Friday, March 18, 2016

मुरली 19 मार्च 2016

19-03-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे – सबसे बड़ी बीमारी देह-अभिमान की है, इससे ही डाउन फाल हुआ है, इसलिए अब देही-अभिमानी बनो”  
प्रश्न:
तुम बच्चों की कर्मातीत अवस्था कब होगी?
उत्तर:
जब योगबल से कर्मभोग पर विजय प्राप्त करेंगे। पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनेंगे। यह देह-अभिमान का ही रोग सबसे बड़ा है, इससे दुनिया पतित हुई है। देही-अभिमानी बनो तो वह खुशी, वह नशा रहे, चलन भी सुधरे।
गीत:–
रात के राही थक मत जाना...  
ओम् शान्ति।
राही का अर्थ तो बच्चों ने सुना। और तो कोई समझा नहीं सकते सिवाए तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों के। तुम जो देवी देवता थे, थे तो मनुष्य परन्तु तुम्हारी सीरत बहुत अच्छी थी। तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे। तुम विश्व के मालिक थे। हीरे जैसे से कौड़ी जैसा कैसे बने, यह कोई मनुष्य नहीं जानते हैं। तुमने भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पलटा खाया है (परिवर्तन हुए है)। अभी तुम देवता बने नहीं हो। रिज्युवनेट हो रहे हो। कोई थोड़ा बदले हैं, कोई की 5 प्रतिशत, कोई की 10 प्रतिशत... सीरत बदलती जाती है। दुनिया को यह पता नहीं भारत ही हेविन था, कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत में देवी-देवता थे, उनमें ऐसे गुण थे जो उन्हों को भगवान भगवती कहते थे। अभी तो वह गुण हैं नहीं। मनुष्य की समझ में नहीं आता, भारत जो इतना साहूकार था, उनका फिर डाउन फाल कैसे हुआ। वह भी बाप ही बैठ समझाते हैं। तुम भी समझा सकते हो, जिनकी सूरत सुधरी है। बाप कहते हैं बच्चे तुम देवी देवता थे तो आत्म-अभिमानी थे फिर जब रावण राज्य शुरू हुआ तो देह-अभिमानी बन पड़े हो। यह देह-अभिमान की सबसे बड़ी बीमारी तुमको लग पड़ी है। सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी थे, बहुत सुखी थे, किसने तुमको ऐसा बनाया? यह कोई भी नहीं जानते। बाप बैठ समझाते हैं तुम्हारा डाउन फाल क्यों हुआ। अपने धर्म को भूल गये हो। भारत वर्थ नाट ए पेनी बन गया। उनका मूल कारण क्या है? देह-अभिमान। यह भी ड्रामा बना हुआ है। मनुष्य यह नहीं जानते कि भारत इतना साहूकार था फिर गरीब कैसे बना, हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे फिर हम कैसे धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बनें। बाप समझाते हैं, रावण राज्य होने से तुम देह-अभिमानी बने, तो तुम्हारा यह हाल होने लगा। सीढ़ी भी दिखाई है – कैसे डाउन फाल हुआ, वर्थ नाट ए पेनी का भी मुख्य कारण देह-अभिमान है। यह भी बाप बैठ समझाते हैं। शास्त्रों में कल्प की आयु लाखों वर्ष लगा दी है। आजकल समझदार हैं क्रिश्चियन लोग। वह भी कहते हैं – क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले पैराडाइज था, भारतवासी यह समझ नहीं सकते कि प्राचीन भारत ही था जिसको स्वर्ग, हेविन कहा जाता है। आजकल तो भारत की फुल हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते ही नहीं हैं, थोड़े बच्चों में थोड़ा ज्ञान है तो देह-अभिमान आ जाता है। समझते हैं हमारे जैसा कोई है नहीं। बाप समझाते हैं भारत की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? बापू गांधी भी कहते थे – पतित-पावन आओ, आकर रामराज्य स्थापन करो। आत्मा को जरूर कभी बाप से सुख मिला है, तो पतित-पावन को याद करते हैं। बाप समझाते हैं हमारे बच्चे जो शूद्र से बदल ब्राह्मण बनते हैं वह भी पूरा देही-अभिमानी नहीं बनते हैं। घड़ी-घड़ी देह- अभिमान में आ जाते हैं। यह है सबसे पुराना रोग, जिससे यह हाल हुआ है। देही-अभिमानी बनने में बड़ी मेहनत है। जितना देही-अभिमानी बनेंगे उतना बाप को याद करेंगे। फिर अथाह खुशी रहनी चाहिए। गाया जाता है – परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले परमेश्वर की वह मिल गया, उससे 21 जन्म का वर्सा मिलता है। बाकी क्या चाहिए। तुम सिर्फ देही- अभिमानी बनो, मामेकम् याद करो। भल गृहस्थ व्यवहार में रहो। सारी दुनिया देह-अभिमान में है। भारत जो इतना ऊंच था उसका डाउन फाल हुआ है। हिस्ट्री-जॉग्राफी क्या है, यह कोई बता न सके। यह बातें कोई भी शास्त्रों में नहीं हैं। देवतायें आत्म-अभिमानी थे। जानते थे एक देह को छोड़ दूसरी लेनी है। परमात्म-अभिमानी नहीं थे। तुम जितना बाप को याद करेंगे, देही-अभिमानी रहेंगे उतना बहुत मीठा बनेंगे। देह-अभिमान में आने से ही लड़ना, झगड़ना, बन्दरपना आ जाता है, यह बाप समझाते हैं। यह बाबा भी समझ रहे हैं। बच्चे देह-अभिमान में आकर शिवबाबा को भूल जाते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे देह-अभिमान में रहते हैं। देही-अभिमानी बनते ही नहीं हैं। तुम कोई को भी यह बेहद की हिस्ट्री जॉग्राफी समझा सकते हो। बरोबर सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राजधानी थी। ड्रामा का किसको भी पता नहीं है। भारत जो इतना गिरा, डाउन फाल की जड़ है देह-अभिमान। बच्चों में भी देह-अभिमान आ जाता है। यह नहीं समझते कि हमको डायरेक्शन कौन देते हैं। हमेशा समझो – शिवबाबा कहते हैं। शिवबाबा को याद न करने से ही देह-अभिमान में आ जाते हैं। सारी दुनिया देह-अभिमानी बन गई है तब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, अपने को आत्मा समझो। आत्मा इस देह द्वारा सुनती है, पार्ट बजाती है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। भल भाषण तो बहुत अच्छा कर लेते हैं परन्तु चलन भी तो अच्छी चाहिए ना। देह-अभिमान होने कारण फेल हो जाते हैं। वह खुशी व नशा नहीं रहता है। फिर बड़े विकर्म भी उनसे होते हैं, जिस कारण बड़े दण्ड के भागी बन पड़ते हैं। देह-अभिमानी बनने से बहुत नुकसान पाते हैं। बहुत सजा खानी पड़ती है। बाप कहते हैं यह गाडली वर्ल्ड गवर्मेन्ट है ना। मुझ गाड की गवर्मेन्ट का राइट हैण्ड है धर्मराज। तुम अच्छे कर्म करते हो तो उनका फल अच्छा मिलता है। बुरे कर्म करते हो तो उनकी सजा खाते हो। सब गर्भ जेल में भी सजायें खाते हैं। उस पर भी एक कहानी है। यह सब बातें इस समय की हैं। महिमा एक बाप की है। दूसरे कोई की महिमा है नहीं इसलिए लिखा जाता है त्रिमूर्ति शिव जयन्ती वर्थ डायमन्ड। बाकी सब है वर्थ कौड़ी। सिवाए शिवबाबा के पावन कोई बना न सके। पावन बनते हैं फिर रावण पतित बनाते हैं। जिस कारण सब देह-अभिमानी बन पड़े हैं। अब तुम देही-अभिमानी बनते हो। यह देही-अभिमानी अवस्था 21 जन्म चलती है। तो बलिहारी एक की गाई जाती है। भारत को स्वर्ग बनाने वाला शिवबाबा है, यह किसको पता नहीं है कि शिवबाबा कब आया, उनकी हिस्ट्री तो पहले-प्ाहले चाहिए। शिव कहा ही जाता है परमपिता परमात्मा को। तुम जानते हो देह-अभिमान के कारण डाउन फाल होता है। ऐसा हो तब तो बाप आये राइज करने। राइज और फाल, दिन और रात, ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश। सबसे जास्ती अज्ञान है यह देह-अभिमान। आत्मा का तो किसको पता नहीं है। आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं तो कितने पाप आत्मा हो गये हैं इसलिए डाउन फाल हुआ है। 84 जन्म लिए हैं, सीढ़ी नीचे उतरते आये हैं। यह खेल बना हुआ है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम बच्चे जानते हो और कोई नहीं जानते। विश्व का डाउन फाल कैसे हुआ। वे तो समझते हैं कि साइन्स से बहुत तरक्की हुई है। यह नहीं समझते कि दुनिया और ही पतित नर्क बन गई है। देह-अभिमान बहुत है। बाप कहते हैं अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है। अच्छे-अच्छे महारथी ढेर हैं। ज्ञान बड़ा अच्छा सुनाते हैं परन्तु देह-अभिमान पूरा हटा नहीं हैं। देह-अभिमान के कारण कोई में क्रोध का अंश, कोई में मोह का अंश, कुछ न कुछ है। सीरत सुधरनी चाहिए ना। बहुत-बहुत मीठा बनना चाहिए। तब मिसाल देते हैं – शेर बकरी इकठ्ठे जल पीते हैं। वहाँ कोई ऐसे दु:ख देने वाले जानवर भी होते नहीं। इन बातों को भी मुश्किल कोई समझते हैं। नम्बरवार समझने वाले हैं। कर्मभोग निकल जाए, कर्मातीत अवस्था हो जाए, यह मुश्किल होती है। बहुत देह-अभिमान में आते हैं। पता नहीं पड़ता है – हमको यह मत कौन देते हैं। श्रीमत, श्रीकृष्ण के द्वारा कैसे मिलेगी। शिवबाबा कहते हैं इनके बिगर श्रीमत कैसे दूँगा। स्थाई रथ हमारा यह है। देह-अभिमान में आकर उल्टे सुल्टे कार्य करके मुफ्त अपनी बरबादी मत करो। नहीं तो नतीजा क्या होगा! बहुत कम पद पायेंगे। पढ़े के आगे अनपढ़े भरी ढोयेंगे। बहुत कहते हैं भारत की हिस्ट्री-जॉग्राफी जो फुल होनी चाहिए सो नहीं है। तो उनको समझाना पड़े। तुम्हारे सिवाए तो कोई समझा न सके। परन्तु देही-अभिमानी स्थिति चाहिए, वही ऊंच पद पा सकते हैं। अभी तो कर्मातीत अवस्था किसकी हुई नहीं है। इनके (बाबा के) ऊपर तो बहुत झंझट हैं। कितनी फिकरात रहती है। भल समझते हैं कि सब ड्रामा अनुसार होता है। फिर भी समझाने के लिए युक्तियाँ तो रचनी होती हैं ना इसलिए बाबा कहते हैं तुम जास्ती देही-अभिमानी बन सकते हो। तुम्हारे ऊपर कोई बोझा नहीं है, बाप पर तो बोझा है। हेड तो यह है ना – प्रजापिता ब्रह्मा। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि इनमें शिवबाबा बैठे हैं। तुम्हारे में भी कोई मुश्किल इस निश्चय में रहते हैं। तो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी जाननी चाहिए ना। भारत में स्वर्ग कब था, फिर कहाँ गया? कैसे डाउन फाल हुआ? यह किसको पता नहीं है। जब तक तुम नहीं समझाओ तब तक कोई समझ न सके इसलिए बाबा डायरेक्शन देते हैं। लिखा पढ़ी करो तो स्कूलों में वर्ल्ड की हिस्ट्रीजॉ ग्राफी बतानी चाहिए। डाउन फाल पर भाषण करना चाहिए। भारत हीरे जैसा था वह फिर कौड़ी जैसा कैसे बना? कितने वर्ष लगे? हम समझाते हैं। ऐसे पर्चे एरोप्लेन द्वारा गिरा सकते हैं। समझाने वाला बड़ा होशियार चाहिए। गवर्मेन्ट चाहती है तो गवर्मेन्ट का ही हाल विज्ञान भवन, जो देहली में है वहाँ सबको बुलाना चाहिए। अखबार में भी डाला जाए। कार्ड भी सबको भेज दें। हम आपको सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी आदि से अन्त तक समझाते हैं। आपेही आयेंगे, जायेंगे। पैसे की तो बात ही नहीं है। समझो हमको कोई मिला, प्रेजेन्ट (भेंट) करते हैं तो हम ले नहीं सकते हैं। सर्विस करने के लिए काम में लायेंगे, बाकी हम ले नहीं सकते। बाप कहते हैं मैं तुमसे दान लेकर क्या करूँगा जो फिर भरकर देना पड़े। मैं पक्का शर्राफ हूँ। अच्छा -

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान में आकर कोई भी उल्टा सुल्टा कार्य नहीं करना है। देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। अपनी सीरत (चलन) सुधारते रहना है।
2) बहुत-बहुत मीठा, शीतल बनना है। अन्दर में क्रोध मोह का जो भूत है, उसे निकाल देना है।
वरदान:
स्वमान की सीट पर स्थित रह माया को सरेण्डर कराने वाले श्रेष्ठ स्वमानधारी भव!  
संगमयुग का सबसे श्रेष्ठ स्वमान है मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहना। जैसे कोई बड़ा आफीसर वा राजा जब स्वमान की सीट पर स्थित होता है तो दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं, अगर स्वयं सीट पर नहीं तो उसका आर्डर कोई नहीं मानेंगे, ऐसे आप भी स्वमानधारी बन अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहो तो माया आपके आगे सरेण्डर हो जायेगी।
स्लोगन:
साक्षीपन की स्थिति में रह दिलाराम के साथ का अनुभव करने वाले ही लवलीन आत्मा हैं।