Thursday, May 12, 2016

मुरली 13 मई 2016

13-05-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– सदैव याद रखो– बहुत गई थोड़ी रही, अब तो घर चलना है, इस छी-छी शरीर और दुनिया को भूल जाना है”   
प्रश्न:
कौन सा नशा निरन्तर रहे तो स्थिति बड़ी फर्स्टक्लास होगी?
उत्तर:
निरन्तर नशा रहे कि मिरूआ मौत मलूका शिकार। हम मलूक (फरिश्ता) बन अपने माशूक के साथ घर जायेंगे, बाकी सब खलास होना है। अब हम इस पुरानी खाल को छोड़ नई लेंगे। यह ज्ञान सारा दिन बुद्धि में टपकता रहे तो अपार खुशी रहेगी। स्थिति फर्स्टक्लास बन जायेगी।
गीत:-
यह कौन आज आया...   
ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? बच्चों ने। अतीन्द्रिय सुखमय जीवन में आकर कहते हैं– बेहद का बाप आया हुआ है। किसलिए? इस पतित दुनिया को बदल पावन दुनिया बनाने, पावन दुनिया कितनी बड़ी होगी। पतित दुनिया कितनी बड़ी है, यह तुम बच्चों की बुद्धि में आना चाहिए। यहाँ कितने करोड़ों मनुष्य हैं। इनको पतित भ्रष्टाचारी दुनिया कहते हैं। मीठे-मीठे बच्चों को दिल में आना चाहिए- हमारी नई दुनिया कितनी छोटी होगी। हम कैसे राज्य करेंगे। हमारे भारत जैसा कोई देश हो नहीं सकता। यह कोई नहीं समझते- भारत स्वर्ग था, उस जैसा कोई देश हो नहीं सकता। तुमको यह समझ में आता है, यह भारत तो अब कोई काम का नहीं है। भारत स्वर्ग था, अब नहीं है। यह किसको याद नहीं आता है, हमारा भारत सबसे ऊंच है, सबसे प्राचीन है। तुम बच्चों की बुद्धि में आता है, सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। इतनी खुशी, इतना रिगॉर्ड रहता है? बेहद का बाप आया हुआ है। कल्प-कल्प आते हैं, माया रावण ने जो हमारा राज्य-भाग्य छीन लिया है, वह हम आत्माओं को फिर से अपना राज्य-भाग्य बाबा आकर देते हैं। ऐसे नहीं कि कोई लड़ाई से छीना गया है। नहीं। रावण राज्य में हमारी मत भ्रष्टाचारी हो जाती है। श्रेष्ठाचारी से हम भ्रष्टाचारी बन जाते हैं। दुनिया देखो कितनी बढ़ गई है, हमारा भारत देश कितना छोटा था। स्वर्ग में कितने सुखी रहेंगे। हीरे जवाहरात के महल होंगे। वहाँ रावण होता नहीं। तुम बच्चों की बुद्धि में खुशी होनी चाहिए, अतीन्द्रिय सुख रहना चाहिए। बाप कहते हैं-देही-अभिमानी बनो। देह का भान तोड़ने के लिए बाबा ने कहा था- 108 चत्तियों वाला कपड़ा पहनो। भल बड़े आदमियों से, जवाहरियों से कनेक्शन था, वह नशा टूटे कैसे। देही-अभिमानी बनना पड़े। हम आत्मा हैं, यह तो पुराना शरीर है। इनको छोड़ नया फर्स्टक्लास शरीर लेना है। सर्प तो एक खल छोड़ दूसरी ले लेते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में ज्ञान है, यह पुरानी खल छोड़, हम दूसरी नई लेंगे फिर दूसरा शरीर मिलेगा। यह तो सारा ज्ञान बच्चों की बुद्धि में टपकना चाहिए। यह तो छी-छी दुनिया है, इनको देखते हुए भी बुद्धि से भूलना पड़ता है। हम यात्रा पर जा रहे हैं, हमारी बुद्धि का योग घर तरफ जा रहा है। अभ्यास तो करना पड़े ना। यह शरीर भी पुराना है, दुनिया भी पुरानी है। साक्षात्कार कर लिया है, अब यह देह और देह के सब सम्बन्ध छोड़ घर जाना है। अन्दर में खुशी होती है, अभी हमको वापिस जाना है। बुद्धियोग वहाँ लगाना होता है। एक दो को यही सुनाना है- मनमनाभव। यह बड़ा जबरदस्त मन्त्र है। भल गीता तो बहुत पढ़ते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। जैसे और शास्त्र पढ़ते हैं, ऐसे पढ़ लेते हैं। यह किसकी बुद्धि में नहीं आयेगा। हम भविष्य के लिए राजयोग सीख रहे हैं। बहुत गई, अब बाकी थोड़ा ही समय है। ऐसे-ऐसे अपने को बहलाते, खुशी में आना है। यह तो सब खलास होना है। मिरूआ मौत मलूका शिकार। हम मलूक बन अपने माशूक के साथ घर जायेंगे। यह आत्माओं का बाप बैठ शिक्षा देते हैं। है भी साधारण परन्तु ऊंच ते ऊंच है।

बाप आये हैं- बेहद का वर्सा देने, कल्प-कल्प आते हैं। यह तो छी-छी दुनिया है। ऐसी-ऐसी बातें करनी होती है। इसको कहा जाता है विचार सागर मंथन। यह शास्त्र आदि तो जन्म-जन्मान्तर पढ़े। जब मालूम पड़ा है कि भारतवासियों ने जितने जप-तप आदि किये हैं उतना और कोई ने नहीं किया है। जो पहले-पहले आये होंगे उन्होंने ही भक्ति की है और वही ज्ञान-योग में भी तीखे जायेंगे क्योंकि उनको फिर पहले नम्बर में आना है। देखते हो, कोई-कोई तो बहुत अच्छा पुरूषार्थ करते हैं। तुम बच्चे जो इस रूहानी सर्विस में लगे हो, उनके लिए तो बहुत अच्छा है। सचमुच भठ्ठी में बैठे हैं। वह सम्बन्ध अटूट हुआ है और जो गृहस्थ व्यवहार में रहते, यह सुनते सुनाते हैं तो पुरानों से भी तीखे जा रहे हैं। देखा जाता है नये आने वाले बहुत तीखे जाते हैं। तुम लिस्ट निकालेंगे तो मालूम पड़ जायेगा। पहले-पहले तुम्हारी माला बनाते थे फिर देखा कि कितने अच्छे- अच्छे बच्चे 3-4 नम्बर वाले भी निकल गये। एकदम जाए प्रजा में पड़े। अब तुम्हारी यह स्टूडेन्ट लाइफ है, गृहस्थ व्यवहार में रहते साथ-साथ यह कोर्स पढ़ते हो। बहुत बच्चे डबल कोर्स उठाते हैं, लिफ्ट मिलती है। तुम्हारा कोर्स है- गृहस्थ व्यवहार में रहते यह पढ़ना। इसमें भी कन्यायें बड़ी तीखी जानी चाहिए। कन्याओं के कारण कन्हैया वा गोपाल नाम भी गाया हुआ है। हैं तो गोप भी क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना। तुम सतयुग में देवी-देवता धर्म के थे। यह लक्ष्मी-नारायण प्रवृत्ति मार्ग में राज्य करते थे। यह तुम्हारी बुद्धि में टपकना चाहिए कि हम क्या बनते हैं! देवतायें कितने फर्स्टक्लास हैं! उन्हों के आगे जाकर महिमा गाते हैं- आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... हम पापी, कपटी हैं। हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं... अब इसमें भगवान को तरस नहीं खाना है वा कृपा नहीं करनी है। वास्तव में तरस वा कृपा अपने ऊपर ही करनी होती है। तुम ही देवता थे, अब क्या बन गये हो अपने को देखो, फिर पुरूषार्थ कर देवता बनो। श्याम से सुन्दर बनने के लिए पुरूषार्थ करना पड़ता है। यह तो भक्ति मार्ग में कहते हैं- मरते थे फलाने की कृपा हुई बच गये, उनकी आशीर्वाद से। महात्मा आदि के हाथ पकड़कर कहेंगे, आपकी आशीर्वाद चाहिए। यहाँ तो पढ़ाई है। कृपा आदि की बात नहीं। मनमनाभव का अर्थ है ना। मन्त्र तो बहुत देते हैं। अनेक प्रकार के हठयोग सिखाते हैं। हर एक की अलग-अलग शिक्षा होती है। हठयोग के सैम्पल देखने हों तो जयपुर के म्युजयम में जाकर देखो। यहाँ तो कितने आराम से बैठे हो। बुद्धि में है हमको फिर से बाबा राज्य दे रहे हैं। वहाँ ही अद्वैत देवी-देवता धर्म था और कोई धर्म नहीं था। दो हाथ से ही ताली बजती है। एक धर्म है तो मारामारी नहीं होती। अभी है कलियुग। कलियुग पूरा होगा तो भक्ति भी पूरी होगी। अभी तो मनुष्यों की वृद्धि कितनी होती रहती है। भारत की धरती नहीं बढ़ती है। धरती तो वही है। बाकी मनुष्य कम जास्ती होते हैं। वहाँ मनुष्य बहुत कम होंगे, दुनिया तो यही होगी। दुनिया कोई छोटी नहीं हो जायेगी। तो तुम बच्चों को बड़ी खुशी रहनी चाहिए। हम योगबल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं, बाप की श्रीमत पर। बाप कहते हैं- मामेकम् याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे। आत्मा में ही खाद पड़ी हुई है ना। सिर्फ कहते हैं- सतो, रजो, तमो....यह नहीं दिखाते कि आत्मा में ही खाद पड़ती है। पहले गोल्डन एजड थे, प्योर सोना थे फिर चांदी पड़ती है, उनको सिलवर एज कहा जाता है, चन्द्रवंशी। अंग्रेजी अक्षर कितने अच्छे हैं। गोल्डन, सिलवर, कॉपर फिर आइरन। बाप समझाते हैं-आत्मा में खाद पड़ी है, वह निकले कैसे। सतो से तमो बनी है फिर तमो से सतो कैसे बने। समझते हैं गंगा में स्नान करने से सतोप्रधान बन जायेंगे। परन्तु यह तो हो न सके। गंगा-स्नान आदि तो रोज करते रहते हैं। कोई तो नेमी हो जाते हैं। नहर पर भी जाकर स्नान करते हैं। तुमको बाप कहते हैं-यह नियम रखो, बाप को याद करने का। याद का स्नान वा यात्रा करो। ज्ञान-स्नान भी कराते हैं, योग की यात्रा सिखलाते हैं। बाप ज्ञान देते हैं। इनमें योग का भी ज्ञान, सृष्टि-चक्र का भी ज्ञान है। बाकी शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत देते हैं, योग को जानते ही नहीं। हठयोग समझ लिया है। योग आश्रम तो ढेर हैं। मनमनाभव का मन्त्र देंगे लेकिन सिवाए बाप के कोई भी मनुष्य के पास यह ज्ञान नहीं है। अब 84 जन्म का चक्र पूरा हुआ है। फिर नई दुनिया होगी। तुम्हारी बुद्धि में है, झाड़ की वृद्धि कैसे होती है। यह राजाई स्थापन हो रही है, सब इक्ठ्ठे थोड़ेही जायेंगे। ब्राह्मणों का झाड़ बहुत बड़ा होगा। फिर थोड़े-थोड़े करके जायेंगे। प्रजा बनती रहेगी। थोड़ा भी कोई ने सुन लिया तो प्रजा में आ जायेंगे। सेन्टर्स बहुत वृद्धि को पायेंगे। प्रदर्शनियाँ ढेर जहाँ-तहाँ होती रहेंगी। जैसे मन्दिर टिकाणे निकलते जाते हैं, वैसे तुम्हारी प्रदर्शनी भी गाँव-गाँव में होगी। घर-घर में प्रदर्शनी रखनी होगी। वृद्धि को पाते जायेंगे इसलिए आखरीन इन चित्रों की भी छपाई करानी पड़ेगी। सबके पास बाप का पैगाम जाना है। तुम बच्चों को बड़ी भारी सर्विस करनी है। अभी यह प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी का फैशन निकला है तो गाँव-गाँव में दिखाना पड़ेगा। वह अच्छी रीति उठायेंगे। शिव जयन्ती गाई जाती है परन्तु वह कैसे आते हैं, यह किसको पता नहीं है। शिव पुराण आदि में यह बातें हैं नहीं। यह बातें तुम सुनते हो। सुनने के समय अच्छा लगता है फिर भूल जाते हैं। अच्छी रीति प्वाइंट्स धारण होंगी तो सर्विस भी अच्छी रीति कर सकेंगे। परन्तु सब प्वाइंट्स किसको धारण नहीं होती हैं। भाषण करके आयेंगे फिर ख्याल में आयेगा-अजुन यह प्वाइंट्स भी समझाते थे तो अच्छा था, जिनको देह-अभिमान नहीं होगा वह झट बतायेंगे। भाषण कर फिर विचार करेंगे-हमने सब प्वाइंट्स ठीक समझाई? अजुन यह प्वाइंट्स भूल गये हैं, प्वाइंट्स कोई साथ नहीं चलनी हैं। यह है सिर्फ अभी के लिए। फिर यह खत्म हो जायेगा। इन आंखों से जो कुछ अभी देखते हो फिर सतयुग में यह नहीं होगा। तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र अब मिलता है, अभी तुम त्रिनेत्री बनते हो। बाबा आकर तुमको ज्ञान दे रहे हैं जो आत्मा धारण करती है। आत्मा को तीसरा नेत्र मिलता है। यह ज्ञान कोई में नहीं है कि मैं आत्मा हूँ। इस शरीर द्वारा यह करता हूँ। बाबा हमको पढ़ाते हैं। यह बुद्धि में रखना- इसमें मेहनत है। बच्चों को मेहनत करनी चाहिए और खुशी में रहना चाहिए। बस अभी हमारा राज्य आया कि आया। तुम जानते हो हमारे राज्य में क्या-क्या होगा। तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम इस पढ़ाई से राज्य लेते हैं। पढ़ने वाले को मर्तबा याद रहता है। हम पढ़ते हैं भविष्य के लिए। अच्छा पढ़ेंगे तो राजगद्दी पर बैठेंगे। वे तो नामीग्रामी हो जाते हैं। अभी लिस्ट निकालें, माला बनायें तो सब कहेंगे फलानी बच्ची को हमारे पास भेजो, रिफ्रेश करने। भाषण करने वालों को बुलाते हैं, तो उनका रिगॉर्ड भी रखना चाहिए। हमको इन जैसा होशियार बनना है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए देह के भान को तोड़ने का पुरूषार्थ करना है। अब वापिस घर जाना है इसलिए बुद्धियोग घर से लगा रहे।
2) गृहस्थ व्यवहार में रहते पढ़ाई भी पढ़नी है, डबल कोर्स उठाना है। ज्ञान का स्नान और याद की यात्रा करनी और करानी है।
वरदान:
युद्ध में डरने वा पीछे हटने के बजाए बाप के साथ द्वारा सदा विजयी भव!  
सेना में युद्ध करने वाले जो योद्धे होते हैं उन्हों का स्लोगन होता कि हारना वा पीछे लौटना कमजोरों का काम है, योद्धा अर्थात् मरना और मारना। आप भी रूहानी योद्धे डरने वा पीछे हटने वाले नहीं, सदा आगे बढ़ते विजयी बनने वाले हो। ऐसे कभी नहीं सोचना कि कहाँ तक युद्ध करें, यह तो सारे जिंदगी की बात है लेकिन 5000 वर्ष की प्रारब्ध के हिसाब से यह सेकेण्ड की बात है, सिर्फ विशाल बुद्धि बनकर बेहद के हिसाब से देखो और बाप की याद वा साथ की अनुभूति द्वारा विजयी बनो।
स्लोगन:
सदा आशा और विश्वास के आधार पर विजयी बनो।