Wednesday, May 13, 2015

मुरली 14 मई 2015

“मीठे बच्चे - अपने को राजतिलक देने के लायक बनाओ, जितना पढ़ाई पढ़ेंगे, श्रीमत पर चलेंगे तो राजतिलक मिल जायेगा |” प्रश्न:- किस स्मृति में रहो तो रावणपने की स्मृति विस्मृत हो जायेगी? उत्तर:- सदा स्मृति रहे कि हम स्त्री-पुरूष नहीं, हम आत्मा हैं, हम बड़े बाबा (शिवबाबा) से छोटे बाबा (ब्रह्मा) द्वारा वर्सा ले रहे हैं। यह स्मृति रावणपने की स्मृति को भुला देगी। जबकि स्मृति आई कि हम एक बाप के बच्चे हैं तो रावणपने की स्मृति समाप्त हो जाती है। यह भी पवित्र रहने की बहुत अच्छी युक्ति है। परन्तु इसमें मेहनत चाहिए। गीत:- तुम्हें पाके हमने....... धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है। सपूत बच्चा बनकर सबूत देना है। चलन बड़ी रॉयल रखनी है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है। 2) हम स्टूडेन्ट हैं, भगवान हमें पढ़ा रहे हैं, इस खुशी से पढ़ाई पढ़नी है। कभी भी पुरूषार्थ में दिलशिकस्त नहीं बनना है। वरदान:- मन्सा पर फुल अटेन्शन देने वाले चढ़ती कला के अनुभवी विश्व परिवर्तक भव! अब लास्ट समय में मन्सा द्वारा ही विश्व परिवर्तन के निमित्त बनना है इसलिए अब मन्सा का एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो बहुत कुछ गंवाया, एक संकल्प को भी साधारण बात न समझो, वर्तमान समय संकल्प की हलचल भी बड़ी हलचल गिनी जाती है क्योंकि अब समय बदल गया, पुरूषार्थ की गति भी बदल गई तो संकल्प में ही फुल स्टॉप चाहिए। जब मन्सा पर इतना अटेन्शन हो तब चढ़ती कला द्वारा विश्व परिवर्तक बन सकेंगे। स्लोगन:- कर्म में योग का अनुभव होना अर्थात् कर्मयोगी बनना। ओम् शांति ।