Tuesday, March 8, 2016

मुरली 08 मार्च 2016

08-03-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

(त्रिमूर्ति शिव जयन्ती के दिन सुनानी है।)“मीठे बच्चे – तुम सर्वोत्तम सौभाग्यशाली ब्राह्मण कुल भूषण हो, तुम्हें स्वयं भगवान बधाइयां देते हैं”  
प्रश्न:
बाप बच्चों को संगम पर ही सृष्टि का समाचार सुनाते हैं, सतयुग में नहीं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि सतयुग तो है ही आदि का समय, उस समय सारी सृष्टि का समाचार अर्थात् सृष्टि के आदि मध्य-अन्त का ज्ञान कैसे सुनायें, जब तक सर्किल रिपीट ही नहीं हुआ है तब तक समाचार सुना ही कैसे सकते। संगम पर ही तुम बच्चे बाप द्वारा पूरा समाचार सुनते हो। तुम्हें ही ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है।
ओम् शान्ति।
आज है त्रिमूर्ति शिवजयन्ती सो ब्राह्मण जयन्ती सो संगमयुग जयन्ती का शुभ दिवस। बहुत हैं जिनको बाबा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार की ग्रीटिंग्स भी नहीं दे सकते। बहुत हैं जिनको पता नहीं है कि शिवबाबा कौन हैं, उससे क्या मिलना है। वह ग्रीटिंग्स क्या समझ सकते हैं। नये बच्चे बिल्कुल समझ न सकें। यह है ज्ञान का डांस। कहते हैं ना – श्रीकृष्ण डांस करता था। यहाँ बच्चियाँ राधे-कृष्ण बन डांस करती हैं। परन्तु डांस की तो बात ही नहीं। वह तो वहाँ सतयुग में बचपन में प्रिन्स-प्रिन्सेज के साथ डांस करेंगे। बच्चे जानते हैं-यह बापदादा है। दादा को ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। यह दादा तो हुआ जिस्मानी फादर। यहाँ तो वन्डरफुल बात हैं! वह दादा है रूहानी और यह है जिस्मानी, इनको कहते हैं बापदादा। बाप से दादा द्वारा वर्सा मिलता है। वर्सा है डाडे का (ग्रैन्ड फादर का)। सब आत्मायें ब्रदर्स हैं तो वर्सा बाप से मिलता है। बाप कहते हैं तुम आत्माओं को अपना शरीर, अपनी कर्मेन्द्रियां हैं। मुझे निराकार कहते हैं-जरूर मुझे शरीर चाहिए। तब तो बच्चों को राजयोग सिखाऊं अथवा मनुष्य से देवता, पतित से पावन बनने का मार्ग बताऊं वा मूत पलीती कपड़ धोऊं.... जरूर बड़ा धोबी होगा। सारे विश्व की आत्मायें और शरीर धोता है। ज्ञान और योग से तुम्हारी आत्माओं को धोया जाता है। आज तुम बच्चे आये हो, जानते हो हम शिवबाबा को बधाइयां देने आये हैं। बाप फिर कहते हैं कि तुम जिसको ग्रीटिंग्स देते हो वह बाप भी तुम बच्चों को ग्रीटिंग्स देते हैं क्योंकि तुम बहुत सर्वोत्तम सौभाग्यशाली ब्राह्मण कुल भूषण हो। देवतायें इतने उत्तम नहीं हैं जितने तुम हो। ब्राह्मण देवताओं से ऊंच हैं। ऊंच ते ऊंच है बाप। फिर वह आते हैं ब्रह्मा तन में। उनके तुम बच्चे बहुत ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण बनते हो। ब्राह्मणों की है चोटी। उसके नीचे हैं देवतायें। सबसे ऊपर है बाबा। बाबा ने तुम बच्चों को ब्राह्मण-ब्राह्मणियां बनाया है – स्वर्ग का वर्सा देने। इन लक्ष्मी-नारायण के देखो कितने मन्दिर बनाये हैं। माथा टेव्ते हैं। भारतवासियों को यह तो मालूम होना चाहिए कि यह भी मनुष्य हैं। लक्ष्मी-नारायण दोनों अलग-अलग हैं। यहाँ तो एक मनुष्य के दोनों नाम रखे हैं। एक का नाम लक्ष्मी-नारायण अर्थात् अपने को विष्णु चतुर्भुज कहते हैं। लक्ष्मीनारा यण अथवा राधे-कृष्ण नाम रखाये हैं, तो चतुर्भुज हो गये ना। वह विष्णु तो है सूक्ष्मवतन का एम ऑब्जेक्ट। तुम इस विष्णुपुरी के मालिक बनेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण विष्णुपुरी के मालिक हैं। विष्णु की हैं 4 भुजा। दो लक्ष्मी की, दो नारायण की। तुम कहेंगे हम विष्णुपुरी के मालिक बन रहे हैं। अच्छा बाप की महिमा का गीत सुनाओ। सारी दुनिया में शुरू से लेकर अब तक कोई की भी इतनी महिमा नहीं हैं सिवाए एक के। नम्बरवार तो हैं ही। सबसे ज्यादा सर्वोत्तम महिमा है ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा की, जिसके तुम सब बच्चे हो। कहते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं। ईश्वर तो स्वर्ग रचता है फिर तुम नर्क में क्यों पड़े हो। ईश्वर का यहाँ जन्म है। क्रिश्चियन कहेंगे हम क्राइस्ट के हैं। यही भारतवासियों को भूल गया है कि हम परमपिता परमात्मा शिव के डायरेक्ट बच्चे हैं। बाप यहाँ आते हैं बच्चों को अपना बनाए फिर राज्य-भाग्य देने। आज बाबा अच्छी रीति समझाते हैं क्योंकि नये भी बहुत हैं। इन्हों के लिए समझना मुश्किल है। हाँ फिर भी स्वर्गवासी बनते हैं। स्वर्ग में सूर्यवंशी राजा-रानी भी हैं, दास-दासियां भी हैं। प्रजा भी होती है। उनमें कोई गरीब, कोई साहूकार होते हैं। उनकी भी दास-दासियां होती हैं। सारी राजधानी यहाँ स्थापन हो रही है। यह तो और कोई को मालूम नहीं है। सबकी आत्मा तमोप्रधान है, ज्ञान का तीसरा नेत्र कोई को है नहीं। (गीत) अभी बाप की महिमा सुनी। वह है सबका बाप। भगवान को बाप कहते हैं, बेहद का सुख देने वाला पिता। यही भारत है जिसमें बेहद का सुख था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह लक्ष्मी-नारायण छोटेपन में राधे-कृष्ण हैं फिर स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण नाम पड़ता है। इस भारत में 5 हजार वर्ष पहले देवताओं का राज्य था। सिवाए लक्ष्मीनारा यण के कोई का राज्य नहीं था। कोई खण्ड नहीं। तो अब भारतवासियों को भी जरूर मालूम होना चाहिए कि लक्ष्मीनारा यण ने आगे जन्म में कौन से कर्म किये। जैसे कहेंगे बिड़ला ने कौन से कर्म किये जो इतना धनवान बना। जरूर कहेंगे अगले जन्म में दान-पुण्य किया होगा। कोई के पास बहुत धन है, कोई को खाने के लिए नहीं मिलता क्योंकि कर्म ऐसे किये हैं। कर्मों को तो मानते हो। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति गीता के भगवान ने सुनाई थी। जिसकी महिमा सुनी। शिव भगवान है एक। मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता है। अब बाप कहाँ आया है! समझाते हैं सामने महाभारत लड़ाई खड़ी है तो मीठे ते मीठा बाबा समझाते हैं, इनको दु:ख में सब याद करते हैं। दु:ख में सिमरण सब करें.... शिवबाबा को दु:ख में सब याद करते हैं। सुख में कोई नहीं करता। स्वर्ग में तो दु:ख नहीं था। वहाँ बाप का पाया हुआ वर्सा था। 5 हजार वर्ष पहले जब शिवबाबा आया तो भारत को स्वर्ग बनाया। अब नर्क है। बाप आये हैं स्वर्ग बनाने। दुनिया को तो पता भी नहीं। कहते हैं हम सब अन्धे हैं। अन्धों की लाठी आप प्रभू आओ, आकर आंखें प्रदान करो। तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। जहाँ हम आत्मायें रहती हैं वह है शान्तिधाम। बाप भी वहाँ रहते हैं। तुम आत्मायें और हम रहते हैं। इनकी आत्मा को कहते हैं-मैं तुम सब आत्माओं का बाप वहाँ रहता हूँ। तुम पुनर्जन्म का पार्ट बजाते हो, मैं नहीं बजाता हूँ। तुम विश्व के मालिक बनते हो, मैं नहीं बनता हूँ। तुमको 84 जन्म लेने पड़ते हैं। तुमको समझाया था कि हे बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। 84 लाख जन्म कहते हैं – यह झूठी बातें हैं। मैं ज्ञान का सागर पतित-पावन हूँ, मैं आता तब हूँ जब सब पतित हैं। तब ही आकर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाए त्रिकालदर्शी बनाता हूँ। बहुत पूछते हैं पहलेपहले मनुष्य कैसे रचे? भगवान ने सृष्टि कैसे रची? एक शास्त्र में भी दिखाते हैं-प्रलय हुई फिर सागर में पीपल के पत्ते पर बच्चा कृष्ण आया। बाप कहते हैं ऐसी कोई बात नहीं, यह बेहद का ड्रामा है। दिन है सतयुग-त्रेता, रात है द्वापर-कलियुग। बच्चे बाप को बधाईयाँ देते हैं। बाप कहते हैं ततत्वम्। तुम भी 100 परसेन्ट दुर्भाग्यशाली से 100 परसेन्ट सौभाग्यशाली बनते हो। तुम भारतवासी वह थे परन्तु तुमको पता नहीं है। बाप आकर बताते हैं। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। मैं आकर बताता हूँ – तुमने 84 जन्म लिए हैं। बाप तुमको संगम पर सारे सृष्टि का समाचार सुनाते हैं। सतयुग में थोड़ेही सुनायेंगे। जिस समय सृष्टि की आदि-मध्य-अन्त हुई नहीं तो उसका समाचार कैसे समझायें? मैं आता हूँ अन्त में, कल्प के संगमयुगे। शास्त्रों में लिखा है युगे-युगे, कृष्ण भगवानुवाच-गीता में लिख दिया है। सब धर्म वाले कृष्ण को भगवान थोड़ेही मानेंगे। भगवान तो निराकार है ना। वह है सब आत्माओं का बाप। बाप से वर्सा मिलता है। तुम सब आत्मायें भाई-भाई हो। परमात्मा को सर्वव्यापी कहने से तो फादरहुड हो जाता है। फादर को कभी वर्सा मिलता है क्या? वर्सा बच्चों को मिलता है। तुम आत्मायें सब बच्चे हो। बाप का वर्सा जरूर चाहिए। हद के वर्से से तुम राजी नहीं होते हो इसलिए पुकारते हो – तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे मिले थे। अब फिर रावण द्वारा दु:ख मिलने से पुकारने लगे हो। सबकी आत्मायें पुकारती हैं क्योंकि इनको दु:ख है इसलिए याद करती हैं, बाबा आकर सुख दो। अभी इस ज्ञान से स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुम्हारी सद्गति होती है इसलिए गाया जाता है, सर्व का सद्गति दाता एक बाप। अभी सब दुर्गति में हैं फिर सर्व की सद्गति होती है। जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो तुम स्वर्ग में थे। बाकी सब मुक्तिधाम में थे। अब हम बाप द्वारा राजयोग सीखते हैं। बाप कहते हैं कल्प के संगम पर मैं तुमको पढ़ाता हूँ। मनुष्य से देवता बनाता हूँ। अभी तुम बच्चों को सारा राज समझाता हूँ। शिवरात्रि कब हुई है, यह तो मालूम होना चाहिए। क्या हुआ, शिवबाबा कब आया? कुछ नहीं जानते। तो पत्थरबुद्धि ठहरे ना। अभी तुम पारसबुद्धि बनते हो। भारत पारसपुरी गोल्डन एज था। लक्ष्मी-नारायण को भी भगवान-भगवती कहते हैं। उन्हों को वर्सा भगवान ने दिया, फिर दे रहे हैं। तुमको फिर से भगवान-भगवती बना रहे हैं। अभी यह तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। बाप कहते हैं विनाश सामने खड़ा है। इनको कहा जाता है रूद्र ज्ञान यज्ञ। वह सब मैटेरियल यज्ञ होते हैं। यह है ज्ञान की बात। इसमें बाप आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। तुम बधाईयां देते हो शिवबाबा के आने की। बाबा फिर कहते हैं मैं अकेला थोड़ेही आता हूँ। मुझे भी शरीर चाहिए। ब्रह्मा तन में आना पड़े। पहले-पहले सूक्ष्मवतन रचना पड़े इसलिए इनमें प्रवेश किया है, यह तो पतित था। 84 जन्म ले पतित बना है। सब पुकारते थे। अब बाप कहते हैं मैं फिर से तुम बच्चों को वर्सा देने आया हूँ। बाप ही भारत को स्वर्ग का वर्सा देते है। स्वर्ग का रचयिता बाप है, जरूर स्वर्ग की सौगात ही देंगे। अभी तुम स्वर्ग के मालिक बन रहे हो। यह पाठशाला है – भविष्य में मनुष्य से 21 जन्मों के लिए देवता बनने की। तुम स्वर्ग के मालिक बन रहे हो। 21 पीढ़ी तुम सुख पाते हो। वहाँ अकाले मृत्यु होती नहीं। जब शरीर की आयु पूरी होती है तब साक्षात्कार हो जाता है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सर्प का मिसाल .. तो तुम बच्चे बाप को बधाइयां देते हो। बाप फिर तुमको बधाइयां देते हैं। तुम अभी दुर्भाग्यशाली से सौभाग्यशाली बन रहे हो। पतित मनुष्य से पावन देवता बनते हो। चक्र तो फिरता है। यह तो तुम बच्चों को समझाना है। फिर यह प्राय:लोप हो जाता है। सतयुग में ज्ञान की दरकार नहीं रहती। अभी तुम दुर्गति में हो तब इस ज्ञान से सद्गति मिलती है। बाप ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। सर्व का सतगुरू एक ही है। बाकी भक्तिमार्ग के कर्मकाण्ड से कोई की सद्गति नहीं होती। सबको सीढ़ी नीचे उतरना ही है। भारत सतोप्रधान था फिर 84 जन्म लेने पड़े फिर अब तुमको चढ़ना है। मुक्तिधाम अपने घर जाना है। अब नाटक पूरा होता है। यह पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है। बाप का जन्म-स्थान कब खत्म नहीं होता। तुम शान्तिधाम में जाकर फिर आयेंगे, आकर राज्य करेंगे। पावन और पतित भारत में ही होते हैं। 84 जन्म लेते-लेते पतित बने हो। योगी से भोगी बने हो। यह है रौरव नर्क। महान दु:ख का समय है। अभी तो बहुत दु:ख आने का है। खूने नाहेक खेल है। बैठे-बैठे बॉम्ब्स गिरेंगे। तुमने क्या गुनाह किया? नाहेक सबका विनाश हो जायेगा। विनाश का साक्षात्कार तो बच्चों ने किया है। अब तुम सृष्टि चक्र का ज्ञान जान गये हो। तुम्हारे पास ज्ञान की तलवार, ज्ञान खडग है। तुम हो ब्रह्मा की मुख वंशावली ब्राह्मण। प्रजापिता भी बाबा है। कल्प पहले भी इसने मुख वंशावली पैदा की थी। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। इसमें प्रवेश कर तुमको मुख वंशावली बनाता हूँ। ब्रह्मा के द्वारा स्वर्ग की स्थापना कराता हूँ। स्वर्ग में तो भविष्य में ही जायेंगे। छी-छी दुनिया तो खत्म होनी चाहिए। बेहद का बाप आते ही हैं नई दुनिया रचने। बाप कहते हैं-मैं तुम बच्चों के लिए हथेली पर बहिश्त ले आया हूँ। तुमको कोई भी तकलीफ नहीं देता हूँ। तुम सब द्रोपदियां हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देवताओं से भी ऊंच हम सर्वोत्तम ब्राह्मण हैं-इस रूहानी नशे में रहना है। ज्ञान और योग से आत्मा को स्वच्छ बनाना है।
2) सबको शिवबाबा के अवतरण की बधाईयाँ देनी हैं। बाप का परिचय देकर पतित से पावन बनाना है। रावण दुश्मन से मुक्त करना है।
वरदान:
डबल फोर्स द्वारा सर्विस वा पुरूषार्थ में सफलता प्राप्त करने वाले डबल ताजधारी भव   
संगमयुग पर सदा स्वयं को डबल ताजधारी समझकर चलो-एक लाइट अर्थात् प्युरिटी का ताज और दूसरा-जिम्मेवारियों का ताज। प्युरिटी और पावर-लाइट और माइट का क्राउन धारण करने वालों में डबल फोर्स सदा कायम रहता है। ऐसी डबल फोर्स वाली आत्मायें सदा शक्तिशाली रहती हैं। उन्हें सर्विस वा पुरूषार्थ में सदा सफलता प्राप्त होती है।
स्लोगन:
दिव्य गुणों के आधार पर मन-वचन और कर्म करना ही दिव्यता है।