Friday, September 25, 2015

मुरली 26 सितम्बर 2015

“मीठे बच्चे - हर बात में योग बल से काम लो, बाप से कुछ भी पूछने की बात नहीं है, तुम ईश्वरीय सन्तान हो इसलिए कोई भी आसुरी काम न करो”  

प्रश्न:

तुम्हारे इस योगबल की करामात क्या है?

उत्तर:

यही योगबल है जिससे तुम्हारी सब कर्मेन्द्रियाँ वश हो जाती हैं। योग बल के सिवाए तुम पावन बन नहीं सकते। योगबल से ही सारी सृष्टि पावन बनती है इसलिए पावन बनने के लिए वा भोजन को शुद्ध बनाने के लिए याद की यात्रा में रहो। युक्ति से चलो। नम्रता से व्यवहार करो।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) जैसे बाबा बच्चों की सेवा करते हैं, कोई अहंकार नहीं, ऐसे फालो करना है। बाप की श्रीमत पर चलकर विश्व की बादशाही लेनी है, रिफ्यूज नहीं करनी है।

2) बापों का बाप, पतियों का पति जो सबसे ऊंच है, बिलवेड है उस पर जीते जी न्योछावर जाना है। ज्ञान- चिता पर बैठना है। कभी भूले चूके भी बाप को भूल उल्टा काम नहीं करना है।

वरदान:

स्वयं की सर्व कमजोरियों को दान की विधि से समाप्त करने वाले दाता, विधाता भव!  

भक्ति में यह नियम होता है कि जब कोई वस्तु की कमी होती है तो कहते हैं दान करो। दान करने से देना-लेना हो जाता है। तो किसी भी कमजोरी को समाप्त करने के लिए दाता और विधाता बनो। यदि आप औरों को बाप का खजाना देने के निमित्त सहारा बनेंगे तो कमजोरियों का किनारा स्वत: हो जायेगा। अपने दाता-विधातापन के शक्तिशाली संस्कार को इमर्ज करो तो कमजोर संस्कार स्वत:समाप्त हो जायेगा।

स्लोगन:

अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहो-कमजोरियों के नहीं।  


ओम् शांति ।

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26-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - हर बात में योग बल से काम लो, बाप से कुछ भी पूछने की बात नहीं है, तुम ईश्वरीय सन्तान हो इसलिए कोई भी आसुरी काम न करो”   
प्रश्न:
तुम्हारे इस योगबल की करामात क्या है?
उत्तर:
यही योगबल है जिससे तुम्हारी सब कर्मेन्द्रियाँ वश हो जाती हैं। योग बल के सिवाए तुम पावन बन नहीं सकते। योगबल से ही सारी सृष्टि पावन बनती है इसलिए पावन बनने के लिए वा भोजन को शुद्ध बनाने के लिए याद की यात्रा में रहो। युक्ति से चलो। नम्रता से व्यवहार करो।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। दुनिया में किसको मालूम नहीं है कि रूहानी बाप आकर स्वर्ग की वा नई दुनिया की स्थापना कैसे करते हैं। कोई भी नहीं जानते हैं। तुम बाप से कोई भी प्रकार की मांगनी नहीं कर सकते हो। बाप सब कुछ समझाते हैं। कुछ भी पूछने की दरकार नहीं रहती, सब कुछ आपेही समझाते रहते हैं। बाप कहते हैं मुझे कल्प-कल्प इस भारत खण्ड में आकर क्या करना है, सो मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते। रोज़-रोज़ समझाते रहते हैं। कोई भल एक अक्षर भी न पूछे तो भी सब कुछ समझाते रहते हैं। कभी पूछते हैं खान-पान की तकलीफ होती है। अब यह तो समझ की बात है। बाबा ने कह दिया है हर बात में योगबल से काम लो, याद की यात्रा से काम लो और कहाँ भी जाओ तो मुख्य बात बाप को जरूर याद करना है। और कोई भी आसुरी काम नहीं करना है। हम ईश्वरीय सन्तान हैं वह है सबका बाप, सबके लिए शिक्षा यह एक ही देंगे। बाप शिक्षा देते हैं-बच्चे स्वर्ग का मालिक बनना है। राजाई में भी पोजीशन तो होती हैं ना। हर एक के पुरूषार्थ अनुसार मर्तबा होता है। पुरूषार्थ बच्चों को करना है और प्रारब्ध भी बच्चों को पानी है। पुरूषार्थ कराने लिए बाप आते हैं। तुमको कुछ भी पता नहीं था कि बाप कब आयेंगे, क्या आकर करेंगे, कहाँ ले जायेंगे। बाप ही आकर समझाते हैं, ड्रामा के प्लैन अनुसार तुम कहाँ से गिरे हो। एकदम ऊंच चोटी से। ज़रा भी बुद्धि में नहीं आता कि हम कौन हैं। अब महसूस करते हो ना। तुमको स्वप्न में भी नहीं था कि बाप आकर क्या करेंगे। तुम भी कुछ नहीं जानते थे। अब बाप मिला हुआ है तो समझते हो ऐसे बाप के ऊपर तो न्योछावर होना पड़े। जैसे पतिव्रता स्त्री होती है तो पति पर कितना न्योछावर जाती है। चिता पर चढ़ने में भी डर नहीं होता है। कितनी बहादुर होती है। आगे चिता पर बहुत चढ़ती थी। यहाँ बाबा तो ऐसी कोई तकलीफ नहीं देते हैं। भल नाम ज्ञान चिता है परन्तु जलने करने की कोई बात नहीं। बाप बिल्कुल ऐसे समझाते हैं जैसे मक्खन से बाल। बच्चे समझते हैं बरोबर जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा है। कोई एक अजामिल नहीं। हर एक मनुष्य एक-दो से जास्ती अजामिल हैं। मनुष्यों को क्या पता पास्ट जन्म में क्या-क्या किया है। अभी तुम समझते हो पाप ही किये हैं, वास्तव में पुण्य आत्मा एक भी नहीं है। सब हैं पाप आत्मायें। पुण्य करें तो पुण्य आत्मा बन जायें। पुण्य आत्मायें होती हैं सतयुग में। कोई ने हॉस्पिटल आदि बनाई सो क्या हुआ। सीढ़ी उतरने से थोड़ेही बच जायेगा। चढ़ती कला तो नहीं होती है ना। गिरते ही जाते हैं। यह बाप तो ऐसा बिलवेड है जिस पर कहते हैं जीते जी न्योछावर जायें क्योंकि पतियों का पति, बापों का बाप सबसे ऊंच है।

बच्चों को अभी बाप जगा रहे हैं। ऐसा बाबा जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, कितना साधारण है। शुरू में बच्चियाँ जब बीमार पड़ती थी तो बाबा खुद उन्हों की सेवा करते थे। अहंकार कुछ भी नहीं। बापदादा ऊंच ते ऊंच है। कहते हैं जैसे कर्म मैं इनसे कराऊंगा, या करूंगा। दोनों जैसे एक हो जाते हैं। पता थोड़ेही पड़ता है। बाप क्या करते हैं, दादा क्या करते हैं। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बाप ही बैठकर समझाते हैं। बाप बहुत ऊंच है। माया का भी कितना प्रभाव है। ईश्वर बाप कहते हैं ऐसा मत करो तो भी नहीं मानते हैं। भगवान कहते हैं - मीठे बच्चे, यह काम नहीं करना, फिर भी उल्टा काम कर देते हैं। उल्टे काम के लिए ही मना करेंगे ना। लेकिन माया भी बड़ी जबरदस्त है। भूले-चूके भी बाप को नहीं भूलना है। कुछ भी करें, मारे अथवा कूटे। ऐसा कुछ बाप करते नहीं हैं परन्तु यह एक्स्ट्रीम में कहा जाता है। गीत भी है तुम्हारे दर को कभी नहीं छोड़ेंगे। चाहे कुछ भी कहो। बाहर में रखा ही क्या है। बुद्धि भी कहती हैं जायेंगे कहाँ? बाप बादशाही देते हैं फिर थोड़ेही कभी मिलती है। ऐसे थोड़ेही है दूसरे जन्म में कुछ मिल सकता है। नहीं। यह पारलौकिक बाप है जो बेहद सुखधाम का तुमको मालिक बनाते हैं। बच्चों को दैवीगुण भी धारण करने हैं, सो भी बाप राय देते हैं। अपना पुलिस आदि का काम भी करो, नहीं तो डिसमिस कर देंगे। अपना काम तो करना ही है, आंख दिखानी पड़ती है। जितना हो सके प्रेम से काम लो। नहीं तो युक्ति से आंख दिखाओ। हाथ नहीं चलाना है। बाबा के कितने ढेर बच्चे हैं। बाबा को भी बच्चों का ओना (ख्याल) रहता है ना। मूल बात है पवित्र रहना। जन्म जन्मान्तर तुमने पुकारा है ना - हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते। बुलाते हैं तो जरूर पतित हैं। नहीं तो बुलाने की दरकार नहीं। पूजा की भी दरकार नहीं। बाप समझाते हैं तुम अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं, सहन करना ही है। युक्तियाँ भी बतलाते रहते हैं। बहुत नम्रता से चलो। बोलो, आप तो भगवान हो फिर यह क्या मांगते हो? हथियाला बांधते समय कहते हैं - मैं तुम्हारा पति ईश्वर गुरू सब कुछ हूँ, अब मैं पवित्र रहना चाहती हूँ, तो तुम रोकते क्यों हो। भगवान को तो पतित-पावन कहा जाता है ना। आप ही पावन बनाने वाले बन जाओ। ऐसे प्यार से नम्रता से बात करनी चाहिए। क्रोध करे तो फूलों की वर्षा करो। मारते हैं फिर अफसोस भी करते हैं। जैसे शराब पीते हैं तो बड़ा नशा चढ़ जाता है। अपने को बादशाह समझते हैं। तो यह विष भी ऐसी चीज़ है बात मत पूछो। पछताते भी हैं परन्तु आदत पड़ी है तो वह टूटती नहीं है। एक-दो बार विकार में गया, बस नशा चढ़ा फिर गिरते रहेंगे। जैसे नशे की चीज़ें खुशी में लाती हैं, विकार भी ऐसे हैं। यहाँ फिर बड़ी मेहनत है। सिवाए योगबल के कोई भी कर्मेन्द्रियों को वश नहीं कर सकते। योगबल की ही करामात है, तब तो नाम मशहूर है, बाहर से आते हैं यहाँ योग सीखने। शान्ति में बैठे रहेंगे। घरबार से दूर हो जाते हैं। वह तो है आधाकल्प के लिए आर्टिफीशियल शान्ति। किसको सच्ची शान्ति का मालूम ही नहीं। बाप कहते हैं बच्चे, तुम्हारा स्वधर्म ही है शान्त, इस शरीर से तुम कर्म करते हो। जब तक शरीर धारण न करे तब तक आत्मा शान्त रहती है। फिर कहाँ न कहाँ जाकर प्रवेश करती है। यहाँ तो फिर कोई-कोई सूक्ष्म शरीर से धक्के खाती रहती है। वह छाया के शरीर होते हैं, कोई दु:ख देने वाले होते हैं, कोई अच्छे होते हैं, यहाँ भी कोई भले मनुष्य होते हैं जो किसको दु:ख नहीं देते हैं। कोई तो बहुत दु:ख देते हैं। कोई जैसे साधू महात्मा होते हैं।

बाप समझाते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों तुम 5 हज़ार वर्ष के बाद फिर से आकर मिले हो। क्या लेने लिए? बाप ने बताया है तुमको क्या मिलने का है। बाबा आपसे क्या मिलना है, यह तो प्रश्न ही नहीं। आप तो हो ही हेविनली गॉड फादर। नई दुनिया के रचयिता। तो जरूर आपसे बादशाही ही मिलेगी। बाप कहते हैं थोड़ा भी कुछ समझकर जाते हैं तो स्वर्ग में जरूर आ जायेंगे। हम स्वर्ग की स्थापना करने आये हैं। बड़े से बड़ा आसामी है भगवान और प्रजापिता ब्रह्मा। तुम जानते हो विष्णु कौन है? और कोई को भी पता नहीं है। तुम तो कहेंगे हम इनके घराने के हैं, यह लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में राज्य करते हैं। यह चक्र आदि वास्तव में विष्णु को थोड़ेही है। यह अलंकार हम ब्राह्मणों के हैं। अभी यह नॉलेज है। सतयुग में थोड़ेही यह समझायेंगे। ऐसी बातें बताने की कोई में ताकत नहीं है। तुम इस 84 के चक्र को जानते हो। इनका अर्थ कोई समझ न सके। बच्चों को बाप ने समझाया है। बच्चे समझ गये हैं, हमको तो यह अलंकार शोभते नहीं। हम अभी शिक्षा पा रहे हैं। पुरूषार्थ कर रहे हैं। फिर ऐसे बन जायेंगे। स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते हम देवता बन जायेंगे। स्वदर्शन चक्र अर्थात् रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना है। सारी दुनिया में कोई भी यह समझा नहीं सकते कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। बाप कितना सहज कर समझाते हैं-इस चक्र की आयु इतनी बड़ी तो हो नहीं सकती। मनुष्य सृष्टि का ही समाचार सुनाया जाता है कि इतने मनुष्य हैं। ऐसे थोड़ेही बताया जाता है कि कुछए कितने हैं, मछलियाँ आदि कितनी हैं, मनुष्यों की ही बात है। तुमसे भी प्रश्न पूछते हैं, बाप सब कुछ बतलाते रहते हैं। सिर्फ उस पर पूरा ध्यान देना है।

बाबा ने समझाया है - योगबल से तुम सृष्टि को पावन बनाते हो तो क्या योगबल से खाना शुद्ध नहीं हो सकता है? अच्छा, तुम तो ऐसे बने हो। फिर कोई को आप समान बनाते हो? अभी तुम बच्चे समझते हो कि बाप आया है स्वर्ग की बादशाही फिर से देने। तो इनको रिफ्यूज नहीं करना है। विश्व की बादशाही रिफ्यूज की तो खत्म। फिर रिफ्यूज (किचड़े के डिब्बे) में जाकर पड़ेंगे। यह सारी दुनिया है किचड़ा। तो इनको रिफ्यूज ही कहेंगे। दुनिया का हाल देखो क्या है। तुम तो जानते हो हम विश्व के मालिक बनते हैं। यह किसको पता नहीं है कि सतयुग में एक ही राज्य था, मानेंगे नहीं। अपना घमण्ड रहता है तो फिर ज़रा भी सुनते नहीं, कह देते यह सब आपकी कल्पना है। कल्पना से ही यह शरीर आदि बना हुआ है। अर्थ कुछ नहीं समझते। बस यह ईश्वर की कल्पना है, ईश्वर जो चाहे सो बनते हैं, उनका यह खेल है। ऐसी बातें करते हैं, बात मत पूछो। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। बुढ़ियाँ भी कहती हैं - बाबा हर 5 हज़ार वर्ष के बाद हम आपसे स्वर्ग का वर्सा लेते हैं। हम अभी आये हैं स्वर्ग की राजाई लेने। तुम जानते हो कि सभी एक्टर्स का अपना पार्ट है। एक का पार्ट न मिले दूसरे से। तुम फिर इसी ही नाम रूप में आकर इसी समय बाप से वर्सा लेने का पुरूषार्थ करेंगे। कितनी अथाह कमाई है। भल बाबा कहते हैं थोड़ा भी सुना है तो स्वर्ग में आ जायेंगे। परन्तु हर एक मनुष्य पुरूषार्थ तो ऊंच बनने का ही करते हैं ना। तो पुरूषार्थ है फर्स्ट। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जैसे बाबा बच्चों की सेवा करते हैं, कोई अहंकार नहीं, ऐसे फालो करना है। बाप की श्रीमत पर चलकर विश्व की बादशाही लेनी है, रिफ्यूज नहीं करनी है।
2) बापों का बाप, पतियों का पति जो सबसे ऊंच है, बिलवेड है उस पर जीते जी न्योछावर जाना है। ज्ञान- चिता पर बैठना है। कभी भूले चूके भी बाप को भूल उल्टा काम नहीं करना है।
वरदान:
स्वयं की सर्व कमजोरियों को दान की विधि से समाप्त करने वाले दाता, विधाता भव!   
भक्ति में यह नियम होता है कि जब कोई वस्तु की कमी होती है तो कहते हैं दान करो। दान करने से देना-लेना हो जाता है। तो किसी भी कमजोरी को समाप्त करने के लिए दाता और विधाता बनो। यदि आप औरों को बाप का खजाना देने के निमित्त सहारा बनेंगे तो कमजोरियों का किनारा स्वत: हो जायेगा। अपने दाता-विधातापन के शक्तिशाली संस्कार को इमर्ज करो तो कमजोर संस्कार स्वत:समाप्त हो जायेगा।
स्लोगन:
अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहो-कमजोरियों के नहीं।