Friday, August 26, 2016

मुरली 27 अगस्त 2016

27-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– सुख देने वाले बाप को बहुत-बहुत प्यार से याद करो, याद बिगर प्यार नहीं हो सकता”   
प्रश्न:
बाप बच्चों को रोज-रोज याद का अभ्यास करने का इशारा क्यों देते हैं?
उत्तर:
क्योंकि याद से ही आत्मा पावन बनेगी। याद से ही पूरा वर्सा ले सकेंगे। आत्मा के सब बन्धन खलास हो जायेंगे। विकर्मो से मुक्त हो जायेंगे। सजाओं से छूट जायेंगे। जितना याद करेंगे उतना खुशी रहेगी। मंजिल समीप अनुभव होगी। कभी भी थकेंगे नहीं। बेहद का सुख पायेंगे इसलिए याद का अभ्यास जरूर करना है।
गीत:-
बचपन के दिन भुला न देना...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन का अर्थ समझा। अभी जीते जी तुम बेहद के बाप के बने हो। सारा कल्प तो हद के बाप के बने हो। सतयुग में भी हद के बाप के बनते हो। अभी सिर्फ तुम ब्राह्मण बच्चे बेहद के बाप के बने हो। तुम जानते हो बेहद के बाप से हम बेहद का वर्सा ले रहे हैं। अगर बाप को छोड़ा तो बेहद का वर्सा मिल नहीं सकेगा। भल तुम समझाते हो परन्तु थोड़े में तो कोई राजी नहीं होता। मनुष्य धन बहुत चाहते हैं। धन के सिवाय सुख नहीं हो सकता। धन भी चाहिए, शान्ति भ् चाहिए, निरोगी काया भी चाहिए। तुम बच्चे ही जानते हो दुनिया में आज क्या है, कल क्या होना है। विनाश तो सामने खड़ा है और कोई की बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। अगर समझें भी विनाश सामने खड़ा है तो क्या करना है, यह नहीं जानते। तुम बच्चे समझते हो, ऐसे मालूम होता है– कब भी लड़ाई लग जाए, थोड़ी चिनगारी लगे तो भंभट मच जाए। देरी नहीं लगेगी। आगे भी थोड़ी सी बात से कितनी बड़ी लड़ाई लग गई। बच्चे जानते हैं कि पुरानी दुनिया खत्म हुई कि हुई इसलिए अब जल्दी ही बाप से वर्सा लेना है। बाप को सदैव याद करते रहेंगे तो बहुत हर्षित रहेंगे। देह-अभिमान में आने से ही वह खुशी गायब हो जाती है। देही-अभिमानी बनते हो तो बाप को याद करते हो। देह- अभिमान में आने से बाप को भूल दु:ख उठाते हो। जितना बाप को याद करेंगे, उतना बेहद के बाप से सुख उठायेंगे। यहाँ तुम आये ही हो ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनने। राजा-रानी और प्रजा का नौकर-चाकर, बहुत फर्क है ना। अभी का पुरूषार्थ फिर कल्प-कल्पान्तर के लिए कायम हो जाता है। पिछाड़ी में सबको साक्षात्कार होगा– हमने कितना पुरूषार्थ किया है। अब भी बाप कहते हैं अपनी अवस्था को देखते रहो। मीठे ते मीठे बाबा, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, उनको हम कितना याद करते हैं। तुम्हारा सारा मदार है ही याद पर। जितना याद करेंगे उतना खुशी भी रहेगी। समझेंगे बस अब नजदीक आकर पहुँचे हैं। कोई थक भी जाते हैं, पता नहीं मंजिल कितना दूर है, पहुँचे तो मेहनत भी सफल हो। दुनिया को यह भी पता नहीं कि भगवान किसको कहा जाता है। कहते भी हैं हे भगवान फिर कह देते ठिक्कर भित्तर में है। अभी तुम बच्चे समझते हो हम बाप के बन चुके हैं। अब बाप की ही मत पर चलना है। भल विलायत में हो वहाँ रहते भी सिर्फ बाप को याद करना है। तुमको श्रीमत तो मिली है। आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान सिवाए बाप की याद के हो नहीं सकती। तुम कहते हो– बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेंगे। जैसे हमारा बाबा वर्सा लेते हैं, हम भी पुरूषार्थ कर उनकी गद्दी पर जरूर बैठेंगे। मम्मा बाबा राज-राजेश्वर, राज-राजेश्वरी बनते हैं, तो हम भी बनेंगे। इम्तहान तो सबके लिए एक ही है। तुमको बहुत थोड़ा सिखाया जाता है, सिर्फ बाप को याद करो। इसको कहा जाता है सहज राजयोग बल। तुम समझते हो योग से बहुत बल मिलता है। हम कोई विकर्म करेंगे तो सजा बहुत खायेंगे, पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। याद में ही माया विघ्न डालती है। तुम जानते हो हम पावन दुनिया में जा रहे हैं। जो ब्राह्मण बनेंगे वही निमित्त बनेंगे। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनने बिगर तुम बाप से वर्सा ले नहीं सकते। बाप बच्चों को रचते ही हैं वर्सा देने के लिए। शिवबाबा के तो हम हैं ही। वह नई सृष्टि रचते हैं बच्चों को वर्सा देने लिए। शरीरधारी को ही वर्सा देंगे। आत्मायें तो ऊपर में रहती हैं। वहाँ तो वर्से वा प्रालब्ध की बात नहीं। तुम अभी पुरूषार्थ कर प्रालब्ध ले रहे हो, जो दुनिया को पता नहीं है। अब समय नजदीक आता जाता है। इतला करते रहते हैं फलाना अगर ऐसे करेगा तो हम एकदम उनको उड़ा देंगे। उड़ाने की तैयारी हो रही है। बाम्ब्स आदि कोई रखने नहीं हैं। तैयारियां बहुत हो रही हैं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट के समय पाकिस्तान, हिन्दुस्तान था क्या? लिखा हुआ है यौवनों की लड़ाई। पाण्डव और कौरवों की लड़ाई है नहीं। यौवन बरोबर लड़ रहे हैं। बाम्ब्स भी तैयार हो गये हैं। अभी बाप हमको फरमान करते हैं कि मुझे याद करो, नहीं तो पिछाड़ी में बहुत रोना पड़ेगा। इम्तिहान में नापास होते हैं तो जाकर डूब मरते हैं गुस्से में। यहाँ गुस्से की तो बात नहीं। पिछाड़ी में तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे। क्या-क्या हम बनेंगे– वह भी पता पड़ जायेगा। बाप का काम है पुरूषार्थ कराना। कहते हैं बच्चे कर्म करते हुए याद करना भूल जाते हो वा फुर्सत नहीं मिलती है तो अच्छा बैठो। याद में बैठकर बाप को याद करो। आपस में तुम मिलते हो तो भी यह कोशिश करो कि हम बाबा को याद करें। मिलकर बैठने से तुम याद अच्छा करेंगे, मदद मिलेगी। मूल बात है बाप को याद करना। यहाँ आओ वा न आओ। कोई विलायत जाते हैं फिर आ तो सकेंगे नहीं। वहाँ भी सिर्फ एक बात याद रखो। बाप की याद से ही तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। बाप कहते हैं सिर्फ एक बात याद रखो– बाप को याद करो। बाप कहते हैं- मनमनाभव। मुझे याद करो तो विश्व का मालिक बनेंगे। मूल बात हो जाती है याद की। कहाँ भी जाने आदि की बात नहीं। घर में रहो सिर्फ बाप को याद करते रहो। पवित्र नहीं बनेंगे तो याद कर नहीं सकेंगे। ऐसे थोड़ेही है कि सब आकर क्लास में पढ़ेंगे। मन्त्र लिया फिर भल कहाँ भी चले जाओ। सतोप्रधान बनने का रास्ता बाप ने बतलाया है। यूँ तो सेन्टर पर आने से नई-नई प्वाइंट सुनते रहेंगे। अगर किसी कारण से नहीं आ सकते हैं, बरसात पड़ती है अथवा करफ्यु लगता है, कोई बाहर नहीं निकल सकते फिर क्या करेंगे। बाप कहते हैं हर्जा नहीं है। कहाँ भी रहते तुम याद में रहो। चलते-फिरते याद करो। औरों को यही कहो कि बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे और देवता बन जायेंगे। अक्षर ही दो हैं। बाप कहते हैं- यह बचपन भूल न जाना। आज हंसते हो कल रोना पड़ेगा– अगर बाप को भुलाया तो। बाप से वर्सा पूरा लेना चाहिए। ऐसे बहुत हैं कहते हैं स्वर्ग में तो जायेंगे ना फिर जो तकदीर में होगा। उनको कोई पुरूषार्थ करना नहीं कहेंगे। मनुष्य पुरूषार्थ करते ही हैं ऊंच मर्तबा पाने के लिए। अब जबकि बाप के पास ऊंच मर्तबा मिलता है तो गफलत क्यों करनी चाहिए। स्कूल में जो नहीं पढ़ेंगे तो पढ़े-लिखे के आगे भरी ढोनी पड़ेगी। बाप को पूरा याद नहीं करेंगे तो प्रजा के भी नौकर चाकर जाए बनेंगे। इसमें खुश थोड़ेही होना चाहिए। तो बाप समझाते हैं– मीठे-मीठे बच्चों सम्मुख रिफ्रेश होकर जाते हो। कई बांधेलियां हैं, हर्जा नहीं, घर बैठे बाप को याद करती रहो। तुमको कितना सहज समझाते हैं, मौत सामने खड़ा है, अचानक ही लड़ाई शुरू हो जायेगी। एक-दो को कहते हैं थोड़ा भी गड़बड़ किया तो हम ऐसा करेंगे। पहले से ही कह देते हैं, बाम्ब्स की मगरूरी बहुत है। बाप कहते हैं-बच्चे अजुन योगबल में होशियार हुए नहीं हैं, ऐसा न हो लड़ाई लग जाए। परन्तु ड्रामा अनुसार ऐसा होगा ही नहीं। बच्चों ने पूरा वर्सा लिया नहीं है इसलिए निश्चय होता है, यह लड़ाई करके लगेगी भी, तो भी बन्द हो जायेगी क्योंकि अभी राजधानी स्थापन नहीं हुई है। टाइम चाहिए। पुरूषार्थ कराते रहते हैं, पता नहीं किसी भी समय कुछ भी हो सकता है। बस गिर पड़ती है, एरोप्लेन, ट्रेन गिर पड़ती, मौत कितना सहज खड़ा है। धरती भी हिलती रहती है। सबसे जास्ती काम अर्थक्वेक को करना है। लेकिन विनाश होने के पहले बाप से पूरा वर्सा लेना है इसलिए बहुत प्रेम से बाप को याद करना है। बाबा आपके बिगर हमारा दूसरा कोई नहीं। सिर्फ बाप को ही याद करते रहो। कितना सहज रीति जैसे छोटे-छोटे बच्चों को समझाते हैं और कोई तकलीफ नहीं देता हूँ, सिर्फ याद करो। और काम चिता पर बैठ जो तुम जल मरे हो, सो अब ज्ञान चिता पर बैठ पवित्र बनो। तुमसे पूछते हैं आपका उद्देश्य क्या है? बोलो, जो सबका बाप है वह कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। सर्व का सद्गति दाता एक बाप है। अब बाप कहते हैं-सिर्फ मुझे याद करो तो कट उतर जायेगी। यह इतना पैगाम तो दे सकते हो ना। खुद याद करेंगे तब दूसरे को याद करा सकेंगे। दूसरे को रूचि से कहेंगे। नहीं तो दिल से नहीं निकलेगा। बाप कहते हैं- कहाँ भी हो जितना हो सके सिर्फ याद करो। भल थोड़ी खान-पान की तकलीफ आदि होती है। रहना तो घर में ही है। घर में रहते बाप को याद करो, जो मिले उनको यही शिक्षा दो– मौत सामने खड़ा है। बाप कहते हैं-तुम सब तमोप्रधान पतित बन पड़े हो, अब मुझे याद करो और पवित्र बनो। आत्मा ही पतित बनी है, सतयुग में होती है पावन आत्मा। बाप की याद से ही आत्मा पावन बनेगी और कोई उपाय नहीं है। यह पैगाम सबको देते जाओ तो भी बहुतों का कल्याण करेंगे और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। पुरूषोत्तम मास में भी जाकर समझाओ कि सबसे पुरूषोत्तम कौन? सतयुग आदि में यह लक्ष्मी-नारायण पुरूषोत्तम थे। इन्हों को ऐसा पुरूषोत्तम बनाने वाला अर्थात् स्वर्ग की स्थापना करने वाला बाप है। सब आत्माओं को पावन बनाने वाला पतित-पावन बाप ही है। सबसे उत्तम से उत्तम पुरूष बनाने वाला है बाप। जो पूज्य थे वही फिर पुजारी बने हैं। रावण राज्य में हम पुजारी बने हैं, रामराज्य में पूज्य थे। अभी रावण राज्य का अन्त है। हम पुजारी से फिर पूज्य बनते हैं। बाप को याद करने का औरों को भी रास्ता बताना है। बुढि़यों को भी यह सर्विस करनी चाहिए। मित्र-सम्बन्धियों को भी बाप का परिचय दो। बोलो, शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। निराकार शिवबाबा सर्व का सद्गति दाता बाबा, सब आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। यह समझाना तो सहज है ना। बुढि़या भी यह सर्विस कर सकती हैं। मूल बात है ही यह। शादी मुरादी कहाँ भी जाओ, कान में यह बात सुनाओ। गीता का भगवान कहते हैं मुझे याद करो, इस बात को सब पसन्द करेंगे। जास्ती बोलने की दरकार नहीं है। सिर्फ बाप का पैगाम देना है कि बाप कहते हैं मुझे याद करो। अच्छा– ऐसे समझो, भगवान प्रेरणा करते हैं। स्वप्न में साक्षात्कार होता है, आवाज सुनने में आता है– बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। तुम खुद भी सिर्फ यही चिंतन करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। हम प्रैक्टिकल में बेहद के बाप के बने हैं और बाप से 21 जन्मों का वर्सा ले रहे हैं, तो खुशी रहनी चाहिए ना। बाप को भूलने से ही तकलीफ होती है। बाप कितना सहज बतलाते हैं– मुझे याद करो तो सब समझेंगे इन्हों को रास्ता तो बरोबर राइट मिला है। यह रास्ता कब कोई बता न सके। समय ऐसा होगा जो तुम घर से बाहर नहीं निकल सकेंगे। बाप को याद करते-करते शरीर छोड़ देंगे। अन्तकाल जो शिवबाबा सिमरे.... फिर नारायण योनि बल-बल उतरे। लक्ष्मी-नारायण डिनायस्टी में आयेंगे। घड़ी-घड़ी राजाई पद पायेंगे। बस सिर्फ बाप को याद करो प्यार से। याद बिगर प्यार कैसे करेंगे। सुख मिलता है तब याद किया जाता है। दु:ख देने वाले को प्यार नहीं किया जाता। बाप कहते हैं- मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ इसलिए मुझे प्यार करो। बाप की मत पर चलना चाहिए ना। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई में कभी गफलत नहीं करनी है, लड़ाई के पहले बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है।
2) श्रीमत पर बाप को बड़े प्यार से याद करना है।
वरदान:
सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख तपस्या करने वाले सच्चे तपस्वी व सेवाधारी भव   
भक्ति मार्ग में दिखाते हैं कि तपस्वी वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं। इसका भी रहस्य है। आप बच्चों का निवास इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की जड़ में है। वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में स्वत: रहती है। तो सारे वृक्ष की नॉलेज स्मृति में रख साक्षी होकर इस वृक्ष को देखो। तो यह नशा, खुशी दिलायेगा और इससे बैटरी चार्ज हो जायेगी। फिर सेवा करते भी तपस्या साथ-साथ रहेगी।
स्लोगन:
तन की बीमारी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन मन कभी बीमार न हो।