Thursday, September 3, 2015

मुरली 04 सितम्बर 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही उत्तम से उत्तम पुरूष बनना है, सबसे उत्तम पुरूष हैं यह लक्ष्मी-नारायण”

प्रश्न:

तुम बच्चे बाप के साथ-साथ कौन-सा एक गुप्त कार्य कर रहे हो?

उत्तर:

आदि सनातन देवी-देवता धर्म और दैवी राजधानी की स्थापना - तुम बाप के साथ गुप्त रूप से यह कार्य कर रहे हो। बाप बागवान है जो आकर कांटों के जंगल को फूलों का बगीचा बना रहे हैं। उस बगीचे में कोई भी खौफनाक दु:ख देने वाली चीज़ें होती नहीं।

गीतः

आखिर वह दिन आया आज........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अपना ईश्वरीय रूहानी बर्थ डे मनाना है, रूहानी कनेक्शन रखना है, ब्लड कनेक्शन नहीं। आसुरी जिस्मानी बर्थ डे भी कैन्सिल। वह फिर याद भी न आये।

2) अपना बैग बैगेज भविष्य के लिए तैयार करना है। अपने पैसे भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में सफल करने हैं। अपने पुरूषार्थ से अपने को राजतिलक देना है।

वरदान:

गोल्डन एजेड स्वभाव द्वारा गोल्डन एजेड सेवा करने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी भव!

जिन बच्चों के स्वभाव में ईर्ष्या, सिद्ध और जिद के भाव की अथवा किसी भी पुराने संस्कार की अलाए मिक्स नहीं है वे हैं गोल्डन एजेड स्वभाव वाले। ऐसा गोल्डन एजेड स्वभाव और सदा हाँ जी का संस्कार बनाने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी बच्चे जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड कर रीयल गोल्ड बन जाते हैं। सेवा में भी अभिमान वा अपमान की अलाए मिक्स न हो तब कहेंगे गोल्डन एजेड सेवा करने वाले।

स्लोगन:

क्यों क्या के प्रश्नों को समाप्त कर सदा प्रसन्नचित रहो।  


ओम् शांति ।

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04-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही उत्तम से उत्तम पुरूष बनना है, सबसे उत्तम पुरूष हैं यह लक्ष्मी-नारायण”  
प्रश्न:
तुम बच्चे बाप के साथ-साथ कौन-सा एक गुप्त कार्य कर रहे हो?
उत्तर:
आदि सनातन देवी-देवता धर्म और दैवी राजधानी की स्थापना - तुम बाप के साथ गुप्त रूप से यह कार्य कर रहे हो। बाप बागवान है जो आकर कांटों के जंगल को फूलों का बगीचा बना रहे हैं। उस बगीचे में कोई भी खौफनाक दु:ख देने वाली चीज़ें होती नहीं।
गीतः
आखिर वह दिन आया आज........  
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। समझायेंगे तो जरूर शरीर द्वारा। आत्मा शरीर बिगर कोई भी कार्य कर नहीं सकती। रूहानी बाप को भी एक ही बार पुरूषोत्तम संगमयुग पर शरीर लेना पड़ता है। यह संगमयुग भी है, इनको पुरूषोत्तम युग भी कहेंगे क्योंकि इस संगमयुग के बाद फिर सतयुग आता है। सतयुग को भी पुरूषोत्तम युग कहेंगे। बाप आकर स्थापना भी पुरूषोत्तम युग की करते हैं। संगमयुग पर आते हैं तो जरूर वह भी पुरूषोत्तम युग हुआ। यहाँ ही बच्चों को पुरूषोत्तम बनाते हैं। फिर तुम पुरूषोत्तम नई दुनिया में रहते हो। पुरूषोत्तम अर्थात् उत्तम ते उत्तम पुरूष यह राधे-कृष्ण अथवा लक्ष्मी-नारायण हैं। यह ज्ञान भी तुमको है। और धर्म वाले भी मानेंगे बरोबर यह हेविन के मालिक हैं। भारत की बड़ी भारी महिमा है। परन्तु भारतवासी खुद नहीं जानते। कहते भी हैं ना-फलाना स्वर्गवासी हुआ परन्तु स्वर्ग क्या चीज़ है, यह समझते नहीं। आपेही सिद्ध करते हैं स्वर्ग गया, इसका मतलब नर्क में था। हेविन तो जब बाप स्थापन करे। वह तो नई दुनिया को ही कहा जाता है। दो चीज़ें हैं ना - स्वर्ग और नर्क। मनुष्य तो स्वर्ग को लाखों वर्ष कह देते हैं। तुम बच्चे समझते हो कल स्वर्ग था, इन्हों की राजाई थी फिर बाप से वर्सा ले रहे हो।

बाप कहते हैं - मीठे लाडले बच्चे, तुम्हारी आत्मा पतित है इसलिए हेल में ही है। कहते भी हैं अभी कलियुग के 40 हज़ार वर्ष बाकी हैं, तो जरूर कलियुग वासी कहेंगे ना। पुरानी दुनिया तो है ना। मनुष्य बिचारे घोर अन्धियारे में हैं। पिछाड़ी में जब आग लगेगी तो यह सब खत्म हो जायेंगे। तुम्हारी प्रीत बुद्धि है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जितना प्रीत बुद्धि होगी उतना ऊंच पद पायेंगे। सवेरे उठकर बहुत प्यार से बाप को याद करना है। भल प्रेम के आंसू भी आयें क्योंकि बहुत समय के बाद बाप आकर मिले हैं। बाबा आप आकर हमको दु:ख से छुड़ाते हो। हम विषय सागर में गोते खाते कितना दु:खी होते आये हैं। अभी यह है रौरव नर्क। अभी तुमको बाबा ने सारे चक्र का रा॰ज समझाया है। मूलवतन क्या है - वह भी आकर बताया है। पहले तुम नहीं जानते थे, इसको कहते ही हैं कांटों का जंगल। स्वर्ग को कहा जाता है गार्डन आफ अल्लाह, फूलों का बगीचा। बाप को बागवान भी कहते हैं ना। तुमको फूल से फिर कांटा कौन बनाते हैं? रावण। तुम बच्चे समझते हो भारत फूलों का बगीचा था, अब जंगल है। जंगल में जानवर, बिच्छू आदि रहते हैं। सतयुग में कोई खौफनाक जानवर आदि होते नहीं। शास्त्रों में तो बहुत बातें लिख दी हैं। कृष्ण को सर्प ने डसा, यह हुआ। कृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। बाप ने समझाया है भक्ति बिल्कुल अलग चीज़ है, ज्ञान सागर एक ही बाप है। ऐसे नहीं कि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर ज्ञान के सागर हैं। नहीं, पतित-पावन एक ही ज्ञान सागर को कहेंगे। ज्ञान से ही मनुष्य की सद्गति होती है। सद्गति के स्थान हैं दो - मुक्तिधाम और जीवनमुक्तिधाम। अभी तुम बच्चे जानते हो यह राजधानी स्थापन हो रही है, परन्तु गुप्त। बाप ही आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं, तो सब अपने-अपने मनुष्य चोले में आते हैं। बाप को अपना चोला तो है नहीं, इसलिए इनको निराकार गॉड फादर कहा जाता है। बाकी सब हैं साकारी। इनको कहा जाता है इनकारपोरियल गॉड फादर, इनकारपोरियल आत्माओं का। तुम आत्मायें भी वहाँ रहती हो। बाप भी वहाँ रहते हैं। परन्तु है गुप्त। बाप ही आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। मूलवतन में कोई दु:ख नहीं। बाप कहते हैं तुम्हारा कल्याण है ही एक बात में - बाप को याद करो, मनमनाभव। बस, बाप का बच्चा बना, बच्चे को वर्सा अन्डरस्टुड है। अल्फ को याद किया तो वर्सा जरूर है - सतयुगी नई दुनिया का। इस पतित दुनिया का विनाश भी ज़रूर होना ही है। अमरपुरी में जाना ही है। अमरनाथ तुम पार्वतियों को अमरकथा सुना रहे हैं। तीर्थो पर कितने मनुष्य जाते हैं, अमरनाथ पर कितने जाते हैं। वहाँ है कुछ भी नहीं। सब है ठगी। सच की रत्ती भी नहीं। गाया भी जाता है झूठी काया झूठी माया... इसका भी अर्थ होना चाहिए। यहाँ है ही झूठ। यह भी ज्ञान की बात है। ऐसे नहीं कि ग्लास को ग्लास कहना झूठ है। बाकी बाप के बारे जो कुछ बोलते हैं वह झूठ बोलते हैं। सच बोलने वाला एक ही बाप है। अभी तुम जानते हो बाबा आकर सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं। झूठे हीरे-मोती भी होते हैं ना। आजकल झूठ का बहुत शो है। उनकी चमक ऐसी होती है सच्चे से भी अच्छे। यह झूठे पत्थर पहले नहीं थे। पिछाड़ी में विलायत से आये हैं। झूठे सच्चे साथ मिला देते हैं, पता नहीं पड़ता है। फिर ऐसी चीज़ें भी निकली जिससे परखते हैं। मोती भी ऐसे झूठे निकले जो ज़रा भी पता नहीं पड़ सकता। अभी तुम बच्चों को कोई संशय नहीं रहता। संशय वाले फिर आते ही नहीं। प्रदर्शनी में कितने ढेर आते हैं। बाप कहते हैं अब बड़े-बड़े दुकान निकालो, यह एक ही तुम्हारा सच्चा दुकान है। तुम सच्ची दुकान खोलते हो। बड़े-बड़े सन्यासियों के बड़े-बड़े दुकान होते हैं, जहाँ बड़े-बड़े मनुष्य जाते हैं। तुम भी बड़े-बड़े सेन्टर खोलो। भक्ति मार्ग की सामग्री बिल्कुल अलग है। ऐसे नहीं कहेंगे कि भक्ति शुरू से ही चली आई है। नहीं। ज्ञान से होती है सद्गति अर्थात् दिन। वहाँ सम्पूर्ण निर्विकारी विश्व के मालिक थे। मनुष्यों को यह भी पता नहीं कि यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी, और कोई धर्म होता नहीं। बच्चों ने गीत भी सुना। तुम समझते हो आखिर वह दिन आया आज संगम का, जो हम आकर अपने बेहद के बाप से मिले। बेहद का वर्सा पाने लिए पुरूषार्थ करते हैं। सतयुग में तो ऐसे नहीं कहेंगे-आखिर वह दिन आया आज। वो लोग समझते हैं-बहुत अनाज होगा, यह होगा। समझते हैं स्वर्ग की स्थापना हम करते हैं। समझते हैं स्टूडेन्ट का नया ब्लड है, यह बहुत मदद करेंगे इसलिए गवर्मेन्ट बहुत मेहनत करती है उन्हों पर। और फिर पत्थर आदि भी वही मारते हैं। हंगामा मचाने में पहले-पहले स्टूडेन्ट ही आगे रहते हैं। वह बड़े होशियार होते हैं। उनका न्यु ब्लड कहते हैं। अब न्यु ब्लड की तो बात नहीं। वह है ब्लड कनेक्शन, अभी तुम्हारा यह है रूहानी कनेक्शन। कहते हैं ना बाबा हम आपका दो मास का बच्चा हूँ। कई बच्चे रूहानी बर्थ डे मनाते हैं। ईश्वरीय बर्थ डे ही मनाना चाहिए। वह जिस्मानी बर्थ डे कैन्सिल कर देना चाहिए। हम ब्राह्मणों को ही खिलायेंगे। मनाना तो यह चाहिए ना। वह है आसुरी जन्म, यह है ईश्वरीय जन्म। रात-दिन का फ़र्क है, परन्तु जब निश्चय में बैठे। ऐसे नहीं, ईश्वरीय जन्म मनाकर फिर जाए आसुरी जन्म में पड़े। ऐसा भी होता है। ईश्वरीय जन्म मनाते-मनाते फिर रफू-चक्कर हो जाते हैं। आजकल तो मैरेज डे भी मनाते हैं, शादी को जैसे कि अच्छा शुभ कार्य समझते हैं। जहन्नुम में जाने का भी दिन मनाते हैं। वन्डर है ना। बाप बैठ यह सब बातें समझाते हैं। अब तुमको तो ईश्वरीय बर्थ डे ब्राह्मणों के साथ ही मनाना है। हम शिवबाबा के बच्चे हैं, हम बर्थ डे मनाते हैं तो शिवबाबा की ही याद रहेगी। जो बच्चे निश्चयबुद्धि हैं उनको जन्म दिन मनाना चाहिए। वह आसुरी जन्म ही भूल जाए। यह भी बाबा राय देते हैं। अगर पक्का निश्चय बुद्धि है तो। बस हम तो बाबा के बन गये, दूसरा न कोई फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाप की याद में मरा तो दूसरा जन्म भी ऐसा मिलेगा। नहीं तो अन्तकाल जो स्त्री सिमरे........ यह भी ग्रन्थ में है। यहाँ फिर कहते हैं अन्त समय गंगा का तट हो। यह सब है भक्ति मार्ग की बातें। तुमको बाप कहते हैं शरीर छूटे तो भी स्वदर्शन चक्रधारी हो। बुद्धि में बाप और चक्र याद हो। सो जरूर जब पुरूषार्थ करते रहेंगे तब तो अन्तकाल याद आयेगी। अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो क्योंकि तुम बच्चों को अब वापिस जाना है अशरीरी होकर। यहाँ पार्ट बजाते-बजाते सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हो। अब फिर सतोप्रधान बनना है। इस समय आत्मा ही इमप्योर है, तो शरीर प्योर फिर कैसे मिल सकेगा? बाबा ने बहुत मिसाल समझाये हैं फिर भी जौहरी है ना। खाद जेवर में नहीं, सोने में पड़ती है। 24 कैरेट से 22 कैरेट बनाना होगा तो चांदी डालेंगे। अभी तो सोना है नहीं। सबसे लेते रहते हैं। आजकल नोट भी देखो कैसे बनाते हैं। कागज़ भी नहीं है। बच्चे समझते हैं कल्प-कल्प ऐसा होता आया है। पूरी जांच रखते हैं। लॉकर्स आदि खुलाते हैं। जैसे किसकी तलाशी आदि ली जाती है ना। गायन भी है-किनकी दबी रही धूल में........ आग भी जोर से लगती है। तुम बच्चे जानते हो यह सब होना है इसलिए बैग-बैगेज तुम भविष्य के लिए तैयार कर रहे हो। और कोई को मालूम थोड़ेही है, तुमको ही वर्सा मिलता है 21 जन्म लिए। तुम्हारे ही पैसे से भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, जिसमें फिर तुम ही निवास करेंगे।

तुम बच्चे अपने ही पुरूषार्थ से आपेही राजतिलक लेते हो। गरीब निवाज़ बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने आये हैं लेकिन बनेंगे तो अपनी पढ़ाई से। कृपा या आशीर्वाद से नहीं। टीचर का तो पढ़ाना धर्म है। कृपा की बात नहीं। टीचर को गवर्मेन्ट से पगार मिलती है। सो तो जरूर पढ़ायेंगे। इतना बड़ा इज़ाफा मिलता है। पद्मापद्मपति बनते हो। कृष्ण के पांव में पद्म की निशानी देते हैं। तुम यहाँ आये हो भविष्य में पद्मपति बनने। तुम बहुत सुखी, साहूकार, अमर बनते हो। काल पर विजय पाते हो। इन बातों को मनुष्य समझ न सके। तुम्हारी आयु पूरी हो जाती है, अमर बन जाते हो। उन्होंने फिर पाण्डवों के चित्र लम्बे-चौड़े बना दिये हैं। समझते हैं पाण्डव इतने लम्बे थे। अब पाण्डव तो तुम हो। कितना रात-दिन का फ़र्क है। मनुष्य कोई जास्ती लम्बा तो होता नहीं। 6 फुट का ही होता है। भक्ति मार्ग में पहले-पहले शिवबाबा की भक्ति होती है। वह तो बड़ा बनायेंगे नहीं। पहले शिवबाबा की अव्यभिचारी भक्ति चलती है। फिर देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं। उनके फिर बड़े- बड़े चित्र बनाते हैं। फिर पाण्डवों के बड़े-बड़े चित्र बनाते हैं। यह सब पूजा के लिए चित्र बनाते हैं। लक्ष्मी की पूजा 12 मास में एक बार करते हैं। जगत अम्बा की पूजा रोज़ करते रहते हैं। यह भी बाबा ने समझाया है तुम्हारी डबल पूजा होती है। मेरी तो सिर्फ आत्मा यानी लिंग की ही होती है। तुम्हारी सालिग्राम के रूप में भी पूजा होती है और फिर देवताओं के रूप में भी पूजा होती है। रूद्र यज्ञ रचते हैं तो कितने सालिग्राम बनाते हैं तो कौन बड़ा हुआ? तब बाबा बच्चों को नमस्ते करते हैं। कितना ऊंच पद प्राप्त कराते हैं।

बाबा कितनी गुह्य-गुह्य बातें सुनाते हैं, तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। हमको भगवान पढ़ाते हैं भगवान-भगवती बनाने के लिए। कितना शुक्रिया मानना चाहिए। बाप की याद में रहने से स्वप्न भी अच्छे आयेंगे। साक्षात्कार भी होगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना ईश्वरीय रूहानी बर्थ डे मनाना है, रूहानी कनेक्शन रखना है, ब्लड कनेक्शन नहीं। आसुरी जिस्मानी बर्थ डे भी कैन्सिल। वह फिर याद भी न आये।
2) अपना बैग बैगेज भविष्य के लिए तैयार करना है। अपने पैसे भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में सफल करने हैं। अपने पुरूषार्थ से अपने को राजतिलक देना है।
वरदान:
गोल्डन एजेड स्वभाव द्वारा गोल्डन एजेड सेवा करने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी भव!  
जिन बच्चों के स्वभाव में ईर्ष्या, सिद्ध और जिद के भाव की अथवा किसी भी पुराने संस्कार की अलाए मिक्स नहीं है वे हैं गोल्डन एजेड स्वभाव वाले। ऐसा गोल्डन एजेड स्वभाव और सदा हाँ जी का संस्कार बनाने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी बच्चे जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड कर रीयल गोल्ड बन जाते हैं। सेवा में भी अभिमान वा अपमान की अलाए मिक्स न हो तब कहेंगे गोल्डन एजेड सेवा करने वाले।
स्लोगन:
क्यों क्या के प्रश्नों को समाप्त कर सदा प्रसन्नचित रहो।