Wednesday, May 11, 2016

मुरली 11 मई 2016

11-05-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– तुम बाप के पास आये हो अपनी ऊंच तकदीर बनाने, जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊंच तकदीर बनेगी”   
प्रश्न:
भक्ति की कौन सी आदत अभी तुम बच्चों में नहीं होनी चाहिए?
उत्तर:
भक्ति में थोड़ा दु:ख होगा, बीमारी होगी तो कहेंगे हे राम, हे भगवान, हाय-हाय करने की आदत भक्ति में होती। अभी तुम्हें कभी भी मुख से ऐसे बोल नहीं निकालने हैं। तुम्हें तो अन्दर ही अन्दर मीठे बाबा को प्यार से याद करना है।
गीत:-
तकदीर जगाकर आई हूँ...   
ओम् शान्ति।
हर एक मनुष्य पुरूषार्थ करते हैं– सुख और शान्ति की तकदीर बनाने। साधू-सन्त, सन्यासी आदि कहते हैं, हमको शान्ति चाहिए। दु:ख हरो, सुख दो। समझते हैं-भगवान ही मनुष्य मात्र का दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता है। अब भगवान को मनुष्य जानते तो हैं नहीं। तुम तो कहते हो शिवबाबा। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को बाबा नहीं कहेंगे। वह तो देवता है। भगवान को ही बाबा कहेंगे, वह है निराकार, जिसकी पूजा करते हैं। जानते हैं शिवबाबा सभी का है। परन्तु यह ख्याल नहीं आता कि हम बाबा क्यों कहते हैं। बाबा तो एक लौकिक भी है– यह फिर कौन सा बाप है! यह आत्मा कहती है वह निराकार बाप है। वह भी निराकार है, हम आत्मा भी निराकार हैं। साकार बाबा होते हुए भी आत्मा उस बाप को भूलती नहीं है। गॉड फादर है, हम उनके बच्चे हैं। यहाँ कहते हैं परमपिता। अंग्रेजी में कहते हैं-गॉड फादर, सुप्रीम सोल, सबसे ऊंचा। लौकिक बाप तो शरीर का रचयिता है और वह है पारलौकिक बाप। बाप ही बैठ बच्चों को समझाते हैं। बाप को याद करते हैं क्योंकि बाप से वर्सा मिलता है। तुम बाप के पास आये ही हो वर्सा लेने। दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता बाप ही आकर सुख का रास्ता बताते हैं। फिर वहाँ दु:ख का नामनिशान नहीं रहता। यहाँ तो बहुत दु:ख है ना, सब पुकारते हैं। अभी तो दुनिया में बहुत दु:ख आने वाला है। कोई मरते हैं तो कितना दु:खी होते हैं। `हाय भगवान' कह रोते हैं। वही कल्याणकारी बाप है। गाते हो तो जरूर दु:ख हरा है, सुख दिया है ना। बाप आकर समझाते हैं– बच्चे तुम कल्प-कल्प जब बहुत दु:खी पतित हो जाते हो तब पुकारते हो, हे बाबा आओ। मैं कल्प-कल्प आता ही हूँ, संगम पर। पावन दुनिया के आदि और पतित दुनिया के अन्त को संगम कहा जाता है। यह एक ही संगमयुग गाया जाता है। बाप आते हैं सबकी ज्योत जगाने, दु:ख हरकर सुख देने। तुम जानते हो हम पारलौकिक बाप के पास आये हैं, जो बाबा इनमें प्रवेश कर आये हैं। खुद कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। तुम सब हो ब्रह्माकुमार और कुमारी। तुमको यह निश्चय है कि हम ब्रह्मा की सन्तान बने हैं– बाप से सुख का वर्सा लेने। तुम बच्चों को ही सुख था, जब कि इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब है कलियुग, दु:खधाम। उसके बाद फिर सतयुग आयेगा। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना। सतयुग में फिर इन लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य चाहिए। यह चक्र फिरता ही रहता है। बाबा ने समझाया है तुम नर्कवासी बने हो अब फिर स्वर्गवासी बनना है। तुम देवी-देवताओं का बहुत छोटा झाड़ था। अब तुमको स्मृति आई है, हमने ही 84 जन्म लिए हैं। हम सारे विश्व के मालिक थे, फिर पुनर्जन्म लेते आये हैं। अब तुम्हारे 84 जन्मों के अन्त का भी अन्त है। दुनिया नई से पुरानी जरूर होगी। नई दुनिया पावन थी, अब पुरानी पतित दुनिया है। कितने दु:खी कंगाल हैं। भारत बहुत साहूकार था। पवित्र गृहस्थ आश्रम था। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे। यह बातें शास्त्रों में हैं नहीं। शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के लिए। भक्ति की ही रसम-रिवाज उनमें है। बाप से मिलने का रास्ता शास्त्रों से नहीं मिल सकता। समझते भी हैं– भगवान को यहाँ आना है फिर वहाँ पहुँचने की तो बात ही नहीं। यज्ञ, तप आदि करना-वह कोई रास्ता नहीं है। भगवान को पुकारते ही हैं आओ, आकर रास्ता बताओ। हमारी आत्मा तमोप्रधान बन गई है, जिस कारण उड़ नहीं सकती अर्थात् बाप के पास जा नहीं सकती। यूँ तो आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। कहाँ की कहाँ चली जाती है। अमेरिका भी जा सकती है। कोई का किसके साथ सम्बन्ध होगा तो आत्मा झट वहाँ उड़ेगी, एक सेकेण्ड में। बाकी उड़कर अपने घर वापिस जाये, ये नहीं हो सकता। पतित वहाँ जा नही सकते, इसलिए पुकारते हैं, हे पतितपावन आओ। बाप जब आते हैं तो आकर समझाते हैं-मैं आता ही तब हूँ, जब सारी दुनिया पतित है। पतित दुनिया में एक भी पावन नहीं है। समझते हैं गंगा पतित-पावनी है इसलिए जाते हैं स्नान करने। परन्तु पानी से तो कोई पावन हो नहीं सकता। पुरानी दुनिया है ही पतित, नई दुनिया है पावन। अभी तुम बेहद के बाप से वर्सा लेने आये हो। तुमको पुण्य आत्मा बनना है। तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान थी सो अब तमोप्रधान है। फिर सतोप्रधान कोई गंगा स्नान से नहीं बनेगी। पतितों को पावन बनाना-यह तो बाप का ही काम है। बाकी वह पानी की नदी तो सब जगह है। बादलों से पानी बरसता है, सबको मिलता है। अगर पानी की नदी पावन बनाये, फिर तो सबको पावन कर दे। पावन बनने की युक्ति बाप ही आकर बताते हैं इन द्वारा। इनकी अपनी आत्मा है। बाप कहते हैं-मुझे अपना शरीर नहीं है। कल्प-कल्प इसमें ही आता हूँ तुमको समझाने। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। बाप कहते हैं– यह 84 जन्मों का चक्र है। 5 हजार वर्ष में 84 लाख जन्म कोई ले न सके। तो बाप समझाते हैं– स्वर्ग में तुम 16 कला सम्पूर्ण थे फिर 2 कला कम हुई फिर धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। नई दुनिया सो फिर पुरानी होती है। द्वापर कलियुग को पतित दुनिया कहा जाता है। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। मुझे ही ज्ञान का सागर कहते हैं। मैं कोई शास्त्र पढ़ता हूँ क्या? मैं इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ। भक्ति मार्ग वालों को यह ज्ञान हो नहीं सकता। वह सब है भक्ति का ज्ञान। गाते भी हैं, हम पापी, नींच हैं। हमारे में कोई गुण नाहीं। आपेही तरस परोई... इनके ऊपर तरस किया गया है तब मनुष्य से देवता बने हैं, इनको कहा जाता है ऊंच ते ऊंच तकदीर। स्कूल में तकदीर बनाने जाते हैं। कोई जज, कोई इन्जीनियर बनते हैं। वह है विकारी तकदीर, यह तुम्हारी बनती है ईश्वर द्वारा तकदीर, इसलिए बुलाते हैं दु:ख-हर्ता सुख-कर्ता, देवता बनाने के लिए सिवाए बाप के कोई पढ़ा न सके। बाप आत्माओं से बैठ बात कर रहे हैं। आत्मा कहती है-यह मेरा शरीर है। शरीर तो नहीं कहेगा, मेरी आत्मा। शरीर के अन्दर आत्मा है, वह कहती है– यह मेरा शरीर है। मनुष्य कहते हैं मेरी आत्मा को न दु:खाओ। आत्मा शरीर में न हो तो बोले भी नहीं। आत्मा कहती है, मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ। हमने जरूर 84 जन्म भोगे हैं, नर्कवासी बनें। अब फिर तुम स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो। स्वर्गवासी तो बाप ही बनायेंगे। स्वर्ग कहा ही जाता है सतयुग को। यह जो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ, यह झूठ बोलते हैं। यह तो नर्क है। कोई मरा तो कहते स्वर्ग में गया फिर नर्क में क्यों बुलाते हैं कि आकर खाना खाओ। स्वर्ग में तो उनको बहुत वैभव मिलते हैं फिर तुम नर्क में क्यों बुलाते हो? मनुष्यों में इतनी भी समझ नहीं है। बाप बैठ समझाते हैं-अभी यह कलियुग खत्म होना है, इनको आग लगेगी। यह सब खत्म हो जायेंगे। तुम बच्चे जो बाप से वर्सा लेते हो, वह सतयुग में आकर राज्य करेंगे। इन लक्ष्मी-नारायण को यह वर्सा किसने दिया? बाप ने। तुम अभी बाप द्वारा लायक बन रहे हो। तुम कहेंगे हम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन रहे हैं।

बाप कहते हैं-मैं स्वर्गवासी नहीं बनता हूँ। मैं तो परमधाम में रहता हूँ। नर्कवासी-स्वर्गवासी तुम बनते हो। आत्मा का निवास स्थान शान्तिधाम है फिर तुम सुखधाम में आते हो। यह है ही दु:खधाम, इनका अब विनाश होना है। यह किसको भी पता नहीं है कि भगवान ब्रह्मा तन में आकर राजयोग सिखाते हैं। वह समझते हैं कि कृष्ण आया, कृष्ण के तन में भी नहीं कहते। कृष्ण को भगवान कह न सकें। वह तो विश्व का मालिक है। लिब्रेटर सबका एक है, वह है सुप्रीम आत्मा, परम-आत्मा। दुनिया में कोई भी सतसंग नहीं होता जहाँ ऐसा समझें कि हम बाप से स्वर्ग का वर्सा लेते हैं। पतित से पावन बनाने वाला तो एक ही बाप है। बाप कहते हैं-मैं तुम्हारा सच्चा गुरू हूँ, तुमको पावन बनाता हूँ। बाकी गंगा का पानी पावन बना नहीं सकता। यह है ही पापात्माओं की दुनिया। कुछ भी करें सीढ़ी नीचे उतरनी ही है। सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है। तुम भक्ति नहीं करते हो। हाय-राम भी नहीं कहेंगे। वह तो तुम्हारा बाप है, तुमको पढ़ा रहे हैं। हे भगवान आओ, हे राम भी नहीं कहना चाहिए। परन्तु बहुतों में यह आदत पड़ी हुई है तो अक्षर निकल पड़ते हैं। तुमको बाप कहते हैं-मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम मेरे पास आ जायेंगे। याद एक को ही करना है। बाप कहते हैं-यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। अभी वर्सा लिया सो लिया, फिर कभी नहीं पा सकेंगे। बाप ने समझाया है, यह जो अपने को हिन्दू कहलाते हैं, वह असुल देवी-देवता धर्म वाले हैं। क्रिश्चियन धर्म वाले कभी नाम नहीं बदलते हैं। भल तमोप्रधान हैं तो भी क्रिश्चियन धर्म में ही हैं। तुम देवी-देवताये हो परन्तु पतित होने के कारण अपने को हिन्दू कह देते हो, अपने को देवता नहीं कह सकते। यह भूल गये हैं कि हम असुल देवी-देवता थे। अपने को देवता धर्म वाला कोई नहीं कहलाते हैं क्योंकि विकारी हैं। यह है देह-अभिमान। बच्चों को बहुत अच्छी तरह समझाया जाता है। यहाँ कोई साधूसन्त आदि नहीं हैं। हम व्यापारी हैं, फलाना हैं– यह सब है देह-अभिमान। अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है। देही- अभिमानी बनने में ही मेहनत है। तुमको बाबा से वर्सा लेना है तो बाप को याद करना है। कम कार डे, दिल यार डे...। तुम आशिक हो, एक माशूक के। सबका सद्गति दाता एक माशूक है। वह आते ही तब हैं, जब सबको सद्गति मिलती है, स्वर्ग की स्थापना होती है, दु:ख का नाम निशान गुम हो जाता है। अभी तुम बच्चे यहाँ आये हो– बेहद के बाप से स्वर्ग का, 21 जन्मों के लिए सदा सुख का वर्सा पाने। और कोई भी मनुष्य-मात्र किसी को स्वर्ग का मालिक बना नहीं सकते। शिवबाबा भारत में ही आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं। शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु भूल गये हैं कि बाबा से हमको स्वर्ग का वर्सा मिलता है। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई के आधार पर अपनी तकदीर ऊंच बनानी है, मनुष्य से देवता बनना है। पावन बनकर वापिस घर जाना है फिर नई दुनिया में आना है।
2) हाथों से काम करते– एक बाप की याद में रहना है। कोई भी उल्टी बात न सुननी है, न सुनानी है।
वरदान:
सदा पश्चाताप से परे, प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करने वाले सद्-बुद्धिवान भव!  
जो बच्चे बाप को अपने जीवन की नैया देकर मैं पन को मिटा देते हैं। श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करते वह सदा पश्चाताप से परे प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हैं। उन्हें ही सद्-बुद्धिवान कहा जाता है। ऐसे सद्-बुद्धि वाले तूफानों को तोफा समझ, स्वभाव-संस्कार की टक्कर को आगे बढ़ने का आधार समझ, सदा बाप को साथी बनाते हुए, साक्षी हो हर पार्ट देखते सदा हार्षित होकर चलते हैं।
स्लोगन:
जो सुखदाता बाप के सुखदाई बच्चे हैं उनके पास दु:ख की लहर आ नहीं सकती।