Tuesday, March 10, 2015
मुरली 11 मार्च 2015
“मीठे बच्चे - इस बेहद नाटक को सदा स्मृति में रखो तो अपार खुशी रहेगी, इस नाटक में जो अच्छे पुरुषार्थी और अनन्य हैं, उनकी पूजा भी अधिक होती है”
प्रश्न:-
कौन-सी स्मृति दुनिया के सब दु:खों से मुक्त कर देती है, हार्षित रहने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
सदा स्मृति रहे कि अभी हम भविष्य नई दुनिया में जा रहे हैं। भविष्य की खुशी में रहो तो दु:ख भूल जायेंगे। विघ्नों की दुनिया में विघ्न तो आयेंगे लेकिन स्मृति रहे कि इस दुनिया में हम बाकी थोड़े दिन हैं तो हार्षित रहेंगे।
गीत:-
जाग सजनियाँ जाग .......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) समझदार बन अपना सब कुछ धणी के नाम पर सफल करना है। पतितों को दान नहीं करना है। सिवाए ब्राह्मणों के और कोई से भी कनेक्शन नहीं रखना है।
2) बुद्धि रूपी झोली में कोई ऐसा छेद न हो जो ज्ञान बहता रहे। बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने के लिए पढ़ा रहे हैं, इस गुप्त खुशी में रहना है। बाप समान रहमदिल बनना है।
वरदान:-
प्रवृति में रहते मेरे पन का त्याग करने वाले सच्चे ट्रस्टी, मायाजीत भव !
जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। मायाजीत बनने का सहज तरीका है-स्वयं को सदा ट्रस्टी समझो। ब्रह्माकुमार माना ट्रस्टी, ट्रस्टी की किसी में भी अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि उनमें मेरापन नहीं होता। गृहस्थी समझेंगे तो माया आयेगी और ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी इसलिए न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो मायाप्रूफ रहेंगे।
स्लोगन:-
जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग जरूर आती है।
ओम् शांति