Saturday, October 1, 2016

मुरली 1 अक्टूबर 2016

01-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– योग अग्नि से पापों को भस्म कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बनना है, कोई भी पाप कर्म नहीं करना है”
प्रश्न:
सतयुग में ऊंच पद किस आधार पर मिलता है? यहाँ का कौन सा कायदा सबको सुनाओ?
उत्तर:
सतयुग में पवित्रता के आधार पर ऊंच पद मिलता है। जो पवित्रता की कम धारणा करते हैं वह सतयुग में देरी से आते हैं और पद भी कम पाते हैं। यहाँ जब कोई आता है तो उन्हें कायदा सुनाओ– दे दान तो छूटे ग्रहण। 5 विकारों का दान दो तो तुम 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। तुम बच्चे भी अपनी दिल से पूछो कि हमारे में कोई विकार तो नहीं हैं?
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं कि मनुष्यों को कैसे समझाओ कि अब स्वर्ग की स्थापना हो रही है। 5 हजार वर्ष पहले भी भारत में स्वर्ग था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। विचार करना चाहिए, उस समय कितने मनुष्य थे। सतयुग आदि में बहुत करके 9-10 लाख होंगे। शुरूआत में झाड़ छोटा ही होता है। इस समय जबकि कलियुग का अन्त है तो कितना बड़ा झाड हो गया है, अब इसका विनाश भी जरूर होना है। बच्चे समझते हैं यह वही महाभारत लड़ाई है। इस समय ही गीता के भगवान ने राजयोग सिखाया और देवी-देवता धर्म की स्थापना की। संगम पर ही अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना हुई थी। बच्चे यह भी जानते हैं कि आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था और कोई धर्म नहीं था। ऐसी नई दुनिया स्थापन करने बाप संगम पर आते हैं। अब वह स्थापन हो रही है। पुरानी दुनिया विनाश हो जायेगी। सतयुग में एक ही भारत खण्ड था और कोई खण्ड था नहीं। अभी तो कितने खण्ड हैं। भारत खण्ड भी है परन्तु इसमें आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं। वह प्राय: लोप हो गया है। अब फिर परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं। बाकी सब धर्म विनाश हो जाते हैं। यह तो याद रखना है कि सतयुग त्रेता में कोई और राज्य नहीं था और सब धर्म अभी आये हैं। कितना दु:ख अशान्ति मारामारी है। महाभारी महाभारत लड़ाई भी वही है। एक तरफ यूरोपवासी यादव भी हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी इन्होंने मूसल इन्वेन्शन की थी। कौरव पाण्डव भी थे। पाण्डवों की तरफ खुद परमपिता परमात्मा मददगार था। सभी को यही कहा कि गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे याद करने से तुम्हारे पाप बढ़ेंगे नहीं और पास्ट के विकर्म विनाश होंगे। अभी भी बाप समझाते हैं। तुम ही भारतवासी सतयुग में जो सतोप्रधान थे, वह इस समय 84 जन्म लेते-लेते अब तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बन गई है। अब सतोप्रधान कैसे बनें। सतोप्रधान तब बनेंगे जब मुझ पतितपावन बाप को याद करेंगे। इस योग अग्नि से ही पाप भस्म होंगे और आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी। और फिर स्वर्ग में 21 जन्मों के लिए वर्सा पायेंगे। बाकी इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है। भारत सतयुग में श्रेष्ठाचारी था और सृष्टि के आदि में बहुत थोड़े मनुष्य थे। भारत स्वर्ग था, दूसरे कोई खण्ड नहीं थे। अभी और धर्म बढ़ते-बढ़ते झाड़ कितना बड़ा हो गया है और तमोप्रधान जड़ जड़ीभूत हो गया है। अब इस तमोप्रधान झाड़ का विनाश और नई देवी-देवता धर्म के झाड़ की स्थापना जरूर चाहिए। संगम पर ही होगा। अभी तुम हो संगम पर। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का अभी सैपालिंग लग रहा है। पतित मनुष्यों को बाप पावन बना रहे हैं, वह फिर देवता बनेंगे। जो पहले नम्बर में थे जिन्होंने 84 जन्म लिए हैं। वही फिर पहले नम्बर में आयेंगे। सबसे पहले-पहले देवी-देवताओं का पार्ट था। वही पहले बिछुड़े हैं। फिर उन्हों का ही पार्ट होना चाहिए ना। सतयुग में हैं ही सर्वगुण सम्पन्न.... अभी है विशश वर्ल्ड, रात-दिन का फर्क है। अभी विशश वर्ल्ड को वाइसलेस वर्ल्ड कौन बनाये। पुकारते भी हैं हे पावन बनाने वाले आओ। अभी वह आया है। बाप कहते हैं– हम तुमको वाइसलेस बना रहे हैं। इस विशश दुनिया के विनाश के लिए लड़ाई लगनी है। अब वह कहते हैं एक मत कैसे हो क्योंकि अभी अनेक मत हैं ना। अनेक इतने मत-मतान्तरों के अन्दर एक धर्म की मत कौन स्थापन करे। बाप समझाते हैं अभी एक मत की स्थापना हो रही है। बाकी सब विनाश हो जायेंगे। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले जो पावन थे, वही फिर 84 जन्म भोग अब पतित बने हैं। फिर बाप आकर भारतवासियों को फिर से स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं अर्थात् असुर से देवता बना रहे हैं। तुम किसको भी समझा सकते हो कि बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पतित से पावन बन जायेंगे। अब तुम ज्ञान चिता पर बैठो। चिता पर बैठने से तुम पावन बन जाते हो। फिर द्वापर में रावण राज्य होने कारण काम चिता पर बैठते-बैठते भ्रष्टाचारी दुनिया बन गई है। आज से 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवता थे। थोड़े मनुष्य थे। अभी तो कितने आसुरी बन पड़े हैं। और धर्म भी एड हो झाड़ बड़ा हो गया है। बाप समझाते हैं झाड़ जड़जड़ीभूत हो गया है। अब फिर मुझे एक मत का राज्य स्थापन करना है। भारतवासी कहते भी हैं एक धर्म में एक मत हो। यह भारतवासी भूल गये हैं कि सतयुग में एक ही धर्म था। यहाँ तो अनेक धर्म हैं। अब बाप आकर फिर से एक धर्म स्थापन कर रहे हैं। तुम बच्चे राजयोग सीख रहे हो। जरूर भगवान ही राजयोग सिखायेंगे। यह किसको पता नहीं है। प्रदर्शनी का उद्घाटन जब कोई करने आते हैं तो उनको भी समझाना चाहिए– तुम किसका उद्घाटन करते हो। बाप इस भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। बाकी नर्कवासी सब विनाश हो जायेंगे। विनाश के पहले जिनको बाप से वर्सा लेना है तो आकर समझें। यह बी.के. का जो आश्रम है यह है क्वारनटाइन क्लास, यहाँ 7 रोज क्लास करना है ताकि 5 विकार निकल जाएं। देवताओं में यह 5 विकार होते नहीं। अब यहाँ 5 विकारों का दान देना है, तब ग्रहण छूटेगा। दे दान तो छूटे ग्रहण। फिर तुम 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। भारत सतयुग में 16 कला सम्पूर्ण था, अभी तो कोई कला नहीं रही है। सब कंगाल बन पड़े हैं। कोई ओपानिंग करने आते हैं, बोलो, यहाँ का कायदा है, बाप कहते हैं दे 5 विकारों का दान तो छूटे ग्रहण। तुम 16 कला सम्पूर्ण देवता बन जायेंगे। पवित्रता अनुसार पद पायेंगे। बाकी अगर कुछ न कुछ कला कम रह गई तो जन्म भी देरी से लेंगे। विकारों का दान देना तो अच्छा है ना। चन्द्रमा को ग्रहण लगता है तो आगे ब्राह्मण लोग दान लेते थे। अभी तो ब्राह्मण बड़े आदमी हो गये हैं। गरीब लोग तो बिचारे भीख मांगते रहते, पुराने कपड़े आदि भी लेते रहते। वास्तव में ब्राह्मण पुराने कपड़े नहीं लेते, उन्हों को नया दिया जाता है। तो अब तुम समझाते हो भारत 16 कला सम्पूर्ण था। अब आइरन एजेड हो गया है। 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है। अभी तुम जो 5 विकारों का दान दे यह अन्तिम जन्म पवित्र रहेंगे तो नई दुनिया के मालिक बनेंगे। स्वर्ग में बहुत थोड़े थे। पीछे वृद्धि को पाया है। अब तो विनाश भी सामने खड़ा है। बाप कहते हैं– 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूट जाए। अब तुमको श्रेष्ठाचारी बन स्वर्ग का सूर्यवंशी राज्य लेना है, तो भ्रष्टाचार को छोड़ना पड़ेगा। 5 विकारों का दान दो। अपनी दिल से पूछो हम सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी बने हैं? नारद का मिसाल है ना। एक भी विकार होगा तो लक्ष्मी को वर कैसे सकेंगे। कोशिश करते रहो, खाद को आग लगाते रहो। सोना जब गलाते हैं, गलते-गलते यदि आग ठण्डी हो जाती है तो खाद निकलती नहीं है, इसलिए पूरी आग में गलाते हैं। फिर जब देखते हैं किचड़ा अलग हो गया है तब कार्ब में डालते हैं। बाप अब खुद कहते हैं कोई भी विकार में मत जाओ। तीव्र वेग से पुरूषार्थ करो। पहले तो पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। बाबा आप पावन बनाने आये हो, हम कभी विकार में नहीं जायेंगे। देही-अभिमानी बनना है। बाप हम आत्माओं को समझाते हैं। वह सुप्रीम आत्मा है। तुम जानते हो हम पतित हैं। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। मैं तुम्हारा बाप तुम आत्माओं से बात करता हूँ। ऐसा कोई नहीं कह सकता– मैं तुम्हारा बाप परमात्मा हूँ। मैं आया हूँ पावन बनाने। तुम पहले-पहले सतोप्रधान थे फिर सतो, रजो, तमो में आये। तमोप्रधान बने हो। इस समय 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं इसलिए दु:ख देते हैं। हर चीज दु:ख देती है। यही तत्व जब सतोप्रधान होते हैं– तब सुख देते हैं। उसका नाम ही है– सुखधाम। यह है दु:खधाम। सुखधाम है बेहद के बाप का वर्सा। दु:खधाम है रावण का वर्सा, अब जितना श्रीमत पर चलेंगे, उतना ऊंच बनेंगे। फिर प्रसिद्ध हो जायेंगे कि कल्प-कल्प यह ऐसे ही पुरूषार्थ करने वाले हैं। यह कल्प-कल्प की बाजी है। जो जास्ती पुरूषार्थ कर रहे हैं वह अपना राज्य भाग्य ले रहे हैं। ठीक पुरूषार्थ नहीं किया होगा तो थर्ड ग्रेड में चला जायेगा। प्रजा में भी पता नहीं क्या जाकर बनेगा। लौकिक बाप भी कहते हैं तुम हमारा नाम बदनाम करते हो, निकलो घर से बाहर। बेहद का बाप भी कहते हैं तुमको माया का थप्पड़ ऐसा लगेगा जो सूर्यवंशी चन्द्रवंशी में आयेंगे ही नहीं। अपने आपको चमाट मार देंगे। बाप तो कहते हैं वारिस बनो। राजतिलक लेना चाहते हो तो मुझे याद करो और औरों को भी याद दिलाओ तो तुम राजा बनेंगे। नम्बरवार तो होते हैं ना। कोई बैरिस्टर एक-एक केस का लाखों रूपया कमाते हैं और कोई-कोई को देखो पहनने के लिए कोट भी नहीं होगा। पुरूषार्थ पर मदार है ना। तुम भी पुरूषार्थ करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। मनुष्य से देवता बनना है। चाहे मालिक बनो, चाहे प्रजा बनो। प्रजा में भी नौकर-चाकर बनेंगे। स्टूडेन्ट की चलन से टीचर समझ जाते हैं। वन्डर यह है जो पहले वाले से पिछाड़ी वाले तीखे चले जाते हैं क्योंकि अभी दिन-प्रतिदिन रिफाइन प्वाइंट्स मिलती रहती हैं। सैपालिंग लगाते जाते हैं। पहले वाले तो कई भागन्ती हो गये। न्यु एड होते जाते हैं। नई-नई प्वाइंट्स मिलती जाती हैं। बहुत युक्ति से समझाया जाता है। बाबा कहते हैं बहुत गुह्य-गुह्य रमणीक बातें सुनाते हैं, जिससे तुम झट निश्चयबुद्धि हो जाओ। जहाँ तक मेरा पार्ट है, तुमको पढ़ाता रहूँगा। यह भी ड्रामा में नूँध है। जब कर्मातीत अवस्था को पायेंगे तब पढ़ाई पूरी होगी। बच्चे भी समझ जायेंगे। पिछाड़ी में इम्तहान की रिजल्ट मालूम होती है ना। इस पढ़ाई में नम्बरवन सब्जेक्ट है– पवित्रता की। जब तक बाबा की याद नहीं रहती है, बाप की सर्विस नहीं करते हैं, तब तक आराम नहीं आना चाहिए। तुम्हारी लड़ाई है ही माया के साथ। रावण को भल जलाते हैं परन्तु जानते नहीं हैं कि यह है कौन। दशहरा बहुत मनाते हैं। अभी तुमको वन्डर लगता है– राम भगवान की भगवती सीता चुराई गई। फिर बन्दरों वा लश्कर लिया। ऐसा कब हो सकता है क्या? कुछ भी समझते नहीं। तो जब प्रदर्शनी में आते हैं पहले-पहले बताना चाहिए– भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तब कितने मनुष्य होंगे। 5 हजार वर्ष की बात है। अभी कलियुग है, वही महाभारी महाभारत लड़ाई भी है, बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। विनाश भी होगा। यहाँ एक धर्म एक मत अथवा पीस कैसे हो सकती है। जितना माथा मारते हैं एक मत होने के लिए उतना ही लड़ते हैं। बाप कहते हैं- अब मैं उन सबको आपस में लड़ाए माखन तुमको दे देता हूँ। बाप समझाते हैं जो करेगा सो पायेगा। कोई-कोई बच्चे बाप से भी ऊंच बन सकते हैं। तुम मेरे से भी साहूकार विश्व के मालिक बनोगे। मैं नहीं बनूँगा। मैं तुम बच्चों की निष्काम सेवा करता हूँ। मैं दाता हूँ। ऐसे कोई मत समझे हम शिवबाबा को 5 रूपया देते हैं। परन्तु शिवबाबा से 5 पदम स्वर्ग में लेते हैं। तो क्या यह देना हुआ। अगर समझते हैं कि हम देते हैं, यह तो शिवबाबा की बड़ी इनसल्ट करते हैं। बाप तुमको कितना ऊंच बनाते। तुम 5 रूपया शिवबाबा के खजाने में देते हो। बाबा तुमको 5 करोड़ देते हैं। कौड़ी से हीरे जैसा बना देते हैं। ऐसा कब संशय नहीं लाना कि हमने शिवबाबा को दिया। यह कितना भोलानाथ है। यह कभी ख्याल नहीं आना चाहिए– हम बाबा को देते हैं। नहीं, शिवबाबा से हम 21 जन्मों के लिए वर्सा लेते हैं। शुद्ध विचार से नहीं दिया तो स्वीकार कैसे होगा। सब बातों की समझ बुद्धि में रखनी चाहिए। ईश्वर अर्थ दान करते हैं, वह कोई भूखा है क्या? नहीं, समझते हैं हमको दूसरे जन्म में मिलेगा। अभी तुमको बाप, कर्म, अकर्म, विकर्म की गति बैठ समझाते हैं। यहाँ जो कर्म करेंगे सो विकर्म ही होगा क्योंकि रावण राज्य है। सतयुग में कर्म अकर्म हो जाता है। हम तुमको अभी उस दुनिया में ट्रांसफर करते हैं, जहाँ तुमसे विकर्म होगा ही नहीं। बहुत बच्चे हो जायेंगे फिर तुम्हारे पैसे भी क्या करेंगे। हम कच्चा सर्राफ नहीं हूँ, जो लेवें और काम में न आये, फिर भरकर देना पड़े। मैं पक्का सर्राफ हूँ। कह देंगे जरूरत नहीं। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) तीव्र वेग से पुरूषार्थ कर विकारों की खाद को योग की अग्नि में गला देना है। पवित्रता की पूरी प्रतिज्ञा करनी है।
2) कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को बुद्धि में रखकर अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देना है।
वरदान:
घबराने की डांस छोड़ सदा खुशी की डांस करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव
जो बच्चे मास्टर नॉलेजफुल है वह कभी घबराने की डांस नहीं कर सकते। सेकण्ड में सीढ़ी नीचे, सेकण्ड में ऊपर अब यह संस्कार चेंज करो तो बहुत फास्ट जायेंगे। सिर्फ मिली हुई अथॉरिटी को, नॉलेज को, परिवार के सहयोग को यूज करो, बाप के हाथ में हाथ देकर चलते रहो तो खुशी की डांस करते रहेंगे, घबराने की डांस हो नहीं सकती। लेकिन जब माया का हाथ पकड़ लेते हो तो वह डांस होती है।
स्लोगन:
जिनका संकल्प और कर्म महान है वही मास्टर सर्वशक्तिमान् है।