई होता नहीं। सबसे पुराने ते पुराने भारत की कहानी यह है। रीयल्टी में सच्ची-सच्ची कहानी यह होनी चाहिए। सबसे बड़ी कहानी यह है। इन्हों का राज्य था, अभी वह राज्य है नहीं। जरा भी किसको पता नहीं है। तुम्हारी बुद्धि में नम्बरवार टपकता है। बाप कहते हैं– मुझे याद करो। वह भी पूरी रीति कोई याद नहीं करते हैं। बाप बिन्दी है, हम भी बिन्दी हैं, यह भी बुद्धि में ठहरता नहीं। कोई-कोई की बुद्धि में तो अच्छी रीति टपकता है। किसी को बैठ समझाते हैं तो 4-5 घण्टे भी लग जाते हैं। यह बहुत वन्डरफुल बातें हैं। जैसे सत्य नारायण की कथा बैठकर सुनते हैं ना। 2-3 घण्टे बैठ सुनते हैं, जिसकी दिलचश्पी होती है। इसमें भी ऐसे है, जिसको बहुत रूचि होगी उनको और कुछ सूझेगा ही नहीं। बस यह बातें समझने में ही मजा आता है। यह बातें अच्छी लगती हैं। समझते हैं बस इस सर्विस में ही लग जायें, दूसरा धन्धाधोरी आदि सब छोड़ दें। परन्तु ऐसे तो कोई को बैठना नहीं है। तो तुम बच्चे यह सत्य-नारायण की कहानी सुन रहे हो। अभी तुम्हारी बुद्धि में कितनी अच्छी बातें रमण करती हैं। हम यह वक्खर (सामग्री) डिलेवरी करने के लिए एवररेडी हैं। वक्खर हमेशा रेडी होना चाहिए। यह चित्र भी तुम दिखाकर किसको भी समझा सकते हो– इन लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य कैसे मिला। कितना वर्ष आगे यह विश्व के मालिक थे। उस समय सृष्टि में मनुष्य कितने थे, अभी कितने हैं। कुछ न कुछ पत्थर डालना चाहिए तो विचार सागर मंथन चले। अपने इस कुल का होगा तो झट लहर जायेगी। अपने कुल का नहीं होगा तो कुछ भी समझेंगे नहीं, चले जायेंगे। यह नब्ज देख्ने की बात है। तुम्हें सिवाए इस मीठे-मीठे ज्ञान के बाकी कुछ भी बोलना नहीं है। अगर ज्ञान के सिवाए कुछ भी बोलते हैं तो समझो वह ईविल है, उनमें कोई सार नहीं है। हमारे पास ऐसे बहुत बच्चे हैं जिन्हें सुनने का बड़ा शौक होता है। बाप समझाते हैं– ईविल बात तो कभी भी सुननी नहीं चाहिए। कल्याण की बातें ही सुनो। नहीं तो मुफ्त अपनी सत्यानाश कर देंगे। बाप तो आकर तुम्हें ज्ञान ही सुनाते हैं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाते हैं। कहते हैं और कोई भी बात मत करो, इसमें बहुत टाइम वेस्ट करते हो। फलाना ऐसे है, वह ऐसा करता है... उसे ईविल कहा जाता है। दुनिया की बात अलग है, तुम्हारा तो एक-एक सेकेण्ड का टाइम बहुत वैल्युबुल है। तुम कभी भी ऐसी बातें नहीं सुनो, नहीं करो। इससे तो तुम बेहद के बाप को याद करो तो तुम्हारी बहुत कमाई है। जहाँ तहाँ बाप का परिचय जाकर दो। यही रूहानी सर्विस करते रहो। सच्चे-सच्चे महावीर तुम हो। बस सारा दिन यही तात रहे– कोई हो जिसे यह रास्ता बतायें। बाप कहते हैं-मुझ अल्फ को याद करो तो बे बादशाही मिल जायेगी। कितना सहज है। ऐसे-ऐसे जाकर सर्विस करनी चाहिए। बच्चों को सर्विस पर बहुत ध्यान देना चाहिए। अपना और दूसरों का कल्याण करना चाहिए। बाप भी तुम बच्चों को समझाने के लिए ही आये हैं ना। तुम बच्चे भी आये हो पढ़ने और पढ़ाने। टाइम वेस्ट करने या सिर्फ रोटियाँ पकाने तो नहीं आये हो। सारा दिन बुद्धि सर्विस में चलनी चाहिए। अच्छा-

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जो बातें अपने काम की नहीं हैं उन्हें सुनने वा बोलने में अपना समय वेस्ट नहीं करना है। जितना हो सके पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
2) सदा खुशी और उमंग में रहना है कि हमें पढ़ाने वाला कौन है। पुरूषार्थ को कभी छोड़ना नहीं है। मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं।
वरदान:
विस्तार की रंग-बिरंगी बातों से किनारा कर मुश्किल को सहज बनाने वाले सहजयोगी भव
जब बाप को देखने के बजाए बातों को देखने लग जाते हो तो कई क्वेश्चन उत्पन्न होते हैं और सहज बात भी मुश्किल अनुभव होने लगती है क्योंकि बातें हैं वृक्ष और बाप है बीज। जो विस्तार वाले वृक्ष को हाथ में उठाते हैं वह बाप को किनारे कर देते हैं, फिर विस्तार एक जाल बन जाता है जिसमें फंसते जाते हैं। बातों के विस्तार में रंग-बिरंगी बातें होती हैं जो अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं, इसलिए बीजरूप बाप की याद से बिन्दी लगाकर उससे किनारा कर लो तो सहज योगी बन जायेंगे।
स्लोगन:
मैं और मेरे पन की अलाय को समाप्त करना ही रीयल गोल्ड बनना है।