Tuesday, May 26, 2015

मुरली 27 मई 2015

"मीठे बच्चे - तुम्हारा लव एक बाप से है क्योंकि तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता है, तुम प्यार से कहते हो - मेरा बाबा” प्रश्न:- किसी भी देहधारी मनुष्य के बोल की भेंट बाप से नहीं की जा सकती है - क्यों? उत्तर:- क्योंकि बाप का एक-एक बोल महावाक्य है। जिन महावाक्यों को सुनने वाले महान अर्थात् पुरूषोत्तम बन जाते हैं। बाप के महावाक्य गुल-गुल अर्थात् फूल बना देते हैं। मनुष्य के बोल महावाक्य नहीं, उनसे तो और ही नीचे गिरते आये हैं। गीतः बदल जाए दुनिया……… धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है कि अभी हम सच्ची कमाई करेंगे। स्वयं को शिवालय में चलने के लायक बनायेंगे। सपूत बच्चा बनकर श्रीमत पर चलकर बाप का नाम बाला करेंगे। 2) रहमदिल बन तमोप्रधान मनुष्यों को सतोप्रधान बनाना है। सबका कल्याण करना है। मौत के पहले सबको बाप की याद दिलानी है। वरदान:- सभी को ठिकाना देने वाले रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल भव! रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चे किसी को भी भिखारी के रूप में देखेंगे तो उन्हें रहम आयेगा कि इस आत्मा को भी ठिकाना मिल जाए, इसका भी कल्याण हो जाए। उनके सम्पर्क में जो भी आयेगा उसे बाप का परिचय जरूर देंगे। जैसे कोई घर में आता है तो पहले उसे पानी पूछा जाता है, ऐसे ही चला जाए तो बुरा समझते हैं, ऐसे जो भी सम्पर्क में आता है उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो अर्थात् दाता के बच्चे दाता बनकर कुछ न कुछ दो ताकि उसे भी ठिकाना मिल जाए। स्लोगन:- यथार्थ वैराग्य वृत्ति का सहज अर्थ है-जितना न्यारा उतना प्यारा। ओम् शांति ।