Tuesday, May 19, 2015
मुरली 20 मई 2015
`मीठे बच्चे - तुम्हें नशा रहना चाहिए कि जिस शिव की सभी पूजा करते हैं, वह अभी हमारा बाप बना है, हम उनके सम्मुख बैठे हैं"
प्रश्न:-
मनुष्य भगवान से क्षमा क्यों मांगते हैं? क्या उन्हें क्षमा मिलती है?
उत्तर:-
मनुष्य समझते हैं हमने जो पाप कर्म किये हैं उसकी सज़ा भगवान धर्मराज से दिलायेंगे, इसलिए क्षमा मांगते हैं। लेकिन उन्हें अपने कर्मों की सज़ा कर्मभोग के रूप में भोगनी ही पड़ती, भगवान उन्हें कोई दवाई नहीं देता। गर्भजेल में भी सज़ायें भोगनी है, साक्षात्कार होता है कि तुमने यह-यह किया है। ईश्वरीय डायरेक्शन पर नहीं चले हो इसलिए यह सज़ा है।
गीत:- तूने रात गंवाई.........
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) अपनी उन्नति करने के लिए बाप की सर्विस में तत्पर रहना है। सिर्फ खाना, पीना, सोना, यह पद गँवाना है।
2) बाप का और पढ़ाई का रिगार्ड रखना है। देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। बाप की शिक्षाओं को धारण कर सपूत बच्चा बनना है।
वरदान:-
स्व स्थिति द्वारा परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले संगमयुगी विजयी रत्न भव!
परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने का साधन है स्व-स्थिति। यह देह भी पर है, स्व नहीं। स्व स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव कराता है और प्रकृति-धर्म अर्थात् पर धर्म या देह की स्मृति किसी न किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव कराती है। तो जो सदा स्व स्थिति में रहता है वह सदा सुख का अनुभव करता है, उसके पास दु:ख की लहर आ नहीं सकती। वह संगमयुगी विजयी रत्न बन जाते हैं।
स्लोगन:-
परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फोर्स समाप्त करो।
ओम् शांति ।