Sunday, March 8, 2015

मुरली 09 मार्च 2015

“मीठे बच्चे- तुम्हें ज्ञान से अच्छी जागृत्ति आई है, तुम अपने 84 जन्मों को, निराकार और साकार बाप को जानते हो, तुम्हारा भटकना बंद हुआ” प्रश्न:- ईश्वर की गत मत न्यारी क्यों गाई हुई है? उत्तर:- 1. क्योंकि वह ऐसी मत देते हैं जिससे तुम ब्राह्मण सबसे न्यारे बन जाते हो। तुम सबकी एक मत हो जाती है, 2. ईश्वर ही है जो सबकी सद्गति करते हैं। पुजारी से पूज्य बनाते हैं इसलिए उनकी गत मत न्यारी है, जिसे तुम बच्चों के सिवाए कोई समझ नहीं सकता। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हार्षित रहना है। याद की यात्रा से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है। 2) ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है। वरदान:- श्रेष्ठ भावना के आधार से सर्व को शान्ति, शक्ति की किरने देने वाले विश्व कल्याणकारी भव ! जैसे बाप के संकल्प वा बोल में, नयनों में सदा ही कल्याण की भावना वा कामना है ऐसे आप बच्चों के संकल्प में विश्व कल्याण की भावना वा कामना भरी हुई हो। कोई भी कार्य करते विश्व की सर्व आत्मायें इमर्ज हों। मास्टर ज्ञान सूर्य बन शुभ भावना वा श्रेष्ठ कामना के आधार से शान्ति व शक्ति की किरणें देते रहो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी। लेकिन इसके लिए सर्व बन्धनों से मुक्त, स्वतन्त्र बनो। स्लोगन:- मैं पन और मेरा-पन-यही देह-अभिमान का दरवाजा है। अब इस दरवाजे को बन्द करो। ओम् शांति |