Friday, May 20, 2016

मुरली 20 मई 2016

20-05-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– बाप द्वारा तुम्हें जो सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिली है, इसे तुम बुद्धि में रखते हो इसलिए तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी”   
प्रश्न:
रूह को पावन बनाने के लिए रूहानी बाप कौन सा इन्जेक्शन लगाते हैं?
उत्तर:
मनमनाभव का। यह इन्जेक्शन रूहानी बाप के सिवाए कोई लगा नहीं सकता। बाप कहते हैं मीठे बच्चे– तुम मुझे याद करो। बस। याद से ही आत्मा पावन बन जायेगी। इसमें संस्कृत आदि पढ़ने की भी जरूरत नहीं है। बाप तो हिन्दी में सीधे शब्दों में सुनाते हैं। रूह को जब यह निश्चय हो जाता है कि रूहानी बाप हमें पावन बनाने की युक्ति बता रहे हैं तो विकारों को छोड़ती जाती है।
ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों को समझाया है। आत्मा अपना परिचय देती है। मेरा स्वरूप शान्त है और मेरा रहने का स्थान शान्तिधाम है, जिसको परमधाम, निर्वाणधाम भी कहा जाता है। बाप भी कहते हैं कि देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो, बाप को याद करो। वह है पतित-पावन। यह कोई भी नहीं जानते कि हम आत्मा हैं। यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। अब ड्रामा पूरा होता है, वापिस जाना है, इसलिए कहते हैं, मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। इसको ही संस्कृत में कहते हैं, मनमनाभव। बाप ने कोई संस्कृत में नहीं कहा है। बाप तो इस हिन्दी भाषा में समझाते हैं। जैसे गवर्मेन्ट कहती है, एक ही हिन्दी भाषा होनी चाहिए। बाप ने भी वास्तव में हिन्दी में ही समझाया है। परन्तु इस समय अनेक धर्म, मठ, पंथ होने के कारण भाषायें भी अनेक प्रकार की कर दी हैं। सतयुग में इतनी भाषायें होती नहीं, जितनी यहाँ हैं। गुजरात में रहने वालों की भाषा अलग। जो जिस गाँव में रहते हैं, वह वहाँ की भाषा जानते हैं। अनेक मनुष्य हैं, अनेक भाषायें हैं। सतयुग में तो एक ही धर्म, एक ही भाषा थी। अभी तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज बुद्धि में है, यह कोई शास्त्र में नहीं है। ऐसा कोई शास्त्र नहीं जिसमें यह नॉलेज हो। न कल्प की आयु का ही लिखा हुआ है, न किसको मालूम है। सृष्टि तो एक ही है। सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। नई से पुरानी, पुरानी से फिर नई होती है, इसको ही कहा जाता है, स्वदर्शन चक्र। जिसको इस चक्र का नॉलेज है, उसको कहा जाता है स्वदर्शन चक्रधारी। आत्मा को ज्ञान रहता है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह फिर कृष्ण को, विष्णु को स्वदर्शन चक्र दे देते हैं। अब बाप समझाते हैं, उन्हों को तो नॉलेज थी नहीं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज बाप ही देते हैं। यह है स्वदर्शन चक्र। बाकी कोई हिंसा की बात नहीं, जिससे गला कट जाए। यह सब झूठ लिख दिया है। यह नॉलेज बाप के सिवाए कोई मनुष्य मात्र दे न सकें। मनुष्य को कभी भगवान कह नहीं सकते, जबकि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी देवता कहा जाता है। जो बाप की महिमा है, वह देवताओं की भी नहीं। बाप तो राजयोग सिखा रहे हैं। ऐसे नहीं कहेंगे बच्चों की भी वही महिमा है, जो बाप की है। बच्चे फिर भी पुनर्जन्म लेते हैं, बाप तो पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। बच्चे, बाप को याद करते हैं। ऊंचे ते ऊंचा है भगवान, वह सदा पावन है। बच्चे पावन बन फिर पतित बनते हैं। बाप तो है ही पावन। बाप का वर्सा भी जरूर चाहिए, बच्चों को। एक तो मुक्ति चाहिए, दूसरा जीवनमुक्ति चाहिए। शान्तिधाम को मुक्ति, सुखधाम को जीवनमुक्ति कहा जाता है। मुक्ति तो सबको मिलती है। जीवनमुक्ति जो पढ़ेंगे उनको मिलेगी। भारत में बरोबर जीवनमुक्ति थी, बाकी सब इतने मुक्तिधाम में थे। सतयुग में सिर्फ एक ही भारत खण्ड था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। बाबा ने समझाया है, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर सबसे जास्ती बनाते हैं। बिड़ला आदि जो मन्दिर बनाते हैं, वह यह नहीं जानते कि लक्ष्मी-नारायण को यह बादशाही कहाँ से मिली, कितना समय राज्य किया। फिर कहाँ चले गये, कुछ भी नहीं जानते। तो जैसे गुडि़यों की पूजा हुई ना, इसको कहा जाता है, भक्ति। आपेही पूज्य फिर आपेही पुजारी। पूज्य और पुजारी में बहुत फर्क है, उनका भी अर्थ होगा ना। पतित उनको कहा जाता है, जो विकारी हैं। क्रोधी को पतित नहीं कहेंगे, जो विकार में जाते हैं उनको पतित कहा जाता है। इस समय तुमको ज्ञान अमृत मिलता है। ज्ञान का सागर है ही एक बाप। बाबा ने समझाया है– यह भारत ही सतोप्रधान ऊंच ते ऊंच था, अभी तमोप्रधान है, यह तुम्हारी बुद्धि में है। यहाँ कोई राजाई तो है नहीं। यह है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य। सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं, अभी तो कितने हैं। विनाश की तैयारियाँ भी होती हैं। देहली परिस्तान तो बनना ही है। परन्तु यह कोई जानते नहीं हैं। वह तो समझते हैं, यह न्यु देहली है। इस पुरानी दुनिया को पलटाने वाला कौन है! यह किसको पता नहीं है। कोई शास्त्र में भी नहीं है। समझाने वाला एक ही बाप है। अभी तुम बच्चे नई दुनिया के लिए तैयारी कर रहे हो। कौड़ी से हीरे मिसल बन रहे हो। भारत कितना सॉलवेन्ट था, दूसरा कोई धर्म नहीं था। अभी तो अनेक धर्म हैं। अब रहमदिल बाप को याद करते हैं। भारत सुखधाम था, यह भूल गये हैं। अब तो भारत का क्या हाल है। नहीं तो भारत हेविन था। बाप का जन्म स्थान है ना। तो ड्रामा अनुसार उनको तरस आ जाता है। भारत तो प्राचीन देश है। कहते भी हैं बरोबर क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था और कोई धर्म नहीं था। अभी यह भारत बिल्कुल पट आकर पड़ा है। गाते तो हैं– भारत हमारा देश सबसे ऊंच था। नाम ही था हेविन, स्वर्ग। भारत की महिमा का भी कोई को पता नहीं है। बाप ही आकर भारत की कहानी समझाते हैं। भारत की कहानी माना दुनिया की, इसको सत्य-नारायण की कहानी कहा जाता है। बाप ही बैठ समझाते हैं– पूरे 5 हजार वर्ष पहले भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, जिन्हों के चित्र भी हैं। परन्तु उन्हों को यह राज्य कैसे मिला? सतयुग के आगे क्या था? संगम के आगे क्या था? कलियुग। यह है संगमयुग्। जिसमें बाप को आना पड़ता है क्योंकि जब पुरानी दुनिया को नया बनाना हो तभी मुझे आना पड़ता है– पतित दुनिया को पावन बनाने। मेरे लिए फिर कह दिया है सर्वव्यापी। युगे-युगे आता है, तो मनुष्य ही मूँझ गये हैं। संगमयुग को सिर्फ तुम जानते हो। तुम कौन हो– बोर्ड पर लिखा हुआ है, प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारी। ब्रह्मा का बाप कौन? शिव, ऊंच ते ऊंच। पीछे है ब्रह्मा फिर ब्रह्मा द्वारा रचना होती है। प्रजापिता तो जरूर ब्रह्मा को ही कहा जाता है। शिव को प्रजापिता नहीं कहेंगे। शिव सभी आत्माओं का निराकार बाप है। फिर यहाँ आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं। बाप समझाते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है। उन द्वारा तुम मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो। ब्रह्मा द्वारा ही तुमको ब्राह्मण बनाए फिर देवता बनाता हूँ। अभी तुम ब्रह्मा के बच्चे बने हो। ब्रह्मा किसका बच्चा? ब्रह्मा के बाप का कोई नाम है? वह है शिव निराकार बाप। वह आकर इनमें प्रवेश कर एडाप्ट करते हैं, मुख वंशावली बनाते हैं। बाप कहते हैं, मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ। यह हमारा बन जाता है, सन्यास धारण करते हैं। किसका सन्यास? 5 विकारों का। घरबार छोड़ने की दरकार नहीं। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना है। मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। यही योग है, जिससे खाद निकल जाती है और तुम सतोप्रधान बन जाते हो। भक्ति में तो भल कितने भी गंगा स्नान करें, जप-तप आदि करें, नीचे उतरना जरूर है। सतोप्रधान थे, अब तमोप्रधान हैं फिर सतोप्रधान कैसे बनें? सो सिवाए बाप के कोई रास्ता बता न सके। बाप तो बिल्कुल ही सहज रीति बताते हैं– मामेकम् याद करो। यह आत्माओं से बात करते हैं। कोई गुजरातियों वा सिन्धियों से बात नहीं करते, यह है ही रूहानी ज्ञान। शास्त्रों में है जिस्मानी ज्ञान। रूह को ही ज्ञान चाहिए, रूह ही पतित बना है, उनको ही रूहानी इन्जेक्शन चाहिए। बाप को कहा जाता है, रूहानी अविनाशी सर्जन। वह आकर अपना परिचय देते हैं कि मैं तुम्हारा रूहानी सर्जन हूँ। तुम्हारी आत्मा पतित होने के कारण शरीर भी रोगी हो गया है। इस समय भारतवासी तथा सारी दुनिया नर्कवासी है, फिर स्वर्गवासी कैसे बन सकती है, सो बाप समझाते हैं। बाप कहते हैं– मैं ही आकर सब बच्चों को स्वर्गवासी बनाता हूँ। तुम भी समझते हो, बरोबर हम नर्कवासी थे। कलियुग को नर्क कहा जाता है। अब नर्क का भी अन्त है। भारतवासी इस समय रौरव नर्क में पड़े हैं, इसको सावरन्टी भी नहीं कहेंगे। लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अब बाप स्वर्ग में ले जाने लायक बनाते हैं, तो उनका मानना चाहिए। अपने धर्म-शास्त्र को भी नहीं जानते हैं, बाप को ही नहीं जानते।

बाप कहते हैं-मैंने तुमको पतित से पावन बनाया था न कि श्रीकृष्ण ने। कृष्ण तो पावन नम्बरवन था। उनको कहते भी हैं श्याम-सुन्दर। कृष्ण की आत्मा पुनर्जन्म लेते-लेते अब श्याम बनी है। काम-चिता पर बैठ काले बने हैं। जगत-अम्बा को काली क्यों दिखाते हैं? यह कोई नहीं जानते हैं। जैसे कृष्ण को काला दिखाया है वैसे जगत-अम्बा को भी काला दिखाते हैं। अब तुम काले हो फिर सुन्दर बनते हो। तुम समझा सकते हो भारत बहुत सुन्दर था। सुन्दरता देखनी हो तो अजमेर (सोनी द्वारिका) में देखो। स्वर्ग में सोने हीरे के महल थे। अभी तो पत्थर-भित्तर के हैं, सब तमोप्रधान हैं। तो बच्चे जानते हैं-शिवबाबा, ब्रह्मा दादा दोनों इकठ्ठे हैं, इसलिए कहते हैं बापदादा। वर्सा शिवबाबा से मिलता है। अगर दादा से कहेंगे तो बाकी शिव के पास क्या है? वर्सा शिवबाबा से मिलता है, ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना। अभी तो रावण राज्य है सिवाए तुम्हारे सब नर्कवासी हैं। तुम अभी संगम पर हो। अभी पतित से पावन बन रहे हो फिर विश्व के मालिक बन जायेंगे। यह कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। तुमको मुरली कौन सुनाते हैं? शिवबाबा। परमधाम से आते हैं, पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में। कोई को निश्चय हो जाए तो फिर बाप से मिलने के सिवाए रह न सकें। कहें, पहले बेहद के बाप को तो मिलें, ठहर नहीं सकेंगे। कहेंगे, बेहद का बाप जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनके पास हमको फौरन ले चलो। देखें तो सही, शिवबाबा का रथ कौन सा है! वो लोग भी घोड़े को श्रृंगारते हैं। पटका निशानी रखते हैं। वह रथ था मुहम्मद का, जिसने धर्म स्थापन किया। भारतवासी फिर बैल को तिलक दे, मन्दिर में रखते हैं। समझते हैं, इस पर शिव की सवारी हुई। अब बैल पर तो न शिव की, न शंकर की सवारी है। कुछ भी समझते नहीं। शिव निराकार है वह कैसे सवारी करेंगे। टांगे चाहिए जो बैल पर बैठ सकें। यह है अन्धश्रधा। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से जो ज्ञान अमृत मिलता है, उस अमृत को पीना और पिलाना है। पुजारी से पूज्य बनने के लिए विकारों का त्याग करना है।
2) बाप जो स्वर्ग में जाने के लायक बना रहे हैं, उनकी हर बात माननी है, पूरा निश्चयबुद्धि बनना है।
वरदान:
पावरफुल ब्रेक द्वारा वरदानी रूप से सेवा करने वाले लाइट माइट हाउस भव!   
वरदानी रूप से सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए तथा अन्य संकल्पों को सेकण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए। सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराते रहो और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप हो जाओ, इसके लिए ब्रेक पावरफुल हो, संकल्पों पर पूरा कन्ट्रोल हो और बुद्धि व संस्कार पर पूरा अधिकार हो तब लाइट माइट हाउस बन वरदानी रूप से सेवा कर सकेंगे।
स्लोगन:
संकल्प, समय और बोल की इकॉनामी करो तो बाबा की मदद को कैच कर सकेंगे।