Wednesday, July 1, 2015

मुरली 02 जुलाई 2015

“मीठे बच्चे-इस शरीर की वैल्यु तब है जब इसमें आत्मा प्रवेश करे, लेकिन सजावट शरीर की होती, आत्मा की नहीं”

प्रश्न:

तुम बच्चों का फ़र्ज़ क्या है? तुम्हें कौन-सी सेवा करनी है?

उत्तर:

तुम्हारा फ़र्ज़ है - अपने हमजिन्स को नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की युक्ति बताना। तुम्हें अब भारत की सच्ची रूहानी सेवा करनी है। तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम्हारी बुद्धि और चलन बड़ी रिफाइन होनी चाहिए। किसी में मोह ज़रा भी न हो।

गीतः

नयन हीन को राह दिखाओ.............

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अभी हम बाप द्वारा बर्थ पाउण्ड बने हैं, हम सो देवता बनने वाले हैं, इसी नारायणी नशे में रहना है, बन्धन-मुक्त बन सेवा करनी है। बन्धनों में फंसना नहीं है।

2) ज्ञान-योग में तीखे बन मात-पिता समान किंग आफ फ्लावर बनना है और अपने हमजिन्स की भी सेवा करनी है।

वरदान:

बाप की छत्रछाया के नीचे नाज़ुक परिस्थितियों में भी कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे भव!

संगमयुग पर जब बाप सेवाधारी बन करके आते हैं तो छत्रछाया के रूप में बच्चों की सदा सेवा करते हैं। याद करते ही सेकण्ड में साथ का अनुभव होता है। यह याद की छत्रछाया कैसी भी नाज़ुक परिस्थितियों में कमल पुष्प के समान न्यारा और प्यारा बना देती है। मेहनत नहीं लगती। बाप को सामने लाने से, स्व स्थिति में स्थित होने से कैसी भी परिस्थिति परिवर्तन हो जाती है।

स्लोगन:

बातों का पर्दा बीच में आने न दो तो बाप के साथ का अनुभव होता रहेगा।

ओम् शांति ।

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02-07-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे-इस शरीर की वैल्यु तब है जब इसमें आत्मा प्रवेश करे, लेकिन सजावट शरीर की होती, आत्मा की नहीं”   
प्रश्न:
तुम बच्चों का फ़र्ज़ क्या है? तुम्हें कौन-सी सेवा करनी है?
उत्तर:
तुम्हारा फ़र्ज़ है - अपने हमजिन्स को नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की युक्ति बताना। तुम्हें अब भारत की सच्ची रूहानी सेवा करनी है। तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम्हारी बुद्धि और चलन बड़ी रिफाइन होनी चाहिए। किसी में मोह ज़रा भी न हो।
गीतः
नयन हीन को राह दिखाओ..............  
ओम् शान्ति।
डबल शान्ति। तुम बच्चों को रेसपान्ड करना चाहिए ओम् शान्ति। हमारा स्वधर्म है शान्ति। तुम अभी शान्ति के लिए थोड़ेही कहाँ जायेंगे। मनुष्य मन की शान्ति के लिए साधू-सन्तों के पास भी जाते हैं ना। अब मन-बुद्धि तो हैं आत्मा के आरगन्स। जैसे यह शरीर के आरगन्स हैं वैसे मन, बुद्धि और चक्षु। अब चक्षु जैसे यह नयन हैं, वैसे वह नहीं हैं। कहते हैं-हे प्रभू, नयन हीन को राह बताओ। अब प्रभू वा ईश्वर कहने से वह बाप का लव नहीं आता है। बाप से तो बच्चों को वर्सा मिलता है। यहाँ तो तुम बाप के सामने बैठे हो। पढ़ते भी हो। तुमको कौन पढ़ाते हैं? तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि परमात्मा वा प्रभू पढ़ाते हैं। तुम कहेंगे शिवबाबा पढ़ाते हैं। बाबा अक्षर तो बिल्कुल सिम्पल है। है भी बापदादा। आत्मा को आत्मा ही कहा जाता है, वैसे वह परम आत्मा है। वह कहते हैं मैं परम आत्मा यानी परमात्मा तुम्हारा बाप हूँ। फिर मुझ परम आत्मा का ड्रामा अनुसार नाम रखा हुआ है शिव। ड्रामा में सबका नाम भी चाहिए ना। शिव का मन्दिर भी है। भक्ति मार्ग वालों ने तो एक के बदले अनेक नाम रख दिये हैं। और फिर ढेर के ढेर मन्दिर बनाते रहते हैं। ची॰ज एक ही है। सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा है, कितना सजाते हैं। महलों आदि की भी कितनी सजावट रखते हैं। आत्मा की तो कोई सजावट नहीं है, वैसे परम आत्मा की भी सजावट नहीं है। वह तो बिन्दी है। बाकी जो भी सजावट है, वह शरीरों की है। बाप कहते हैं-न हमारी सजावट है, न आत्माओं की सजावट है। आत्मा है ही बिन्दी। इतनी छोटी बिन्दी तो कुछ पार्ट बजा न सके। वह छोटी-सी आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो शरीर की कितने प्रकार की सजावट होती है। मनुष्यों के कितने नाम हैं। किंग क्वीन की सजावट कैसे होती है, आत्मा तो सिम्पुल बिन्दी है। अभी तुम बच्चों ने यह भी समझा है। आत्मा ही ज्ञान धारण करती है। बाप कहते हैं मेरे में भी ज्ञान है ना। शरीर में थोड़ेही ज्ञान होता है। मुझ आत्मा में ज्ञान है, मुझे यह शरीर लेना पड़ता है तुमको सुनाने के लिए। शरीर बिगर तो तुम सुन न सको। अब यह गीत बनाया है, नयन हीन को राह बताओ...... क्या शरीर को राह बतानी है? नहीं। आत्मा को। आत्मा ही पुकारती है। शरीर को तो दो नेत्र हैं। तीन तो हो न सकें। तीसरे नेत्र का यहाँ (मस्तक में) तिलक भी देते हैं। कोई सिर्फ बिन्दी मुआफ़िक देते हैं, कोई लकीर निकालते हैं। बिन्दी तो है आत्मा। बाकी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। आत्मा को पहले यह ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं था। कोई भी मनुष्य मात्र को यह ज्ञान नहीं है, इसलिए ज्ञान नेत्रहीन कहा जाता है। बाकी यह आँखें तो सबको हैं। सारी दुनिया में कोई को यह तीसरा नेत्र नहीं है। तुम हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल के। तुम जानते हो भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में कितना फ़र्क है। तुम रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानकर चक्रवर्ती राजा बनते हो। जैसे आई. सी. एस. वाले भी बहुत ऊंचा पद पाते हैं। परन्तु यहाँ कोई पढ़ाई से एम.पी. आदि नहीं बनते हैं। यहाँ तो चुनाव होते हैं, वोट्स पर एम.पी. आदि बनते हैं। अभी तुम आत्माओं को बाप की श्रीमत मिलती है। और कोई भी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम आत्मा को मत देते हैं। वह तो सब हैं देह-अभिमानी। बाप ही आकर देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। सब हैं देह-अभिमानी। मनुष्य शरीर का कितना भभका रखते हैं। यहाँ तो बाप आत्माओं को ही देखते हैं। शरीर तो विनाशी, वर्थ नाट ए पेनी है। जानवरों की तो फिर भी खाल आदि बिकती है। मनुष्य का शरीर तो कोई काम में नहीं आता। अब बाप आकर वर्थ पाउण्ड बनाते हैं।

तुम बच्चे जानते हो कि अभी हम सो देवता बन रहे हैं तो यह नशा चढ़ा रहना चाहिए। परन्तु यह नशा भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रहता है। धन का भी नशा होता है ना। अभी तुम बच्चे बहुत धनवान बनते हो। तुम्हारी बहुत कमाई हो रही है। तुम्हारी महिमा भी अनेक प्रकार की है। तुम फूलों का बगीचा बनाते हो। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स। इसका सैपलिंग कब लगता है-यह भी किसको पता नहीं। तुमको बाप समझाते हैं। बुलाते भी हैं-हे बागवान आओ। उनको माली नहीं कहेंगे। माली तुम बच्चे हो जो सेन्टर्स सम्भालते हो। माली अनेक प्रकार के होते हैं। बागवान एक ही है। मुगल गार्डन के माली को पगार भी इतना बड़ा मिलता होगा ना। बगीचा ऐसा सुन्दर बनाते हैं जो सब देखने आते हैं। मुगल लोग बहुत शौकीन होते थे, उनकी स्त्री मरी तो ताजमहल बनाया। उनका नाम चला आता है। कितने अच्छे- अच्छे यादगार बनाये हैं। तो बाप समझाते हैं, मनुष्य की कितनी महिमा होती है। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। लड़ाई में ढेर के ढेर मनुष्य मरते हैं फिर क्या करते हैं। घासलेट, पेट्रोल डाल खलास कर देते हैं। कोई तो ऐसे ही पड़े रहते हैं। दफन थोड़ेही करते हैं। कुछ भी मान नहीं। तो अब तुम बच्चों को कितना नारायणी नशा चढ़ना चाहिए। यह है विश्व के मालिकपने का नशा। सत्य नारायण की कथा है तो जरूर नारायण ही बनेंगे। आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। देने वाला है बाप। तीजरी की कथा भी है। इन सबका अर्थ बाप बैठ समझाते हैं। कथा सुनाने वाले कुछ भी नहीं जानते। अमरकथा भी सुनाते हैं। अब अमरनाथ पर कहाँ दूर-दूर जाते हैं। बाप तो यहाँ आकर सुनाते हैं। ऊपर तो सुनाते नहीं हैं। वहाँ थोड़ेही पार्वती को बैठ अमरकथा सुनाई। यह कथायें आदि जो बनाई हैं - यह भी ड्रामा में नूँध हैं। फिर भी होगा। बाप बैठ तुम बच्चों को भक्ति और ज्ञान का कान्ट्रास्ट बताते हैं। अभी तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। कहते हैं ना-हे प्रभू, अन्धों को राह बताओ। भक्ति मार्ग में पुकारते हैं। बाप आकर तीसरा नेत्र देते हैं जिसका कोई को पता नहीं है सिवाए तुम्हारे। ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है तो कहेंगे चूँचा, धुंधकारी। आँखें भी कोई की कैसी, कोई की कैसी होती है ना। कोई की बहुत शोभावान आँखें होती हैं। फिर उस पर इनाम भी मिलता है फिर नाम रखते हैं मिस इन्डिया, मिस फलानी। तुम बच्चों को अब बाप क्या से क्या बनाते हैं। वहाँ तो नैचुरल ब्युटी रहती है। कृष्ण की इतनी महिमा क्यों है? क्योंकि सबसे जास्ती ब्युटीफुल बनते हैं। नम्बरवन में कर्मातीत अवस्था को पाते हैं, इसलिए नम्बरवन में गायन है। यह भी बाप बैठ समझाते हैं। बाप बार-बार कहते हैं-बच्चे, मनमनाभव। हे आत्मायें अपने बाप को याद करो। बच्चों में भी नम्बरवार तो हैं ना। लौकिक बाप को भी समझो 5 बच्चे हैं, उनमें जो बहुत सयाना होगा उनको नम्बरवन रखेंगे। माला का दाना हुआ ना। कहेंगे यह दूसरा नम्बर है, यह तीसरा नम्बर है। एक जैसे कभी नहीं होते हैं। बाप का प्यार भी नम्बरवार होता है। वह है हद की बात। यह है बेहद की बात।

जिन बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है उनकी बुद्धि और चलन आदि बड़ी रिफाइन होती है। एक किंग ऑफ फ्लावर होता है तो यह ब्रह्मा और सरस्वती किंग क्वीन फ्लावर ठहरे। ज्ञान और याद दोनों में तीखे हैं। तुम जानते हो हम देवता बनते हैं। मुख्य 8 रत्न बनते हैं। पहले-पहले है फूल। फिर युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती। माला सिमरते हैं ना। वास्तव में तुम्हारा पूजन नहीं है, सिमरण है। तुम्हारे ऊपर फूल नहीं चढ़ सकते हैं। फूल तब चढ़े जब शरीर भी पवित्र हो। यहाँ कोई का भी शरीर पवित्र नहीं है। सब विष से पैदा होते हैं, इसलिए विकारी कहा जाता है। इन लक्ष्मी-नारायण को कहते ही है सम्पूर्ण निर्विकारी। बच्चे तो पैदा होते होंगे ना। ऐसे तो नहीं कोई ट्यूब से बच्चा पैदा हो जायेगा। यह भी सब समझने की बातें हैं। तुम बच्चों को यहाँ 7 रोज़ भट्ठी में बिठाया जाता है। भट्ठी में ईटें कोई तो पूरी पक जाती हैं, कोई कच्ची रह जाती हैं। भट्ठी का मिसाल देते हैं। अब ईट की भट्ठी का थोड़ेही शास्त्रों में वर्णन हो सकता है। फिर उसमें बिल्ली की भी बात है। गुलबकावली की कहानी में भी बिल्ली का नाम दिखाया है। दीवे (दीपक) को बुझा देती थी। तुम्हारा भी यह हाल होता है ना। माया बिल्ली विघ्न डाल देती है। तुम्हारी अवस्था को ही गिरा देती है। देह-अभिमान है पहला नम्बर फिर और विकार आते हैं। मोह भी बहुत होता है। बच्ची कहे मैं भारत को स्वर्ग बनाने की रूहानी सेवा करूँगी, मोह वश माँ-बाप कहते हम एलाऊ नहीं करेंगे। यह भी कितना मोह है। तुम्हें मोह की बिल्ली या बिल्ला नहीं बनना है। तुम्हारी एम आबजेक्ट ही यह है। बाप आकर मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनाते हैं। तुम्हारा भी फ़र्ज़ है अपने हमजिन्स की सेवा करना, भारत की सर्विस करना। तुम जानते हो हम क्या थे, क्या बन गये हैं। अब फिर पुरूषार्थ करो राजाओं का राजा बनने के लिए। तुम जानते हो हम अपना राज्य स्थापन करते हैं। कोई तकलीफ की बात नहीं। विनाश के लिए भी ड्रामा में युक्ति रची हुई है। आगे भी मूसलों से लड़ाई लगी थी। जब तुम्हारी पूरी तैयारी हो जायेगी सब फूल बन जायेंगे तब विनाश होगा। कोई किंग ऑफ फ्लावर हैं, कोई गुलाब, कोई मोतिया हैं। हर एक अपने को अच्छी रीति समझ सकते हैं कि हम अक हैं वा फूल हैं? बहुत हैं जिनको ज्ञान की कुछ धारणा नहीं होती है। नम्बरवार तो बनेंगे ना। या तो बिल्कुल हाइएस्ट, या तो बिल्कुल लोएस्ट। राजधानी यहाँ ही बनती है। शास्त्रों में तो दिखाया है पाण्डव गल मरे फिर क्या हुआ, कुछ भी पता नहीं। कथायें तो बहुत बनाई हैं, ऐसी कोई बात है नहीं। अभी तुम बच्चे कितने स्वच्छ बुद्धि बनते हो। बाबा तुमको बहुत प्रकार से समझाते रहते हैं। कितना सहज है। सिर्फ बाप को और वर्से को याद करना है। बाप कहते हैं मैं ही पतित-पावन हूँ। तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं। अब पावन बनना है। आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र बनता है। अभी तुमको बहुत मेहनत करनी है। बाप कहते हैं-बच्चे बहुत कमज़ोर हैं। याद भूल जाती है। बाबा खुद अपना अनुभव बताते हैं। भोजन पर याद करता हूँ-शिवबाबा हमको खिलाते हैं फिर भूल जाते हैं। फिर स्मृति में आता है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं। कोई तो बन्धनमुक्त होते हुए भी फिर फँस मरते हैं। धर्म के भी बच्चे बना देते हैं। अभी तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र देने वाला बाप मिला हुआ है-इनको फिर नाम दिया है तीजरी की कथा अर्थात् तीसरा नेत्र मिलने की कथा। अब तुम नास्तिक से आस्तिक बनते हो। बच्चे जानते हैं बाप बिन्दी है। ज्ञान का सागर है। वह तो कह देते नाम-रूप से न्यारा है। अरे, ज्ञान का सागर तो जरूर ज्ञान सुनाने वाला होगा ना। इनका रूप भी लिंग दिखाते हैं फिर उनको नाम-रूप से न्यारा कैसे कहते! सैकड़ों नाम रख दिये हैं। बच्चों की बुद्धि में यह सारा ज्ञान अच्छी रीति रहना चाहिए। कहते भी हैं परमात्मा ज्ञान का सागर है। सारा जंगल कलम बनाओ तो भी अन्त नहीं हो सकता है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अभी हम बाप द्वारा बर्थ पाउण्ड बने हैं, हम सो देवता बनने वाले हैं, इसी नारायणी नशे में रहना है, बन्धन-मुक्त बन सेवा करनी है। बन्धनों में फंसना नहीं है।
2) ज्ञान-योग में तीखे बन मात-पिता समान किंग आफ फ्लावर बनना है और अपने हमजिन्स की भी सेवा करनी है।
वरदान:
बाप की छत्रछाया के नीचे नाज़ुक परिस्थितियों में भी कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे भव!   
संगमयुग पर जब बाप सेवाधारी बन करके आते हैं तो छत्रछाया के रूप में बच्चों की सदा सेवा करते हैं। याद करते ही सेकण्ड में साथ का अनुभव होता है। यह याद की छत्रछाया कैसी भी नाज़ुक परिस्थितियों में कमल पुष्प के समान न्यारा और प्यारा बना देती है। मेहनत नहीं लगती। बाप को सामने लाने से, स्व स्थिति में स्थित होने से कैसी भी परिस्थिति परिवर्तन हो जाती है।
स्लोगन:
बातों का पर्दा बीच में आने न दो तो बाप के साथ का अनुभव होता रहेगा।