Sunday, April 3, 2016

मुरली 04 अप्रैल 2016

04-04-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– अब यह कलियुग खत्म होने वाला है इसलिए तुम्हें इसे लात लगानी है, अपना मुँह स्वर्ग की तरफ रखना है”   
प्रश्न:
बाप अपने बच्चों को पुण्य आत्मा बनने की कौन-सी विधि बताते हैं?
उत्तर:
बच्चे पुण्य आत्मा बनना है तो अभुल बनो। रावण ने तुमसे बहुत भूलें कराई, भूलें करते-करते तुम पाप आत्मा बन गये। क्रोध अथवा काम की भूल रावण कराता है। बाबा आया है तुम्हें इन विकारों पर विजयी बनाने। अभी तुम अभुल बन निर्विकारी बनो।
गीत:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन......   
ओम् शान्ति।
यह किसने पुकारा बाप को? बच्चों ने पुकारा बाबा, अभी यह जो महतत्व सिंहासन है, जहाँ आत्मायें और परमात्मा रहते हैं। बाप और बच्चे दोनों शान्तिधाम के निवासी हैं। पुकारते हैं बाप को। भगवान को ही बाप कहा जाता है। बाप ने समझाया है– 108 की माला बनती है। यह किसकी माला है? पूजने वाले नहीं जानते। ऊपर में शिवबाबा है निराकार। उनको शरीर है नहीं। उनको ही पुकारते हैं– हे पतित-पावन, ओ गॉड फादर, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर .... यह बच्चे बाप की महिमा करते आये हैं, परन्तु बाप को जानते नहीं, यह भी ड्रामा में नूँध है। सुख और दु:ख का खेल है। शान्तिधाम से यहाँ आते हैं पार्ट बजाने। वास्तव में आत्मा शान्तिधाम की वासी है फिर पार्ट बजाने कर्मणा में आना पड़ता है। ऊंच ते ऊंच सर्व का सद्गति दाता वा भारतवासियों को विश्व का मालिक बनाने वाला बाप है। लक्ष्मी-नारायण सारे विश्व के मालिक थे ना, जिनका मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं। जहाँ-तहाँ मन्दिर हैं। परन्तु यह कोई जानते नहीं कि लक्ष्मी-नारायण ने यह राज्य कैसे प्राप्त किया। सतयुग आदि में विश्व के मालिक थे और कोई भी धर्म नहीं था। उनको कहा जाता है आदि सनातन देवी देवता धर्म। यह बाप बच्चों को समझाते हैं। कहते भी हैं रूप बदलकर आओ। और जो भी आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं वे तो माँ के गर्भ में प्रवेश करती हैं। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। ब्रह्मा-विष्णु- शंकर को भी अपना सूक्ष्म शरीर है। उनको भगवान नहीं कहेंगे। ब्रह्मा देवता नम:, विष्णु देवता नम:, शिव परमात्मा नम: कहा जाता है। भारतवासी तो यह भी नहीं जानते कि शिव निराकार अलग है, शंकर आकारी अलग है। वह शंकर देवता, उनको शिव परमात्मा कहा जाता है। शिव और शंकर इकठ्ठे हो न सकें, इतनी भी बुद्धि नहीं है। वह है ऊंच ते ऊंच हमारा बाबा। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सूक्ष्मवतन की रचना हैं। रचता बाप ही सबका मोस्ट बिलवेड बाप है। तुम मात-पिता हम बालक तेरे। यह महिमा भी उनकी गाते हैं। पुकारते हैं बाबा आओ क्योंकि माया का परछाया पड़ गया है। रावण राज्य है ना। तुम बच्चे अब जानते हो– निराकार बाप अभी रूप बदलकर साकार में आये हैं। बाप जब तक निराकार से साकार में न आये तो राजयोग का ज्ञान कैसे सिखाये इसलिए बाप कहते हैं– मैं साधारण तन में टैम्प्रेरी आता हूँ। ब्राह्मणों को खिलाते हैं ना। कहेंगे, हमारी स्त्री का श्राध है अथवा बाप का श्राध है अर्थात् उनकी आत्मा का आह्वान करते हैं। उनके लिए सब कुछ तैयार रखते हैं। अब शरीर तो खत्म हो गया, वह तो आ न सके। बाकी उनकी आत्मा का आह्वान करेंगे। आत्मा को बुलाया जाता है फिर उनसे पूछते हैं कि तुम सुखी हो? कहाँ रहती हो? आगे यह बहुत रसम थी। होता तो सब ड्रामा-अनुसार है। अभी तो तमोप्रधान होने के कारण इतना चलता नहीं है। बाप समझाते हैं– जब वह आत्मा ब्राह्मण के शरीर में आ सकती है तो क्या मैं नहीं आ सकता हूँ? मैं भी आता हूँ। यदा यदाहि....जब भारतवासी अपने धर्म और कर्म को भूल धर्म-भ्रष्ट बन पड़ते हैं तब फिर मैं आता हूँ। देवी देवताएं सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, वहाँ योगबल से बच्चे पैदा होते हैं। जैसे अभी तुमको योगबल सिखाया जाता है, जिससे तुम विश्व के मालिक बनते हो। यहाँ आये ही हैं नर से नारायण बनने, राजयोग सीखने। यह डिनॉयस्टी स्थापन होती है। सूर्यवंशी डिनायस्टी थी, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते चन्द्रवंशी में आये, वृद्धि होती गई। तो ऊंच ते ऊंच है पिता परमात्मा। जैसे आत्मा बिन्दी है वैसे परमात्मा भी कहते हैं– मैं भी बिन्दी हूँ। मैं आकर साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। तुमको फिर से सो देवता बनाता हूँ। तुम वास्तव में सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी थे फिर वैश्य शूद्र वंशी में आये। 84 जन्मों का वृतान्त कोई नहीं जानते। 84 लाख जन्म तो हैं नहीं फिर तो चक्र की आयु बहुत बड़ी हो जाए। यह जो कहते हैं सतयुग लाखों वर्ष का है। बाप कहते हैं यह सब मिथ्या ज्ञान है। शास्त्रीं का ज्ञान सब भक्ति का ज्ञान है, जिससे उतरती कला ही होती है। ज्ञान का सागर तो एक ही बाप है। श्रीकृष्ण की महिमा ही अलग है, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण..... आहिंसा परमो देवी देवता धर्म। बड़े से बड़ी हिंसा है कामकटारी चलाना, वह वहाँ होती नहीं। बाप कहते हैं इस काम पर जीत पहनो तो फिर तुम पवित्र बन, पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे। आधाकल्प से तुम बहुत ही अपवित्र पाप आत्मा बने हो। 21 जन्म सतयुग त्रेता में बहुत सुखी थे। अब कलियुग अन्त में तुम बहुत ही अपवित्र बन गये हो। मैं आता ही हूँ संगम पर। जबकि पतित दुनिया से पावन दुनिया बनती है। यह कलियुग है दु:खधाम, अन्धियारी रात। सतयुग है दिन जहाँ इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। वह कैसे बनें? यह बाप समझाते हैं। गीता है ही श्रीमत एक शिवबाबा की। श्रीकृष्ण को वा लक्ष्मी-नारायण को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे। ज्ञान तुमको अभी मिल रहा है, जिससे तुम मनुष्य से देवता बनते हो। ज्ञान से ही तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। बाकी तो सब हैं भक्तिमार्ग की कथायें। भारत सचखण्ड था फिर द्वापर से झूठ खण्ड बना है। पहले-पहले हमेशा याद करो कि बिलवेड मोस्ट एक शिवबाबा है– सभी आत्माओं का बाप। फिर लौकिक बाप तो हर एक का अपना-अपना है जिससे हद का वर्सा मिलता है। वह भी हद के ब्रह्मा, हद के क्रियेटर ठहरे और यह है बेहद का क्रियेटर। बेहद का वर्सा देने वाला। आते भी हैं भारत में। शिवबाबा आये हैं जरूर सौगात लाये होंगे। हथेली पर बहिश्त, स्वर्ग की बादशाही ले आते हैं। बच्चों को भी बाप की प्रॉपर्टा मिलती है ना। तुम अभी कहते हो– हमारा शिवबाबा है। शिवबाबा से स्वर्ग का वर्सा मिलता है, जो साधारण तन में बैठ राजयोग सिखाते हैं। देवतायें तो पतित दुनिया में पैर धर न सकें। तो कृष्ण कैसे आयेंगे। एकज भूल से भारत कितना कंगाल बन पड़ा है। अब बाप आकर तुम बच्चों को अभुल बनाते हैं, जो कोई आधाकल्प भूल न हो। अभुल बनने से तुम पुण्य आत्मा बन जाते हो। रावणराज्य में तुम भूलें करते-करते पाप आत्मा बन जाते हो। काम-कटारी चलाना, क्रोध करना, यह भूल रावण कराता है। सतयुग में 5 विकार होते ही नहीं। वहाँ तो सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। मनुष्य तो कह देते कि असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी। अब देवतायें सतयुग के, असुर कलियुग के– दोनों की लड़ाई हो कैसे सकती! मनुष्य कृष्ण को याद करते हैं– कृष्णपुरी में जाने के लिए। वह तो है सतयुग। यह है आसुरी रावणपुरी। फिर मूलवतन है ईश्वरीय पुरी, जहाँ आत्मायें रहती हैं। शिवबाबा भी रहते हैं, आत्मायें भी रहती हैं। फिर आत्मायें यहाँ आती हैं पार्ट बजाने। बाप को भी आना पडता है, पराये देश में, पराये शरीर में। यह रावण का पतित देश है ना। सब बुलाते हैं– हे पतित-पावन आओ। सतयुग में देवी-देवताओं का राज्य था, जिनको भगवान-भगवती कहते हैं।

कृष्ण को कहते हैं श्याम सुन्दर, इसका भी अर्थ होगा ना। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में सीढ़ी उतरते, काम-चिता पर बैठने से गोरे सुन्दर से श्याम बन जाते हैं। अब फिर ज्ञान चिता पर बैठ सुन्दर बन जायेंगे। कृष्ण के चित्र में भी नर्क और स्वर्ग दिखाया है। बाप कहते हैं अब इस कलियुग को लात लगाओ, सतयुग तरफ मुँह करो। मनमनाभव। अब मुझ बाप को याद करो और संग बुद्धि का योग तोड़ मेरे साथ जोड़ो। गृहस्थ व्यवहार में भले रहो। तुम कर्मयोगी हो ना। याद शिवबाबा को करो, दूसरा न कोई। यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर सब खत्म हो जाता है इसलिए बाप कहते हैं– देह सहित देह के सम्बन्ध छोड़ मुझे याद करो। अपने को आत्मा निश्चय करो। यह आत्माओं के बाप ने समझाया है। तुम 84 जन्म कैसे लेते हो। मनुष्य, मनुष्य ही बनते हैं। कोई गधा आदि नहीं बनते। गरूड़ पुराण में तो रोचक बातें लिख दी हैं। इस समय है विषय वैतरणी नदी। भारत सतयुग में क्षीरसागर था, अब विषय सागर है। इस भारत को शिवालय भी कहा जाता है, वहाँ सब पवित्र देवता थे। अभी तो देवता धर्म है नहीं, इसलिए अपने को हिन्दू कह देते हैं। क्रिश्चियन माना क्रिश्चियन होगा ना। ऐसे नहीं कि वह यूरोप में रहने के कारण यूरोपियन धर्म कहेंगे। हिन्दू तो हिन्दुस्तान में रहने के कारण ठहरे। हिन्दू धर्म थोड़ेही कहेंगे। पहले तो भारत खण्ड ही नाम था। परमपिता परमात्मा ने तो देवी-देवता धर्म रचा। गाया भी जाता है परमपिता परमात्मा आकर ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म रचते हैं। अभी तुम ब्राह्मण धर्म से ट्रांसफर हो फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे। शिवबाबा आकर शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। फिर पढ़ाई से तुम सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनते हो। बेहद का बाप 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। हद के बाप से हद का वर्सा मिलता है। भारत सुखधाम था ना। रामराज्य की महिमा गाते हैं। वहाँ फिर अधर्म की बात कहाँ से आई, उनको कहा जाता है दन्त कथायें, स्टोरीज, जिन्हें पढ़ने से नीचे ही उतरते आये इसलिए बाप को कहा जाता है आकर सर्व की सद्गति करो। सभी धर्म वाले कहते हैं ओ गॉड फादर, वह आते ही हैं संगम पर। वह कुम्भ का मेला तो पानी का है। सब जाकर पतित शरीर को धोते हैं। लाखों जाते हैं। कहते हैं गंगा पतित-पावनी। अब पतित पावन तो एक बाप है ना। गंगा कैसे हो सकती? बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर। बच्चों को कहता हूँ इस मृत्युलोक में अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है। अब अमरलोक चलना है तो पावन बनो। बाप ही बैठ नर से नारायण बनने की सच्ची अमरकथा सुनाते हैं अथवा तीसरा नेत्र देने की तीजरी की कथा सुनाते हैं। आत्मा को तीसरा नेत्र मिलता है। देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं ना। परन्तु देवताओं को ज्ञान है नहीं। उन्होंने प्रालब्ध अर्थात् सद्गति को पा लिया, वहाँ ज्ञान की दरकार ही नहीं। वहाँ गुरू होते नहीं। अब तुम देखते हो विनाश सामने खड़ा है। होली पर स्वांग बनाते हैं ना। पेट से मूसल नहीं, यह बुद्धि से बाम्ब्स निकालते हैं, जिससे अप्ना ही विनाश करेंगे। कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई है नहीं। तुम तो हो सच्चे वैष्णव। लड़ाई होती है यौवनों और कौरवों की, जिससे रक्त की नदियाँ बहती हैं। पाण्डव हिंसक लड़ाई कर न सकें। अभी तो नेचुरल कैलेमिटीज भी बहुत आनी है।

अच्छा– मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बिलवेड मोस्ट एक शिवबाबा है, उसे प्यार से याद करना है। सच्चा-सच्चा वैष्णव बनना है। कोई भी भूल नहीं करनी है।
2) इस मृत्युलोक में अब यह अन्तिम जन्म है। विनाश सामने खड़ा है इसलिए बाप से पूरा वर्सा लेना है। पावन बनना है।
वरदान:
स्वयं पर बापदादा को कुर्बान कराने वाले त्यागमूर्त, निश्चयबुद्धि भव   
“बाप मिला सब कुछ मिला” इस खुमारी वा नशे में सब कुछ त्याग करने वाले ज्ञान स्वरूप, निश्चयबुद्धि बच्चे बाप द्वारा जब खुशी, शान्ति, शक्ति वा सुख की अनुभूति करते हैं तो लोकलाज की भी परवाह न कर, सदा कदम आगे बढ़ाते रहते हैं। उन्हें दुनिया का सब कुछ तुच्छ, असार अनुभव होता है। ऐसे त्याग मूर्त, निश्चयबुद्धि बच्चों पर बापदादा अपनी सर्व सम्पत्ति सहित कुर्बान जाते हैं। जैसे बच्चे संकल्प करते बाबा हम आपके हैं तो बाबा भी कहते कि जो बाप का सो आपका।
स्लोगन:
सहजयोगी वह हैं जो अपने हर संकल्प व कर्म से बाप के स्नेह का वायब्रेशन फैलाते हैं।