Monday, September 28, 2015

मुरली 29 सितम्बर 2015

“मीठे बच्चे - यह ड्रामा का खेल एक्यूरेट चल रहा है, जिसका जो पार्ट जिस घड़ी होना चाहिए, वही रिपीट हो रहा है, यह बात यथार्थ रीति समझना है”

प्रश्न:

तुम बच्चों का प्रभाव कब निकलेगा? अभी तक किस शक्ति की कमी है?

उत्तर:

जब योग में मजबूत होंगे तब प्रभाव निकलेगा। अभी वह जौहर नहीं है। याद से ही शक्ति मिलती है। ज्ञान तलवार में याद का जौहर चाहिए, जो अभी तक कम है। अगर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। यह सेकण्ड की ही बात है।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) मन्दिरों आदि को देखते सदा यह स्मृति रहे कि यह सब हमारे ही यादगार हैं। अब हम ऐसा लक्ष्मी- नारायण बन रहे हैं।

2) गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। हंस और बगुले साथ हैं तो बहुत युक्ति से चलना है। सहन भी करना है।

वरदान:

सर्व समस्याओं की विदाई का समारोह मनाने वाले समाधान स्वरूप भव!  

समाधान स्वरूप आत्माओं की माला तब तैयार होगी जब आप अपनी सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होंगे। सम्पूर्ण स्थिति में समस्यायें बचपन का खेल अनुभव होती हैं अर्थात् समाप्त हो जाती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप के सामने यदि कोई बच्चा समस्या लेकर आता था तो समस्या की बातें बोलने की हिम्मत भी नहीं होती थी, वह बातें ही भूल जाती थी। ऐसे आप बच्चे भी समाधान स्वरूप बनो तो आधाकल्प के लिए समस्याओं का विदाई समारोह हो जाए। विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है।

स्लोगन:

जो सदा ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।  


ओम् शांति ।

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29-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - यह ड्रामा का खेल एक्यूरेट चल रहा है, जिसका जो पार्ट जिस घड़ी होना चाहिए, वही रिपीट हो रहा है, यह बात यथार्थ रीति समझना है”  
प्रश्न:
तुम बच्चों का प्रभाव कब निकलेगा? अभी तक किस शक्ति की कमी है?
उत्तर:
जब योग में मजबूत होंगे तब प्रभाव निकलेगा। अभी वह जौहर नहीं है। याद से ही शक्ति मिलती है। ज्ञान तलवार में याद का जौहर चाहिए, जो अभी तक कम है। अगर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। यह सेकण्ड की ही बात है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। रूहानी बाप एक को ही कहा जाता है। बाकी सब हैं आत्मायें। उनको परम आत्मा कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं भी हूँ आत्मा। परन्तु मैं परम सुप्रीम सत्य हूँ। मैं ही पतित- पावन, ज्ञान का सागर हूँ। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ भारत में, बच्चों को विश्व का मालिक बनाने। तुम ही मालिक थे ना। अब स्मृति आई है। बच्चों को स्मृति दिलाते हैं - तुम पहले-पहले सतयुग में आये फिर पार्ट बजाते, 84 जन्म भोग अब पिछाड़ी में आ गये हो। तुम अपने को आत्मा समझो। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। आत्मा ही देह के साथ आत्माओं से बात करती है। आत्म-अभिमानी हो करके नहीं रहते हैं तो जरूर देह-अभिमान है। मैं आत्मा हूँ, यह सब भूल गये हैं। कहते भी हैं पाप आत्मा, पुण्य आत्मा, महान् आत्मा। वह फिर परमात्मा तो बन नहीं सकते। कोई भी अपने को शिव कह न सके। शरीरों के शिव नाम तो बहुतों के हैं। आत्मा जब शरीर में प्रवेश करती है तो नाम पड़ता है क्योंकि शरीर से ही पार्ट बजाना होता है। तो मनुष्य फिर शरीर के भान में आ जाते हैं, मैं फलाना हूँ। अभी समझते - हाँ मैं आत्मा हूँ। हमने 84 का पार्ट बजाया है। अभी हम आत्मा को जान गया हूँ। हम आत्मा सतोप्रधान थी, फिर अभी तमोप्रधान बनी हूँ। बाप आते ही तब हैं जब सब आत्माओं पर कट लगी हुई है। जैसे सोने में खाद पड़ती है ना। तुम पहले सच्चा सोना हो फिर चांदी, तांबा, लोहा पड़कर तुम बिल्कुल काले हो गये हो। यह बात और कोई समझा न सके। सब कह देते हैं आत्मा निर्लेप है। खाद कैसे पड़ती है, यह भी बाप ने समझाया है बच्चों को। बाप कहते हैं मैं आता ही भारत में हूँ। जब बिल्कुल तमोप्रधान बन जाते हैं, तब आता हूँ। एक्यूरेट टाइम पर आते हैं। जैसे ड्रामा में एक्यूरेट खेल चलता है ना। जो पार्ट जिस घड़ी होना होगा उस समय फिर रिपीट होगा, उसमें ज़रा भी फर्क पड़ नहीं सकता। वह है हद का ड्रामा, यह है बेहद का ड्रामा। यह सब बहुत महीन समझने की बातें हैं। बाप कहते हैं तुम्हारा जो पार्ट बजा, वह ड्रामा अनुसार। कोई भी मनुष्य मात्र न रचयिता को, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। ऋषि-मुनि भी नेती-नेती करते गये। अब तुमसे कोई पूछे रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो? तो तुम झट कहेंगे हाँ, सो भी तुम सिर्फ अभी ही जान सकते हो फिर कभी नहीं। बाबा ने समझाया है तुम ही मुझ रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। अच्छा, यह लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब होगा, यह जानते होंगे? नहीं, इनमें कोई ज्ञान नहीं। यह तो वण्डर है। तुम कहते हो हमारे में ज्ञान है, यह भी तुम समझते हो। बाप का पार्ट ही एक बार का है। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है - यह लक्ष्मी-नारायण बनने की। बन गये फिर तो पढ़ाई की दरकार नहीं रहेगी। बैरिस्टर बन गया सो बन गया। बाप जो पढ़ाने वाला है, उनको याद तो करना चाहिए। तुमको सब सहज कर दिया है। बाबा बार-बार तुम्हें कहते हैं पहले अपने को आत्मा समझो। मैं बाबा का हूँ। पहले तुम नास्तिक थे, अभी आस्तिक बने हो। इन लक्ष्मी-नारायण ने भी आस्तिक बनकर ही यह वर्सा लिया है, जो अभी तुम ले रहे हो। अभी तुम आस्तिक बन रहे हो। आस्तिक-नास्तिक यह अक्षर इस समय के हैं। वहाँ यह अक्षर ही नहीं। पूछने की बात ही नहीं रह सकती। यहाँ प्रश्न उठते हैं तब तो पूछते हैं-रचता और रचना को जानते हो? तो कह देते नहीं। बाप ही आकर अपना परिचय देते हैं और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। बाप है बेहद का मालिक रचता। बच्चों को समझाया गया है और धर्म स्थापक भी यहाँ जरूर आते हैं। तुमको साक्षात्कार कराया था - इब्राहम, क्राइस्ट आदि कैसे आते हैं। वह तो पिछाड़ी में जब बहुत आवाज़ निकलेगा तब आयेंगे। बाप कहते हैं - बच्चे, देह सहित देह के सब धर्मों को त्याग मुझे याद करो। अभी तुम सम्मुख बैठे हो। अपने को देह नहीं समझना है, मैं आत्मा हूँ। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। सेकण्ड की बात है। मुक्ति में जाने के लिए ही भक्ति आधाकल्प करते हैं। लेकिन कोई भी आत्मा वापिस जा नहीं सकती।

5 हज़ार वर्ष पहले भी बाप ने यह समझाया था अभी भी समझाते हैं। श्रीकृष्ण यह बातें समझा नहीं सकते। उनको बाप भी नहीं कहेंगे। बाप है लौकिक, अलौकिक और पारलौकिक। हद का बाप लौकिक, बेहद का बाप है-पारलौकिक, आत्माओं का। और एक यह है सगंमयुगी वन्डरफुल बाप, इनको अलौकिक कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा को कोई याद ही नहीं करते। वह हमारा ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर है, यह बुद्धि में नहीं आता है। कहते भी हैं आदि देव, एडम.... परन्तु कहने मात्र। मन्दिरों में भी आदि देव का चित्र है ना। तुम वहाँ जायेंगे तो समझेंगे यह तो हमारा यादगार है। बाबा भी बैठे हैं, हम भी बैठे हैं। यहाँ बाप चैतन्य में बैठे हैं, वहाँ जड़ चित्र रखे हैं। ऊपर में स्वर्ग भी ठीक है, जिन्होंने मन्दिर देखा है वह जानते हैं कि बाबा हमको अब चैतन्य में राजयोग सिखा रहे हैं। फिर बाद में मन्दिर बनाते हैं। यह स्मृति में आना चाहिए कि यह सब हमारे यादगार हैं। यह लक्ष्मी-नारायण अब हम बन रहे हैं। थे, फिर सीढ़ी उतरते आये हैं, अब फिर हम घर जाकर रामराज्य में आयेंगे। पीछे होता है रावणराज्य फिर हम वाम मार्ग में चले जाते हैं। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं-इस समय सभी मनुष्य मात्र पतित हैं इसलिए पुकारते हैं-हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। दु:ख हर कर सुख का रास्ता बताओ। कहते भी हैं भगवान जरूर कोई वेष में आ जायेगा। अब कुत्ते-बिल्ली, ठिक्कर-भित्तर आदि में तो नहीं आयेंगे। गाया हुआ है भाग्यशाली रथ पर आते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं इस साधारण रथ में प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं, तुम अभी जानते हो। इनके बहुत जन्मों के अन्त में जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तब मैं प्रवेश करता हूँ। भक्ति मार्ग में पाण्डवों के बहुत बड़े-बड़े चित्र बनाये हैं, रंगून में बुद्ध का भी बहुत बड़ा चित्र है। इतना बड़ा कोई मनुष्य होता थोड़ेही है। बच्चों को तो अब हंसी आती होगी, रावण का चित्र कैसा बनाया है। दिन-प्रतिदिन बड़ा करते जाते हैं। यह क्या चीज़ हैं, जो हर वर्ष जलाते हैं। ऐसा कोई दुश्मन होगा! दुश्मन का ही चित्र बनाकर जलाते हैं। अच्छा, रावण कौन है, कब दुश्मन बना है जो हर वर्ष जलाते आते हैं? इस दुश्मन का किसको भी पता नहीं है। उनका अर्थ कोई बिल्कुल नहीं जानते। बाप समझाते हैं वह है ही रावण सम्प्रदाय, तुम हो राम सम्प्रदाय। अब बाप कहते हैं - गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो और मुझे याद करते रहो। कहते हैं बाबा हंस और बगुले इकट्ठे कैसे रह सकते हैं, खिट-खिट होती है। सो तो जरूर होगा, सहन करना पड़ेगा। इसमें बड़ी युक्तियाँ भी हैं। बाप को कहा जाता है रांझू रमज़बाज। सब उनको याद करते हैं ना - हे भगवान दु:ख हरो, रहम करो, लिबरेट करो। वो लिबरेटर बाप सबका एक ही है। तुम्हारे पास कोई भी आते हैं तो उनको अलग-अलग समझाओ, कराची में एक-एक को अलग-अलग बैठ समझाते थे।

तुम बच्चे जब योग में म॰जबूत हो जायेंगे तो फिर तुम्हारा प्रभाव निकलेगा। अभी अजुन वह जौहर नहीं है। याद से शक्ति मिलती है। पढ़ाई से शक्ति नहीं मिलती है। ज्ञान तलवार है, उसमें याद का जौहर भरना है। वह शक्ति कम है। बाप रोज़ कहते रहते हैं - बच्चे, याद की यात्रा में रहने से तुमको ताकत मिलेगी। पढ़ाई में इतनी ताकत नहीं है। याद से तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो। तुम अपने लिए ही सब कुछ करते हो। बहुत आये फिर गये। माया भी दुश्तर है। बहुत नहीं आते हैं, कहते हैं ज्ञान तो बहुत अच्छा है, खुशी भी होती है। बाहर गया खलास। ज़रा भी ठहरने नहीं देती। कोई-कोई को बहुत खुशी होती है। ओहो! अब बाबा आये हैं, हम तो चले अपने सुखधाम। बाप कहते हैं - अभी पूरी राजधानी स्थापन ही कहाँ हुई है। तुम इस समय हो ईश्वरीय सन्तान फिर होंगे देवतायें। डिग्री कम हो गई ना। मीटर में प्वाइन्ट होती हैं, इतनी प्वाइन्ट कम। तुम अभी एकदम ऊंच बनते हो फिर कम होते-होते नीचे आ जाते हो। सीढ़ी नीचे उतरना ही है। अब तुम्हारी बुद्धि में सीढ़ी का ज्ञान है। चढ़ती कला, सर्व का भला। फिर धीरे-धीरे उतरती कला होती है। शुरू से लेकर इस चक्र को अच्छी रीति समझना है। इस समय तुम्हारी चढ़ती कला होती है क्योंकि बाप साथ है ना। ईश्वर जिसको मनुष्य सर्वव्यापी कह देते हैं, वह बाबा मीठे-मीठे बच्चे कहते रहते हैं और बच्चे फिर बाबा-बाबा कहते रहते हैं। बाबा हमको पढ़ाने आये हैं, आत्मा पढ़ती है। आत्मा ही कर्म करती है। हम आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। इस शरीर द्वारा कर्म करती हूँ। अशान्त अक्षर ही तब कहा जाता है जब दु:ख होता है। बाकी शान्ति तो हमारा स्वधर्म है। बहुत कहते हैं मन की शान्ति हो। अरे आत्मा तो स्वयं शान्त स्वरूप है, उनका घर ही है शान्तिधाम। तुम अपने को भूल गये हो। तुम तो शान्तिधाम के रहने वाले थे, शान्ति वहाँ ही मिलेगी। आजकल कहते हैं एक राज्य, एक धर्म, एक भाषा हो। वन कास्ट, वन रिलीजन, वन गॉड। अब गवर्मेन्ट लिखती भी है वन गॉड है, फिर सर्वव्यापी क्यों कहते हैं? वन गॉड तो कोई मानता ही नहीं है। तो अब तुमको फिर यह लिखना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाते हो, ऊपर में लिख दो सतयुग में जब इन्हों का राज्य था तो वन गॉड, वन डीटी रिलीजन था। परन्तु मनुष्य कुछ समझते नहीं हैं, अटेन्शन नहीं देते। अटेन्शन उनका जायेगा जो हमारे ब्राह्मण कुल का होगा। और कोई नहीं समझेंगे इसलिए बाबा कहते हैं अलग-अलग बिठाओ फिर समझाओ। फार्म भराओ तो मालूम पड़ेगा क्योंकि कोई किसको मानने वाला होगा, कोई किसको। सबको इकट्ठा कैसे समझायेंगे। अपनी-अपनी बात सुनाने लग पड़ेंगे। पहले-पहले तो पूछना चाहिए कहाँ आये हो? बी.के. का नाम सुना है? प्रजापिता ब्रह्मा तुम्हारा क्या लगता है? कभी नाम सुना है? तुम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान नहीं हो, हम तो प्रैक्टिकल में हैं। हो तुम भी परन्तु समझते नहीं हो। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन्दिरों आदि को देखते सदा यह स्मृति रहे कि यह सब हमारे ही यादगार हैं। अब हम ऐसा लक्ष्मी- नारायण बन रहे हैं।
2) गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। हंस और बगुले साथ हैं तो बहुत युक्ति से चलना है। सहन भी करना है।
वरदान:
सर्व समस्याओं की विदाई का समारोह मनाने वाले समाधान स्वरूप भव!   
समाधान स्वरूप आत्माओं की माला तब तैयार होगी जब आप अपनी सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होंगे। सम्पूर्ण स्थिति में समस्यायें बचपन का खेल अनुभव होती हैं अर्थात् समाप्त हो जाती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप के सामने यदि कोई बच्चा समस्या लेकर आता था तो समस्या की बातें बोलने की हिम्मत भी नहीं होती थी, वह बातें ही भूल जाती थी। ऐसे आप बच्चे भी समाधान स्वरूप बनो तो आधाकल्प के लिए समस्याओं का विदाई समारोह हो जाए। विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है।
स्लोगन:
जो सदा ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।