Tuesday, August 23, 2016

मुरली 24 अगस्त 2016

24-08-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– बाप और दादा की भी वन्डरफुल कहानी है, बाप जब दादा में प्रवेश करे तब तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी वर्से के अधिकारी बनो”   
प्रश्न:
निश्चित ड्रामा को जानते हुए भी तुम बच्चों को कौन सा लक्ष्य अवश्य रखना है?
उत्तर:
पुरूषार्थ कर गैलप करने का अर्थात् विनाश के पहले बाप की याद में रह कर्मातीत बनने का लक्ष्य अवश्य रखना है। कर्मातीत अर्थात् आइरन एजेड से गोल्डन एजेड बनना। पुरूषार्थ का यही थोड़ा सा समय है इसलिए विनाश के पहले अपनी अवस्था को अचल-अडोल बनाना है।
ओम् शान्ति।
यह दोनों कौन कहते हैं? एक था बाबा, एक था दादा। कहानी सुनाते हैं ना– एक था राजा, एक थी रानी। अब यह फिर हैं नई बातें। एक बाबा एक दादा तुम कहेंगे 5 हजार वर्ष पहले भी एक था शिवबाबा, दूसरा था ब्रह्मा दादा। अब शिव के बच्चे तो सब हैं। सभी आत्मायें एक बाप की सन्तान हैं। वह तो है ही है। ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण भी थे, प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारियां थे। उन्हों को कौन पढ़ाते थे? शिवबाबा। प्रजापिता ब्रह्मा के यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां ढेर बच्चे हैं ना। ब्रह्माकुमार-कुमारियां मानते हैं बरोबर हम शिवबाबा के बच्चे भी हैं, पोत्रे भी हैं। बच्चे तो हैं ही अब पोत्रे बने हैं। ब्रह्मा द्वारा दादे से वर्सा लेने। अभी तुमको दादे से वर्सा मिलता है, जिसको शिवबाबा कहते हैं। परन्तु ब्रह्माकुमार-कुमारियां होने कारण उनको हम दादा कहते हैं। वर्सा दादे का है। ब्रह्मा दादा का नहीं। बैकुण्ठ वासी बनने का वर्सा उस बाप से मिलता है। आधाकल्प वर्सा पाते हो फिर तुमको श्राप मिलता है– रावण से। नीचे उतरते आते हो। जैसेकि ग्रहचारी बैठती है, नीचे उतरने की। अभी तुम बच्चे समझते हो– हमारी ग्रहचारी राहू की दशा पूरी हुई। राहू की दशा है सबसे बुरी। ऊंच ते ऊंच ब्रहस्पति की दशा फिर राहू की दशा बैठी तो 5 विकारों के कारण हम काले हो गये। अब फिर बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। है तुम्हारी बात। उन्होंने फिर सूर्य चन्द्रमा का ग्रहण समझ लिया है। जब ग्रहण लगता है तो दान मांगते हैं। यहाँ बाप तुमको कहते हैं 5 विकारों का दान दो तो ग्रहचारी उतर जायेगी। इन विकारों से ही तुम पापात्मा बने हो। मुख्य है देह-अभिमान। पहले ऐसे सतोप्रधान थे, फिर सतो रजो तमो बने हैं। 84 जन्म लिए हैं। यह तो पक्का निश्चय है बरोबर देवतायें ही 84 जन्म लेते हैं। पहले उन्हों को ही मिलना चाहिए बाप से। गाया भी जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे..। बाप कहते हैं- पहले-पहले तुमको सतयुग में भेजा था। फिर अभी तुम ही आकर मिले हो। आगे तो सिर्फ गाते थे उनका यथार्थ अर्थ अभी बाप बैठ समझाते हैं। सभी वेद शास्त्र, जप, तप, स्लोगन आदि जो भी हैं सबका सार बाप बैठ समझाते हैं। चक्र तो बिल्कुल सहज है। अभी कलियुग और सतयुग का संगम है। लडाई भी सामने खड़ी है। यह भी तुमको निश्चय है– सतयुग की स्थापना होती है। कलियुग में जितने भी हैं, उन सबके शरीर खलास हो जायेंगे, बाकी आत्मायें पवित्र बन हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगी। यह सबके कयामत का समय है। आत्मायें शरीर छोड़ चली जायेंगी। यह तुम्हारी बुद्धि में अभी है। जब तक हम कर्मातीत अवस्था को पायें तब तक संगम पर खड़े हैं। एक तरफ हैं करोड़ों मनुष्य, दूसरे तरफ हो सिर्फ तुम थोड़े से। तुम्हारे में भी कितने हैं जो निश्चयबुद्धि होते जाते हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती फिर जाकर विष्णु के गले की माला बनेंगे। एक है रूद्राक्ष की माला, दूसरी है रूण्ड माला। उस रूण्ड माला में छोटी-छोटी शक्ल होती है। यह निशानी है। हम आत्मायें ही आकर फिर बाप के गले की माला के दाने बनेंगे फिर यहाँ आयेंगे नम्बरवार। माला 8 की भी है, 108 की भी है, 16108 की भी है। अब 16 हजार हैं या 5-10 हजार हैं, उनका कोई हिसाब नहीं निकाला जाता। यह मालायें गाई जाती हैं। बाबा कहते हैं यह सब तुम क्यों विचार करते हो। जितने भी राजायें कल्प पहले सतयुग त्रेता में बने थे, उतने ही बनेंगे। 100 बनें या 2-3 सौ बनें– यह पूछना नहीं है।

बाप कहते हैं- तुम जितना नजदीक आते जायेंगे तो यह सब समझ जायेंगे। आज हम यहाँ हैं कल विनाश होगा फिर सतयुग में थोड़े से देवी-देवता होंगे। बाद में वृद्धि को पाते हैं। सतयुग के आसार भी दिखाई पड़ते हैं। बाकी लाखों जाकर रहेंगे फिर लाख रहें वा 9-10 लाख रहें, एक्यूरेट नहीं कह सकते। हाँ तुम जब एक्यूरेट सम्पूर्ण बनने के लायक बनेंगे तब तुमको और जास्ती साक्षात्कार हो जायेगा। अभी तो बहुत कुछ समझने का समय पड़ा है। बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे। लड़ाई की तैयारियां भी बहुत होती रहती हैं। सब चीजें महंगी होती जायेंगी। विलायत में भी अब खूब टैक्स आदि लगते रहेंगे। बहुत-बहुत महंगाई होकर फिर एकदम सस्ताई हो जायेगी। सतयुग में कोई चीज पर खर्चा नहीं होगा। सब खानियां आदि भरपूर हो जायेंगी। नई दुनिया में वैभव बहुत होते हैं। लक्ष्मी-नारायण के पास बहुत वैभव थे ना। श्रीनाथ द्वारे में मूर्तियों के आगे भी कितने वैभवों का भोग लगाते हैं। वहाँ बहुत माल बनाते हैं और खाते रहते हैं। कहेंगे हम देवताओं को भोग चढ़ाते हैं। कहेंगे देवताओं को भोग नहीं लगायेंगे तो वह नाराज हो जायेंगे। अब इसमें नाराज होने की तो बात ही नही। तुम कोई पर नाराज नहीं होते हो। जानते हो ड्रामानुसार यह विनाश होना ही है। कलियुग से बदल कर सतयुग होगा। हम ड्रामा को समझते हैं कि ड्रामानुसार अभी नया चक्र शुरू होना है। तुम भी ड्रामा के वश हो। ड्रामानुसार बाप भी आया हुआ है। ड्रामा में एक मिनट भी नीचे ऊपर नहीं हो सकता है। जैसे बाबा आया तुमने देखा कल्प बाद भी हूबहू ऐसे होगा। शास्त्रों में तो कल्प की आयु लम्बी लिख दी है। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है बरोबर विनाश सामने खड़ा है। अभी तुम गैलप कर रहे हो। जानते हो बाप को याद कर हमको कर्मातीत अवस्था को जरूर पाना है अर्थात् आइरन एज से गोल्डन एज बनना है। अभी अगर पुरूषार्थ नहीं करेंगे तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। हे आत्मायें अभी तुम पतित बन गई हो। यह भी जानते हो बहुत किसम के आयेंगे जो और धर्म में बदली हो गये हैं वह निकलकर आते रहेंगे। आकर अपना पुरूषार्थ करते रहेंगे– बाप से वर्सा पाने। ब्राह्मण धर्म में आकर फिर देवता धर्म में आयेंगे। ब्राह्मण धर्म में नहीं आयेंगे तो देवता धर्म में कैसे आयेंगे। ब्राह्मण दिन-प्रतिदिन वृद्धि को पाते रहेंगे। देखेंगे विनाश सामने आ गया है, यह तो ठीक कहते हैं फिर वृद्धि होती जायेगी। ब्राह्मणों का झाड़ वृद्धि को पाकर फुल हो जायेगा फिर वापस जायेंगे। देवताओं का झाड़ बढ़ेगा।

अभी तुम संगम पर राजयोग सीख रहे हो। इस संगम को कल्याणकारी युग कहा जाता है। संगम का ही गायन है– गंगा सागर का मेला दिखाते हैं। वह सब है भक्ति मार्ग का। यह है ज्ञान सागर और ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगायें। ज्ञान सागर से पतित-पावन अक्षर लगता है। वह समझते हैं– पतित पावनी गंगा है और फिर गंगा में स्नान करते ही आते हैं। यह नदियां तो सतयुग से लेकर चलती आती हैं आजकल तो नदियां भी कहाँ-कहाँ डुबो देती हैं। प्रकृति भी तमोप्रधान, सागर भी तमोप्रधान हो पड़ा है। सागर थोड़ी सी उछल खायेगा तो सब कुछ खलास कर देंगे। सतयुग में सिर्फ हम थोड़े ही भारत में रहते हैं– यमुना के कण्ठे पर। देहली परिस्थान थी फिर बननी है। सतयुग में थोड़ी ही जीव आत्मायें रहती हैं फिर धीरे- धीरे आते जाते हैं। अभी है कलियुग का अन्त। कितने ढेर मनुष्य हो गये हैं, बेहद का नाटक है, जिसको अच्छी रीति समझना है। भल कोई अपने को एक्टर समझते भी हैं परन्तु कल्प 5 हजार वर्ष का है, यह किसको भी पता नहीं है। कहाँ 84 जन्म, कहाँ 84 लाख। अभी तुम रोशनी में हो। तुमको बाप से वर्सा मिलता है। बाप कहते हैं- मनमनाभव। बाप को याद करना है। शिव भगवानुवाच, कृष्ण थोड़ेही ज्ञान का सागर है। भगवान की महिमा में और देवताओं की महिमा में बहुत फर्क है। बाप जो नई रचना रचते हैं, उनकी महिमा हैं सर्वगुण सम्पन्न... अभी तुम ऐसे बन रहे हो। बाप की महिमा और इनकी महिमा में रात-दिन का फर्क है। यह राजयोग है ना। गाया भी जाता है– भगवान राजयोग सिखलाते हैं। वह है निराकार, तो जरूर निराकार से साकार में आना पड़े। भगवान की इतनी महिमा है तो जरूर आना पड़े। उनका जन्म दिव्य अलौकिक है और किसका दिव्य जन्म नहीं गाया जाता। यह भी बच्चों को समझाया है एक होता है अलौकिक बाप दूसरा है पारलौकिक बाप। जिसको ही भगवान कह याद करते हैं और तीसरा है अलौकिक बाप। यह फिर वन्डरफुल बाप है। यह बाप एडाप्ट करते हैं तो बीच में यह अलौकिक आ जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ढेर बच्चे हैं। शिवबाबा आकर ब्रह्मा द्वारा तुमको अपना बनाते हैं। कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां बनते हैं। लौकिक बाप को तो करके 8-10 बच्चे होंगे। अच्छा शिवबाबा भी है पारलौकिक बाप। उनके तो अनेक बच्चे हैं। सभी आत्मायें कहती हैं– हम सब ब्रदर्स हैं। अब इस संगम पर फिर अलौकिक बाप मिलता है। यह ज्ञान तुमको वहाँ नहीं रहेगा। प्रजापिता ब्रह्मा बाप मिलता ही तब है जबकि बाप आकर नई सृष्टि रचते हैं। तो यह अलौकिक जन्म हुआ ना, इनको कोई समझ नहीं सकते। वह लौकिक वह पारलौकिक और यह है संगमयुगी अलौकिक बाप। लौकिक बाप तो सतयुग से लेकर होते आये हैं। पारलौकिक बाप को वहाँ कोई याद नहीं करते, वहाँ होता ही है एक बाप। हे भगवान, हे परमात्मा कहकर याद नहीं करते हैं फिर द्वापर में जब भक्ति मार्ग शुरू होता है तो बाप दो होते हैं। संगम पर हैं 3 बाप। प्रजापिता ब्रह्मा भी अभी मिलता है, अभी तुम उनके बने हो। जानते हो यह अलौकिक बाप है। अभी तुम इन बातों को अच्छी रीति जानते हो और याद करते हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। सतयुग में याद करने की दरकार ही नहीं। दु:ख में पारलौकिक बाप का सब सिमरण करते हैं। यह तो बिल्कुल सहज बात है। सतयुग त्रेता में एक बाप होता है, द्वापर में दो बाप होते हैं। इस समय तुम अलौकिक बाप के बच्चे बने हो जिस द्वारा तुम वर्सा लेते हो। तुम बच्चे ही ब्राह्मण बनते हो जो फिर देवता बनेंगे। विनाश भी तुम्हारे को ही देखना है, जो तुम इन आंखों से देखेंगे, बाम्बस छोड़ेंगे। मनुष्य तो मरेंगे ना। जापान में भी बाम्ब छोड़ा, देखा ना कैसे मनुष्य मरे। अब यहाँ लड़ाइयां लगती रहती हैं। खुद भी कहते हैं हम तंग होते जाते हैं। 10-10 वर्ष तक भी लड़ाई चलती रहती है। बाम्ब्स में तो चपटी में (सेकेण्ड में) सब खलास हो जायेगा। चिन्गारी लगती है तो शहर नष्ट हो जाते हैं। यह तो बाम्ब्स हैं। आग भी लगनी है। तुम बच्चे जानते हो बाप आये ही हैं स्थापना और विनाश कराने। तो जरूर यह सब होगा। पुरूषार्थ करने का अभी समय है। माया घड़ी-घड़ी तुम्हारा बुद्धियोग तोड़ देती है। अजुन तुम अडोल स्थिर कहाँ बने हो। कहते हैं बाबा माया के तूफान बहुत आते हैं। कोई तो सारे दिन में घण्टा आधा भी याद नहीं करते हैं। बाप कहते हैं- तुम कर्मयोगी हो। 8 घण्टा तो यह सेवा करेंगे। 8 घण्टा याद कर सको इतना पुरूषार्थ करना है। याद करते रहने से विकर्म विनाश होते जायेंगे, इसको ही योग अग्नि कहा जाता है। यह है मेहनत। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए सिर्फ याद करना है। यह भी बाबा बतलाते हैं कि जिन्होंने गृहस्थ छोड़ा है, बच्चे बने हैं, वह भी इतना याद नहीं करते हैं। घर में रहने वाले और ही जास्ती याद करते हैं। अर्जुन और भील का भी मिसाल देते हैं ना। मेहनत है बाप को याद करना और चक्र को समझना है। महाभारत लड़ाई भी जरूर लगेगी। सतयुग में थोड़ेही लगेगी। तो तुम बच्चों को अन्धों की लाठी भी बनना है। सबको रास्ता बताना है कि बाप को याद करो, चक्र को याद करो। स्वदर्शन चक्रधारी बनो। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कम से कम 8 घण्टा याद में रहने का पुरूषार्थ करना है। अपनी अवस्था अचल-अडोल रखने के लिए याद का अभ्यास बढ़ाना है। गफलत नहीं करनी है।
2) यह ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट बना हुआ है इसलिए किसी पर भी नाराज नहीं होना है। निश्चयबुद्धि बनना है।
वरदान:
स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राजी करने वाले राजयुक्त, योगयुक्त भव!  
जो बच्चे एक सर्वशक्तिमान् बाप के स्नेही बनकर रहते हैं वे सर्व आत्माओं के स्नेही स्वत: बन जाते हैं। इस गुह्य रहस्य को जो समझ लेते वह राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्यगुणों से युक्तियुक्त बन जाते हैं। ऐसी राजयुक्त आत्मा सर्व आत्माओं को सहज ही राजी कर लेती है। जो इस राज को नहीं जानते वे कभी अन्य को नाराज करते और कभी स्वयं नाराज रहते हैं इसलिए सदा स्नेही के राज को जान राजयुक्त बनो।
स्लोगन:
जो निमित्त हैं वह जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के हैं।