Thursday, March 19, 2015

मुरली 20 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - बाप अभी तुम्हारी पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं, घर बैठे राय दे रहे हैं, तो कदम-कदम पर राय लेते रहो तब ऊंच पद मिलेगा” प्रश्न:- सजाओं से छूटने के लिए कौन-सा पुरूषार्थ बहुत समय का चाहिए? उत्तर:- नष्टोमोहा बनने का। किसी में भी ममत्व न हो। अपने दिल से पूछना है-हमारा किसी में मोह तो नहीं है? कोई भी पुराना सम्बन्ध अन्त में याद न आये। योगबल से सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं तब ही बिगर सजा ऊंच पद मिलेगा। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) बिगर कोई फिक्र (चिंता) के अपनी गुप्त राजधानी श्रीमत पर स्थापन करनी है। विघ्नों की परवाह नहीं करनी है। बुद्धि में रहे कल्प पहले जिन्होंने मदद की है वह अभी भी अवश्य करेंगे, फिक्र की बात नहीं। 2) सदा खुशी रहे कि अभी हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हम वापस घर जा रहे हैं। आत्म-अभिमानी बनने की बहुत गुप्त मेहनत करनी है। कोई भी विकर्म नहीं करना है। वरदान:- हर आत्मा को हिम्मत, उल्लास दिलाने वाले, रहमदिल, विश्व कल्याणकारी भव! कभी भी ब्राह्मण परिवार में किसी कमजोर आत्मा को, तुम कमजोर हो-ऐसे नहीं कहना। आप रहमदिल विश्व कल्याणकारी बच्चों के मुख से सदैव हर आत्मा के प्रति शुभ बोल निकलने चाहिए, दिलशिकस्त बनाने वाले नहीं। चाहे कोई कितना भी कमजोर हो, उसे इशारा या शिक्षा भी देनी हो तो पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा दो। पहले धरनी पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाओ फिर बीज डालो तो सहज हर बीज का फल निकलेगा। इससे विश्व कल्याण की सेवा तीव्र हो जायेगी। स्लोगन:- बाप की दुआयें लेते हुए सदा भरपूरता का अनुभव करो। ओम् शांति ।