Tuesday, September 29, 2015

मुरली 30 सितम्बर 2015

“मीठे बच्चे - सदा यही स्मृति रहे कि हम श्रीमत पर अपनी सतयुगी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, तो अपार खुशी रहेगी”

प्रश्न:

यह ज्ञान का भोजन किन बच्चों को हज़म नहीं हो सकता है?

उत्तर:

जो भूलें करके, छी-छी (पतित) बनकर फिर क्लास में आकर बैठते हैं, उन्हें ज्ञान हज़म नहीं हो सकता। वह मुख से कभी भी नहीं कह सकते कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। उनका दिल अन्दर ही अन्दर खाता रहेगा। वह आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) कभी भी आपस में वा बाप से रूठना नहीं है, बाप रिझाने आये हैं इसलिए कभी रंज नहीं होना है। बाप का सामना नहीं करना है।

2) पुरानी दुनिया से, पुरानी देह से दिल नहीं लगानी है। सत बाप, सत टीचर और सतगुरू के साथ सच्चा रहना है। सदा एक की श्रीमत पर चल देही-अभिमानी बनना है।

वरदान:

अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाले आकर्षण-मूर्त भव!

फरिश्ते स्वरूप की ऐसी चमकीली ड्रेस धारण करो जो दूर-दूर तक आत्माओं को अपनी तरफ आकर्षित करे और सर्व को भिखारीपन से छुड़ाए वर्से का अधिकारी बना दे। इसके लिए ज्ञान मूर्त, याद मूर्त और सर्व दिव्य गुण मूर्त बन उड़ती कला में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो। आपकी उड़ती कला ही सर्व को चलते-फिरते फरिश्ता सो देवता स्वरूप का साक्षात्कार करायेगी। यही विधाता, वरदाता पन की स्टेज है।

स्लोगन:

औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।  


ओम् शांति ।

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30-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - सदा यही स्मृति रहे कि हम श्रीमत पर अपनी सतयुगी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, तो अपार खुशी रहेगी”  
प्रश्न:
यह ज्ञान का भोजन किन बच्चों को हज़म नहीं हो सकता है?
उत्तर:
जो भूलें करके, छी-छी (पतित) बनकर फिर क्लास में आकर बैठते हैं, उन्हें ज्ञान हज़म नहीं हो सकता। वह मुख से कभी भी नहीं कह सकते कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। उनका दिल अन्दर ही अन्दर खाता रहेगा। वह आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हैं।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, वह कौन-सा बाप है, उस बाप की महिमा तुम बच्चों को करनी है। गाया भी जाता है सत् शिवबाबा, सत् शिव टीचर, सत् शिव गुरू। सच तो वह है ना। तुम बच्चे जानते हो हमको सत्य शिवबाबा मिला है। हम बच्चे अब श्रीमत पर एक मत बन रहे हैं। तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं एक तो देही-अभिमानी बनो और बाप को याद करो। जितना याद करेंगे, अपना कल्याण करेंगे। तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो फिर से। आगे भी हमारी राजधानी थी। हम देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म भोग, अन्तिम जन्म में अभी संगम पर हैं। इस पुरूषोत्तम संगमयुग का सिवाए तुम बच्चों के और कोई को पता नहीं है। बाबा कितनी प्वाइंट्स देते हैं-बच्चे, अगर अच्छी रीति याद में रहेंगे तो बहुत खुशी में रहेंगे। परन्तु बाप को याद करने के बदले और दुनियावी बातों में पड़ जाते हैं। यह याद रहनी चाहिए कि हम श्रीमत पर अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। गाया भी हुआ है ऊंच ते ऊंच भगवान, उनकी ही ऊंच ते ऊंच श्रीमत है। श्रीमत क्या सिखलाती है? सहज राजयोग। राजाई के लिए पढ़ा रहे हैं। अपने बाप के द्वारा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानकर फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं। बाप का कभी सामना नहीं करना चाहिए। बहुत बच्चे अपने को सर्विसएबुल समझ अहंकार में आ जाते हैं। ऐसे बहुत होते हैं। फिर कहाँ-कहाँ हार खा लेते हैं तो नशा ही उड़ जाता है। तुम मातायें तो अनपढ़ी हो। पढ़ी हुई होती तो कमाल कर दिखाती। पुरूषों में फिर भी पढ़े लिखे कुछ हैं। तुम कुमारियों को कितना नाम बाला करना चाहिए। तुमने श्रीमत पर राजाई स्थापन की थी। नारी से लक्ष्मी बनी थी तो कितना नशा रहना चाहिए। यहाँ तो देखो पाई पैसे की पढ़ाई में जान कुर्बान कर रहे हैं। अरे तुम गोरे बनते हो फिर काले, तमोप्रधान से क्यों दिल लगाते हो। इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है। हम तो बाप से वर्सा ले रहे हैं। पुरानी दुनिया से दिल लगाना माना जहन्नुम (नर्क, दोजक) में जाना है। बाप आकर दोजक से बचाते हैं फिर भी मुंह दोज़क तरफ क्यों कर देते। तुम्हारी यह पढ़ाई कितनी सहज है। कोई ऋषि-मुनि नहीं जानते। न कोई टीचर, न कोई ऋषि-मुनि समझा सकते हैं। यह तो बाप-टीचर-गुरू भी है। वो गुरू लोग शास्त्र सुनाते हैं। उनको टीचर नहीं कहेंगे वह कोई ऐसे नहीं कहते कि हम दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं। वह तो शास्त्रों की बातें ही सुनायेंगे। बाप तुमको शास्त्रों का सार समझाते हैं और फिर वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी बतलाते हैं। अब यह टीचर अच्छा या वह टीचर अच्छा? उस टीचर से तुम कितना भी पढ़ो, क्या कमायेंगे? सो भी नसीब। पढ़ते-पढ़ते कोई एक्सीडेंट हो जाए, मर जाए तो पढ़ाई खत्म। यहाँ तुम यह पढ़ाई जितनी भी पढ़ेंगे, वह व्यर्थ जायेगी नहीं। हाँ, श्रीमत पर न चल कुछ उल्टा चल पड़ते या गटर में जाकर गिर पड़ते तो जितना पढ़ा वह कोई चला नहीं जाता, यह पढ़ाई तो 21 जन्मों के लिए है। परन्तु गिरने से कल्प-कल्पान्तर का घाटा बहुत-बहुत पड़ जाता है। बाप कहते हैं - बच्चे, काला मुंह नहीं करो। ऐसे बहुत हैं जो काला मुंह करके, छी-छी बनकर फिर आकर बैठ जाते हैं। उनको कभी यह ज्ञान हज़म नहीं होगा। बद-हाजमा हो जाता है। जो सुनेगा वह बद-हाजमा हो जायेगा, फिर मुख से किसको कह न सके कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है, उन पर जीत पानी है। खुद ही जीत नहीं पाते तो औरों को कैसे कहेंगे! अन्दर खायेगा ना! उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय, अमृत पीते-पीते विष खा लेते हैं तो 100 गुणा काले बन जाते हैं। हड्डी-हड्डी टूट जाती है।

तुम माताओं का संगठन तो बहुत अच्छा होना चाहिए। एम ऑब्जेक्ट तो सामने हैं। तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में एक देवी-देवता धर्म था। एक राज्य, एक भाषा, 100 परसेन्ट प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। उस एक राज्य की ही बाप अभी स्थापना कर रहे हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। 100 परसेन्ट पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति की स्थापना अब हो रही है। तुम दिखाते हो विनाश के बाद श्रीकृष्ण आ रहा है। क्लीयर लिख देना चाहिए। सतयुगी एक ही देवी-देवताओं का राज्य, एक भाषा, पवित्रता, सुख, शान्ति फिर से स्थापन हो रही है। गवर्मेन्ट चाहती है ना। स्वर्ग होता ही है सतयुग-त्रेता में। परन्तु मनुष्य अपने को नर्कवासी समझते थोड़ेही हैं। तुम लिख सकते हो - द्वापर-कलियुग में सब नर्कवासी हैं। अभी तुम संगमयुगी हो। आगे तुम भी कलियुगी नर्कवासी थे, अब तुम स्वर्गवासी बन रहे हो। भारत को स्वर्ग बना रहे हैं श्रीमत पर। परन्तु वह हिम्मत, संगठन होना चाहिए। चक्कर पर जाते हैं तो यह चित्र लक्ष्मी-नारायण का ले जाना पड़े। अच्छा है। इसमें लिख दो आदि सनातन देवी-देवता धर्म, सुख-शान्ति का राज्य स्थापन हो रहा है - त्रिमूर्ति शिवबाबा की श्रीमत पर। ऐसे- ऐसे बड़े-बड़े अक्षर में बड़े-बड़े चित्र हों। छोटे बच्चे छोटे चित्र पसन्द करते हैं। अरे, चित्र तो जितना बड़ा हो उतना अच्छा। यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र तो बहुत अच्छा है। इसमें सिर्फ लिखना है एक ही सत्य त्रिमूर्ति शिवबाबा, सत्य त्रिमूर्ति शिव टीचर, सत्य त्रिमूर्ति शिव गुरू। त्रिमूर्ति अक्षर नहीं लिखेंगे तो समझेंगे परमात्मा तो निराकार है, वह टीचर कैसे हो सकता है। ज्ञान तो नहीं है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र टीन की सीट पर बनाकर हर एक जगह पर रखना है, यह स्थापना हो रही है। बाप आये हैं ब्रह्मा द्वारा एक धर्म की स्थापना बाकी सबका विनाश करा देंगे। यह बच्चों को सदैव नशा रहना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी बात में एक मत नहीं मिलती है तो झट बिगड़ जाते हैं। यह तो होता ही है। कोई किस तरफ, कोई किस तरफ, फिर मैजारिटी वाले को उठाया जाता है, इसमें रंज होने की बात नहीं। बच्चे रूठ पड़ते हैं। हमारी बात मानी नहीं गई। अरे, इसमें रूठने की क्या बात है। बाप तो सबको रिझाने वाला है। माया ने सबको रूसा दिया है, सब बाप से रूठे हुए हैं, रूठे भी क्या - बाप को जानते ही नहीं। जिस बाप ने स्वर्ग की बादशाही दी उनको जानते ही नहीं। बाप कहते हैं मैं तुम पर उपकार करता हूँ। तुम फिर मुझ पर अपकार करते हो। भारत का हाल देखो क्या है। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जिनको नशा रहता है। यह है नारायणी नशा। ऐसे थोड़ेही कहना चाहिए कि हम तो राम-सीता बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना। तुम फिर राम सीता बनने में खुश हो जाते हो, हिम्मत दिखानी चाहिए ना। पुरानी दुनि्ाया से बिल्कुल दिल नहीं लगानी चाहिए। कोई से दिल लगाई और मरे। जन्म-जन्मान्तर का घाटा पड़ जायेगा। बाबा से तो स्वर्ग के सुख मिलते हैं फिर हम नर्क में क्यों पड़ें। बाप कहते हैं तुम जब स्वर्ग में थे तो और कोई धर्म नहीं था। अभी ड्रामा अनुसार तुम्हारा धर्म है नहीं। कोई भी अपने को देवता धर्म का नहीं समझते हैं। मनुष्य होकर भी अपने धर्म को न जानें तो क्या कहा जाए। हिन्दू कोई धर्म थोड़ेही है। किसने स्थापन किया, यह भी नहीं जानते। तुम बच्चों को कितना समझाया जाता है। बाप कहते हैं मैं कालों का काल अब आया हूँ - सबको वापिस ले जाने। बाकी जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह विश्व का मालिक बनेंगे। अब चलो घर। यहाँ रहने लायक नहीं है, बहुत किचड़ा कर दिया है - आसुरी मत पर चलकर। बाप तो ऐसे कहेंगे ना। तुम भारतवासी जो विश्व के मालिक थे, अब कितने धक्के खाते रहते हो। लज्जा नहीं आती है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो अच्छी रीति समझते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। बहुत बच्चे तो नींद में रहते हैं। वह खुशी का पारा नहीं चढ़ता है। बाबा हमको फिर से राजधानी देते हैं। बाप कहते हैं - इन साधुओं आदि का भी मैं उद्धार करता हूँ। वह खुद न अपने को, न दूसरे को मुक्ति दे सकते हैं। सच्चा गुरू तो एक ही सतगुरू है, जो संगम पर आकर सबकी सद्गति करते हैं। बाप कहते हैं मैं आता हूँ कल्प के संगम युगे युगे, जबकि हमको सारी दुनिया को पावन बनाना है। मनुष्य समझते हैं बाप सर्वशक्तिमान् है, वह क्या नहीं कर सकते। अरे, मुझे बुलाते ही हो कि हम पतितों को पावन बनाओ तो मैं आकर पावन बनाता हूँ। बाकी और क्या करूँगा। बाकी तो रिद्धि-सिद्धि वाले बहुत हैं, मेरा काम ही है नर्क को स्वर्ग बनाना। वह तो हर 5 हज़ार वर्ष के बाद बनता है। यह तुम ही जानते हो। आदि सनातन है देवी-देवता धर्म। बाकी तो सब पीछे-पीछे आये हैं। अरविन्द घोस तो अभी आये तो भी देखो कितने उनके आश्रम बन गये हैं। वहाँ कोई निर्विकारी बनने की बात थोड़ेही है। वह तो समझते हैं गृहस्थ में रहते पवित्र कोई रह नहीं सकता। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ एक जन्म पवित्र रहो। तुम जन्म-जन्मान्तर तो पतित रहे हो। अब मैं आया हूँ तुमको पावन बनाने। यह अन्तिम जन्म पावन बनो। सतयुग-त्रेता में तो विकार होते ही नहीं।

यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र और सीढ़ी का चित्र बहुत अच्छा है। इनमें लिखा हुआ है - सतयुग में एक धर्म, एक राज्य था। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बूढ़ी माताओं को भी सिखलाकर तैयार करना चाहिए, जो प्रदर्शनी में कुछ समझा सकें। कोई को भी यह चित्र दिखाकर बोलो इनका राज्य था ना। अभी तो है नहीं। बाप कहते हैं-अब तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बनकर पावन दुनिया में चले जायेंगे। अब पावन दुनिया स्थापन हो रही है। कितना सहज है। बुढ़ियाँ बैठकर प्रदर्शनी पर समझायें तब नाम बाला हो। कृष्ण के चित्र में भी लिखत बहुत अच्छी है। बोलना चाहिए यह लिखत जरूर पढ़ो। इनको पढ़ने से ही तुमको नारायणी नशा अथवा विश्व के मालिक-पने का नशा चढ़ेगा।

बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनाता हूँ तो तुम्हें भी औरों पर रहम दिल बनना चाहिए। अपने पर भी कल्याण तब करेंगे जब दूसरे का भी करेंगे। बुढ़ियों को ऐसा सिखलाकर होशियार बनाओ जो प्रदर्शनी पर बाबा कहे कि 8-10 बुढ़ियों को भेजो तो झट आ जाएं। जो करेगा सो पायेगा। सामने एम ऑब्जेक्ट को देखकर ही खुशी होती है। हम यह शरीर छोड़ जाए विश्व के मालिक बनेंगे। जितना याद में रहेंगे उतना पाप कटेंगे। देखो लिफाफे पर छपा है - वन रिलीजन, वन डीटी किंगडम, वन लैंगवेज..... वह जल्दी स्थापन होगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कभी भी आपस में वा बाप से रूठना नहीं है, बाप रिझाने आये हैं इसलिए कभी रंज नहीं होना है। बाप का सामना नहीं करना है।
2) पुरानी दुनिया से, पुरानी देह से दिल नहीं लगानी है। सत बाप, सत टीचर और सतगुरू के साथ सच्चा रहना है। सदा एक की श्रीमत पर चल देही-अभिमानी बनना है।
वरदान:
अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाले आकर्षण-मूर्त भव!  
फरिश्ते स्वरूप की ऐसी चमकीली ड्रेस धारण करो जो दूर-दूर तक आत्माओं को अपनी तरफ आकर्षित करे और सर्व को भिखारीपन से छुड़ाए वर्से का अधिकारी बना दे। इसके लिए ज्ञान मूर्त, याद मूर्त और सर्व दिव्य गुण मूर्त बन उड़ती कला में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो। आपकी उड़ती कला ही सर्व को चलते-फिरते फरिश्ता सो देवता स्वरूप का साक्षात्कार करायेगी। यही विधाता, वरदाता पन की स्टेज है।
स्लोगन:
औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।