Saturday, September 26, 2015

मुरली 27 सितम्बर 2015

“स्नेह, सहयोग और शक्ति स्वरूप के पेपर्स की चेकिंग और रिजल्ट”

वरदान:

मैं पन के भान को मिटाने वाले ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ त्यागी भव!  

सम्बन्ध का त्याग, वैभवों का त्याग कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हर कार्य में, संकल्प में भी औरों को आगे रखने की भावना रखना अर्थात् अपने पन को मिटा देना, पहले आप करना...यह है श्रेष्ठ त्याग। इसे ही कहा जाता स्वयं के भान को मिटा देना। जैसे ब्रह्मा बाप ने सदा बच्चों को आगे रखा। “मैं आगे रहूं” इसमें भी सदा त्यागी रहे, इसी त्याग के कारण सबसे आगे अर्थात् नम्बरवन में जाने का फल मिला। तो फालो फादर।

स्लोगन:

फट से किसी का नुक्स निकाल देना-यह भी दु:ख देना है।  

ओम् शांति ।

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27-09-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:30-1-80 मधुबन

“स्नेह, सहयोग और शक्ति स्वरूप के पेपर्स की चेकिंग और रिजल्ट”
आज बाप-दादा चारों ओर के श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। चारों ओर के बच्चों का एक ही स्नेह और याद का संकल्प है। अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल, सहजयोगी बच्चे बाप-दादा के सदा साथ हैं। दूर होते हुए भी स्नेह के आधर पर अति समीप हैं। आज बाप-दादा हरेक बच्चे के स्नेह, सहयोग और शक्ति स्वरूप की श्रेष्ठ मूर्त देख रहे थे। आदि से अब तक तीनों ही विशेषताओं में विशेष कितने मार्क्स रहे हैं। स्नेह में तीन बातें विशेष देखी -

1. अटूट स्नेह - परिस्थितियाँ वा व्यक्ति स्नेह के धागे को तोड़ने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन परिस्थितियों और व्यक्तियों की ऊंची दीवारों को भी पार कर सदा स्नेह के धागे को अटूट रखा है। कारण व कमज़ोरी की गाँठ बार-बार नहीं बाँधी है, ऐसा अटूट स्नेह है।

2. सदा सर्व सम्बन्धों से प्रीति की रीति प्रैक्टिकल में निभाई है। एक सम्बन्ध की भी प्रीति निभाने में कमी नहीं।

3. स्नेह का प्रत्यक्ष रिटर्न अपने स्नेही मूर्त द्वारा कितनों को बाप का स्नेही बनाया है। सिर्फ ज्ञान के स्नेही नहीं या प्योरिटी के स्नेही या बच्चों के जीवन-परिवर्तन के स्नेही नहीं या श्रेष्ठ आत्माओं के स्नेही नहीं, लेकिन डायरेक्ट बाप के स्नेही। आप अच्छे हो, ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छा है - यहाँ तक नहीं, लेकिन बाप अच्छे-से-अच्छा है। इसको कहा जाता है बाप के स्नेही बनाना। तो स्नेह में इन तीन बातों की विशेषता देखी।

सहयोग में - मुख्य बात 1. निष्काम सहयोगी हैं? 2. सहयोग में मनसा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध और सम्पर्क में इन सभी रूप के सहयोगी सदा रहे हैं? 3. ऐसे योग्य सच्चे सहयोगी कितने बनाये हैं।

शक्ति स्वरूप - 1. मास्टर सर्वशक्तिवान बने हैं या शक्तिवान। 2. समय पर शक्तियों के शस्त्र का लाभ ले सकते हैं कि शस्त्र लॉकर में पड़े हुए हैं? 3. स्व की शक्तियों की प्राप्ति द्वारा औरों को मास्टर सर्वशक्तिवान कहाँ तक बनाया है? इन तीन बातों की विशेषता चेक कर रहे थे। सुनाया ना आजकल पेपर्स चेक हो रहे हैं। तो आज यह पेपर चेक हुआ।

रिजल्ट क्या हुई? तीनों की टोटल मार्क्स में फुल पास, पास और रहम करके पास करने वाले, तीनों नम्बरवार रहे। फुल पास वाले आधे से भी कम। पास वाले 70 परसेन्ट और रहम से पास करने वालों की भी लम्बी लिस्ट थी। अब आगे क्या करना है?

यह रिजल्ट है बाप के स्वरूप की। अभी भी बाप के रूप में चेक कर रहे हैं। लेकिन फाइनल रिजल्ट में बाप के साथ-साथ धर्मराज भी होंगे। उस फाइनल रिजल्ट के लिए अभी सिर्फ एक मार्जिन है। लास्ट चान्स है। वह कौन-सा?

1. एक तो दिल के अविनाशी वैराग्य द्वारा अपनी बीती हुई बातों को, संस्कार रूपी बीती को जला दें। यह जलाने का यज्ञ रचें। 2. यह जलाने के साथ-साथ अमृतबेले से रात तक ईश्वरीय नियमों और मर्यादाओं को सदा पालन करने का व्रत लें।

3. निरन्तर महादानी बन, पुण्य आत्मा बन प्रजा को दान करें। ब्राह्मणों को सदा सहयोग देने का पुण्य करें। अविनाशी दान-पुण्य का कार्य चलता रहे। चाहे मनसा द्वारा, चाहे वाणी द्वारा या सम्बन्ध व सम्पर्क द्वारा। ऐसे हाई जम्प देने वाला डबल लाइट बन, श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा उड़ता पंछी बन रिजल्ट तक पहुँच सकता है। तो फाइनल रिजल्ट तक ऐसे पुरूषार्थ करने का चान्स है। समझा, इसलिए चेकिंग हो रही है कि सुनकर समझकर लास्ट चान्स लें।

ब्रह्मा बाप बोले – “साकार रूप द्वारा पालना हुई, अव्यक्त रूप द्वारा पालना हो रही है। अब जैसे साकार पालना वालों को समय-प्रति-समय बहुत चान्स मिले। अब अव्यक्त पालना वालों को भी यह लास्ट चान्स का विशेष हक मिलना चाहिए इसलिए अव्यक्त पालना वालों को और साकार आकार दोनों की पालना वालों को, दोंनों की चेकिंग में मार्क्स देने में थोड़ा अन्तर रखा गया है। शुरू वालों के पेपर्स और अव्यक्त पालना वालों के पेपर चेक करने में पीछे वालों को 25 परसेन्ट एकस्ट्रा मार्क्स हैं इसलिए लास्ट चान्स जो चाहे सो ले सकते हैं। अभी सीट्स की सीटी नहीं बजी है इसलिए चान्स लो और सीट लो”।

कर्नाटक वाले सीट लेने में वैसे भी होशीयार हैं। जैसे यहाँ नज़दीक सीट लेना चाहते हो वैसे फाइनल भी नज़दीक सीट ले लो। कर्नाटक वाले राजी सहज होते हैं ना। सदा ज्ञान के राजों में चलने वाले हैं - नाराज भी नहीं होते। अच्छा।

ऐसे सदा राजयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त कर्म करने वाले, ऐसे सदा श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सर्व शक्तिवान, बाप के संग के रंग में रहने वाले, ऐसी रूहानी रूहों को, महादानी, महापुण्य आत्मा बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

विदेश सेवा में सफलता मूर्त बनने के लिए बाप-दादा का इशारा -

विदेश की सेवा में विशेष साइलेन्स की शक्ति ज्यादा सफल रहेगी क्योंकि वहाँ की आत्मायें एक सेकेण्ड की शान्ति के लिए भी जगह-जगह भटकती हैं। तो ऐसी भटकती हुई आत्माओं को एक तो शान्ति और दूसरा रूहानी स्नेह दो। स्नेह से शान्ति का अनुभव कराओ। प्रेम का भी अभाव है और शान्ति का भी अभाव है इसलिए जो भी प्रोग्राम करो उसमें पहले तो बाप के सम्बन्ध के स्नेह की महिमा करो और फिर उस प्यार से आत्माओं का सम्बन्ध जोड़ने के बाद शान्ति का अनुभव कराओ। चाहे ड्रामा करो, चाहे भाषण करो, लेकिन भाषण भी ऐसे हों जैसे प्रेम स्वरूप और शान्त स्वरूप, दोनों का बैलेन्स हो। मुख्य टॉपिक यह हो, बाकी भिन्न-भिन्न रूप हो। भाषण से भी वही अनुभव कराओ और ड्रामा से भी वही अनुभव कराओ तो वैराइटी प्रकार से एक ही अनुभव कराने से छाप लगती है। चाहे छोटे-छोटे प्रोग्राम रखो या बड़ा। लेकिन बड़ा प्रोग्राम करने के पहले सम्पर्क समीप का वैराइटी प्रकार की आत्माओं का बनाना है। तो क्या होगा? वैराइटी प्रकार की आत्माओं की सेवा करने से हर प्रकार की आत्मायें उसमें शामिल हो जायेंगी। सहयोगी बन जायेंगी और प्रोग्राम की रौनक हो जायेगी। वैसे भी वैराइटी अच्छी लगती है ना। तो वैराइटी वर्ग वालों का सम्पर्क और सम्बन्ध पहले से ही बनाने से कोई भी कार्य सफल हो जाता है। बाकी जो फॉरेन सर्विस के प्रति निमित्त बने हुए हैं उनको बाप-दादा विशेष सेवा और स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा याद प्यार दे रहे हैं।

2. नॉलेज रूपी चाबी लगाने से भाग्य का खज़ाना प्राप्त हो सकता है -

इस संगमयुग पर भाग्य बनाने की नॉलेज रूपी चाबी मिलती है। चाबी लगाओ और जितना भाग्य बनाना चाहो उतना भाग्य का खज़ाना ले लो। सभी चाबी लगाने में तो होशियार हो ना। चाबी मिली और मालामाल बन गये। जितना मालामाल बनते जाते हैं उतना स्वत: ही खुशी रहती है। तो सभी ऐसे अनुभव करते हो कि जैसे कोई झरने से पानी निकलता रहता है, वैसे खुशी का झरना सदा बहता ही रहे - अखुट और अविनाशी। बाप-दादा भी सदा सभी के भाग्य का सितारा देख हर्षित होते हैं।

इंजीनियर्स ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

इंजीनियर अर्थात् प्लैनिंग बुद्धि। इंजीनियर सदा प्लैन सेट कर कार्य को आगे बढ़ाते हैं। तो इंजीनियर ग्रुप अर्थात् रूहानी प्लैनिंग बुद्धि ग्रुप, ऐसे हो? इस रूहानी सेवा में भी प्लैनिंग बुद्धि बन सेवा का प्लैन बनाते हो? नया प्लैन बनाते हो या बने हुए प्लैन को प्रैक्टिकल में लाते हो? प्लैनिंग बुद्धि तो प्लैन बनाने के बिना रह न सकें। जिसका जो काम होता है वह न चाहते भी उसी कार्य में सदा बिजी रहते हैं। तो सदा जैसे उस डिपार्टमेन्ट का अटेन्शन रहता है ना - क्या करें, कैसे करें, कैसे सफल बनायें, किस विधि से वृद्धि करें, यही इंजीनियर्स का काम है ना। तो रूहानी इंजीनियर्स को ईश्वरीय सेवा की विधिपूर्वक वृद्धि कैसे हो - उसका प्लैन बनाना पड़े। अगर सभी अपना नया प्लैन तैयार करें तो इतने सारे प्लैन से नई दुनिया तो जल्दी ही आ जायेगी। अभी ऐसा प्लैन बनाओ जो कम खर्च और अधिक सफलता वाला हो। जैसे सेक्रीन की एक भी बूंद बहुत काम करती है। ऐसे ही प्लैन पॉवरफुल हो लेकिन एकॉनामी वाला हो। आजकल के समय अनुसार एकॉनामी भी चाहिए और पॉवरफुल भी चाहिए। रूहानी गर्वन्मेन्ट के इंजीनियर्स ऐसा प्लैन तैयार करो। जैसे आजकल एक इन्डस्ट्री के द्वारा अनेकों को काम देने का प्लैन सोचते हैं तो यहाँ भी प्लैन एकॉनामी का हो, सन्देश अनेकों को मिल जाए। जैसे वहाँ सोचते हैं कि अनेकों को रोजी मिल जाए तो यहाँ भी अनेकों को सन्देश मिल जाए। यहाँ इंजीनियर्स बहुत चाहिए, क्योंकि सतयुग में इंजीनियर्स कम समय में और सुन्दर चीजें तैयार करेंगे तो यहाँ से ही संस्कार चाहिए ना। तब तो ऐसा प्लैन बनायेंगे। आप राजा बनेंगे तो भी बनवायेंगे तो ना, आइडिया देंगे। तो नई दुनिया का प्लैन बनाने के लिए और सेवा की सफलता पाने के लिए भी इंजीनियर्स चाहिए। तो आपका कितना महत्व है। ऐसा महत्व समझते हुए चलते हो? हरेक को समझना चाहिए मुझे सफलता का सबूत देना है। हरेक नया प्लैन बनाकर पहले अपने-अपने जोन में प्रैक्टिकल में लाओ फिर सारा विश्व आपको कॉपी करे। प्लैन पास न होने का कारण होता है कि एकॉनामी नहीं होती, अगर एकॉनामी और सफलता का प्लैन हो तो सभी पास करेंगे। तो 60 इंजीनियर्स अगर 60 प्लैन निकाले तो 80 में ही समाप्ति हो जाए। समाप्ति भी एक सेकेण्ड में नहीं होगी, धीरे-धीरे परिवर्तन होगा। लेकिन शुरू हो जाये और सबके दिल से यह आवाज़ निकले कि अब नई दुनिया आने वाली है। जैसे साइन्स वालों ने चन्द्रमा पर जाकर थोड़ी झलक दिखाई तो सबने प्लॉट खरीदने की तैयारी शुरू कर दी, तो कम से कम साइलेन्स की शक्ति वाले नई दुनिया में प्लाट खरीदने की तैयारी तो करा दो। बुकिंग तो करा लें। जैसे साइन्स की कोई भी इन्वेन्शन पहले प्रयोगशाला में लाकर अनाउन्स करते हैं, ऐसे आप लोग भी पहले अपनी एरिया की प्रयोगशाला में प्लैन का प्रयोग करो। फिर सब मानेंगे। प्लैन की प्रैक्टिकल सफलता निकले। जो प्रदर्शनी वा मेला देख चुके उनके लिए अब नया प्लैन चाहिए। नई आकर्षण चाहिए। तो प्लैनिंग बुद्धि बन प्लैन निकालो। ड्रामा अनुसार जो विशेषता मिली हुई है, उस विशेषता को कार्य में लगाना अर्थात् विशेष लॉटरी लेना। नये-नये साधन बनाने का प्लैन निकालो, कॉपी में नहीं, प्रैक्टिकल में। वहाँ के तो कागज़ पर ही रह जाते हैं लेकिन यह प्रैक्टिकल के प्लैन हों। अच्छा - ओम् शान्ति।

जज-वकील ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:

सभी सदा स्व को स्वतन्त्र करने और अनेक आत्माओं को अनेक बन्धनों से स्वतन्त्र करने की सर्विस में सदा बिजी रहते हो? सभी का जैसे लौकिक कार्य है - कहाँ भी फँसे हुए को छुड़ाने का। यह सारा ग्रुप किसी को भी छुड़ाने वाले हो? वो तो उस गवर्मेन्ट के हिसाब से फँस जाते हैं तो छुड़ाते हो व कोई व्यक्ति विकारों के वशीभूत बुरा काम करते हैं तो छुड़ाते हो वा फँसाते हो। कभी सच कभी झूठ। यहाँ रूहानी कार्य में सदा हर आत्मा को स्वतन्त्र बनाने वाले हो, कितनी आत्माओं को स्वतन्त्र बनाया है? आज तो रिजल्ट लेने का दिन है। तो कितनों को स्वतन्त्र बनाया है? वो सेवा निमित्त मात्र ईश्वरीय सेवा के लिए करते हो। नहीं तो पाण्डव उनकी सेवा करने के लिए समय क्यों देवें। इसी सेवा से लाभ लेने के लिए गुप्त सेवाधारी बनकर सेवा में रहते हो। जैसे गायन है कि पाण्डव गुप्त रूप में सेवा करने के लिए गये। तो पानी भरने या पैर दबाने नहीं गये, लेकिन गुप्त वेष में राज्य पलटाने के लिए सेवाधारी बनकर गये। वैसे ही गुप्त वेश में गये हो विश्व के राज्य को परिवर्तन करने के लिए। तो सदा इसी कार्य में रहते हो? लौकिक सेवा अर्थात् सम्पर्क बढ़ाने की सेवा। ऐसे ही लक्ष्य रखते हुए इसी लक्षण से सदा सेवा में रहते हो। अब हर वर्ग को अपने हमजिंस बढ़ाने चाहिए क्योंकि हर वर्ग वाले अपने वर्ग को उल्हना जरूर देंगे कि कम-से-कम अपने साथियों को तो बताते।

डबल सेवा का चान्स लेते रहो। जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको बाप के सम्पर्क में लाओ। लौकिक सेवा से भी सहयोग दो और ईश्वरीय सेवा से सुख-शान्ति का मार्ग बताओ। तो सभी आपको महान पुण्य आत्मा की नज़र से देखेंगे। अच्छा।
वरदान:
मैं पन के भान को मिटाने वाले ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ त्यागी भव!   
सम्बन्ध का त्याग, वैभवों का त्याग कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हर कार्य में, संकल्प में भी औरों को आगे रखने की भावना रखना अर्थात् अपने पन को मिटा देना, पहले आप करना...यह है श्रेष्ठ त्याग। इसे ही कहा जाता स्वयं के भान को मिटा देना। जैसे ब्रह्मा बाप ने सदा बच्चों को आगे रखा। “मैं आगे रहूं” इसमें भी सदा त्यागी रहे, इसी त्याग के कारण सबसे आगे अर्थात् नम्बरवन में जाने का फल मिला। तो फालो फादर।
स्लोगन:
फट से किसी का नुक्स निकाल देना-यह भी दु:ख देना है।