Monday, September 14, 2015

मुरली 14 सितम्बर 2015

 “मीठे बच्चे - बाप जो तुम्हें हीरे जैसा बनाते हैं, उनमें कभी भी संशय नहीं आना चाहिए, संशयबुद्धि बनना माना अपना नुकसान करना”

प्रश्न:

मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई में पास होने का मुख्य आधार क्या है?

उत्तर:

निश्चय। निश्चयबुद्धि बनने का साहस चाहिए। माया इस साहस को तोड़ती है। संशयबुद्धि बना देती है। चलते-चलते अगर पढ़ाई में वा पढ़ाने वाले सुप्रीम टीचर में संशय आया तो अपना और दूसरों का बहुत नुकसान करते हैं।

गीतः

तू प्यार का सागर है......

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) सुप्रीम टीचर की पढ़ाई हमें नर से नारायण बनाने वाली है, इसी निश्चय से अटेन्शन देकर पढ़ाई पढ़नी है। पढ़ाने वाली टीचर को नहीं देखना है।

2) देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है, मरजीवा बने हैं तो इस शरीर के भान को छोड़ देना है। पुण्य आत्मा बनना है, कोई भी पाप कर्म नहीं करना है।

वरदान:

निमित्त भाव द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले श्रेष्ठ सेवाधारी भव!

निमित्त भाव-सेवा में स्वत: सफलता दिलाता है। निमित्त भाव नहीं तो सफलता नहीं। श्रेष्ठ सेवाधारी अर्थात् हर कदम बाप के कदम पर रखने वाले। हर कदम श्रेष्ठ मत पर श्रेष्ठ बनाने वाले। जितना सेवा में, स्व में व्यर्थ समाप्त हो जाता है उतना ही समर्थ बनते हैं और समर्थ आत्मा हर कदम में सफलता प्राप्त करती है। श्रेष्ठ सेवाधारी वह है जो स्वयं भी सदा उमंग उत्साह में रहे और औरों को भी उमंग उत्साह दिलाये।

स्लोगन:

ईश्वरीय सेवा में स्वयं को आफर करो तो आफरीन मिलती रहेगी।

ओम् शांति ।

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14-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप जो तुम्हें हीरे जैसा बनाते हैं, उनमें कभी भी संशय नहीं आना चाहिए, संशयबुद्धि बनना माना अपना नुकसान करना”  
प्रश्न:
मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई में पास होने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:
निश्चय। निश्चयबुद्धि बनने का साहस चाहिए। माया इस साहस को तोड़ती है। संशयबुद्धि बना देती है। चलते-चलते अगर पढ़ाई में वा पढ़ाने वाले सुप्रीम टीचर में संशय आया तो अपना और दूसरों का बहुत नुकसान करते हैं।
गीतः
तू प्यार का सागर है......  
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति शिवबाबा समझा रहे हैं, तुम बच्चे बाप की महिमा करते हो तू प्यार का सागर है। उन्हें ज्ञान का सागर भी कहा जाता है। जबकि ज्ञान का सागर एक है तो बाकी को कहेंगे अज्ञान क्योंकि ज्ञान और अज्ञान का खेल है। ज्ञान है ही परमपिता परमात्मा के पास। इस ज्ञान से नई दुनिया स्थापन होती है। ऐसे नहीं कि कोई नई दुनिया बनाते हैं। दुनिया तो अविनाशी है ही। सिर्फ पुरानी दुनिया को बदल नया बनाते हैं। ऐसे नहीं कि प्रलय हो जाती है। सारी दुनिया कभी विनाश नहीं होती। पुरानी है वह बदलकर नई बन रही है। बाप ने समझाया है यह पुराना घर है, जिसमें तुम बैठे हो। जानते हो हम नये घर में जायेंगे। जैसे पुरानी देहली है। अब पुरानी देहली मिटनी है, उसके बदले अब नई बननी है। अब नई कैसे बनती है? पहले तो उसमें रहने वाले लायक चाहिए। नई दुनिया में तो होते हैं सर्वगुण सम्पन्न....... तुम बच्चों को यह एम ऑब्जेक्ट भी है। पाठशाला में एम ऑब्जेक्ट तो रहती है ना। पढ़ने वाले जानते हैं - मैं सर्जन बनूँगा, बैरिस्टर बनूँगा....। यहाँ तुम जानते हो हम आये हैं - मनुष्य से देवता बनने। पाठशाला में एम ऑब्जेक्ट बिगर तो कोई बैठ न सकें। परन्तु यह ऐसी वन्डरफुल पाठशाला है जो एम ऑब्जेक्ट समझते हुए, पढ़ते हुए फिर भी पढ़ाई को छोड़ देते। समझते हैं यह रांग पढ़ाई है। यह एम ऑब्जेक्ट है नहीं, ऐसे कभी हो नहीं सकता। पढ़ाने वाले में भी संशय आ जाता है। उस पढ़ाई में तो पढ़ नहीं सकते हैं अथवा पैसा नहीं है, हिम्मत नहीं है तो पढ़ना छोड़ देते हैं। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि बैरिस्टरी की नॉलेज ही रांग है, पढ़ाने वाला रांग है। यहाँ तो मनुष्यों की वन्डरफुल बुद्धि है। पढ़ाई में संशय पड़ जाता है तो कह देते यह पढ़ाई रांग है। भगवान पढ़ाते ही नहीं, बादशाही आदि कुछ नहीं मिलती.... यह सब गपोड़े हैं। ऐसे भी बहुत बच्चे पढ़ते-पढ़ते फिर छोड़ देते हैं। सब पूछेंगे तुम तो कहते थे हमको भगवान पढ़ाते हैं, जिससे मनुष्य से देवता बनते हैं फिर यह क्या हुआ? नहीं, नहीं वह सब गपोड़े थे। कहते यह एम ऑब्जेक्ट हमको समझ में नहीं आती। कई हैं जो निश्चय से पढ़ते थे, संशय आने से पढ़ाई छोड़ दी। निश्चय कैसे हुआ फिर संशयबुद्धि किसने बनाया? तुम कहेंगे यह अगर पढ़ते तो बहुत ऊंच पद पा सकते थे। बहुत पढ़ते रहते हैं। बैरिस्टरी पढ़ते-पढ़ते आधा पर छोड़ देते, दूसरे तो पढ़कर बैरिस्टर बन जाते हैं। कोई पढ़कर पास होते हैं, कोई नापास हो जाते हैं। फिर कुछ न कुछ कम पद पा लेते हैं। यह तो बड़ा इम्तहान है। इसमें बहुत साहस चाहिए। एक तो निश्चयबुद्धि का साहस चाहिए। माया ऐसी है अभी-अभी निश्चय, अभी संशय बुद्धि बना देती है। आते बहुत हैं पढ़ने के लिए परन्तु कोई डल बुद्धि होते हैं, नम्बरवार पास होते हैं ना। अखबार में भी लिस्ट निकलती है। यह भी ऐसे हैं, आते बहुत हैं पढ़ने के लिए। कोई अच्छी बुद्धि वाले हैं, कोई डल बुद्धि हैं। डल बुद्धि होते-होते फिर कोई न कोई संशय में आकर छोड़ जाते हैं। फिर औरों का भी नुकसान करा देते हैं। संशयबुद्धि विनशन्ती कहा जाता है। वह ऊंच पद पा न सकें। निश्चय भी है परन्तु पूरा पढ़ते नहीं तो थोड़ेही पास होंगे क्योंकि बुद्धि कोई काम की नहीं है। धारणा नहीं होती है। हम आत्मा हैं यह भूल जाते हैं। बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं का परमपिता हूँ। तुम बच्चे जानते हो बाप आये हैं। कोई को बहुत विघ्न पड़ते हैं तो उनको संशय आ जाता है, कह देते हमको फलानी ब्राह्मणी से निश्चय नहीं बैठता है। अरे ब्राह्मणी कैसी भी हो तुमको पढ़ना तो चाहिए ना। टीचर अच्छा नहीं पढ़ाते हैं तो सोचते हैं इनको पढ़ाने से छुड़ा देवें। लेकिन तुमको तो पढ़ना है ना। यह पढ़ाई है बाप की। पढ़ाने वाला वह सुप्रीम टीचर है। ब्राह्मणी भी उनकी नॉलेज सुनाती है तो अटेन्शन पढ़ाई पर होना चाहिए ना। पढ़ाई बिना इम्तहान पास नहीं कर सकेंगे। लेकिन बाप से निश्चय ही टूट पड़ता है तो फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं। पढ़ते-पढ़ते टीचर में संशय आ जाता है कि इनसे यह पद मिलेगा या नहीं तो फिर छोड़ देते हैं। दूसरों को भी खराब कर देते, ग्लानि करने से और ही नुकसान कर देते हैं। बहुत घाटा पड़ जाता है। बाप कहते हैं कि यहाँ अगर कोई पाप करते हैं तो उनको सौगुणा दण्ड हो जाता है। एक निमित्त बनता है, बहुतों को खराब करने। तो जो कुछ पुण्य आत्मा बना फिर पाप आत्मा बन जाते। पुण्य आत्मा बनते ही हैं इस पढ़ाई से और पुण्य आत्मा बनाने वाला एक ही बाप है। अगर कोई नहीं पढ़ सकते हैं तो जरूर कोई खराबी है। बस कह देते जो नसीब, हम क्या करें। जैसेकि हार्टफेल हो जाते हैं। तो जो यहाँ आकर मरजीवा बनते हैं, वह फिर रावण राज्य में जाकर मरजीवा बनते हैं। हीरे जैसी जीवन बना नहीं सकते। मनुष्य हार्टफेल होते हैं तो जाकर दूसरा जन्म लेंगे। यहाँ हार्टफेल होते तो आसुरी सम्प्रदाय में चले जाते। यह है मरजीवा जन्म। नई दुनिया में चलने के लिए बाप का बनते हैं। आत्मायें जायेंगी ना। हम आत्मा यह शरीर का भान छोड़ देंगे तो समझेंगे यह देही-अभिमानी हैं। हम और चीज़ हैं, शरीर और चीज हैं। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं तो जरूर अलग चीज़ हुई ना, तुम समझते हो हम आत्मायें श्रीमत पर इस भारत में स्वर्ग की स्थापना कर रही हैं। यह मनुष्य को देवता बनाने का हुनर सीखना होता है। यह भी बच्चों को समझाया है, सतसंग कोई भी नहीं है। सत्य तो एक ही परमात्मा को कहा जाता है। उनका नाम है शिव, वही सतयुग की स्थापना करते हैं। कलियुग की आयु जरूर पूरी होनी है। सारी दुनिया का चक्र कैसे फिरता है, यह गोले के चित्र में क्लीयर है। देवता बनने के लिए संगमयुग पर बाप के बनते हैं। बाप को छोड़ा तो फिर कलियुग में चले जायेंगे। ब्राह्मणपन में संशय आ गया तो जाकर शूद्र घराने में पड़ेंगे। फिर देवता बन न सकें।

बाप यह भी समझाते हैं - कैसे अभी स्वर्ग की स्थापना का फाउन्डेशन पड़ रहा है। फाउन्डेशन की सेरीमनी फिर ओपनिंग की भी सेरीमनी होती है। यहाँ तो है गुप्त। यह तुम जानते हो हम स्वर्ग के लिए तैयार हो रहे हैं। फिर नर्क का नाम नहीं रहेगा। अन्त तक जहाँ जीना है, पढ़ना है जरूर। पतित-पावन एक ही बाप है जो पावन बनाते हैं।

अभी तुम बच्चे समझते हो यह है संगमयुग, जब बाप पावन बनाने आते हैं। लिखना भी है पुरूषोत्तम संगमयुग में मनुष्य नर से नारायण बनते हैं। यह भी लिखा हुआ है-यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। बाप अभी तुमको दिव्य दृष्टि देते हैं। आत्मा जानती है हमारा 84 का चक्र अब पूरा हुआ है। आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं। आत्मा पढ़ती है भल देह- अभिमान घड़ी-घड़ी आ जायेगा क्योंकि आधाकल्प का देह-अभिमान है ना। तो देही-अभिमानी बनने में टाइम लगता है। बाप बैठा है, टाइम मिला हुआ है। भल ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष कहते हैं या कम भी हो। समझो ब्रह्मा चला जाए, ऐसे तो नहीं स्थापना नहीं होगी। तुम सेना तो बैठी हो ना। बाप ने मंत्र दे दिया है, पढ़ना है। सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, यह भी बुद्धि में है। याद की यात्रा पर रहना है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। भक्ति मार्ग में सबसे विकर्म हुए हैं। पुरानी दुनिया और नई दुनिया दोनों के गोले तुम्हारे सामने हैं। तो तुम लिख सकते हो पुरानी दुनिया रावण राज्य मुर्दाबाद, नई दुनिया ज्ञान मार्ग रामराज्य जिन्दाबाद। जो पूज्य थे वही पुजारी बने हैं। कृष्ण भी पूज्य गोरा था फिर रावण राज्य में पुजारी सांवरा बन जाता है। यह समझाना तो सहज है। पहले-पहले जब पूजा शुरू होती है तो बड़े-बड़े हीरे का लिंग बनाते हैं, मोस्ट वैल्युबल होता है क्योंकि बाप ने इतना साहूकार बनाया है ना। वह खुद ही हीरा है, तो आत्माओं को भी हीरे जैसा बनाते हैं, तो उनको हीरा बनाकर रखना चाहिए ना। हीरा हमेशा बीच में रखते हैं। पुखराज आदि के साथ तो उनकी वैल्यु नहीं रहेगी इसलिए हीरे को बीच में रखा जाता है। इन द्वारा 8 रत्न विजय माला के दाने बनते हैं, सबसे जास्ती वैल्यु होती है हीरे की। बाकी तो नम्बरवार बनते हैं। बनाते शिवबाबा हैं, यह सब बातें बाप बिगर तो कोई समझा न सके। पढ़ते-पढ़ते आश्चर्यवत् बाबा-बाबा कहन्ती फिर चले जाते हैं। शिवबाबा को बाबा कहते हैं, तो उनको कभी नहीं छोड़ना चाहिए। फिर कहा जाता तकदीर। किसकी तकदीर में जास्ती नहीं है तो फिर कर्म ही ऐसे करते हैं तो सौगुणा दण्ड चढ़ जाता है। पुण्य आत्मा बनने के लिए पुरूषार्थ कर और फिर पाप करने से सौगुणा पाप हो जाता है फिर जामड़े (बौने) रह जाते हैं, वृद्धि को पा नहीं सकते। सौगुणा दण्ड एड होने से अवस्था जोर नहीं भरती। बाप जिससे तुम हीरे जैसा बनते हो उनमें संशय क्यों आना चाहिए। कोई भी कारण से बाप को छोड़ा तो कमबख्त कहेंगे। कहाँ भी रहकर बाप को याद करना है, तो सज़ाओं से छूट जायें। यहाँ तुम आते ही हो पतित से पावन बनने। पास्ट के भी कोई ऐसे कर्म किये हुए हैं तो शरीर की भी कर्म भोगना कितना चलती है। अभी तुम तो आधाकल्प के लिए इनसे छूटते हो। अपने को देखना है हम कहाँ तक अपनी उन्नति करते हैं, औरों की सर्विस करते हैं? लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर भी ऊपर में लिख सकते हैं कि यह है विश्व में शान्ति की राजाई जो अब स्थापन हो रही है। यह है एम आब्जेक्ट। वहाँ 100 परसेन्ट पवित्रता, सुख-शान्ति है। इनके राज्य में दूसरा कोई धर्म होता नहीं। तो अभी जो इतने धर्म हैं उनका जरूर विनाश होगा ना। समझाने में बड़ी बुद्धि चाहिए। नहीं तो अपनी अवस्था अनुसार ही समझाते हैं। चित्रों के आगे बैठ ख्यालात चलाने चाहिए। समझानी तो मिली हुई है। समझते हैं तो समझाना है इसलिए बाबा म्यूजियम खुलवाते रहते हैं। गेट वे टू हेविन, यह नाम भी अच्छा है। वह है देहली गेट, इन्डिया गेट। यह फिर है स्वर्ग का गेट। तुम अभी स्वर्ग का गेट खोल रहे हो। भक्ति मार्ग में ऐसा मूंझ जाते हैं जैसे भूल-भुलैया में मूंझ जाते हैं। रास्ता किसको मिलता नहीं। सब अन्दर फँस जाते हैं - माया के राज्य में। फिर बाप आकर निकालते हैं। कोई को निकलने दिल नहीं होती तो बाप भी क्या करेंगे इसलिए बाप कहते हैं महान् कमबख्त भी यहाँ देखो, जो पढ़ाई को छोड़ देते। संशय बुद्धि बन जन्म-जन्मान्तर के लिए अपना खून कर देते हैं। तकदीर बिगड़ती है तो फिर ऐसा होता है। ग्रहचारी बैठने से गोरा बनने बदले काले बन जाते हैं। गुप्त आत्मा पढ़ती है, आत्मा ही शरीर से सब कुछ करती है, आत्मा शरीर बिगर तो कुछ कर नहीं सकती। आत्मा समझने की ही मेहनत है। आत्मा निश्चय नहीं कर सकते तो फिर देह- अभिमान में आ जाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सुप्रीम टीचर की पढ़ाई हमें नर से नारायण बनाने वाली है, इसी निश्चय से अटेन्शन देकर पढ़ाई पढ़नी है। पढ़ाने वाली टीचर को नहीं देखना है।
2) देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है, मरजीवा बने हैं तो इस शरीर के भान को छोड़ देना है। पुण्य आत्मा बनना है, कोई भी पाप कर्म नहीं करना है।
वरदान:
निमित्त भाव द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले श्रेष्ठ सेवाधारी भव!  
निमित्त भाव-सेवा में स्वत: सफलता दिलाता है। निमित्त भाव नहीं तो सफलता नहीं। श्रेष्ठ सेवाधारी अर्थात् हर कदम बाप के कदम पर रखने वाले। हर कदम श्रेष्ठ मत पर श्रेष्ठ बनाने वाले। जितना सेवा में, स्व में व्यर्थ समाप्त हो जाता है उतना ही समर्थ बनते हैं और समर्थ आत्मा हर कदम में सफलता प्राप्त करती है। श्रेष्ठ सेवाधारी वह है जो स्वयं भी सदा उमंग उत्साह में रहे और औरों को भी उमंग उत्साह दिलाये।
स्लोगन:
ईश्वरीय सेवा में स्वयं को आफर करो तो आफरीन मिलती रहेगी।