Thursday, April 7, 2016

मुरली 07 अप्रैल 2016

07-04-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप के पास जो वक्खर (सामान) है, उसका पूरा ही अन्त तुम्हें मिला है, तुम उसे धारण करो और कराओ”   
प्रश्न:
त्रिकालदर्शी बाप ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हुए भी कल की बात आज नहीं बताते हैं– क्यों?
उत्तर:
बाबा कहते– बच्चे अगर मैं पहले से ही बता दूँ तो ड्रामा का मजा ही निकल जाए। यह लॉ नहीं कहता। सब कुछ जानते हुए मैं भी ड्रामा के वश हूँ। पहले सुना नहीं सकता, इसलिए क्या होगा तुम उसकी चिंता छोड़ दो।
गीत:-
मरना तेरी गली में......   
ओम् शान्ति।
यह है पारलौकिक आत्माओं का बाप। आत्माओं से ही बात करते हैं। उनको बच्चे-बच्चे कहने की प्रैक्टिस हो जाती है। भल शरीर बच्ची का है परन्तु आत्मायें तो सब बच्चे ही हैं। हर आत्मा वारिस है अर्थात् वर्सा लेने की हकदार है। बाप आकर कहते हैं बच्चों तुम हर एक को वर्सा लेने का हक है। बेहद के बाप को बहुत याद करना है, इसमें ही मेहनत है। बाबा परमधाम से आये हैं हमको पढ़ाने। साधू-सन्त तो अपने घर से आते हैं वा कोई गाँवड़े से आते हैं। बाबा तो परमधाम से आये हैं हमको पढ़ाने। यह किसको मालूम नहीं है। बेहद का बाप वही पतित-पावन गॉड फादर है। उनको ओशन ऑफ नॉलेज भी कहते हैं, अथॉरिटी है ना। कौन सी नॉलेज है? ईश्वरीय नॉलेज है। बाप है मनुष्य सृष्टि का बीज रूप। सत-चित्-आनंद स्वरूप। उनकी बड़ी भारी महिमा है। उनके पास यह वक्खर (सामग्री) है। कोई के पास दुकान होता है, कहेंगे हमारी दुकान में यह-यह वैरायटी है।

बाप भी कहते हैं मैं ज्ञान का सागर, आनंद का सागर, शान्ति का सागर हूँ। मेरे पास यह सब वक्खर मौजूद है। मैं संगम पर आता हूँ डिलेवरी करने, जो कुछ मेरे पास है सब डिलेवरी करता हूँ फिर जितना जो धारण करे अथवा जितना पुरूषार्थ करे। बच्चे जानते हैं– बाप के पास क्या-क्या है और एक्यूरेट जानते हैं। आजकल किसको अपना अन्त कोई बताते नहीं हैं। गाया हुआ है– किनकी दबी रही धूल में... यह सब अभी की बात है। आग लगेगी सब खत्म हो जायेंगे। राजाओं के पास अन्दर बहुत बड़ी मजबूत गुफायें रहती हैं। भल अर्थक्वेक हो, जोर से आग लगे तो भी अन्दर से निकल आते हैं। तुम बच्चे जानते हो यहाँ की कोई भी चीज वहाँ काम नहीं आनी है। खानियां भी सब नयेसिर भरपूर हो जाती हैं। साइंस भी रिफाइन हो तुम्हारे काम आती है। तुम बच्चों की बुद्धि में अब सारा ज्ञान है। बच्चे जानते हैं हम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। बाकी अन्त का थोड़ा टुकड़ा है, जिसको भी जान जायेंगे। बाबा पहले से ही सब कैसे बता दे, बाप कहते हैं– मैं भी ड्रामा के वश हूँ, जो ज्ञान अब तक मिला है वही ड्रामा में नूँध है। जो सेकेण्ड पास हुआ, उनको ड्रामा समझना है। बाकी जो कल होगा वह देखा जायेगा। कल की बात आज नहीं सुनायेंगे। इस ड्रामा के राज को मनुष्य समझते नहीं हैं। कल्प की आयु ही कितनी लम्बी चौड़ी लगा दी है। इस ड्रामा को समझने की भी हिम्मत चाहिए। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना....समझते हैं मर गये जाकर दूसरा जन्म लिया। हम रोयें क्यों? बाबा ने समझाया है– अखबार में तुम लिख सकते हो, यह प्रदर्शनी आज से 5 हजार वर्ष पहले इस तारीख, इस ही स्थान पर इस रीति हुई थी। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट हो रही है, लिख देना चाहिए। यह तो जानते हैं– यह दुनिया बाकी थोड़े दिन है, यह सब खत्म हो जायेंगे। हम तो पुरूषार्थ कर विकर्माजीत बन जायेंगे फिर द्वापर से विक्रम संवत शुरू होता है अर्थात् विकर्म होने का संवत। इस समय तुम विकर्मों पर जीत पाते हो तो विकर्माजीत बन जाते हो। पाप कर्मों को श्रीमत से जीत कर विकर्माजीत बन जाते हो। वहाँ तुम आत्म-अभिमानी होते हो। वहाँ देह-अभिमान होता नहीं। कलियुग में देह-अभिमान है। संगम पर तुम देही-अभिमानी बनते हो। परमपिता परमात्मा को भी जानते हो। यह है शुद्ध अभिमान। तुम ब्राह्मण सबसे ऊंच हो। तुम हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण। यह नॉलेज सिर्फ तुमको मिलती है, दूसरे किसको मिलती नहीं। तुम्हारा यह सर्वोत्तम कुल है। गाया भी जाता है अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के बच्चों से पूछो। तुमको अब लॉटरी मिलती है। कोई चीज मिल जाती है, उसकी इतनी खुशी नहीं होती है। जब गरीब से साहूकार बन जाते हैं तो खुशी होती है। तुम भी जानते हो जितना हम पुरूषार्थ करेंगे उतना बाप से राजधानी का वर्सा लेंगे। जो जितना पुरूषार्थ करेगा उतना पायेगा। मुख्य बात बाप कहते हैं बच्चे अपने मोस्ट बिलवेड बाप को याद करो। वह सब का बीलवेड बाप है। वही आकर सबको सुख शान्ति देते हैं। अभी देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। वहाँ किंग-क्वीन नहीं होते। वहाँ कहेंगे महाराजा-महारानी। अगर भगवान-भगवती कहें तो फिर यथा राजा-रानी तथा प्रजा, सब भगवान-भगवती हो जायें इसलिए भगवान-भगवती कहा नहीं जाता। भगवान एक है। मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी देवता कहते हैं। स्थूलवतन-वासी को हम भगवान भगवती कैसे कहेंगे। ऊंच ते ऊंच है मूलवतन फिर सूक्ष्मवतन, यह है थर्ड नम्बर। यह तुम्हारी बुद्धि में रहना चाहिए। हम आत्माओं का बाप शिवबाबा ही है फिर शिक्षक भी है, गुरू भी है। सुनार, बैरिस्टर आदि सब है। सबको रावण की जेल से छुड़ाते हैं। शिवबाबा कितना बड़ा बैरिस्टर है। तो ऐसे बाप को क्यों भूलना चाहिए। क्यों कहते हैं, बाबा हम भूल जाते हैं। माया के बहुत तूफान आते हैं। बाबा कहते हैं यह तो होगा। कुछ तो मेहनत करनी पड़े। यह है माया से लड़ाई। तुम पाण्डवों की कोई कौरवों से लड़ाई नहीं है। पाण्डव कैसे लड़ाई करेंगे। फिर तो हिंसक हो जायेगी। बाप कभी हिंसा नहीं सिखाते हैं। कुछ भी समझ नहीं सकते हैं। वास्तव में हमारी कोई लड़ाई है नहीं। बाबा सिर्फ युक्ति बताते हैं कि मुझे याद करो, माया का वार नहीं होगा। इस पर भी एक कहानी है, पूछा– पहले सुख चाहिए वा दु:ख? तो बोला सुख। दु:ख हो न सके सतयुग में। तुम जानते हो– इस समय सभी सीतायें रावण की शोक वाटिका में हैं। यह सारी दुनिया सागर के बीच में लंका है। अभी सब रावण की जेल में पड़े हैं। सर्व की सद्गति करने के लिए बाप आये हैं। सब शोक वाटिका में हैं। स्वर्ग में है सुख, नर्क में है दु:ख। इसको शोक वाटिका कहेंगे। वह है अशोक, स्वर्ग। बहुत बड़ा अन्तर है। तुम बच्चों को कोशिश कर बाप को याद करना चाहिए तो खुशी का पारा चढ़ेगा। बाप की राय पर नहीं चलेंगे तो सौतेले ठहरे। फिर प्रजा में चले जायेंगे। मातेले होंगे तो राजधानी में आ जायेंगे। राजधानी में आना चाहते हो तो श्रीमत पर चलना पड़े। कृष्ण की मत नहीं मिलती है। मत हैं ही दो। अभी तुम श्रीमत लेते हो फिर सतयुग में उसका फल भोगते हो। फिर द्वापर में रावण की मत मिलती है। सब रावण की मत पर असुर बन जाते हैं। तुमको मिलती है ईश्वरीय मत। मत देने वाला एक ही बाप है। वह है ईश्वर। तुम ईश्वरीय मत से कितना पवित्र बनते हो। पहला पाप है– विषय सागर में गोता खाना। देवतायें विषय सागर में गोता नहीं खायेंगे। कहेंगे क्या वहाँ बच्चे नहीं होते हैं? बच्चे क्यों नहीं होते! परन्तु वह है ही वाइसलेस दुनिया, सम्पूर्ण निर्विकारी। वहाँ यह कोई विकार होते नहीं।

बाप ने समझाया है– देवता सिर्फ आत्म-अभिमानी हैं, परमात्म-अभिमानी नहीं हैं। तुम आत्म-अभिमानी भी हो, परमात्म-अभिमानी भी हो। पहले दोनों नहीं थे। सतयुग में परमात्मा को नहीं जानते। आत्मा को जानते हैं कि हम आत्मा यह पुराना शरीर छोड़ फिर जाए नया शरीर लेंगी। पहले मालूम पड़ जाता है, अब पुराना छोड़ नया लेना है। बच्चा होता है तो भी पहले से साक्षात्कार हो जाता है। योगबल से तुम सारे विश्व के मालिक बन जाते हो। तो क्या योगबल से बच्चे नहीं हो सकते! योगबल से कोई भी चीज को तुम पावन बना सकते हो। परन्तु तुम याद भूल जाते हो। कोई को अभ्यास पड़ जाता है। बहुत सन्यासी लोग भी होते हैं जिनको भोजन का कदर रहता है, तो उस समय बहुत मन्त्र पढ़कर फिर खाते हैं। तुमको भी परहेज तो बताई है। कुछ भी मास-मदिरा नहीं खाना है। तुम देवता बनते हो ना। देवतायें कभी किचड़पट्टी नहीं खाते। तो ऐसा पवित्र बनना है। बाप कहते हैं मेरे द्वारा तुम मुझे जानने से सब कुछ जान जायेंगे। फिर जानने का कुछ रहेगा नहीं। सतयुग में फिर पढ़ाई भी और होती है। इस मृत्युलोक की पढ़ाई का अब अन्त है। मृत्युलोक की सारी कारोबार खत्म हो फिर अमरलोक की शुरू होगी। इतना बच्चों को नशा चढ़ना चाहिए। अमरलोक के मालिक थे, तुम बच्चों को अतीन्द्रिय सुख, परम सुख में रहना चाहिए। परमपिता परमात्मा के हम बच्चे हैं अथवा स्टूडेन्ट हैं। परमपिता परमात्मा हमको अब घर ले जायेंगे, इनको ही परमानन्द कहा जाता है। सतयुग में यह बातें होती नहीं। यह तुम अभी सुनते हो, इस समय ईश्वरीय फैमिली के हो। अभी का ही गायन है– अतीन्द्रिय सुख गोप गोपियों से पूछो। परमधाम का रहने वाला बाबा आकर हमारा बाप, टीचर, गुरू बनते हैं। तीनों ही सर्वेन्ट ठहरे। कोई अभिमान नहीं रखते। कहते हैं हम तुम्हारी सेवा कर तुमको सब कुछ दे निर्वाणधाम में बैठ जायेंगे, तो सर्वेन्ट हुआ ना। वाइसराय आदि हमेशा सही करते हैं तो ओबीडियन्ट सर्वेन्ट लिखते हैं। बाबा भी निराकार, निरहंकारी हैं। कैसे बैठ पढ़ाते हैं। इतनी ऊंच पढ़ाई और कोई पढ़ा न सके। इतनी प्वाइंट्स कोई दे न सके। मनुष्य तो जान नहीं सकते, इनको कोई गुरू ने नहीं सिखाया। गुरू होता तो बहुतों का होता। एक का होता है क्या? यह बाप ही पतितों को पावन बनाते हैं। आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। बाबा कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ। कहते हैं ना– बाबा हम कल्प पहले भी मिले थे। बाप ही आकर पतितों को पावन बनायेंगे। 21 जन्मों के लिए तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ। तो यह सब धारणा करनी चाहिए फिर बताना चाहिए– बाबा ने क्या समझाया। बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का वर्सा लेते हैं। यह याद रहने से फिर खुशी में रहेंगे। यह परम-आनन्द है। मास्टर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल यह सब वरदान बाप से अभी तुमको मिलते हैं। सतयुग में तो बुद्धू होंगे। इन लक्ष्मी-नारायण को तो कुछ भी नॉलेज नहीं। इन्हों को होती तो परम्परा से चली आती। तुम जैसा परम आनन्द देवताओं को भी नहीं हो सकता है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देवता बनने के लिए खान-पान की बहुत शुद्धि रखनी है। बहुत ही परहेज से चलना है। योगबल से भोजन को दृष्टि दे शुद्ध बनाकर स्वीकार करना है।
2) परमपिता परमात्मा के हम बच्चे अथवा स्टूडेन्ट हैं, वह हमें अब अपने घर ले जायेंगे, इसी नशे में रह परम सुख, परम आनन्द का अनुभव करना है।
वरदान:
ड्रामा की ढाल को सामने रख खुशी की खुराक खाने वाले सदा शक्तिशाली भव   
खुशी रूपी भोजन आत्मा को शक्तिशाली बना देता है, कहते भी हैं– खुशी जैसी खुराक नहीं। इसके लिए ड्रामा की ढाल को अच्छी तरह से कार्य में लगाओ। यदि सदा ड्रामा की स्मृति रहे तो कभी भी मुरझा नहीं सकते, खुशी गायब हो नहीं सकती क्योंकि यह ड्रामा कल्याणकारी है इसलिए अकल्याणकारी दृश्य में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा समझ सदा खुश रहेंगे।
स्लोगन:
परचिन्तन और परदर्शन की धूल से दूर रहने वाले ही सच्चे अमूल्य हीरे हैं।