Saturday, July 18, 2015

मुरली 19 जुलाई 2015

"आने वाली दुनिया कैसी होगी"

वरदान:-

दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को समाप्त करने वाले समर्थी स्वरूप भव!

दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थिति के वशीभूत होना, व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकर्षित होना-इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को दृढ़ संकल्प की अंगुली देकर सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् विजयी बनो। विजय हमारे गले की माला है-सदा इस स्मृति से समर्थी स्वरूप बनो। यही स्नेह का रिटर्न है। जैसे साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया ऐसे फालो फादर कर सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।

स्लोगन:-

साधन सेवाओं के लिए हैं, आरामपसन्द बनने के लिए नहीं।

ओम् शांति ।

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19-07-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:02-1-80 मधुबन

आने वाली दुनिया कैसी होगी?
आज बापदादा कौन-सी सभा को देख रहे हैं? यह है साहेबज़ादे और साहेबज़ादियाँ सो भविष्य में शहज़ादे-शहज़ादियों की सभा। सच्चे साहेब के बच्चे सब साहेबज़ादे और साहबज़ादियाँ हैं। यह नशा सदैव रहता है? शहज़ादे वा शहज़ादियों के जीवन से यह जीवन पदमगुणा श्रेष्ठ है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें अपनी श्रेष्ठता को जानते हुए निरन्तर उसी खुमारी में रहते हो? आज वतन में बाप और दादा दोनों की रूह-रूहान चल रही थी कि साहबज़ादे और साहबज़ादियों का महत्व कितना बड़ा है। भविष्य जीवन के सर्व संस्कार इस जीवन से ही आरम्भ होते हैं। भविष्य में राज्यवंश होने के कारण, राज्य अधिकारी होने के कारण सदा सर्व-सम्पत्ति से सम्पन्न हर वस्तु में मालामाल, सदा राजाई की रॉयल्टी में हर जन्म बितायेंगे। सर्व प्राप्तियाँ हरेक के जीवन में चारों ओर सेवा प्रति चक्कर लगाती रहेंगी। आप लोगों को प्राप्ति की इच्छा नहीं होगी लेकिन सर्व प्राप्तियाँ इच्छुक होंगी कि मेरे मालिक मुझे कार्य में लगायें। चारों और वैभवों की खानें भरपूर होंगी। हर वैभव अपना-अपना सुख देने के लिए सदा एवररेडी होंगे। सदा खुशी की शहनाईयाँ ऑटोमेटिकली बजती रहेंगी। बजाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आपकी रचना वनस्पति अपने विश्व-पति के आगे पत्तों के हिलने से वैराइटी प्रकार के साज़ बजायेगी। वृक्ष के पत्तों का झूलना, हिलना भिन्न-भिन्न प्रकार के नैचुरल साज़ होंगे। जैसे आजकल अनेक प्रकार के साज़ आर्टिफिशल बनाते हैं वैसे पंछियों की बोली वैराइटी साज़ होगी। चेतन खिलौने के समान अनेक प्रकार के खेल आपको दिखायेंगे। जैसे आजकल यहाँ मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियाँ सीखते हैं मनोरंजन के लिए, वैसे वहाँ के पंछी भिन्न- भिन्न सुन्दर आवाज़ों से आपके इशारे पर मनोरंजन करेंगे। इसी प्रकार यह फल और फूल होंगे। फल ऐसी वैराइटी रसना वाले होंगे जैसे यहाँ अलग-अलग नमक, मीठा अथवा मसाला आदि डालकर रसना करते हो, वैसे वहाँ नैचुरल फल भिन्न-भिन्न रसना के होंगे। यह शुगरमिल वगैरह नहीं होंगी लेकिन शुगरफल होगा। जैसी टेस्ट चाहिए वैसी नैचुरल फल से बना सकते हो। यह पत्तों की सब्जियाँ नहीं होगी लेकिन फल और फूल की सब्जियाँ होंगी। फूलों और फलों की सब्जियाँ बनायेंगे। दूध की तो नदियाँ होंगी। अच्छा अभी पियेंगे क्या? नैचुरल रस के फल अलग होंगे, खाने के अलग, पीने के अलग होंगे। मेहनत करके रस निकालना नहीं पड़ेगा। हरेक फल इतना भरपूर होगा जैसे अभी नारियल का पानी पीते हो ना। ऐसे फल उठाया, ज़रा-सा दबाया और रस पी लिया। नहाने के लिए पानी होगा, वो भी जैसे आजकल का गंगाजल जिसका पहाड़ों की जड़ी-बूटियों के कारण विशेष महत्व है, कीड़े नहीं पड़ते हैं, इसलिए पावन गाया जाता है। वैसे वहाँ पहाड़ों पर ऐसे खुशबू की जड़ी-बूटियों के समान बूटियाँ होंगी तो वहाँ से जल आने के कारण नैचुरल खुशबू वाला होगा। इत्र डालेंगे नहीं लेकिन नैचुरल पहाड़ों से क्रास करते हुए ऐसी खुशबू की बूटियाँ होंगी जो सुन्दर खुशबू वाला जल होगा।

वहाँ अमृतवेले टेप नहीं उठायेगी। नैचुरल पंछियों की आवाज़ ही साज़ होगी। जिस पर आप लोग उठेंगे। उठने का टाइम सवेरे ही होगा। लेकिन वहाँ थके हुए नहीं होंगे क्योंकि जब चेतन देवतायें जागें तब भक्ति में भी भक्त सवेरे उठकर जगाते हैं। भक्ति का महत्व भी अमृतवेले का है। जागेंगे सवेरे ही, लेकिन सदा ही जैसे जागती ज्योति हैं। कोई हार्ड वर्क है नहीं। न हार्ड वर्क है, न बुद्धि का वर्क है, न कोई बोझ है इसलिए जागना और सोना समान है। जैसे अभी सोचते हो न कि सवेरे उठना पड़ेगा, वहाँ यह संकल्प ही नहीं। अच्छा - पढ़ेंगे क्या? कि पढ़ने से छूटना चाहते हो? वहाँ की पढ़ाई भी एक खेल है। खेल-खेल में पढ़ेंगे। अपनी राजधानी की नॉलेज तो रखेंगे ना। तो राजधानी की नॉलेज की पढ़ाई है। लेकिन मुख्य सबजेक्ट वहाँ की ड्राइंग है। छोटे, बड़े सब आार्टिस्ट होंगे, चित्रकार होंगे। साज़, चित्रकार और खेल। साज़ अर्थात् गायन विद्या के संगीत गायेंगे, खेलेंगे, इसी में पढ़ाई पढ़ेंगे। वहाँ की हिस्ट्री भी संगीत और कविताओं में होगी ऐसी सीधी-सीधी बोर करने वाली नहीं होगी। रास भी एक खेल है ना। नाटक भी करेंगे, बाकी सिनेमा नहीं होंगे। नाटक होगा। नाटक हँसी के मनोरंजन के होंगे। नाटकशालायें काफी होंगी। वहाँ के महलों के अन्दर भी विमानों की लाइन लगी होगी और विमान भी चलाने के बहुत सहज होंगे। एटॉमिक एनर्जी के आधार पर सब काम चलेगा। यह आप लोगों के कारण लास्ट इन्वेन्शन निकली है।

करेन्सी में अशार्फियाँ होंगी। लेकिन आजकल जैसी नहीं होगी। रूप-रेखा परिवर्तित होगी। डिज़ाइन और अच्छी-अच्छी होंगी। निमित्त मात्र लेन-देन होगी। जैसे यहाँ मधुबन में परिवार होते हुए भी चार्ज वाले अलग-अलग बनाये हुए हैं ना। अलग-अलग डिपार्टमेंट बनाए हुए हैं। परिवार होते भी चार्ज वाले से लेते हो ना। एक देता है दूसरा लेता है। ऐसे वहाँ भी फैमिली सिस्टम होगा। दुकानदार और ग्राहक का भाव नहीं होगा। मालिकपन का ही भाव होगा। सिर्फ आपस में एक्सचेन्ज करेंगे। कुछ देंगे कुछ लेंगे, कमी तो किसी को भी नहीं होगी। प्रजा को भी कमी नहीं होगी। प्रजा भी अपने शरीर निर्वाह से पदमगुणा भरपूर होगी इसलिए मैं ग्राहक हूँ, यह मालिक है - यह भाव नहीं रहेगा। स्नेह की लेन-देन होगी। हिसाब-किताब की खींचातान नहीं होगी। रजिस्टर नहीं होंगे।

रतन जड़ित साज़ होंगे। नैचुरल साज होंगे। मेहनत वाले नहीं होंगे। अंगुली रखी और बजा। ड्रेस तो बहुत अच्छी पहनेंगे। जैसा कार्य होगा वैसी ड्रेस होगी। जैसा स्थान वैसी ड्रेस। भिन्न-भिन्न कार्य में अलग-अलग ड्रेस पहनेंगे। श्रृंगार भी बहुत प्रकार के होंगे। भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज़ होंगे, गहने होंगे। लेकिन बोझ वाले नहीं होंगे। रूई से भी हल्के होंगे। रीयल गोल्ड होगा और उसमें हीरे ऐसे होंगे जो भिन्न-भिन्न रंग की लाइट्स हर हीरे से नज़र आयेंगी। एक हीरे से 7 रंग दिखाई देंगे। यहाँ भिन्न-भिन्न रंग की ट्यूब्स लगाते हो ना। वहाँ हीरे ही भिन्न-भिन्न रंग के ट्यूब्स मुआफ़िक चमकेंगे। हरेक का महल रंग-बिरंगी लाइट से सजा हुआ होगा। जैसे यहाँ अनेक आइने रखकर एक चीज़ अनेक रूप में दिखाते हो, ऐसे वहाँ की जवाहरात ऐसी होगी जो ऊपर की सीन एक के बजाए अनेक रूप में दिखाई देगी। सोने की लाइट और हीरों की लाइट अर्थात् चमक दोनों के मेल से महल जगमगाता हुआ नज़र आयेगा। सूर्य की किरणों से हीरे और सोना ऐसे चमकेंगे जैसे हज़ारों लाइट्स जल रही हैं। इतनी तारों (वायर्स) आदि की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बहुत सुन्दर प्रकार के जैसे आजकल की राजाई फैमली में बिजलियों की जगमग देखते हो, भिन्न-भिन्न प्रकार की लैम्पस की डिज़ाइन देखते हो। वहाँ रीयल हीरों के होने के कारण एक दीपक अनेक दीपकों का कार्य करेगा। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। सब नैचुरल होगा।

भाषा तो बहुत शुद्ध हिन्दी ही होगी। हर शब्द वस्तु को सिद्ध करेगा - ऐसी भाषा होगी। (विदेशियों को) आपकी इंगलैण्ड और अमेरिका कहाँ जायेंगे? वहाँ महल नहीं बनाना। महल तो भारत में बनाना। वहाँ सिर्फ घूमने के लिए जाना। वह पिकनिक के स्थान, घूमने के स्थान होंगे। वह भी थोड़े-बहुत होंगे, सभी नहीं। विमान शुरू किया और आवाज़ से भी पहले पहुँच जायेंगे। इतनी तेज़ स्पीड विमान की होगी। जैसे फोन में बात करते हो ना, इतना जल्दी विमान से पहुँच जायेंगे इसलिए फोन करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। विमान भी फैमली के भी होंगे और एक-एक के भी होंगे। जिस समय जो चाहिए वह यूज़ करो। अब बैठ गये विमान में। अभी सतयुगी विमान छोड़कर बुद्धि के विमान में आ जाओ। बुद्धि का विमान भी ऐसी स्पीड वाला है? संकल्प की स्पीड का है? संकल्प किया और चाँद सितारों से भी परे अपने घर पहुँच गये। ऐसे बुद्धि का विमान सदा एवररेडी है? सदा विघ्नों से परे है? जो किसी भी प्रकार का एक्सीडेंट न हो। जाना चाहें परमधाम में और धरती को ही छोड़ न सकें या और कोई पहाड़ी से टकराकर गिर जाएँ। व्यर्थ संकल्प भी एक पहाड़ी से टकराना है। तो एक्सीडेंट से परे एवररेडी बुद्धि का विमान है? पहले इस विमान पर चढ़ेंगे तब वह विमान मिलेगा। ऐसे एवररेडी हो? जैसे स्वर्ग की बातों में हाँ-हाँ करते रहे वैसे इन बातों में हाँ-हाँ नहीं करते हो!

आज वतन में स्वर्ग का नक्शा निकाला था, इसलिए आप लोगों को भी सुनाया। ब्रह्मा बाप तैयारी कर रहे हैं ना स्वर्ग में जाने की तो स्वर्ग के नक्शे निकाल रहे हैं। आप सब तैयार हो ना? तैयारी कौन-सी है वह तो मालूम है ना? कौन बाप के साथ स्वर्ग के गेट से पास करेंगे। उसकी पास ले ली है? गेट-पास तो ले ली है लेकिन बाप के साथ गेट पास करने की पास हो। एक वी.आई.पी. गेट पास होती है और एक राष्ट्रपति की भी पास होती है। यह विश्वपति की गेट पास है। कौन-सी गेट- पास ली है? अपने पास का चेक करना।

ऐसे वर्तमान साहेबज़ादे सो शहजादे, प्रकृति के मालिक सो विश्व के मालिक, मायाजीत सो जगतजीत, एक संकल्प की विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करने वाले, ऐसे सर्व सिद्धि स्वरूप, सदा पास रहने वाले और पास हो साथ में पास करने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात (दिल्ली जोन)

1)अपनी राजधानी को सजाने के लिए याद और सेवा का बैलेन्स रखो -

सभी ने अपनी राजधानी का समाचार तो सुना। अभी राजधानी को तैयार करने के लिए दिल्ली निवासियों की विशेष ज़िम्मेवारी है। ऐसे ज़िम्मेवार समझकर चलते हो? ऐसे तो नहीं सेवा औरों को करनी है और मेवा आपको खानी है। सेवा करके मेवा खाना है। वैसे भी देखो जो काम करके, अपनी मेहनत से, प्यार से, चीज़ तैयार करते हैं तो उनको विशेष खुशी होती है। तो आप सब विशेष कौन-सी ज़िम्मेवारी लेकर राजधानी को तैयार कर रहे हो? राजधानी को सजाने वाले सेवा और याद के बैलेन्स में रहो। हर संकल्प में भी सेवा हो। जब हर संकल्प में सेवा होगी तो व्यर्थ से छूट जायेंगे। तो चेक करना चाहिए जो संकल्प उठा, जो सेकेण्ड बीता उसमें सेवा और याद का बैलेन्स रहा? तो रिजल्ट क्या होगी? हर कदम में चढ़ती कला। हर कदम में पदम जमा होते रहेंगे तब तो राज्य-अधिकारी बनेंगे। तो सेवा और याद का चार्ट रखो। सेवा एक जीवन का अंग बन जाए। जैसे शरीर में सब अंग जरूरी हैं, वैसे ब्राह्मण जीवन का विशेष अंग सेवा है। बहुत सेवा का चान्स मिलना भी भाग्य की निशानी है। स्थान मिलना, संग मिलना, चान्स मिलना - यह भी भाग्य की निशानी है। आप सबको सेवा का गोल्डन चान्स है। जम्प लगाने का सहयोग मिला है। तो सेवा का सबूत देना चाहिए ना। मनसा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध और सम्पर्क से रोज़ सेवा की मार्क्स ज़रूर जमा करनी चाहिए। हर सेवाकेन्द्र पर हर वैराइटी का यादगार गुलदस्ता ज़रूर होना चाहिए। सब प्रकार के वी.आई.पी. के सैम्पल होने चाहिए। वी.आई.पी. की सेवा विशेष स्थान को करनी चाहिए।

2) एकरस स्थिति बनाने का सहज साधन - एक बाप से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करो- सदा एक बाप की याद में रहने वाले, एक बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले, एकरस स्थिति में रहते हो? एक बाप द्वारा सर्व रस अर्थात् सर्व प्राप्ति का अनुभव करने वाले, इसको कहा जाता है - एक रस स्थिति में रहने वाले - ऐसे रहते हो? दूसरा कोई भी दिखाई न दे। है कुछ जो दिखाई दे? सिवाए बाप के और कोई देखने की वस्तु है, जो देखो? बाप के सिवाए कोई सुनाने वाला है जिससे सुनो? बहुतों को देख भी लिया, सुन भी लिया और उसका परिणाम भी देख लिया। अभी एक की याद में एकरस। बहुतों को छोड़ एक की याद, एक को देखो, एक से सुनो, एक से बेठो ....अनेकों से निभाना मुश्किल होता है, एक से सहज होता है। अनेक जन्म अनेकों से निभाया। बाप से अलग, टीचर से अलग, गुरू से अलग...अब सहज तरीका बाप ने बताया कि एक से निभाओ। जहाँ देखो वहाँ एक ही देखो, इसी को ही भावना के कारण भक्ति में सर्वव्यापी कह दिया है। वह कह देते तू ही तू...आप सदा बाप के साथ का अनुभव करते हो। जहाँ जाओ वहाँ बाप ही बाप अनुभव हो।

3) मेरापन समाप्त करने से डबल लाइट की स्थिति- सभी ने बाप से पूरा-पूरा अधिकार ले लिया है? पूरा अधिकार लेने के लिए पुराना सब-कुछ देना पड़े। तो दोनों सौदे किये हैं ना? या तेरा सो मेरा लेकिन मेरे को हाथ नहीं लगाना - ऐसे तो नहीं। जब एक शब्द बदल जाता है अर्थात् मेरा तेरे में बदल जाता है तो डबल लाइट हो जाते हैं। ज़रा भी मेरापन आया तो ऊपर से नीचे आ जाते हैं। तेरा तेरे अर्पण, सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहेंगे अर्थात् ऊंची स्थिति में रहेंगे।
वरदान:
दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को समाप्त करने वाले समर्थी स्वरूप भव!   
दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थिति के वशीभूत होना, व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकर्षित होना-इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को दृढ़ संकल्प की अंगुली देकर सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् विजयी बनो। विजय हमारे गले की माला है-सदा इस स्मृति से समर्थी स्वरूप बनो। यही स्नेह का रिटर्न है। जैसे साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया ऐसे फालो फादर कर सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।
स्लोगन:
साधन सेवाओं के लिए हैं, आरामपसन्द बनने के लिए नहीं।