Wednesday, May 27, 2015
मुरली 28 मई 2015
"मीठे बच्चे - अपने आपको देखो मैं फूल बना हूँ, देह-अहंकार में आकर कांटा तो नहीं बनता हूँ? बाप आया है तुम्हें कांटे से फूल बनाने”
प्रश्न:-
किस निश्चय के आधार पर बाप से अटूट प्यार रह सकता है?
उत्तर:-
पहले अपने को आत्मा निश्चय करो तो बाप से प्यार रहेगा। यह भी अटूट निश्चय चाहिए कि निराकार बाप इस भागीरथ पर विराजमान है। वह हमें इनके द्वारा पढ़ा रहे हैं। जब यह निश्चय टूटता है तो प्यार कम हो जाता है।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) सवेरे अमृतवेले उठकर बाप से मीठी-मीठी बातें करनी है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। ध्यान रहे - बाप की याद के सिवाए दूसरा कुछ भी याद न आये।
2) अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध पवित्र बनानी है। दैवी फूलों का बगीचा तैयार हो रहा है इसलिए फूल बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है। कांटा नहीं बनना है।
वरदान:-
मरजीवा जन्म की स्मृति से सर्व कर्मबन्धनों को समाप्त करने वाले कर्मयोगी भव!
यह मरजीवा दिव्य जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी जन्म है। इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा स्वतन्त्र है न कि परतन्त्र। यह देह लोन में मिली हुई है, सारे विश्व की सेवा के लिए पुराने शरीरों में बाप शक्ति भरकर चला रहे हैं, जिम्मेवारी बाप की है, न कि आप की। बाप ने डायरेक्शन दिया है कि कर्म करो, आप स्वतन्त्र हो, चलाने वाला चला रहा है। इसी विशेष धारणा से कर्मबन्धनों को समाप्त कर कर्मयोगी बनो।
स्लोगन:-
समय की समीपता का फाउन्डेशन है-बेहद की वैराग्य वृत्ति।
ओम् शांति ।