Saturday, September 5, 2015

मुरली 06 सितम्बर 2015

   पवित्रता का महत्व

वरदान:

सर्वगुण सम्पन्न बनने के साथ-साथ किसी एक विशेषता में विशेष प्रभावशाली भव!  

जैसे डाक्टर्स जनरल बीमारियों की नॉलेज तो रखते ही हैं लेकिन साथ-साथ किसी बात की विशेष नॉलेज में नामीग्रामी हो जाते हैं, ऐसे आप बच्चों को सर्वगुण सम्पन्न तो बनना ही है फिर भी एक विशेषता को विशेष रूप से अनुभव में लाते, सेवा में लाते आगे बढ़ते चलो। जैसे सरस्वती को विद्या की देवी, लक्ष्मी को धन की देवी कहकर पूजते हैं। ऐसे अपने में सर्वगुण, सर्वशक्तियां होते भी एक विशेषता में विशेष रिसर्च कर स्वयं को प्रभावशाली बनाओ।

स्लोगन:

विकारों रूपी सांपों को सहजयोग की शैया बना दो तो सदा निश्चिंत रहेंगे।  

ओम् शांति ।

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06-09-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:23-1-80 मधुबन

पवित्रता का महत्व
बाप-दादा अपने सर्व महान आत्माओं, धर्म आत्माओं, पुण्य आत्माओं, महान पवित्र आत्माओं को देख हर्षित होते हैं। परमात्मा के बच्चे परम पवित्र बच्चे हैं। पवित्रता की ही महानता है। पवित्रता की मान्यता है। पवित्रता के कारण ही परम पूज्य और गायन योग्य बनते हैं। पवित्रता ही श्रेष्ठ धर्म अर्थात् धारणा है। इस ईश्वरीय सेवा का बड़े-से-बड़ा पुण्य है - पवित्रता का दान देना। पवित्र बनाना ही पुण्य आत्मा बनाना है क्योंकि किसी आत्मा को आत्म-घात महा पाप से छुड़ाते हो। अपवित्रता आत्म-घात है। पवित्रता जीय-दान है। पवित्र बनाना अर्थात् पुण्य आत्मा बनाना। गीता के ज्ञान का वा वर्तमान परमात्म-ज्ञान का जो सार रूप में स्लोगन बनाते हो, उसमें भी पवित्रता का महत्व बताते हो। “पवित्र बनो योगी बनो” यही स्लोगन महान आत्मा बनने का आधार है। ब्राह्मण जीवन के पुरूषार्थ के नम्बर भी पवित्रता के आधार पर हैं। भक्ति मार्ग में यादगार पवित्रता के आधार पर है। कोई भी भक्त आपके यादगार चित्र को पवित्रता के बिना टच नहीं कर सकते। जिस दिन विशेष देवी व देवताओं का दिवस मनाते हैं, उस दिन का महत्व भी पवित्रता है - सदाकाल। तो भक्त अल्पकाल के नियम पालन करते हैं। जैसे नवरात्रि मनाते हैं, जन्माष्टमी अथवा दीपमाला या कोई विशेष उत्सव मनाते हैं तो पवित्रता का नियम अल्पकाल के लिए जरूर पालन करते हैं। चाहे शरीर की पवित्रता व आत्मा के नियम, दोनों प्रकार की शुद्धि जरूर रखते हैं। आपकी यादगार विजय माला उनका भी सुमिरण करेंगे तो पवित्रता की विधि पूर्वक करेंगे। आप सिद्धि स्वरूप बनते हो, सिद्धि स्वरूप आत्माओं की पूजा भी विधि पूर्वक होती है। पवित्रता के महत्व को जानते हो ना? इसलिए पहले मुख्य पेपर्स पवित्रता के चेक किये हैं, हरेक ने अपना पवित्रता का पेपर चेक किया। प्रोग्राम प्रमाण प्रोग्रेस तो की।

टोटल रिजल्ट सबसे ज्यादा मैजारिटी कर्मणा में परसेन्टेज ठीक रही। वाचा में कर्मणा की रिजल्ट से 25 परसेन्ट कम। मन्सा में कर्मणा की रिजल्ट से 50 परसेन्ट, मन्सा संकल्प और स्वप्न में थोड़ा-सा अन्तर रहा, उसमें भी जन्म की डेट से लेकर अब तक की रिजल्ट में कइयों का पुरूषार्थ करने में उतरना चढ़ना, दाग हुआ और मिटाया, कभी संकल्प आया और हटाया। कभी वाचा कर्मणा का दाग हुआ और मिटाया। हटाने और मिटाने वाले बहुत थे। लेकिन कई ऐसे तीव्र पुरुषार्थी भी देखे जिन्होंने ऐसे संस्कारों का दाग मिटाया है जो अब तक भी बिल्कुल साफ शुद्ध पेपर दिखाई दिया। ऐसा स्वप्न तक मिटाया हुआ था। पास विद आनर होने वाले महान पवित्र आत्मायें भी देखी। उनकी विशेषता क्या देखी?

जब से ब्राह्मण जन्म हुआ तब से अभी तक पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं लेकिन ब्राह्मण जीवन का विशेष लक्षण है, ब्राह्मण आत्मा का वह अनादि आदि संस्कार है। ऐसे नैचुरल संस्कार से स्वप्न व संकल्प में भी अपवित्रता इमर्ज नहीं हुई है, संकल्प आवे और विजयी बनें, इनसे भी ऊपर नैचुरल संस्कार रूप में चले हैं। इस सबजेक्ट में पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं रही है। ऐसे परम पूज्य संस्कार वाले भी देखे, लेकिन मैनॉरटी। नॉलेजफुल होते हुए भी, औरों को पवित्र बनने की विधि बताते हुए भी, औरों की कमजोरियों को सुनते हुए भी, उनको बाप की श्रीमत देते हुए भी, स्वयं सदा सुनते हुए, जानते हुए भी सदा स्वच्छ रहे हैं अर्थात् पवित्रता की सबजेक्ट में सिद्धि स्वरूप रहे हैं इसलिए ऐसे परम पवित्र आत्माओं का पूजन भी सदा विधि पूर्वक होता है। अष्ट देव के रूप में भी पूजन और भक्तों के इष्ट देव के रूप में भी पूजन। अष्ट शक्तियों का प्रैक्टिकल स्वरूप अष्ट देव प्रत्यक्ष होते हैं। तो सुना पेपर्स का रिजल्ट।

तो मन्सा परिवर्तन हो इसमें डबल अटेन्शन दो। यह नहीं सोचो सम्पन्न बनने तक संकल्प तो आयेंगे ही, लेकिन नहीं। संकल्प अर्थात् बीज को ही योगाग्नि में जला दो जो आधाकल्प तक बीज़ फल न दे सके। वाचा के दो मुख्य पत्ते भी निकल न सकें। कर्मणा का तना और टाल टालियाँ भी निकल न सकें। बहुत काल का भस्मीभूत बीज जन्म-जन्मान्तर के लिए फल नहीं देगा। अन्त में इस सबजेक्ट में सम्पूर्ण नहीं होना है लेकिन बहुत काल का अभ्यास ही अन्त में पास करायेगा। अन्त में सम्पूर्ण होंगे, इसी संकल्प को पहले खत्म करो। अभी बने तो अन्त में भी बनेंगे। अब नहीं तो अन्त में भी नहीं इसलिए इस अलबेले-पन की नींद से भी जग जाओ। इसमें भी सोया तो खोया। फिर उल्हना नहीं देना कि हमने समझा था अन्त में सम्पूर्ण होना है। अन्त में सम्पूर्ण होने के अर्थ को भी समझो। कोई भी विशेष कमजोरी को अन्त में सम्पूर्ण करेंगे, यह कभी भी संकल्प में भी नहीं लाओ। पुरुषार्थ कर ब्राह्मण जीवन का ज़ेवर भी अभी तैयार करना है। मर्यादायें और नियम पालन करने के नग भी अभी से लगाने हैं। पॉलिश भी अभी करनी है। अन्त में तो सिर्फ पॉलिश किये हुए को निमित्त मात्र हाथ लगाना है। बस। उस समय पॉलिश भी नहीं कर सकेंगे। सिर्फ अन्य आत्माओं की श्रेष्ठ सेवा के प्रति समय मिलेगा। उस समय पुरुषार्थी स्वरूप नहीं होगा। मास्टर दाता का स्वरूप होगा। देना ही लेना होगा। सिर्फ लेना खत्म तो पॉलिश कैसे करेंगे। अगर अपने में नग लगाने में ही रहेंगे तो विश्व-कल्याणकारी का पार्ट बजा नहीं सकेंगे इसलिए अभी मास्टर रचयिता बनने के संस्कार धारण करो। बचपन के संस्कार समाप्त करो। मास्टर रचयिता बन प्राप्त हुई शक्तियों व प्राप्त हुआ ज्ञान, गुण व सर्व खज़ाने औरों के प्रति वरदानी बन व महाज्ञानी बन व महादानी बनकर देते चलो। वरदानी अर्थात् अपनी शक्तियों द्वारा वायुमण्डल व वायब्रेशन के प्रभाव से आत्माओं को परिवर्तन करना। महाज्ञानी अर्थात् वाणी द्वारा व सेवा के साधनों द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करना। महादानी अर्थात् बिल्कुल निर्बल, दिलशिकस्त असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल दे करके रूहानी रहमदिल बनना। माया का भी रहमदिल बनना होता है। कोई गलत काम कर रहा है और आप तरस कर रहे हो तो यह माया का रहमदिल बनना है। ऐसे समय पर लॉफुल बनना भी पड़ता है। होता लगाव है और समझते हैं रहम। इसको कहा जाता है माया का रहम। ऐसा रहमदिल नहीं बनना है इसलिए कहा -रूहानी रहमदिल। नहीं तो शब्द का भी एडवान्टेज (लाभ) लेते हैं। तो महादानी अर्थात् बिल्कुल होपलेस केस में होप (उम्मींद) पैदा करना। अपनी शक्तियों के आधार से उनको सहयोग देना अर्थात् महादान देना, यह प्रजा के प्रति है। वारिस क्वालिटी के प्रति महादानी नहीं। दान सदा बिल्कुल ग़रीब को दिया जाता है। बेसहारे को सहारा दिया जाता है। तो प्रजा के प्रति महादानी व अन्त में भक्त आत्माओं के प्रति महादानी। आपस में एक दूसरे के प्रति ब्राह्मण महादानी नहीं। वह तो आपस में सहयोगी साथी हो। भाई-भाई हो व हमशरीक पुरुषार्थी हो। उन्हें सहयोग दो, दान नहीं देंगे। समझा। तो अब इस संकल्प को भी समाप्त कर लो। कभी हो जायेगा, यह ‘कब’ शब्द भी खत्म। तीव्र पुरुषार्थी ‘कब’ नहीं लेकिन ‘अब’ कहते हैं। तो सदा तीव्र पुरुषार्थी बनो।

ऐसे सदा विश्व-कल्याणकारी, महान पवित्र आत्माएं, संकल्प व स्वप्न में भी अपवित्रता से परे रहने वाले ऐसे परम पूज्य, अब भी माननीय गायन योग्य, कर्मयोगी, सदा स्व संकल्प और स्वरूप द्वारा सेवाधारी, ऐसे पुण्य आत्माओं को, वरदानी महादानी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ -

सभी एवररेडी और ऑलराउण्डर हो? एवररेडी माना ऑर्डर आया और चल पड़े अर्थात् ऑर्डर मिला और हाँ जी। क्या करें, कैसे करें - नहीं। क्या होगा, कैसे होगा, चल सकेंगे या नहीं चल सकेंगे, ऐसा संकल्प आया तो एवररेडी नहीं कहा जायेगा। तीव्र पुरुषार्थी की विशेषता है ही एवररेडी और ऑलराउण्डर। मन्सा सेवा का चान्स मिले या वाचा सेवा का चान्स मिले या कर्मणा सेवा का चान्स मिले लेकिन हर सबजेक्ट में नम्बर वन। ऐसे नहीं वाचा में नम्बरवन, कर्मणा में नम्बर टू और मन्सा में नम्बर थ्री। जितना स्नेह से वाचा सेवा करते हो उतना ही मन्सा सेवा भी कर सकें। मनसा सेवा का अभ्यास बढ़ाओ। वाचा सेवा तो 7 दिन के कोर्स वाले प्रवृत्ति वाले भी कर सकते हैं। आप का कार्य है - वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाना। अपने स्थान का, शहर का, भारत का व विश्व का वायुमण्डल पॉवरफुल बनाओ। चेक करो मन्सा सेवा में सफलता मिलती है? अगर मन्सा सेवा में सफलता होगी तो सदा स्वयं और सेवाकेन्द्र निर्विघ्न और चढ़ती कला में होगा। चढ़ती कला यह नहीं कि संख्या वृद्धि को पाये। चढ़ती कला संख्या में भी, क्वालिटी भी और वायुमण्डल भी तथा स्वयं साथियों में भी चढ़ती कला। इसको कहा जाता है - चढ़ती कला। तो ऐसे अनुभव करते हो? अमृतबेला स्वयं का पॉवरफुल है? ऐसे तो नहीं अमृतवेले में अलबेलापन विघ्न बनता हो। ऐसा पॉवरफुल अमृतवेला है जो विश्व को लाईट और माईट का वरदान दो? अमृतवेले की याद से आप अपने-आप से सन्तुष्ट हो?

मुख्य सबजेक्ट है ही याद की। बाप-दादा अमृतवेले जब चक्र लगाते हैं तो थोड़ा पॉवरफुल वायब्रेशन की कमी दिखाई देती है। नेमीनाथ तो बन जाते हैं, लेकिन अनुभवी मूर्त बनो। नियम प्रमाण तो जबरदस्ती हो गया ना। अगर अनुभव हो गया तो अपनी लगन में बैठेंगे। जिस बात का अनुभव होता है, तो न चाहते भी वह बात अपनी तरफ खींचती है। जैसे वाचा सर्विस से खुशी का अनुभव होता है तो न चाहते भी उस तरफ दौड़ते हो ना। ऐसे ही अमृतवेले को पॉवरफुल बनाओ, जिससे मन्सा सेवा का अनुभव बढ़ा सकेंगे। लास्ट में वाचा सेवा का चान्स नहीं होगा। मन्सा सेवा पर सर्टिफिकेट मिलेगा क्योंकि इतनी लम्बी क्यू होगी जो बोल नहीं सकेंगे। जैसे अभी भी मेला करते हो तो भीड़ के समय क्या करते हो? शान्ति से उनको शुभ भावना और कामना से दृष्टि देते हो ना। तो अन्त में भी जब प्रभाव निकलेगा तो क्या होगा? अभी तो स्थूल लाईट के प्रभाव से आते हैं फिर उस समय आप आत्मा की लाईट का प्रभाव होगा, उस समय मन्सा सेवा करनी पड़ेगी। नज़र से निहाल करना पड़ेगा। अपनी वृत्ति से उनकी वृत्ति बदलनी होगी। अपनी स्मृति से उनको समर्थ बनाना पड़ेगा। फिर उस समय भाषण करेंगे क्या? तो मन्सा सेवा का अभ्यास ज़रूरी है। अनुभवी मूर्त बन जाओ। जो दूसरों को कहो, वह स्व अनुभव के आधार से कहो, समझा मन्सा सेवा को बढ़ाओ। अभी निर्विघ्न वायुमण्डल बनाओ जिसमें कोई भी आत्मा की हिम्मत न हो विघ्न रूप बनने की। विघ्न आया उसको हटाया, यह भी टाइम वेस्ट हुआ। तो अब किले को मजबूत बनाओ। आपस में स्नेही सहयोगी बनकर चलो तो सभी फालो करेंगे। स्वयं जो करेंगे वैसे सब फालो करेंगे।

2. सभी अंगद के समान अचल अडोल रहने वाले हो ना। रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति ज़रा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके, नाखून को भी न हिला सके। संकल्प में हिलना अर्थात् नाखून हिलना। तो संकल्प रूप में भी न व्यक्ति, न परिस्थिति हिला सके, कभी कोई सम्बन्धी या दैवी परिवार का भी ऐसा निमित्त बन जाता है जो विघ्न रूप बन जाता है, लेकिन अंगद के समान सदा अचल रहने वाला सहज ही विघ्न वा परिस्थितियों को पार कर लेगा क्योंकि नॉलेजफुल है। वह जानता है कि यह विघ्न क्यों आया। ये विघ्न गिराने के लिए नहीं है लेकिन और ही मजबूत बनाने के लिए है। वह कन्फ्यूज नहीं होगा। जैसे इम्तिहान के हाल में जब पेपर आता है तो कमज़ोर स्टूडेन्ट कन्फ्यूज हो जाते हैं, अच्छे स्टूडेन्ट देखकर खुश होते हैं क्योंकि बुद्धि में रहता है कि यह पेपर देकर वह क्लास आगे बढ़ेगा। उन्हें मुश्किल नहीं लगता। कमज़ोर क्वेश्चन ही गिनती करते रहेंगे। ऐसा क्वेश्चन क्यों आया, ये किसने निकाला, क्यों निकाला तो यहाँ भी कोई निमित्त पेपर बनकर आता है तो यह क्वेश्चन नहीं उठना चाहिए कि यह क्यों करता है, ऐसा नहीं करना चाहिए। जो कुछ हुआ अच्छा हुआ, अच्छी बात उठा लो। जैसे हँस मोती चुगता है ना, कंकड़ को अलग कर देता है। दूध और पानी को अलग कर देता है। दूध ले लेता है, पानी छोड़ देता है। ऐसे कोई भी बात सामने आये तो पानी समझकर छोड़ दो। किसने मिक्स किया, क्यों किया - यह नहीं, इसमें भी टाइम वेस्ट हो जाता है। अगर क्यों, क्या करते इम्तिहान की अन्तिम घड़ी हो गई तो फेल हो जायेंगे। वेस्ट किया माना फेल हुआ। क्यों क्या में श्वास निकल जाए तो फेल। कोई भी बात फील करना माना फेल होना। माया शेर के रूप में भी आये तो आप योग की अग्नि जलाकर रखो, अग्नि के सामने कोई भी भयानक शेर जैसी चीज़ भी वार नहीं कर सकती। सदा योगाग्नि जगती रहे तो माया किसी भी रूप में आ नहीं सकती। सब विघ्न समाप्त हो जायेंगे।
वरदान:
सर्वगुण सम्पन्न बनने के साथ-साथ किसी एक विशेषता में विशेष प्रभावशाली भव!   
जैसे डाक्टर्स जनरल बीमारियों की नॉलेज तो रखते ही हैं लेकिन साथ-साथ किसी बात की विशेष नॉलेज में नामीग्रामी हो जाते हैं, ऐसे आप बच्चों को सर्वगुण सम्पन्न तो बनना ही है फिर भी एक विशेषता को विशेष रूप से अनुभव में लाते, सेवा में लाते आगे बढ़ते चलो। जैसे सरस्वती को विद्या की देवी, लक्ष्मी को धन की देवी कहकर पूजते हैं। ऐसे अपने में सर्वगुण, सर्वशक्तियां होते भी एक विशेषता में विशेष रिसर्च कर स्वयं को प्रभावशाली बनाओ।
स्लोगन:
विकारों रूपी सांपों को सहजयोग की शैया बना दो तो सदा निश्चिंत रहेंगे।