Friday, May 20, 2016

मुरली 21 मई 2016

21-05-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– जैसे बाबा प्यार का सागर है, उनके जैसा प्यार दुनिया में कोई कर नहीं सकता, ऐसे तुम बच्चे भी बाप समान बनो, किसी को रंज (नाराज) मत करो”   
प्रश्न:
किस प्रकार के ख्यालात (विचार) चलते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा?
उत्तर:
अभी हम ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भर रहे हैं फिर यह खानियां आदि सब भरपूर हो जायेंगी। वहाँ (सतयुग में) हम सोने के महल बनायेंगे। 2- हमारा यह ब्राह्मण कुल उत्तम कुल है, हम सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुनते और सुनाते हैं... ऐसे ऐसे ख्यालात चलते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा।
ओम् शान्ति।
बच्चे बाप की याद में बैठे हैं, यह श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत मिलती है। याद की यात्रा बहुत मीठी है। बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं कि जितना बाप को याद करेंगे उतना बाबा स्वीट लगेगा। सैक्रीन है ना। एक बाप ही प्यार करते हैं बाकी तो सब मार देते हैं। दुनिया सारी एक दो को ठुकराती है। बाप प्यार करते हैं, उनको सिर्फ तुम बच्चों ने जाना है। बाप कहते हैं- मैं जो हूँ, जैसा हूँ, कितना बड़ा हूँ, बताओ हमारा बाप कितना बड़ा है? तो कहते हैं बिन्दी है और तो कोई जानते नहीं। बच्चे भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। कहते हैं भक्ति मार्ग में तो बड़े-बड़े चित्रों की पूजा करते थे। अब बिन्दी को कैसे याद करें? बिन्दी, बिन्दी को ही याद करेगी ना। आत्मा जानती है हम बिन्दी हैं। हमारा बाप भी ऐसे है। आत्मा ही प्रेजीडेन्ट है, आत्मा ही नौकर है। पार्ट आत्मा ही बजाती है। बाप है सबसे स्वीट। सब याद करते हैं हे पतितपावन, दु:ख-हर्ता सुख-कर्ता आओ। अब तुम बच्चों को यह निश्चय है हम जिसको बिन्दी कहते हैं, वह बहुत सूक्ष्म है परन्तु महिमा कितनी भारी है। भल महिमा गाते भी हैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है, परन्तु समझते नहीं कि वह कैसे आकर सुख देते हैं। मीठे-मीठे चिल्ड्रेन हर एक समझ सकते हैं- कौन-कौन कितना श्रीमत पर चलते हैं। श्रीमत मिलती है सर्विस करने की। बहुत मनुष्य बीमार रोगी हैं, बहुत हैं जो हेल्दी भी हैं। भारतवासी जानते हैं सतयुग में आयु बहुत बड़ी एवरेज 125-150 वर्ष की थी। हर एक अपनी फुल आयु पूरी करते हैं। यह तो बिल्कुल ही छी-छी दुनिया है जो बाकी थोड़ा समय ही है। मनुष्य बड़ी-बड़ी धर्मशालायें आदि अभी तक बनाते रहते हैं। जानते नहीं हैं, यह बाकी कितना समय होगी। मन्दिर आदि बनाते हैं, लाखों रूपया खर्च करते हैं। उनकी आयु बाकी कितना समय होगी? तुम जानते हो यह तो टूटे कि टूटे। तुमको बाबा मकान आदि बनाने के लिए कभी मना नहीं करते हैं। तुम अपने ही घर में एक कमरे में हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी बनाओ। बिगर कोई खर्चा, हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस 21 जन्मों के लिए लेना है, इस नॉलेज से। यह भी समझाया है- तुमको सुख बहुत मिलता है। जब तमोप्रधान बने तब जास्ती दु:ख होता है। जितना-जितना तमोप्रधान बनते जायेंगे उतना दुनिया में दु:ख-अशान्ति बढ़ती जायेगी। मनुष्य बहुत दु:खी होंगे। फिर जय-जयकार हो जायेगी। तुम बच्चों ने जो विनाश, दिव्य दृष्टि से देखा है सो फिर प्रैक्टिकल में देखना है। स्थापना का साक्षात्कार भी बहुतों ने किया है। छोटी बच्चियाँ बहुत साक्षात्कार करती थी। ज्ञान कुछ भी नहीं था। पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है। तुम बच्चे जानते हो- बाप ही आकर स्वर्ग का वर्सा देते हैं। परन्तु बच्चों को फिर पुरूषार्थ करना है, ऊंच पद पाने का। तुम बच्चों को बाप बैठ, यह सब बातें समझाते हैं, वह थोड़ेही जानते हैं कि बाकी थोड़ा समय है। बाप कहते हैं- मैं हूँ दाता, मैं तुमको देने आया हूँ। मनुष्य कहते हैं- पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ।

बाप कहते हैं- पहले तुम कितने समझदार थे, सतोप्रधान थे। अभी तो तमोप्रधान बन पड़े हो। तुम्हारी बुद्धि में भी अब आया है, आगे थोड़ेही समझते थे कि हम विश्व पर राज्य करते थे। तुम विश्व के मालिक थे फिर जरूर बनेंगे। हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी। बाप ने समझाया है-5000 वर्ष पहले मैं आया था, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था। फिर तुम 84 जन्मों की सीढ़ी उतरते हो। यह विस्तार कोई भी शास्त्र में नहीं है। शिवबाबा ने कोई शास्त्र आदि पढ़ा है क्या? उनको तो ज्ञान की अथॉरिटी कहा जाता है। वो लोग भी शास्त्र आदि पढ़कर शास्त्रों की अथॉरिटी बनते हैं। वह भी तो गाते हैं- पतित-पावन आओ। गंगा स्नान करने जाते हैं। वास्तव में यह भक्ति है ही गृहस्थियों के लिए। बाप बैठ समझाते हैं, उनको भी पता नहीं कि सद्गति दाता कौन है। बाप समझाते हैं- तुम मुझे बुलाते भी हो, हे पतित-पावन आओ। मैं तुमको पावन बनाता हूँ। मैं तुमको पढ़ाने के लिए आता हूँ, ऐसे नहीं कि हम पर कृपा करो। मैं तो टीचर हूँ, तुम कृपा आदि क्यों माँगते हो? आशीर्वाद तो अनेक जन्म लेते आये हो। अब आकर माँ-बाप की मिलकियत का मालिक बनो और आशीर्वाद क्या करेंगे! बच्चा पैदा हुआ और बाप की मिलकियत का मालिक बना। लौकिक बाप को कहते हैं, कि कृपा करो। यहाँ तो कृपा की बात नहीं है। सिर्फ बाप को याद करना है। यह भी किसको पता नहीं है कि बाबा बिन्दू है। अभी तुमको बाप ने बताया है, सभी कहते भी हैं परमपिता परमात्मा, गॉड फादर, सुप्रीम सोल। तो परम आत्मा ठहरे ना। वह है सुप्रीम। बाकी सब आत्मायें हैं ना। सुप्रीम बाप आकर आप समान बनाते हैं और कुछ नहीं है। कोई की बुद्धि में होगा क्या कि बेहद का बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, वह आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं! तुम अभी जानते हो, कृष्ण के हाथ में स्वर्ग का गोला है। गर्भ से बच्चा बाहर निकलता है तब से आयु शुरू होती है। श्रीकृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। गर्भ से बाहर आया, उस दिन से 84 जन्म गिनेंगे। लक्ष्मी-नारायण को तो बड़ा होने में 30-35 वर्ष लगे ना। तो वह 30-35 वर्ष 5 हजार से कम करना पड़े। शिवबाबा का तो गिनती नहीं कर सकते। शिवबाबा कब आये, टाइम दे नहीं सकते। शुरू से साक्षात्कार होते थे। मुसलमान लोग भी बगीचा आदि देखते थे। यह नौधा भक्ति तो कोई ने नहीं की। घर बैठे आपेही ध्यान में जाते रहते थे। वह तो कितनी नौधा भक्ति करते हैं। तो बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं। बाबा दूरदेश से आया है, यह बच्चे जानते हैं। इसमें प्रवेश कर हमको पढ़ाते हैं। लेकिन फिर बाहर जाने से नशा कम हो जाता है। याद रहे तो खुशी का पारा भी चढा रहे और कर्मातीत अवस्था हो जाए, परन्तु उसमें टाइम चाहिए। अब देखो, श्रीकृष्ण की आत्मा को अन्तिम जन्म में फुल ज्ञान है फिर गर्भ से बाहर निकलेंगे, पाई का भी ज्ञान नहीं होगा। बाप आकर समझाते हैं- कृष्ण ने कोई मुरली बजाई नहीं। वह तो ज्ञान जानते ही नहीं। लक्ष्मी-नारायण ही नहीं जानते तो फिर ऋषि, मुनि, सन्यासी आदि कैसे जानेंगे। विश्व के मालिक लक्ष्मी-नारायण ने ही नहीं जाना तो फिर यह सन्यासी लोग कैसे जानेंगे। सागर में पीपल के पत्ते पर आया, यह किया... यह सब कहानियाँ हैं, जो बैठ लिखी हैं। गंगा नदी में पैर डाला तो गंगा नीचे चली गई, विचार करो- मनुष्य क्या नहीं बातें बना सकते हैं। अब बाप समझाते हैं, कोई भी उल्टी-सुल्टी बातों पर कभी विश्वास नहीं करना। शास्त्र आदि कितने मनुष्य पढ़ते हैं। बाप कहते हैं- पढ़ा हुआ सब भूल जाओ। इस देह को भी भूल जाओ। आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेकर पार्ट बजाती है। भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश चोला पहनकर। अब बाप कहते हैं-यह छी-छी वस्त्र हैं। आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं। आत्मा को ही श्याम और सुन्दर कहा जाता है। आत्मा पवित्र थी तो सुन्दर थी फिर काम चिता पर बैठने से काले बने हैं। अब फिर बाप ज्ञान चिता पर बिठाते हैं। पतित-पावन बाप कहते हैं-मुझे याद करो तो यह खाद ही निकल जायेगी। आत्मा में ही खाद पड़ती है। कलियुग अन्त में तुम गरीब हो। वहाँ सतयुग में फिर तुम सोने के महल बनायेंगे। वण्डर है, यहाँ हीरों का देखो कितना मान है। वहाँ तो पत्थरों मिसल होते हैं। अभी तुम बाप से ज्ञान रत्नों की झोली भर रहे हो। लिखा हुआ है सागर से रत्नों की थालियाँ भर ले आते हैं। सागर से जितना भी चाहिए उतना लो। खानियाँ ही भरतू हो जाती हैं। तुमने साक्षात्कार किया है। माया-मच्छन्दर का भी खेल दिखाते हैं। उसने देखा सोने की ईटें पड़ी हैं, ले जाता हूँ। नीचे आया तो कुछ था नहीं। वहाँ तो सोने की ईटों के महल बनायेंगे। ऐसे-ऐसे ख्यालात आने चाहिए तो खुशी का पारा चढ़े। बाप का परिचय देना है। शिवबाबा 5 हजार वर्ष पहले भी आया था, यह किसको पता नहीं है। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले आकर तुमको राजयोग सिखाया था, कल्प-कल्प तुमको ही सिखायेंगे। जो-जो आकर ब्राह्मण बनेंगे वह फिर देवता बनेंगे। विराट रूप भी बनाते हैं। उसमें ब्राह्मणों की चोटी गुम कर दी हैं। ब्राह्मणों का कुल बहुत उत्तम गाया जाता है, वह है जिस्मानी। तुम हो रूहानी। तुम सच्ची-सच्ची कथा सुनाते हो। यही सत्य नारायण की कथा, अमरकथा है। तुमको अमरकथा सुनाए अमर बना रहे हैं। यह मृत्युलोक खत्म होना है। शिवबाबा कहते हैं- मैं तुमको लेने आया हूँ। कितनी ढेर आत्मायें होंगी। आत्मा वापस घर में जाती है तो कोई आवाज थोड़ेही होता है। मधुमक्खियों का झुण्ड जाता है तो आवाज कितना होता है। रानी के पिछाड़ी मधुमक्खियाँ सब भागती हैं। उनकी आपस में कितनी एकता है। भ्रमरी का भी मिसाल यहाँ का है। तुम मनुष्य से देवता बना देते हो। पतितों को तुम ज्ञान की भूँ-भूँ करते हो तो पावन विश्व का मालिक बन जाते हैं। तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग, उसमें भी मैजारिटी माताओं की है इसलिए वन्दे मातरम् कहा जाता है। ब्रह्माकुमारी वह जो बाप द्वारा 21 जन्म का वर्सा दिलाती है। बाप सदा सुख का वर्सा देते हैं। जो सर्विस करेंगे, लिखेंगे-पढ़ेंगे होंगे नवाब...। राजा बनना अच्छा वा नौकर बनना अच्छा। पिछाड़ी के समय तुमको सब मालूम पड़ जायेगा। हम क्या बनेंगे? फिर पछतायेंगे। हम श्रीमत पर क्यों नहीं चले! बाप कहते हैं-फालो करो। ऐसे भी नहीं कोई एक कमरा दे देते हैं, सेन्टर के लिए, खुद मीट आदि खाते रहते हैं। वह पुण्य आत्मा, वह पाप आत्मा, फिर आश्रम नहीं रहेगा। घर में स्वर्ग बनाते हैं तो खुद भी स्वर्ग में होने चाहिए ना। सिर्फ आशीर्वाद पर नहीं ठहरना है। बाप को याद करना है। पवित्र बनाकर ही साथ ले जायेंगे। तुमको तो बहुत खुशी रहनी चाहिए, कितनी भारी लाटरी मिलती है। बाप को जितना याद करेंगे, उतना विकर्म विनाश होंगे। बाप जितना प्यार, दुनिया में कोई कर नहीं सकता। उनको कहा ही जाता है-प्यार का सागर। तुम भी ऐसे बनो। अगर किसको दु:ख दिया, रंज (नाराज) किया तो रंज होकर मरेंगे। यह कोई बाबा श्राप नहीं देते हैं, समझाते हैं। सुख दो तो सुखी होंगे, सबको प्यार करो। बाबा भी प्यार का सागर है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी उल्टी-सुल्टी बात पर विश्वास नहीं करना है। जो भी उल्टा पढ़ा है उसे भूल अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) सिर्फ आशीर्वाद पर नहीं चलना है। स्वयं को पवित्र बनाना है। बाप को हर कदम में फालो करना है, किसी को भी दु:ख नहीं देना है। नाराज नहीं करना है।
वरदान:
अपने सहयोग से निर्बल आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाने वाले वरदानी मूर्त भव!  
अब वरदानी मूर्त द्वारा संकल्प शक्ति की सेवा कर निर्बल आत्माओं को बाप के समीप लाओ। मैजारिटी आत्माओं में शुभ इच्छा उत्पन्न हो रही है कि आध्यात्मिक शक्ति जो कुछ कर सकती है वह और कोई नहीं कर सकता। लेकिन आध्यात्मिकता की ओर चलने के लिए अपने को हिम्मतहीन समझते हैं। उन्हें अपने शक्ति से हिम्मत की टांग दो तब बाप के समीप चलकर आयेंगे। अब वरदानी मूर्त बन अपने सहयोग से उन्हें वर्से के अधिकारी बनाओ।
स्लोगन:
अपने परिवर्तन द्वारा सम्पर्क, बोल और सम्बन्ध में सफलता प्राप्त करने वाले ही सफलतामूर्त हैं।