Sunday, May 3, 2015

मुरली 03 मई 2015

03-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ``अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज:28-11-79 मधुबन 
प्रवृत्ति में रहते भी निवृत्ति में कैसे रहें? 


वरदान:- संगमयुग की सर्व प्राप्तियों को स्मृति में रख चढ़ती कला का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ प्रारब्धी भव 

परमात्म मिलन वा परमात्म ज्ञान की विशेषता है-अविनाशी प्राप्तियां होना। ऐसे नहीं कि संगमयुग पुरूषार्थी 
जीवन है और सतयुगी प्रारब्धी जीवन है। संगमयुग की विशेषता है एक कदम उठाओ और हजार कदम प्रारब्ध 
में पाओ। तो सिर्फ पुरूषार्थी नहीं लेकिन श्रेष्ठ प्रारब्धी हैं-इस स्वरूप को सदा सामने रखो। प्रारब्ध को देखकर 
सहज ही चढ़ती कला का अनुभव करेंगे। ``पाना था सो पा लिया'' - यह गीत गाओ तो घुटके और झुटके खाने 
से बच जायेंगे। 

स्लोगन:- ब्राह्मणों का श्वांस हिम्मत है, जिससे कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाता है।