Tuesday, April 26, 2016

मुरली 26 अप्रैल 2016

26-04-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अब वापिस घर जाना है, इसलिए देह-भान को भूल अपने को अशरीरी आत्मा समझो, सबसे ममत्व मिटा दो”  
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम बच्चे बाप से कौन सा अक्ल सीखते हो?
उत्तर:
तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनें, अपनी तकदीर ऊंची कैसे बनायें, यह अक्ल अभी ही तुम सीखते हो। जो जितना योगयुक्त और ज्ञान युक्त बने हैं, उनकी उतनी उन्नति होती रहती है। उन्नति करने वाले बच्चे कभी भी छिप नहीं सकते। बाप हर एक बच्चे की एक्ट से समझते हैं कि कौन-सा बच्चा अपनी ऊंची तकदीर बना रहा है।
गीत:-
मरना तेरी गली में...   
ओम् शान्ति।
सब बच्चों ने यह गीत सुना। बच्चे कहने से सर्व सेन्टर्स के बच्चे जान जाते हैं कि बाबा हम ब्राह्मणों के लिए कहते हैं कि बच्चे यह गीत सुना - जीते जी गले का हार बनने के लिए अर्थात् मूलवतन में जाए बाबा के घर में रहने के लिए। वह शिवबाबा का घर है ना, जिसमें सब सालिग्राम रहते हैं। बच्चे, ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी जानते हैं कि बरोबर वही बाबा आये हुए हैं। कहते हैं - अभी तुमको अशरीरी बनना है अर्थात् देह के भान को भूलना है। यह पुरानी दुनिया तो मिट जायेगी। इस शरीर को तो छोड़ना है अर्थात् सबको छोड़ना है क्योंकि यह दुनिया ही खत्म होनी है। तो अब चलना है वापिस घर। सभी बच्चों को अब खुशी होती है क्योंकि आधाकल्प घर जाने के लिए बहुत धक्के खाये हैं। परन्तु रास्ता मिला नहीं! और ही भक्ति मार्ग का चहचटा (दिखावा) देख मनुष्य फँस पड़ते हैं। यह है भक्ति मार्ग की दुबन (दलदल) जिसमें मनुष्य मात्र गले तक फँस गये हैं। अब बच्चे कहते हैं - बाबा हम पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को भूलते हैं। अब आपके साथ अशरीरी बन घर चलेंगे। सबकी बुद्धि में है परमपिता परमात्मा परमधाम से आये हैं, हमको ले जाने के लिए। सिर्फ कहते हैं तुम पवित्र बन हमको याद करो। जीते जी मरना है। तुम जानते हो वहाँ घर में आत्मायें रहती हैं। सो भी आत्मा तो बिन्दी है। निराकारी दुनिया में सब आत्मायें चली जायेंगी, जितने मनुष्य हैं उतनी आत्मायें वहाँ होंगी। आत्मायें उस महतत्व की कितनी जगह लेती हैं। शरीर तो इतना बड़ा है, कितनी स्पेस लेता है? बाकी आत्मा को कितनी जगह चाहिए! हम आत्मायें कितनी छोटी जगह लेंगी? बहुत थोड़ी। बच्चों को यह सब बातें बाप द्वारा सुनने का सौभाग्य अभी मिलता है। बाप ही बतलाते हैं कि तुम नंगे (बिना शरीर के) आये थे फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाया, अब फिर जीते जी मरना है, सबको भूलना है। बाप आकर मरना सिखलाते हैं। कहते हैं अपने बाप को, अपने घर को याद करो। खूब पुरूषार्थ करो। योग में रहने से पाप नाश होंगे। फिर आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेगी इसलिए बाप राय देते हैं - कल्प पहले भी कहा था कि देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो। सबका एक बाप तो वह है ना। तुम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली बच्चे हो, जो ज्ञान पाते रहते हो। शिव के बच्चे तो हो ही। यह तो सबको निश्चय है - हम भगवान के बच्चे हैं। परन्तु उनके नाम, रूप, देश, काल को भूलने के कारण, भगवान से किसका भी इतना लव नहीं रहता है। किसको दोष नहीं देते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है।

बाप समझाते हैं कि तुम आत्मा कितनी छोटी बिन्दी हो, उसमें 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। कितना वण्डर है। आत्मा कैसे शरीर लेकर पार्ट बजाती है। अभी तुमको बेहद के पार्ट का पता पड़ा है। यह ज्ञान और कोई को नहीं है। तुम भी देह-अभिमानी थे। अभी कितना पलटा खाया है। वह भी हर एक की तकदीर पर है। कल्प पहले वाली तकदीर का अब साक्षात्कार हो रहा है। दुनिया में कितने ढेर मनुष्य हैं, हर एक की अपनी तकदीर है। जैसा-जैसा जिसने कर्म किया है उस अनुसार दु:खी, सुखी, साहूकार, गरीब बनते हैं। बनती आत्मा है। आत्मा कैसे सुख में आती है, फिर दु:ख में आती है, यह बाप बैठ समझाते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का अक्ल बाप ही सिखाते हैं कल्प पहले मुआफ़िक। जितना जिसने अक्ल पाया है उतना ही अब पा रहे हैं। पिछाड़ी तक हर एक की तकदीर को समझ जायेंगे। फिर कहेंगे कल्प-कल्प ऐसे ही हर एक की तकदीर रहेगी। जो अच्छा योगयुक्त, ज्ञान युक्त होगा - वह सर्विस भी करता रहेगा। पढ़ाई में सदैव उन्नति होती रहती है। कोई बच्चे जल्दी उन्नति को पा लेते हैं, कोई बहुत माथा खपाते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। कल्प पहले मुआफ़िक जो-जो उन्नति करते हैं, वह छिपे नहीं रह सकते। बाप तो जानते हैं ना - सबका कनेक्शन शिवबाबा से है। यह भी बच्चों की एक्ट देखते समझ जाते हैं, तो वह भी देखते हैं। इनसे भल कोई छिपाये परन्तु शिवबाबा से तो छिपा नहीं सकेंगे। भक्तिमार्ग में ही परमात्मा से नहीं छिपा सकते तो ज्ञान मार्ग में कैसे छिपा सकते। बाप समझाते रहते हैं, पढ़ाई तो बहुत सहज है। कर्म भी करना है। रहना भी मित्र सम्बन्धियों के पास पुरानी दुनिया में है। वहाँ रहकर मेहनत करनी है। यहाँ रहकर पुरूषार्थ करने वालों से वहाँ घर में रह पुरूषार्थ करने वाले तीखे हो सकते हैं। अगर ऐसी लगन है तो। शास्त्रों में अर्जुन और भील का मिसाल है ना। भल भील बाहर का रहने वाला था लेकिन अभ्यास से वह अर्जुन से भी तीर चलाने में होशियार हो गया। तो गृहस्थ व्यवहार में रह कमल फूल समान रहना है। यह भी तुम मिसाल देखेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रह बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हैं। वह जास्ती वृद्धि को पाते रहेंगे। यहाँ रहने वालों को भी माया छोड़ती नहीं है। ऐसे नहीं कि बाबा के पास आने से छूट जाते हैं। नहीं, हर एक का अपना-अपना पुरूषार्थ है। गृहस्थ व्यवहार में रहने वाले यहाँ रहने वालों से अच्छा पुरूषार्थ कर सकते हैं। बहुत अच्छी बहादुरी दिखा सकते हैं, उनको ही महावीर कहा जाता है, जो गृहस्थ व्यवहार में रहकर कमल फूल समान बनकर दिखाये। कहेंगे कि बाबा आपने तो छोड़ा है। बाबा कहते - हमने कहाँ छोड़ा है, मुझे ही छोड़कर गये हैं। बाबा तो किसको भी छोड़ नहीं आये। घर में और ही बच्चे आ गये। बाकी कन्याओं के लिए तो बाबा कहते हैं कि तुम यह ईश्वरीय सर्विस करो। यह भी बाबा है, वह भी बाबा है। कुमार भी बहुत आये लेकिन चल न सके। कन्यायें फिर भी अच्छी हैं। कन्या 100 ब्राह्मणों से उत्तम गिनी जाती है। तो कन्या वह जो 21 कुल का उद्धार करे, ज्ञान के बाण मारे। बाकी जो गृहस्थ में रहते वह भी बी. के. ठहरे। आगे चल उन्हों का भी बंधन खलास हो जायेगा। सर्विस तो करनी है ना। कई सर्विस करने वाले बच्चे बापदादा के दिल पर चढ़े हुए हैं, जो हजारों का कल्याण कर रहे हैं। तो ऐसे सर्विसएबुल बच्चों पर आशीर्वाद भी आती रहेगी। वे दिल पर चढ़े रहेंगे। जो दिल पर हैं वही तख्त पर बैठेंगे। बाबा कहते आपस में मिलकर युक्ति रचते रहो, सबको मार्ग दिखाने की। चित्र भी बनते रहते हैं। यह सब प्रैक्टिकल बातें हैं।

अभी तुम समझाते हो कि परमपिता परमात्मा निराकार है, वह भी बिन्दी है। परन्तु वह नॉलेजफुल, पतित पावन है। आत्मा भी बिन्दी है। बच्चा फिर भी छोटा होता है। बाप और बच्चे में फर्क तो होता है ना। आजकल तो 15-16 वर्ष वाले भी बाप बन जाते हैं। तो भी बच्चा उनसे छोटा ही ठहरा ना। यहाँ वन्डर देखो - बाप भी आत्मा, बच्चा भी आत्मा। वह है सुप्रीम आत्मा, नॉलेजफुल। बाकी सब अपनी पढ़ाई अनुसार नीच वा ऊंच पद पाते हैं। सारा मदार है पढ़ाई पर। अच्छा कर्म करने से ऊंच पद पा लेते हैं। अभी तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। स्वर्ग में सिर्फ भारत ही था और कोई खण्ड नहीं था। तो छोटी न्यु इन्डिया में अपना स्वर्ग दिखायें। जैसे द्वारिका नाम नहीं, लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी का राज्य लिखना चाहिए। बुद्धि भी कहती है सतयुग में पहले डीटी डिनायस्टी का राज्य होगा। उनके गाँव होंगे, छोटे-छोटे इलाके होंगे। यह भी विचार सागर मंथन करना है। साथ-साथ शिवबाबा से बुद्धि का योग भी लगाना है। हम याद से ही बादशाही लेते हैं। याद से ही कट उतरनी है, इसमें ही सारी मेहनत है। कइयों की बुद्धि बाहर में धक्का खाती रहती है, यहाँ बैठे भी सारा समय याद में नहीं रह सकते हैं, बुद्धि और तरफ चली जायेगी। भक्ति मार्ग में भी ऐसे होता है। श्रीकृष्ण की भक्ति करते-करते बुद्धि और तरफ चली जाती है। नौधा भक्ति वाले दीदार के लिए बहुत मेहनत करते हैं। कितने घण्टे बैठ जाते हैं कि कृष्ण के सिवाए और कोई याद न आये, बहुत मेहनत है। इसमें 8 की और फिर 16108 की माला होती है। वह तो लाखों की माला भी दिखाते हैं। लेकिन ज्ञान मार्ग की माला बहुत कीमती है। भक्ति मार्ग की सस्ती है क्योंकि इसमें रूहानी मेहनत है। कृष्ण को देखो खुश हो डांस करते हैं। भक्ति और ज्ञान में रात दिन का फर्क है, उसमें यह नहीं समझाया जाता है कि कृष्ण को याद करने से कट निकलेगी। यहाँ तो समझाया जाता है कि जितना बाप को याद करेंगे उतना पाप नाश होंगे।

तुम बच्चे अभी योगबल से विश्व के मालिक बनते हो। यह किसको स्वप्न में भी ख्याल नहीं होगा। लक्ष्मी-नारायण ने कोई लड़ाई आदि नहीं की है। विश्व के मालिक फिर कैसे बने? यह तो तुम बच्चे ही जानते हो। बाप कहते हैं योगबल से तुमको राजाई मिलेगी। परन्तु तकदीर में नहीं है तो तदबीर ही नहीं करते। सर्विसएबुल बनते नहीं हैं। बाबा तो डायरेक्शन देते रहते हैं कि ऐसे-ऐसे प्रदर्शनी करो। कम से कम 150-200 प्रदर्शनियाँ एक दिन में हो जायें। गाँव-गाँव में चक्र लगाओ। जितने सेन्टर्स, उतनी प्रदर्शनियाँ। एक-एक सेन्टर पर प्रदर्शनी होने से समझाने में सहज हो जायेगा। सेन्टर्स भी दिन प्रतिदिन बड़े होते जायेंगे जो चित्र आदि भी रख सकें। चित्रों की भी इन्वेन्शन निकलती रहती है। वैकुण्ठ का चित्र खूबसूरत महलों आदि के भारत का बनाना चाहिए। आगे चल समझाने के लिए अच्छे-अच्छे चित्र निकलते जायेंगे। वानप्रस्थ अवस्था वाले घूमते फिरते भी सर्विस करते रहें, जिनका भाग्य उदय होगा वह निकलेंगे। कई बच्चे कुकर्म कर अपनी आबरू गँवाते हैं, तो यज्ञ की आबरू (इज्जत) गँवाते हैं। जैसी चलन वैसा पद। जो बहुतों को सुख देते हैं, उनका तो नाम गाया जाता है ना। अभी सर्वगुणों में सम्पन्न तो नहीं बने हो ना। कोई-कोई बड़ी अच्छी सर्विस कर रहे हैं। ऐसे-ऐसे के नाम सुन बाबा खुश होते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को देख बाबा खुश होगा ना। अच्छी सर्विस में मेहनत करते रहते हैं। सेन्टर्स भी खोलते रहते हैं, जिससे हजारों का कल्याण होना है। उनके द्वारा फिर बहुत निकलते जायेंगे। सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है। भूलें भी कुछ न कुछ हो जाती है। माया छोड़ती नहीं है। जितनी सर्विस कर अपनी उन्नति करेंगे उतना ही दिल पर चढ़ेंगे। उतना ही ऊंच पद पायेंगे। फिर कल्प-कल्प ऐसा ही पद होगा। शिवबाबा से तो कोई छिपा नहीं सकता। अन्त में हर एक को अपने कर्मों का साक्षात्कार तो होता है। फिर क्या कर सकेंगे! ज़ार-ज़ार रोना पड़ेगा इसलिए बाबा समझाते रहते हैं कि ऐसा कोई भी कर्म नहीं करो जो अन्त में सज़ा के भागी बनो, पश्चाताप करना पड़े। परन्तु कितना भी समझाओ तकदीर में नहीं है तो तदबीर करते ही नहीं। आजकल के मनुष्य तो बाप को जानते नहीं। भगवान को याद करते हैं लेकिन जानते नहीं। उनका कहना नहीं मानते। अभी उस बेहद के बाप से तुम्हें सतयुगी स्वराज्य का वर्सा मिलता है सेकण्ड में। शिवबाबा का नाम तो सभी पसन्द करते हैं ना। बच्चे जानते हैं कि उस बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा मिल रहा है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी चलन से बाप का वा यज्ञ का नाम बाला करना है, ऐसा कोई कर्म न हो जो बाप की इज्जत जाये। सर्विस से अपना भाग्य आपेही बनाना है।
2) बाप समान कल्याणकारी बन सर्व की आशीर्वाद ले आगे नम्बर लेना है। गृहस्थ व्यवहार में रह कमल फूल समान रहने की अच्छी बहादुरी दिखानी है।
वरदान:
स्नेह के पीछे सर्व कमजोरियों को कुर्बान करने वाले समर्थी स्वरूप भव!   
स्नेह की निशानी है कुर्बानी। स्नेह के पीछे कुर्बान करने में कोई मुश्किल वा असम्भव बात भी सम्भव और सहज अनुभव होती है। तो समर्थी स्वरूप के वरदान द्वारा सर्व कमजोरियों को मजबूरी से नहीं दिल से कुर्बान करो क्योंकि सत्य बाप के पास सत्य ही स्वीकार होता है। तो सिर्फ बाप के स्नेह के गीत नहीं गाओ लेकिन स्वयं बाप समान अव्यक्त स्थिति स्वरूप बनो जो सब आपके गीत गायें।
स्लोगन:
संकल्प वा स्वप्न में भी एक दिलाराम की याद रहे तब कहेंगे सच्चे तपस्वी।