Friday, October 31, 2014

Murli-31/10/2014-English

Essence: Sweet children, by receiving one glance from the Father, human beings of the whole world can go beyond. 
This is why it is said that the soul goes beyond with a glance.

Question: Why should drums of happiness beat in the hearts of you children?
Answer: Because you know that Baba has come to take everyone back with Him. We are now to return home with 
our Father. After the cries of distress, there will be cries of victory. By receiving one glance from the Father, the 
whole world will receive the inheritance of liberation and liberation-in-life. The whole world will go beyond.

Essence for dharna: 

1. With the power of yoga, establish the world of limitless happiness. Forget this old world of sorrow. Let there be the 
happiness that we are becoming the masters of the land of truth. 

2. Check yourself every day: Did any vice cause any distress throughout the day? Did I perform any devilish acts? 
Did I come under the influence of greed?

Blessing: May you be a specially beloved prince of the present and so the future by receiving God’s loving affection.

At the confluence age, it is only you fortunate children who become worthy of receiving the loving affection from the 
Comforter of Hearts. It is only a handful out of multimillion souls who receive this loving affection from God. Through 
this divine affection, you become the specially beloved princes. “Raj dulare” (beloved prince) means to be a king now 
and also a king in the future. Even before the future, you claim a right to self-sovereignty at this time. Just as the praise 
of the future kingdom is one kingdom, one religion, … similarly, each soul has a united rule over all the physical senses.

Slogan: Only those who show the Father’s character through their own faces are loving to God.

Thursday, October 30, 2014

Murli-31/10/2014-Hindi

31-10-14        प्रातः मुरली       ओम् शान्ति       “बापदादा”        मधुबन   मीठे बच्चे - “बाप की एक नजर मिलने से सारे विश्व के मनुष्य-मात्र निहाल हो जाते हैं, इसलिए कहा जाता है नज़र से निहाल..... ''  प्रश्न:-    तुम बच्चों की दिल में खुशी के नगाड़े बजने चाहिए - क्यों? उत्तर:- क्योंकि तुम जानते हो - बाबा आया है सबको साथ ले जाने । अब हम अपने बाप के साथ घर जायेंगे । हाहाकार के बाद जयजयकार होने वाली है । बाप की एक नजर से सारे विश्व को मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा मिलने वाला है । सारी विश्व निहाल हो जायेगी । ओम् शान्ति | रूहानी शिवबाबा बैठ अपने रूहानी बच्चों को समझाते है । यह तो जानते हो कि तीसरा नेत्र भी होता है । बाप जानते हैं सारी दुनिया की जो भी आत्मायें हैं, सबको मैं वर्सा देने आया हूँ । बाप की दिल में तो वर्सा ही याद होगा । लौकिक बाप की भी दिल में वर्सा ही याद होगा । बच्चों को वर्सा देंगे । बच्चा नहीं होता है तो मूँझते है, किसको दे । फिर एडाप्ट कर लेते हैं । यहाँ तो बाप बैठे हैं, इनकी तो सारे दुनिया की जो भी आत्मायें हैं, सब तरफ नजर जाती है । जानते हैं सबको मुझे वर्सा देना है । भल बैठे यहाँ हैं परन्तु नजर सारे विश्व पर और सारे विश्व के मनुष्य मात्र पर है क्योंकि सारे विश्व को ही निहाल करना होता है । बाप समझाते हैं यह है पुरूषोत्तम संगमयुग । तुम जानते हो बाबा आया हुआ है सबको शान्तिधाम, सुखधाम ले जाने । सब निहाल हो जाने वाले हैं । ड़ामा के प्लैन अनुसार कल्प-कल्प निहाल हो जायेंगे । बाप सब बच्चों को याद करते हैं । नज़र तो जाती है ना । सब नहीं पढ़ेंगे । ड्रामा प्लैन अनुसार सबको वापिस जाना है क्योंकि नाटक पूरा होता है । थोड़ा आगे चलेंगे तो खुद भी समझ जायेंगे अब विनाश होता है । अब नई दुनिया की स्थापना होनी है क्योंकि आत्मा तो फिर भी चैतन्य है ना । तो बुद्धि में आ जायेगा - बाप आया हुआ है । पैराडाइज स्थापन होगा और हम शान्तिधाम में चले जायेंगे । सबकी गति होगी ना । बाकी तुम्हारी सद्गति होगी । अभी बाबा आया हुआ है । हम स्वर्ग में जायेंगे । जयजयकार हो जायेगी । अभी तो बहुत हाहाकार है । कहाँ अकाल पड़ रहा है, कहाँ लड़ाई चल रही है, कहाँ भूकम्प होते हैं । हजारों मरते रहते हैं । मौत तो होना ही है । सतयुग में यह बातें होती नहीं । बाप जानते हैं अब मैं जाता हूँ फिर सारे विश्व में जयजयकार हो जायेगी । मैं भारत में ही जाऊँगा । सारे विश्व में भारत जैसे गाँव है । बाबा के लिए तो गाँव ठहरा । बहुत थोडे मनुष्य होंगे । सतयुग में सारी विश्व जैसे एक छोटा गाँव था । अभी तो कितनी वृद्धि हो गई है । बाप की बुद्धि में तो सब है ना । अब इस शरीर द्वारा बच्चों को समझा रहे हैं । तुम्हारा पुरूषार्थ वही चलता है जो कल्प-कल्प चलता है । बाप भी कल्प वृक्ष का बीजरूप है । यह है कारपोरियल झाड़ । ऊपर में है इनकारपोरियल झाड़ । तुम जानते हो यह कैसे बना हुआ है । यह समझ और कोई मनुष्य में नहीं है । बेसमझ और समझदारों का फर्क देखो । कहाँ समझदार स्वर्ग में राज्य करते थे, उनको कहा ही जाता है सचखण्ड, हेविन । अभी तुम बच्चों को अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए । बाबा आया हुआ है, यह पुरानी दुनिया तो जरूर बदलेगी । जितना-जितना जो पुरूषार्थ करेंगे, उतना पद पायेंगे । बाप तो पढ़ा रहे हैं । यह तुम्हारी स्कूल तो बहुत वृद्धि को पाती रहेगी । बहुत हो जायेंगे । सबका स्कूल इकट्ठा थोड़ेही होगा । इतने रहेगे कहाँ? तुम बच्चों को याद है- अभी हम जाते हैं सुखधाम । जैसे कोई भी विलायत में जाते है तो 8-10 वर्ष जाकर रहते है ना । फिर आते हैं भारत में । भारत तो गरीब है । विलायत वालों को यहाँ सुख नहीं आयेगा । वैसे तुम बच्चों को भी यहाँ सुख नहीं है । तुम जानते हो हम बहुत ऊँची पढ़ाई पढ़ रहे हैं, जिससे हम स्वर्ग के मालिक देवता बनते है । वहाँ कितने सुख होंगे । उस सुख को सभी याद करते है । यह गाँव (कलियुग) तो याद भी नहीं आ सकता, इनमें तो अथाह दु :ख हैं । इस रावण राज्य, पतित दुनिया में आज अपरमअपार दुःख है कल फिर अपरमअपार सुख होंगे । हम योगबल से अथाह सुख वाली दुनिया स्थापन कर रहे हैं । यह राजयोग है ना । बाप खुद कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ । तो ऐसा बनाने वाले टीचर को याद करना चाहिए ना । टीचर बिगर बैरिस्टर, इंजीनियर आदि थोड़ेही बन सकते हैं । यह फिर है नई बात । आत्माओं को योग लगाना है परमात्मा बाप के साथ, जिससे ही बहुत समय अलग रहे हैं । बहुकाल क्या? वह भी बाप आपेही समझाते रहते हैं । मनुष्य तो लाखों वर्ष आयु कह देते हैं । बाप कहते हैं-नहीं, यह तो हर 5 हजार वर्ष बाद तुम जो पहले-पहले बिछुड़े हो वही आकर बाप से मिलते हो । तुमको ही पुरूषार्थ करना है । मीठे-मीठे बच्चों को कोई तकलीफ नहीं देते हैं, सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझो । जीव आत्मा है ना । आत्मा अविनाशी है, जीव विनाशी है । आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है, आत्मा कभी पुरानी नहीं होती है । वन्डर है ना । पढ़ाने वाला भी वन्डरफुल, पढ़ाई भी वन्डरफुल है । किसको भी याद नहीं, भूल जाती है । आगे जन्म में क्या पढ़ते थे, किसको याद है क्या? इस जन्म में तुम पढते हो, रिजल्ट नई दुनिया में मिलती है । यह सिर्फ तुम बच्चों को पता है । यह याद रहना चाहिए- अभी यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, हम नई दुनिया में जाने वाले हैं । यह याद रहे तो भी तुमको बाप की याद रहेगी । याद के लिए बाप अनेक उपाय बताते हैं । बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । तीनों रूप में याद करो । कितनी युक्तियाँ दे रहे हैं याद करने की । परन्तु माया भुला देती है । बाप जो नई दुनिया स्थापन करते हैं, बाप ने ही बताया है यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, यह याद करो फिर भी याद क्यों नहीं कर सकते हो! युक्तियाँ बतलाते हैं याद की । फिर साथ-साथ कहते भी हैं माया बड़ी दुश्तर है । घडी-घड़ी तुमको भुलायेगी और देह- अभिमानी बना देगी इसलिए जितना हो सके याद करते रहो । उठते-बैठते, चलते-फिरते देह के बदले अपने को देही समझो । यह है मेहनत । नॉलेज तो बहुत सहज है । सब बच्चे कहते हैं याद ठहरती नहीं । तुम बाप को याद करते हो, माया फिर अपनी तरफ खीँच लेती है । इस पर ही यह खेल बना हुआ है । तुम भी समझते हो हमारा बुद्धियोग जो बाप के साथ और पढाई की सबजेक्ट में होना चाहिए, वह नहीं है, भूल जाते हैं । परन्तु तुम्हें भूलना नहीं चाहिए । वास्तव में इन चित्रों की भी दरकार नहीं है । परन्तु पढ़ाने समय कुछ तो आगे चाहिए ना । कितने चित्र बनते रहते हैं । पाण्डव गवर्मेन्ट के प्लैन देखो कैसे हैं । उस गवर्मेन्ट के भी प्लैन हैं । तुम समझते हो नई दुनिया में सिर्फ भारत ही था, बहुत छोटा था । सारा भारत विश्व का मालिक था । एवरीथिंग न्यु होती है । दुनिया तो एक ही है । एक्टर्स भी वही है, चक्र फिरता जाता है । तुम गिनती करेंगे, इतने सेकण्ड, इतने घण्टे, दिन, वर्ष पूरे हुए फिर चक्र फिरता रहेगा । आजकल करते-करते 5 हजार वर्ष पूरे हो गये हैं । सब सीन-सीनरी, खेलपाल होते आते हैं । कितना बडा बेहद का झाड़ है । झाड़ के पत्ते तो गिन नहीं सकते हैं । यह झाड़ है । इसका फाउन्डेशन देवी देवता धर्म है, फिर यह तीन ट्यूब्स (धर्म) मुख्य निकले हुए है । बाकी झाड़ के पत्ते तो कितने ढेर है । कोई की ताकत नहीं जो गिनती कर सके । इस समय सब धर्मो के झाड़ वृद्धि को पा चुके हैं । यह बेहद का बड़ा झाड़ है । यह सब धर्म फिर नहीं रहेंगे । अभी सारा झाड़ खड़ा है बाकी फाउन्डेशन है नहीं । बनेन ट्री का मिसाल बिल्कुल एक्यूरेट है । यह एक ही वन्डरफुल झाड़ है, बाप ने दृष्टान्त भी ड़ामा में यह रखा है समझाने के लिए । फाउन्डेशन है नहीं । तो यह समझ की बात है । बाप ने तुमको कितना समझदार बनाया है । अभी देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं । बाकी कुछ निशानियाँ हैं- आटे में नमक । प्राय : यह निशानियाँ बाकी रही हैं । तो बच्चों की बुद्धि में यह सारा ज्ञान आना चाहिए । बाप की भी बुद्धि में नॉलेज है ना । तुमको भी सारा नॉलेज दे आपसमान बना रहे हैं । बाप बीजरूप है और यह उल्टा झाड़ है । यह बडा बेहद का ड़ामा है । अभी तुम्हारी बुद्धि ऊपर चली गई है । तुमने बाप को और रचना को जान लिया है । भल शास्त्रों में है ऋषि-मुनि कैसे जानेंगे । एक भी जानता हो तो परम्परा चले । दरकार ही नहीं । जबकि सद्गति हो जाती है, बीच में कोई भी वापस नहीं जा सकता । नाटक पूरा हो तब तक सब एक्टर्स यहाँ होने हैं, जब तक बाप यहाँ है, जब वहाँ बिल्कुल खाली हो जायेंगे तब तो शिवबाबा की बरात जायेगी । पहले से तो नहीं जाकर बैठेंगे । तो बाप सारी नॉलेज बैठ देते है । यह वर्ल्ड का चक्र कैसे रिपीट होता है । सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग फिर संगम होता है । गायन है परन्तु संगमयुग कब होता है, यह किसको पता नहीं है । तुम बच्चे समझ गये हो - 4 युग हैं । यह है लीप युग, इनको मिडगेट कहा जाता है । कृष्ण को भी मिडगेट दिखाते हैं । तो यह है नॉलेज । नॉलेज को मोड़-तोड़कर भक्ति में क्या बना दिया है । ज्ञान का सारा सूत मूँझा हुआ है । उनको समझाने वाला तो एक ही बाप है । प्राचीन राजयोग सिखलाने लिए विलायत में जाते हैं । वह तो यह है ना । प्राचीन अर्थात् पहला । सहज राजयोग सिखलाने बाप आये हैं । कितना अटेन्शन रहता है । तुम भी अटेन्शन रखते हो कि स्वर्ग स्थापन हो जाए । आत्मा को याद तो आता है ना । बाप कहते हैं यह नॉलेज जो मैं अभी तुमको देता हूँ फिर मैं ही आकर दूँगा । यह नई दुनिया के लिए नया ज्ञान है । यह ज्ञान बुद्धि में रहने से खुशी बहुत होती है । बाकी थोडा टाइम है । अब चलना है । एक तरफ खुशी होती है दूसरे तरफ फिर फील भी होता है । अरे, ऐसा मीठा बाबा हम फिर कल्प बाद देखेगे । बाप ही बच्चों को इतना सुख देते हैं ना । बाप आते ही हैं - शान्तिधाम-सुखधाम में ले जाने । तुम शान्तिधाम-सुखधाम को याद करो तो बाप भी याद आयेगा । इस दुःखधाम को भूल जाओ । बेहद का बाप बेहद की बात सुनाते हैं । पुरानी दुनिया से तुम्हारा ममत्व निकलता जायेगा तो खुशी भी होगी । तुम रिटर्न में फिर सुखधाम में जाते हो । सतोप्रधान बनते जायेंगे । कल्प- कल्प जो बने हैं वही बनेंगे और उनकी ही खुशी होगी फिर यह पुराना शरीर छोड देंगे । फिर नया शरीर लेकर सतोप्रधान दुनिया में आयेंगे । यह नॉलेज खलास हो जायेगी । बातें तो बहुत सहज हैं । रात को सोने समय ऐसे-ऐसे सिमरण करो तो भी खुशी रहेगी । हम यह बन रहे हैं । सारे दिन में हमने कोई शैतानी तो नहीं की? 5 विकारों से कोई विकार ने हमको सताया तो नहीं? लोभ तो नहीं आया? अपने ऊपर जाँच रखनी है । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. योगबल से अथाह सुखों वाली दुनिया स्थापन करनी है । इस दुःख की पुरानी दुनिया को भूल जाना है । खुशी रहे कि हम सच खण्ड के मालिक बन रहे हैं । 2. रोज अपनी जाँच करनी है कि सारे दिन में कोई विकार ने सताया तो नहीं? कोई शैतानी काम तो नहीं किया? लोभ के वश तो नहीं हुए। वरदान:-  परमात्म दुलार को प्राप्त करने वाले अब के सो भविष्य के राज दुलारे भव  संगमयुग पर आप भाग्यवान बच्चे ही दिलाराम के दुलार के पात्र हो । यह परमात्म दुलार कोटों में कोई आत्माओं को ही प्राप्त होता है । इस दिन दुलार द्वारा राज दुलारे बन जाते हो । राजदुलारे अर्थात् अब भी राजे और भविष्य के भी राजे | भविष्य से भी पहले अब स्वराज्य अधिकारी बन गये । जैसे भविष्य राज्य की महिमा है एक राज्य, एक धर्म ऐसे अभी सर्व कमेंन्द्रियों पर आत्मा का एक छत्र राज्य है । स्लोगन:-  अपनी सूरत से बाप की सीरत दिखाने वाले ही परमात्म स्नेही हैं | ओम् शान्ति |  

Wednesday, October 29, 2014

Murli-30/10/2014-English

Essence of Murli (H&E): October 30, 2014: Essence: Sweet children, in order to experience unlimited happiness, remain with Baba at every moment. Question: Which children receive a lot of power (taakat) from the Father? Answer: Those who have the faith that they are the ones who will transform the unlimited world, and that they are going to become the masters of the unlimited world, that it is the Father, the Master of the World, Himself, who is teaching them. Such children receive a lot of power. Essence for Dharna: Ask your heart: 1.Do the treasures of happiness that you receive from the Father stay in your intellect? 2.Baba has come to make you into the masters of the world. Therefore, are your activity and your way of speaking to others according to that? Do you ever defame anyone? 3.After making a promise to the Father, do you perform any impure actions? Blessing: May you be a master almighty authority who experiences every power in the practical form according to the time. To be a master means that whatever power you invoke at whatever time, you experience that power at that time in the practical form. As soon as you order it, it becomes present. Let it not be that you order the power of tolerance to come and the power to face comes in front of you. That is not called being a master. Try and see whether the power that you order comes into use at the time you need that power. If there is the difference of even one second, then, instead of victory, there will be defeat. Slogan:To the extent that you have Godly intoxication (nasha) in your intellect, let there be just as much humility (namrata) in your actions. 

Murli-30/10/2014-Hindi

30-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन “बेहद की अपार खुशी का अनुभव करने के लिए हर पल बाबा के साथ रहो'       प्रश्न:-    बाप से किन बच्चों को बहुत-बहुत ताकत मिलती है ? उत्तर:- जिन्हें निश्चय है कि हम बेहद विश्व का परिवर्तन करने वाले हैं, हमें बेहद विश्व का मालिक बनना है । हमें पढ़ाने वाला स्वयं विश्व का मालिक बाप है । ऐसे बच्चों को बहुत ताकत मिलती है । ओम् शान्ति | मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को वा आत्माओं को रूहानी बाप परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते हैं और समझाते हैं क्योंकि बच्चे ही पावन बनकर स्वर्ग के मालिक बनने वाले हैं फिर से । सारे विश्व का बाप तो एक ही है । यह बच्चों को निश्चय होता है । सारे विश्व का बाप, सभी आत्माओं का बाप तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं । इतना दिमाग में बैठता है? क्योंकि दिमाग है तमोप्रधान, लोहे का बर्तन, आइरन एजड । दिमाग आत्मा में होता है । तो इतना दिमाग में बैठता है? इतनी ताकत मिलती है समझने की कि बरोबर बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं, हम बेहद विश्व को पलटते हैं । इस समय बेहद सृष्टि को दोजक कहा जाता है । क्या यह समझते हो कि गरीब दोजक में हैं बाकी सन्यासी, साहूकार, बड़े मर्तबे वाले बहिश्त में हैं? बाप समझाते हैं इस समय जो भी मनुष्यमात्र हैं सब दोजक में हैं । यह सब समझने की बातें हैं कि आत्मा कितनी छोटी है । इतनी छोटी आत्मा में सारी नॉलेज ठहरती नहीं है या भुला देते हो? विश्व की सर्व आत्माओं का बाप तुम्हारे सम्मुख बैठ तुमको पढ़ा रहे हैं | सारा दिन बुद्धि में यह याद रहता है कि बरोबर बाबा हमारे साथ यहाँ हैं? कितना समय बैठता है? घण्टा, आधा घण्टा या सारा दिन? यह दिमाग में रखने की भी ताकत चाहिए । ईश्वर परमपिता परमात्मा तुमको पढ़ाते हैं । बाहर में जब अपने घरों में रहते हो तो वहाँ साथ नहीं है । यहाँ प्रैक्टिकल में तुम्हारे साथ हैं । जैसे कोई का पति बाहर में, पत्नी यहाँ हैं तो ऐसे थोड़ेही कहेगी कि हमारे साथ है । बेहद का बाप तो एक ही है । बाप सबमें तो नहीं है ना । बाप जरूर एक जगह बैठता होगा । तो यह दिमाग में आता है कि बेहद का बाप हमको नई दुनिया का मालिक बनाने के लायक बना रहे हैं? दिल में इतना अपने को लायक समझते हो कि हम सारे विश्व के मालिक बनने वाले हैं? इसमें तो बहुत खुशी की बात है । इससे जास्ती खुशी का खजाना तो कोई को मिलता नहीं । अभी तुमको मालूम पड़ा है यह बनने वाले हैं । यह देवतायें कहाँ के मालिक हैं, यह भी समझते हो । भारत में ही देवतायें होकर गये हैं । यह तो सारे विश्व का मालिक बनने वाले हैं । इतना दिमाग में है? वह चलन है? वह बातचीत करने का ढंग है, वह दिमाग है? कोई बात में झट गुस्सा कर दिया, किसको नुकसान पहुँचाया, किसकी ग्लानि कर दी, ऐसी चलन तो नहीं चलते? सतयुग में यह कभी कोई की ग्लानि थोड़ेही करते हैं । वहाँ ग्लानि के छी-छी ख्यालात वाले होंगे ही नहीं । बाप तो बच्चों को कितना जोर से उठाते हैं । तुम बाप को याद करो तो पाप कट जाएंगे । तुम हाथ उठाते हो परन्तु तुम्हारी ऐसी चलन है? बाप बैठ पढ़ाते हैं, यह दिमाग में जोर से बैठता है? बाबा जानते हैं बहुतों का नशा सोडावाटर हो जाता है । सबको इतनी खुशी का पारा नहीं चढ़ता है । जब बुद्धि में बैठे तब नशा चढ़े । विश्व का मालिक बनाने के लिए बाप ही पढ़ाते हैं । यहाँ तो सब हैं पतित, रावण सम्प्रदाय । कथा है ना - राम ने बन्दरों की सेना ली । फिर यह-यह किया । अभी तुम जानते हो बाबा रावण पर जीत पहनाकर लक्ष्मी-नारायण बनाते हैं । यहाँ तुम बच्चों से कोई पूछते हैं, तुम फट से कहेंगे हमको भगवान पढ़ाते हैं । भगवानुवाच, जैसे टीचर कहेंगे हम तुमको बैरिस्टर अथवा फलाना बनाते हैं । निश्चय से पढ़ाते हैं और वह बन जाते हैं । पढ़ने वाले भी नम्बरवार होते हैं ना । फिर पद भी नम्बरवार पाते हैं, यह भी पढ़ाई है । बाबा एम आज्जेक्ट सामने दिखा रहे हैं । तुम समझते हो इस पढ़ाई से हम यह बनेंगे । खुशी की बात है ना । आई .सी .एस. पढ़ने वाले भी समझेंगे - हम यह पढ़कर फिर यह करेंगे, घर बनाएंगे, ऐसा करेंगे । बुद्धि में चलता है । यहाँ फिर तुम बच्चों को बाप बैठ पढ़ाते हैं । सबको पढना है, पवित्र बनना है । बाप से प्रतिज्ञा करनी है कि हम कोई भी अपवित्र कर्म नहीं करेंगे । बाप कहते हैं अगर कोई उल्टा काम कर लिया तो की कमाई चट हो जायेगी । यह मृत्युलोक पुरानी दुनिया है । हम पढ़ते हैं नई दुनिया के लिए । यह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जानी है । सरकमस्टांश भी ऐसे हैं । बाप हमको पढ़ाते ही हैं अमरलोक के लिए । सारी दुनिया का चक्र बाप समझाते हैं । हाथ में कोई भी पुस्तक नहीं है, ओरली ही बाप समझाते हैं । पहली-पहली बात बाप समझाते हैं - अपने को आत्मा निश्चय करो । आत्मा भगवान बाप का बच्चा है । परमपिता परमात्मा परमधाम में रहते हैं । हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं । फिर वहाँ से नम्बरवार यहाँ आते जाते हैं पार्ट बजाने के लिए । यह बडी बेहद की स्टेज हैं । इस स्टेज पर पहले एक्टर्स पार्ट बजाने भारत में, नई दुनिया में आते हैं । यह उन्हों की एक्टिविटी है । तुम उनकी महिमा भी गाते हो । क्या उन्हों को मल्टी-मिल्युनर कहेंगे? उन लोगों के पास तो अनगिनत अथाह धन रहता है । बाप तो ऐसे कहेंगे ना-यह लोग क्योंकि बाप तो बेहद का है । यह भी ड्रामा बना हुआ है । तो जैसे शिवबाबा ने इन्हों को ऐसा साहूकार बनाया तो भक्तिमार्ग में फिर उनका (शिव का) मन्दिर बनाते हैं पूजा के लिए । पहले-पहले उनकी पूजा करते हैं जिसने पूज्य बनाया । बाप रोज-रोज समझाते तो बहुत हैं, नशा चढ़ाने के लिए । परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जो समझते हैं, वह सर्विस में लगे रहते हैं तो ताजे रहते हैं । नहीं तो बांसी हो जाते हैं । बच्चे जानते हैं बराबर यह भारत में राज्य करते थे तो और कोई धर्म नहीं था । डीटीज्म ही थी । फिर बाद में और- और धर्म आये हैं । अभी तुम समझते हो यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है । स्कूल में एम ऑब्जेक्ट तो चाहिए ना । सतयुग आदि में यह राज्य करते थे फिर 84 के चक्र में आये हैं । बच्चे जानते हैं यह है बेहद की पढ़ाई । जन्म-जन्मान्तर तो हद की पढ़ाई पढ़ते आये हो, इसमें बड़ा पक्का निश्चय चाहिए । सारे सृष्टि को पलटाने वाला, रिज्युवनेट करने वाला अर्थात् नर्क को स्वर्ग बनाने वाला बाप हमको पढ़ा रहे हैं । इतना जरूर है मुक्तिधाम तो सब जा सकते हैं । स्वर्ग में तो सभी नहीं आएंगे । यह अब तुम जानते हो हमको बाप इस विषय सागर वेश्यालय से निकालते हैं । अभी बरोबर वेश्यालय है । कब से शुरू होता है, यह भी तुम जान चुके हो । 2500 वर्ष हुआ जब यह रावण राज्य शुरू हुआ है । भक्ति शुरू हुई है । उस समय देवी-देवता धर्म वाले ही हैं, वह वाम मार्ग में आ गये । भक्ति के लिए ही मन्दिर बनाते हैं । सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा बनाया हुआ है । हिस्ट्री तो सुनी है । मन्दिर में क्या था! तो उस समय कितने धनवान होंगे! सिर्फ एक मन्दिर तो नहीं होगा ना । हिस्ट्री में करके एक का नाम डाला है । मन्दिर तो बहुत से राजायें बनाते हैं । एक-दो को देख पूजा तो सब करेंगे ना । ढेर मन्दिर होंगे । सिर्फ एक को तो नहीं लूटा होगा । दूसरे भी मन्दिर आसपास होंगे । वहाँ गाँव कोई दूर-दूर नहीं होते हैं । एक-दो के नजदीक ही होते हैं क्योंकि वहाँ ट्रेन आदि तो नहीं होगी ना । बहुत नजदीक एक-दो के रहते होंगे फिर आहिस्ते- आहिस्ते सृष्टि फैलती जाती है । अभी तुम बच्चे पढ़ रहे हो । बड़े ते बड़ा बाप तुमको पढ़ाते हैं । यह तो नशा होना चाहिए ना । घर में कभी रोना पीटना नहीं है । यहाँ तुमको दैवी गुण धारण करने हैं । इस पुरूषोत्तम संगमयुग में तुम बच्चों को पढ़ाया जाता है । यह है बीच का समय जबकि तुम चेन्ज होते हो । पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाना है । अभी तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर पढ़ रहे हो । भगवान तुमको पढ़ाते हैं । सारी दुनिया को पलटाते हैं । पुरानी दुनिया को नया बना देते हैं, जिस नई दुनिया का फिर तुमको मालिक बनना है । बाप बांधा हुआ है तुमको युक्ति बताने के लिए । तो फिर तुम बच्चों को भी उस पर अमल करना है । यह तो समझते हो हम यहाँ के रहने वाले नहीं है । तुम यह थोड़ेही जानते थे कि हमारी राजधानी थी । अभी बाप ने समझाया है-रावण के राज्य में तुम बहुत दुःखी हो । इसको कहा ही जाता है विकारी दुनिया । यह देवतायें हैं सम्पूर्ण निर्विकारी । अपने को विकारी कहते हैं । अब यह रावण राज्य कब से शुरू हुआ, क्या हुआ ज़रा भी किसको पता नहीं है । बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान है । पारसबुद्धि सतयुग में थे, तो विश्व के मालिक थे, अथाह सुखी थे । उसका नाम ही है सुखधाम । यहाँ तो अथाह दु :ख हैं । सुख की दुनिया और दु :ख की दुनिया कैसे है-यह भी बाप समझाते हैं । सुख कितना समय, दु :ख कितना समय चलता है, मनुष्य तो कुछ नहीं जानते । तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते रहते हैं । समझाने वाला तो है बेहद का बाप । कृष्ण को बेहद का बाप थोड़ेही कहेंगे । दिल से लगता ही नहीं । परन्तु किसको बाप कहें-कुछ भी समझते नहीं । भगवान समझाते हैं मेरी ग्लानि करते हैं, मैं तुमको देवता बनाता हूँ, मेरी कितनी ग्लानि की है फिर देवताओं की भी ग्लानि कर दी है, इतने मूढ़मती मनुष्य बन पड़े हैं । कहते हैं भज गोविन्द..... । बाप कहते हैं-हे मूढ़मती, गोविन्द-गोविन्द, राम- राम कहते बुद्धि में कुछ आता है कि हम किसको भजते हैं? पत्थरबुद्धि को मूढ़मती ही कहेंगे । बाप कहते हैं अब मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ । बाप सर्व का सद्गति दाता है । बाप समझाते हैं तुम अपने परिवार आदि में कितने फँसे हुए हो! भगवान जो कहते हैं वह तो बुद्धि में लाना चाहिए परन्तु आसुरी मत पर हिरे हुए हैं तो ईश्वरीय मत पर चलें कैसे! गोविन्द कौन है, क्या चीज है, वह भी जानते नहीं । बाप समझाते हैं तुम कहेंगे बाबा आपने अनेक बार हमें समझाया है । यह भी ड्रामा में नूँध है, बाबा हम फिर से आपसे यह वर्सा ले रहे हैं । हम नर से नारायण जरूर बनेंगे । स्टूडेंट को पढ़ाई का नशा जरूर रहता है, हम यह बनेंगे । निश्चय रहता है । अब बाप कहते हैं तुमको सर्वगुण सम्पन्न बनना है । कोई से क्रोध आदि नहीं करना है । देवताओं में 5 विकार होते नहीं । श्रीमत पर चलना चाहिए । श्रीमत पहले-पहले कहती है अपने को आत्मा समझो । तुम आत्मा परमधाम से यहाँ आई हो पार्ट बजाने, यह तुम्हारा शरीर विनाशी है । आत्मा तो अविनाशी है । तो तुम अपने को आत्मा समझो-मैं आत्मा परमधाम से यहॉ आई हूँ पार्ट बजाने । अभी यहाँ दु :खी होते हो तब कहते हो मुक्तिधाम में जावें । परन्तु तुमको पावन कौन बनाये? बुलाते भी एक को ही हैं, तो वह बाप आकर कहते हैं-मेरे मीठे-मीठे बच्चों अपने को आत्मा समझो, देह नहीं समझो । मैं आत्माओं को बैठ समझाता हूँ । आत्मायें ही बुलाती हैं-हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ । भारत में ही पावन थे । अब फिर बुलाते हैं - पतित से पावन बनाकर सुखधाम में ले चलो । कृष्ण के साथ तुम्हारी प्रीत तो है । कृष्ण के लिए सबसे जास्ती व्रत नेम आदि कुमारियाँ, मातायें रखती हैं । निर्जल रहती हैं । कृष्णपुरी अर्थात् सतयुग में जाये । परन्तु ज्ञान नहीं है इसलिए बड़ा हठ आदि करते हैं । तुम भी इतना करते हो, कोई को सुनाने के लिए नहीं, खुद कृष्णपुरी में जाने के लिए । तुमको कोई रोकता नहीं है । वो लोग गवर्नमेंट के आगे फास्ट आदि रखते हैं, हठ करते हैं-तंग करने के लिए । तुमको कोई के पास धरना मारकर नहीं बैठना है । न कोई ने तुमको सिखाया है । श्रीकृष्ण तो है सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स । परन्तु यह कोई को भी पता नहीं पड़ता । कृष्ण को वह द्वापर में ले गये हैं । बाप समझाते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, भक्ति और ज्ञान दो चीज़ें अलग हैं । ज्ञान है दिन, भक्ति है रात । किसकी? ब्रह्मा की रात और दिन । परन्तु इनका अर्थ न समझते हैं गुरू, न उनके चेले । ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का राज़ बाप ने तुम बच्चों को समझाया है । ज्ञान दिन, भक्ति रात और उसके बाद है वैराग्य । वह जानते नहीं । ज्ञान, भक्ति, वैराग्य अक्षर एक्यूरेट है, परन्तु अर्थ नहीं जानते । अभी तुम बच्चे समझ गये हो, ज्ञान बाप देते हैं तो उससे दिन हो जाता है । भक्ति शुरू होती तो रात कहा जाता है क्योंकि धक्का खाना पड़ता है । ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात, फिर होता है दिन । ज्ञान से दिन, भक्ति से रात । रात में तुम बनवास में बैठे हो फिर दिन में तुम कितना धनवान बन जाते हो । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- अपने दिल से पूछना है १. बाप से इतना जो खुशी का खजाना मिलता है वह दिमाग में बैठता है? २.बाबा हमें विश्व का मालिक बनाने आये हैं तो ऐसी चलन है? बातचीत करने का ढंग ऐसा है? कभी किसी की ग्लानि तो नहीं करते? ३.बाप से प्रतिज्ञा करने के बाद कोई अपवित्र कर्म तो नहीं होता है? वरदान:- समय प्रमाण हर शक्ति का अनुभव प्रैक्टिकल स्वरूप में करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव    मास्टर का अर्थ है कि जिस शक्ति का जिस समय आह्वान करो वो शक्ति उसी समय प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो । आर्डर किया और हाजिर । ऐसे नहीं कि आर्डर करो सहनशक्ति को और आये सामना करने की शक्ति, तो उसको मास्टर नहीं कहेंगे । तो ट्रायल करो कि जिस समय जो शक्ति आवश्यक है उस समय वही शक्ति कार्य में आती है? एक सेकण्ड का भी फर्क पड़ा तो जीत के बजाए हार हो जायेगी । स्लोगन:-  बुद्धि में जितना ईश्वरीय नशा हो, कर्म में उतनी ही नम्रता हो ।     ओम् शान्ति |

Murli-29/10/2014-English

Essence: Sweet children, your pilgrimage is of the intellect. It is this that is called the spiritual pilgrimage. You 
consider yourselves to be souls, not bodies. To consider yourself to be a body means to dangle upside down.  

Question: Which type of respect do people receive through the pomp of Maya?
Answer: Devilish respect. People give someone a little respect today, but they will disrespect that person tomorrow 
and insult him. Maya has been disrespectful to and insulted everyone and made them impure. The Father has come 
to make you those with divine respect.

Om Shanti 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, 
the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. To the sweetest, beloved, long-lost 
and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual 
Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:

1. Renounce the habit of stumbling from door to door and study God’s teachings with attention. Never be absent. 
Definitely become a teacher like the Father. Study and then also teach others.

2. Listen to the true story of the true Narayan and become Narayan from an ordinary human. You have to make 
yourself respectful. Never become influenced by evil spirits (vices) and thereby lose your respect. 
 
Blessing: May you be a jewel of contentment and with your speciality of contentment in relationships and connections 
become threaded in the rosary.   

The confluence age is the age of contentment. Those who are content with themselves and who always remain content 
in their relationships and connections and make others content become threaded in the rosary because the rosary is 
created through relationships. If the beads do not have any connection with one another, the rosary cannot be created. 
Therefore, be a jewel of contentment and remain constantly content and make all others content. The meaning of a family 
is to remain content and make others content. Let there be no type of complication.

Slogan: It is the duty of obstacles to come whereas your duty is to be a destroyer of obstacles.  

Om Shanti

Murli-29/10/2014-Hindi

मीठे बच्चे - तुम्हारी यात्रा बुद्धि की है, इसे ही रूहानी यात्रा कहा जाता है, तुम अपने को आत्मा 
समझते हो, शरीर नहीं, शरीर समझना अर्थात् उल्टा लटकना”   

प्रश्न:-    माया के पाम्प में मनुष्यों को कौन-सी इज्जत मिलती है?
उत्तर:- आसुरी इज्जत । मनुष्य किसी को भी आज थोड़ी इज्जत देते, कल उसकी बेइज्जती 
करते हैं, गालियाँ देते हैं । माया ने सबकी बेइज्जती की है, पतित बना दिया है । बाप आये हैं 
तुम्हें दैवी इज्जत वाला बनाने |

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी 
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. दर-दर धक्के खाने की आदत छोड़ भगवान की पढ़ाई ध्यान से पढ़नी है । कभी अबसेट नहीं 
होना है । बाप समान टीचर भी जरूर बनना है । पढ़कर फिर पढ़ाना है ।

2.सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है, ऐसा इज्जतवान स्वयं को स्वयं 
ही बनाना है । कभी भूतों के वशीभूत हो इज्जत गॅवानी नहीं है ।
 
वरदान:- सम्मन्ध-सम्पर्क में सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा माला में पिरोने वाले सन्तुष्टमणी भव्|
   
संगमयुग सन्तुष्टता का युग है । जो स्वयं से भी सन्तुष्ट है और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी सदा 
सन्तुष्ट रहते वा सन्तुष्ट करते हैं वही माला में पिरोते हैं क्योंकि माला सम्बन्ध से बनती हैं । 
अगर दाने का दाने से सम्पर्क नहीं हो तो माला नहीं बनेगी इसलिए सन्तुष्टमणी बन सदा 
सन्तुष्ट रहो और सर्व को सन्तुष्ट करो । परिवार का अर्थ ही है सन्तुष्ट रहना और सनुष्ट 
करना । कोई भी प्रकार की खिटखिट न हो ।

स्लोगन:-  विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विघ्न-विनाशक बनना | 

Tuesday, October 28, 2014

Murli-28/10/2014-English

Essence: Sweet children, the knowledge that the Father teaches you has nothing to do with occult power. A magic mantra doesn’t work for studying. Question: Why are deities said to be wise whereas human beings are not? Answer: Because deities are full of all virtues whereas human beings have no virtues. It is because deities are wise that people worship them. Their batteries are charged and this is why they are said to be worth a pound. When their batteries have become discharged and they are worth only a penny, they would be called senseless. Essence for dharna: 1. Accumulate the power of silence. With the power of silence, you have to go to the world of silence. Free yourself from slavery by taking power through having remembrance of the Father and become a master. 2. By studying with the Supreme, the soul has to become supreme. Only follow the path of purity, become pure and make others pure. Become a guide. Blessing: May you remain stable in your powerful stage and serve through your mind as a number one server. Even if you don’t receive a chance to serve through words, there is a chance to serve with your mind at every moment. The most powerful and greatest service of all is service through the mind. Serving through words is easy, but, in order to serve with your mind, you first of all have to make yourself powerful. You can serve with words even when your stage fluctuates, but you cannot serve with your mind in that way. Those who serve with their elevated stage are number one servers and claim full marks. Slogan: To experience spirituality while carrying out a mundane task is to surrender.

Monday, October 27, 2014

Murli-28/10/2014-Hindi

28-10-14      प्रातःमुरली     ओम् शान्ति     “बापदादा”      मधुबन   मीठे बच्चे - “बाप तुम्हें जो नॉलेज पढ़ाते हैं, इसमें रिद्धि सिद्धि की बात नहीं, पढ़ाई में कोई छू मंत्र से काम नहीं चलता है ''     प्रश्न:-    देवताओं को अक्लमंद कहेंगे, मनुष्यों को नहीं - क्यों ?  उत्तर:-   क्योंकि देवतायें हैं सर्वगुण सम्पन्न और मनुष्यों में कोई भी गुण नहीं है । देवतायें अक्लमंद हैं तब तो मनुष्य उनकी पूजा करते हैं । उनकी बैटरी चार्ज है इसलिए उन्हें वर्थ पाउण्ड कहा जाता है । जब बैटरी डिस्चार्ज होती है, वर्थ पेनी बन जाते हैं तब कहेंगे बेअक्ल ।   ओम् शान्ति | बाप ने बच्चों को समझाया है कि यह पाठशाला है । यह पढ़ाई है । इस पढ़ाई से यह पद प्राप्त होता है, इनको स्कूल वा युनिवर्सिटी समझना चाहिए । यहाँ दूर-दूर से पढ़ने के लिए आते हैं । क्या पढ़ने आते हैं? यह एम ऑबजेक्ट बुद्धि में है । हम पढ़ाई पढ़ने के लिए आते हैं, पढ़ाने वाले को टीचर कहा जाता है । भगवानुवाच है भी गीता । दूसरी कोई बात नहीं है । गीता पढ़ाने वाले का पुस्तक है, परन्तु पुस्तक आदि कोई पढ़ाते नहीं हैं । गीता कोई हाथ में नहीं है । यह तो भगवानुवाच है । मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता । भगवान ऊंच ते ऊंच है एक । मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन-यह है सारी युनिवर्स । खेल कोई सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में नहीं चलता है, नाटक यहाँ ही चलता है । 84 का चक्र भी यहाँ है । इनको ही कहा जाता है 84 के चक्र का नाटक । यह बना-बनाया खेल है । यह बड़ी समझने की बातें हैं क्योंकि ऊंच ते ऊंच भगवान उनकी तुमको मत मिलती है । दूसरी तो कोई वस्तु है नहीं । एक को ही कहा जाता है सर्व शक्तिमान्? वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । अथॉरिटी का भी अर्थ खुद समझाते हैं । यह मनुष्य नहीं समझते क्योंकि वह सब हैं तमोप्रधान, इसको कहा ही जाता है कलियुग । ऐसे नहीं कि कोई के लिए कलियुग है, कोई के लिए सतयुग है, कोई के लिए त्रेता है । नहीं, जबकि अभी है ही नर्क तो कोई भी मनुष्य ऐसे नहीं कह सकता कि हमारे लिए स्वर्ग है क्योंकि हमारे पास धन दौलत बहुत है । यह हो नहीं सकता । यह तो बना-बनाया खेल है । सतयुग पास्ट हो गया, इस समय तो हो भी नहीं सकता । यह सब समझने की बातें हैं । बाप बैठ सब बातें समझाते हैं । सतयुग में इनका राज्य था । भारतवासी उस समय सतयुगी कहलाते थे । अभी जरूर कलियुगी कहलायेंगे । सतयुगी थे तो उसको स्वर्ग कहा जाता था । ऐसे नहीं कि नर्क को भी स्वर्ग कहेंगे । मनुष्यों की तो अपनी- अपनी मत है । धन का सुख है तो अपने को स्वर्ग में समझते हैं । मेरे पास तो बहुत सम्पत्ति है इसलिए मैं स्वर्ग में हूँ । परन्तु विवेक कहता है कि नहीं । यह तो है ही नर्क । भल किसके पास 10 - 20 लाख हों परन्तु यह है ही रोगी दुनिया । सतयुग को कहेंगे निरोगी दुनिया । दुनिया यही है । सतयुग में इनको योगी दुनिया कहेंगे, कलियुग को भोगी दुनिया कहा जाता है । वहाँ हैं योगी क्योंकि विकार का भोग-विलास नहीं होता है । तो यह स्कूल है इसमें शक्ति की बात नहीं । टीचर शक्ति दिखलाते हैं क्या? एम ऑबजेक्ट रहता है, हम फलाना बनेंगे । तुम इस पढ़ाई से मनुष्य से देवता बनते हो । ऐसे नहीं कि कोई जादू, छू मन्त्र वा रिद्धि-सिद्धि की बात है । यह तो स्कूल है । स्कूल में रिद्धि सिद्धि की बात होती है क्या? पढ़कर कोई डॉक्टर, कोई बैरिस्टर बनता है । यह लक्ष्मी-नारायण भी मनुष्य थे, परन्तु पवित्र थे इसलिए उन्हों को देवी- देवता कहा जाता है । पवित्र जरूर बनना है । यह है ही पतित पुरानी दुनिया । मनुष्य तो समझते हैं पुरानी दुनिया होने में लाखों वर्ष पड़े हैं । कलियुग के बाद ही सतयुग आयेगा । अभी तुम हो संगम पर । इस संगम का किसको भी पता नहीं है । सतयुग को लाखों वर्ष दे देते हैं । यह बातें बाप आकर समझाते हैं । उनको कहा जाता है सुप्रीम सोल । आत्माओं के बाप को बाबा कहेंगे । दूसरा कोई नाम होता नहीं । बाबा का नाम है शिव । शिव के मन्दिर में भी जाते हैं । परमात्मा शिव को निराकार ही कहा जाता है । उनका मनुष्य शरीर नहीं है । तुम आत्मायें यहाँ पार्ट बजाने आती हो तब तुमको मनुष्य शरीर मिलता है । वह हैं शिव, तुम हो सालिग्राम । शिव और सालिग्रामों की पूजा भी होती है क्योंकि चैतन्य में होकर गये हैं । कुछ करके गये हैं तब उनका नामाचार गाया जाता है अथवा पूजे जाते हैं । आगे जन्म का तो किसको पता नहीं है । इस जन्म में तो गायन करते हैं, देवी-देवताओं को पूजते हैं । इस जन्म में तो बहुत लीडर्स भी बन गये हैं । जो अच्छे- अच्छे साधू-सन्त आदि होकर गये हैं, उनकी स्टैम्प भी बनाते हैं नामाचार के लिए । यहाँ फिर सबसे बड़ा नाम किसका गाया जाए? सबसे बड़े ते बड़ा कौन है? ऊँच ते ऊँच तो एक भगवान ही है । वह है निराकार और उनकी महिमा बिल्कुल अलग है । देवताओं की महिमा अलग है, मनुष्यों की अलग है । मनुष्य को देवता नहीं कह सकते । देवताओं में सर्वगुण थे, लक्ष्मी-नारायण होकर गये हैं ना । वे पवित्र थे, विश्व के मालिक थे, उनकी पूजा भी करते हैं क्योंकि पवित्र पूज्य हैं, अपवित्र को पूज्य नहीं कहेंगे, अपवित्र सदैव पवित्र को पूजते हैं । कन्या पवित्र हैं तो पूजी जाती हैं, पतित बनती हैं तो सबको पाव पड़ना पड़ता है । इस समय सब हैं पतित, सतयुग में सब पावन थे । वह है ही पवित्र दुनिया, कलियुग है पतित दुनिया तब ही पतित-पावन बाप को बुलाते हैं । जब पवित्र हैं तब नहीं बुलाते हैं । बाप खुद कहते हैं मुझे सुख में कोई भी याद नहीं करते हैं । भारत की ही बात हैं । बाप आते ही भारत में हैं । भारत ही इस समय पतित बना है, भारत ही पावन था । पावन देवताओं को देखना हो तो जाकर मन्दिर में देखों । देवतायें सब हैं पावन, उनमें जो मुख्य-मुख्य हेड हैं, उन्हों को मन्दिरों में दिखाते हैं । इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में सब पावन थे, यथा राजा-रानी तथा प्रजा, इस समय सब पतित हैं । सब पुकारते रहते ३-३ पतित-पावन आओ । सन्यासी कभी कृष्ण को भगवान वा ब्रह्म नहीं मानेंगे । वह समझते हैं भगवान तो निराकार है, उनका चित्र भी निराकार तरीके से पूजा जाता है । उनका एक्यूरेट नाम शिव है | तुम आत्मा जब यहाँ आकर शरीर धारण करती हो तो तुम्हारा नाम रखा जाता है । आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है । आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा जाकर लेती है । 84 जन्म तो चाहिए ना । 84 लाख नहीं होते । तो बाप समझाते हैं यही दुनिया सतयुग में नई थी, राइटियस थी । यही दुनिया फिर अनराइटियस बन जाती है । वह है सचखण्ड, सब सच बोलने वाले होते हैं । भारत को सचखण्ड कहा जाता है । झूठखण्ड ही फिर सचखण्ड बनता है । सच्चा बाप ही आकर सचखण्ड बनाते हैं । उनको सच्चा पातशाह, ट्रुथ कहा जाता है, यह है ही झूठ खण्ड । मनुष्य जो कहते हैं वह है झूठ । सेन्सीबुल बुद्धि हैं देवतायें, उन्हों को मनुष्य पूजते हैं । अक्लमंद और बेअक्ल कहा जाता है । अक्लमंद कौन बनाते हैं फिर बेअक्ल कौन बनाते हैं? यह भी बाप बताते हैं । अक्लमंद सर्वगुण सम्पन्न बनाने वाला है बाप । वह खुद आकर अपना परिचय देते हैं । जैसे तुम आत्मा हो फिर यहाँ शरीर में प्रवेश कर पार्ट बजाते हो । मैं भी एक ही बार इनमें प्रवेश करता हूँ । तुम जानते हो वह है ही एक । उनको ही सर्वशक्तिमान कहा जाता है । दूसरा कोई मनुष्य नहीं जिसको हम सर्वशक्तिमान कहें । लक्ष्मी- नारायण को भी नहीं कह सकते क्योंकि उन्हों को भी शक्ति देने वाला कोई है । पतित मनुष्य में शक्ति हो न सके । आत्मा में जो शक्ति रहती है वह फिर आहिस्ते- आहिस्ते डिग्रेड होती जाती है अर्थात् आत्मा में जो सतोप्रधान शक्ति थी वह तमोप्रधान शक्ति हो जाती है । जैसे मोटर का तेल खलास होने से मोटर खड़ी हो जाती है । यह बैटरी घड़ी-घड़ी डिस्चार्ज नहीं होती है, इनको पूरा टाइम मिला हुआ है । कलियुग अन्त में बैटरी ठण्डी हो जाती है । पहले जो सतोप्रधान विश्व के मालिक थे, अभी तमोप्रधान हैं तो ताकत कम हो गई है । शक्ति नहीं रही है । वर्थ नाट पेनी बन जाते हैं । भारत में देवी- देवता धर्म था तो वर्थ पाउण्ड थे । रिलीजन इज माइट कहा जाता है । देवता धर्म में ताकत है । विश्व के मालिक हैं । क्या ताकत थी? कोई लड़ने आदि की ताकत नहीं थी । ताकत मिलती है सर्वशक्तिमान बाप से । ताकत क्या चीज है? बाप समझाते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान थी, अब तमोप्रधान है । विश्व के मालिक बदले विश्व के गुलाम बन गये हो । बाप समझाते हैं - यह 5 विकार रूपी रावण तुम्हारी सारी ताकत छीन लेते हैं इसलिए भारतवासी कंगाल बन पड़े हैं । ऐसे मत समझो साइन्स वालों में बहुत ताकत है, वह ताकत नहीं है । यह रूहानी ताकत है । जो सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाने से मिलती है । साइंस और साइलेन्स की इस समय जैसे लड़ाई है । तुम साइलेन्स में जाते हो, उसका तुमको बल मिल रहा है । साइलेन्स का बल लेकर तुम साइलेन्स दुनिया में चले जाएंगे । बाप को याद कर अपने को शरीर से डिटैच कर देते हो । भक्ति मार्ग में भगवान के पास जाने के लिए तुमने बहुत माथा मारा है । परनु सर्वव्यापी कहने के कारण रास्ता मिलता ही नहीं । तमोप्रधान बन गये हैं । तो यह पढ़ाई है, पढ़ाई को शक्ति नहीं कहेंगे । बाप कहते हैं पहले तो पवित्र बनो और फिर सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है उनकी नॉलेज समझो । नॉलेजफुल तो बाप ही है, इसमें शक्ति की बात नहीं । बच्चों को यह पता नहीं है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, तुम एक्टर्स पार्टधारी हो ना । यह बेहद का ड्रामा है । आगे मनुष्यों का नाटक चलता था, उसमें अदली बदली हो सकती है । अभी तो फिर बाइसकोप बने हैं । बाप को भी बाइसकोप का मिसाल दे समझाना सहज होता है । वह छोटा बाइसकोप, यह है बड़ा । नाटक में एक्टर्स आदि को चेन्ज कर सकते हैं । यह तो अनादि ड्रामा है । एक बार जो शूट हुआ है वह फिर बदल नहीं सकता । यह सारी दुनिया बेहद का बाइसकोप है । शक्ति की कोई बात ही नहीं । अम्बा को शक्ति कहते हैं परन्तु फिर भी नाम तो है । उनको अम्बा क्यों कहते हैं? क्या करके गई हैं? अभी तुम समझते हो कि ऊँच ते ऊँच हैं अम्बा और लक्ष्मी । अम्बा ही फिर लक्ष्मी बनती हैं । यह भी तुम बच्चे ही समझते हो । तुम नॉलेजफुल भी बनते हो और तुमको पवित्रता भी सिखलाते हैं । वह पवित्रता आधाकल्प चलती है । फिर बाप ही आकर पवित्रता का रास्ता बताते हैं । उनको बुलाते ही इस समय के लिए हैं कि आकर रास्ता बताओ और फिर गाइड भी बनो । वह है परम आत्मा, सुप्रीम की पढ़ाई से आत्मा सुप्रीम बनती है । सुप्रीम पवित्र को कहा जाता है । अभी यहाँ तो सब पतित हैं, बाप एवर पावन है, फर्क है ना । वह एवर पावन ही जब आकर सबको वर्सा दे और सिखलाये, तो खुद आकर बतलाते हैं कि मैं तुम्हारा बाप हूँ । मुझे रथ तो जरूर चाहिए, नहीं तो आत्मा बोले कैसे । रथ भी मशहूर है । गाते हैं भाग्यशाली रथ । तो भाग्यशाली रथ है मनुष्य का, घोड़े-गाड़ी की बात नहीं है । मनुष्य का ही रथ चाहिए, जो मनुष्यों को बैठ समझाये । उन्होंने फिर घोड़े गाड़ी बैठ दिखा दी है । भाग्यशाली रथ मनुष्य को कहा जाता है । यहाँ तो कोई-कोई जानवर की भी बहुत अच्छी सेवा होती है, जो मनुष्य की भी नहीं होती । कुत्ते को कितना प्यार करते हैं । घोड़े को, गाय को भी प्यार करते हैं । कुत्तों की एग्जीवीशन लगती है । यह सब वहाँ होते नहीं । लक्ष्मी-नारायण कुत्ते पालते होंगे क्या? अभी तुम बच्चे जानते हो कि इस समय के मनुष्य सब तमोप्रधान बुद्धि हैं, उन्हें सतोप्रधान बनाना है । वहां तो घोड़े आदि ऐसे नहीं होते जो मनुष्य कोई उनकी सेवा करे । तो बाप समझाते हैं-तुम्हारी हालत देखो क्या हो गई है । रावण ने यह हालत कर दी है, यह तुम्हारा दुश्मन है । परन्तु तुमको पता नहीं है कि इस दुश्मन का जन्म कब होता है । शिव के जन्म का भी पता नहीं है तो रावण के जन्म का भी पता नहीं है । बाप बतलाते हैं त्रेता के अन्त और द्वापर के आदि में रावण आते हैं । उनको 10 शीश क्यों दिये हैं? हर वर्ष क्यों जलाते हैं? यह भी कोई जानते नहीं । अभी तुम मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ते हो, जो पढ़ते नहीं वह देवता बन न सके । वह फिर आएंगे तब जब रावणराज्य शुरू होगा । अभी तुम जानते हो हम देवता धर्म के थे अब फिर सैपलिंग लग रहा है । बाप कहते हैं मैं हर 5 हजार वर्ष बाद तुमको आकर ऐसा पढ़ाता हूँ । इस समय सारे सृष्टि का झाड़ पुराना है । नया जब था तो एक ही देवता धर्म था फिर धीरे- धीरे नीचे उतरते हैं । बाप तुम्हें 84 जन्मों का हिसाब बताते हैं क्योंकि बाप नॉलेजफुल है ना । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।  धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. साइलेन्स का बल जमा करना है । साइलेन्स बल से साइलेन्स दुनिया में जाना है । बाप की याद से ताकत लेकर गुलामी से छूटना है, मालिक बनना है । 2.सुप्रीम की पढ़ाई पढ़कर आत्मा को सुप्रीम बनाना है । पवित्रता के ही रास्ते पर चल पवित्र बनकर दूसरों को बनाना है । गाइड बनना है । वरदान:- अपनी पावरफुल स्थिति में स्थित रह मन्सा द्वारा सेवा करने वाले नम्बरवन सेवाधारी भव     यदि किसी को वाणी की सेवा का चांस नहीं मिलता तो भी मन्सा सेवा का चास हर समय है ही । पावरफुल और सबसे बड़े से बड़ी सेवा मन्सा सेवा है । वाणी की सेवा सहज है लेकिन मन्सा सेवा के लिए पहले अपने को पावरफुल बनाना पड़ता है । वाणी की सेवा तो स्थिति नीचे ऊपर होते भी कर लेंगे लेकिन मन्सा सेवा ऐसे नहीं हो सकती । जो अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा सेवा करते हैं वही नम्बरवन सेवाधारी फुल मार्क्स ले सकते हैं । स्लोगन:-  लौकिक कार्य करते अलौकिकता का अनुभव करना ही सरेन्डर होना है |     ओम् शान्ति |  

Murli-27/10/2014-English

Essence: Sweet children, remain honest with the true Father. Keep your chart honest. Renounce any arrogance of 
knowledge and make full effort to stay in remembrance.

Question: What are the main signs of mahavir (brave warrior) children?
Answer: Mahavir children constantly have remembrance of the Father in their intellects. Mahavirs means ones who 
are powerful. Mahavirs are constantly happy and soul conscious; they do not have the slightest arrogance of the body. 
It remains in the intellects of such mahavir children that they are souls and that Baba is teaching them.

Essence for Dharna: 

1. Keep an eye on your chart of remembrance and see for how long you remember the Father. Where does your intellect 
wander at the time of remembrance? 

2. At this time of settlement, make effort to go beyond sound. Along with having remembrance of the Father, you
definitely have to imbibe divine virtues. Do not perform any dirty actions or steal etc.

Blessing: May you be a true server who serves at every moment through your elevated vision, attitude and deeds. 

A server means to be one who serves at every moment through one’s elevated vision, attitude and deeds. Whomsover 
you look at with elevated drishti, that drishti does service. The atmosphere is created through your attitude. Any task 
that you perform in remembrance purifies the atmosphere. The breath of Brahmin life is service. When you cannot 
breathe, you become unconscious. In the same way when a Brahmin soul is not busy in service, he becomes unconscious. 
Therefore, to the extent that you remain loving, become co-operative and serve to the same extent.

Slogan: Consider service to be a game and you will not get tired and always remain light.
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Sunday, October 26, 2014

Murli-27/10/2014-Hindi

     27-10-14  प्रातःमुरली ओम् शान्ति  “बापदादा”  मधुबन “मीठे बच्चे - सच्चे बाप के साथ सच्चे बनो, सच्चाई का चार्ट रखो, ज्ञान का अहंकार छोड़ याद में रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो ''     प्रश्न:-    महावीर बच्चों की मुख्य निशानी क्या होगी ? उत्तर:- महावीर बच्चे वह जिनकी बुद्धि में निरन्तर बाप की याद हो । महावीर माना शक्तिमान् । महावीर वह जिन्हें निरन्तर खुशी हो । जो आत्म- अभिमानी हो, जरा भी देह का अहंकार न हो । ऐसे महावीर बच्चों की बुद्धि में रहता कि हम आत्मा हैं, बाबा हमें पढ़ा रहे हैं । ओम् शान्ति | रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - अपने को रूह या आत्मा समझ बैठे हो? क्योंकि बाप जानते हैं यह कुछ डिफीकल्ट है, इसमें ही मेहनत है । जो आत्म- अभिमानी होकर बैठे हैं उनको ही महावीर कहा जाता है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना - उनको महावीर कहा जाता है । हमेशा अपने से पूछते रहो कि हम आत्म- अभिमानी हैं? याद से ही महावीर बनते हैं, गोया सुप्रीम बनते हैं । और जो भी धर्म वाले आते हैं वह इतने सुप्रीम नहीं बनते हैं । वह तो आते भी देर से हैं । तुम नम्बरवार सुप्रीम बनते हो । सुप्रीम अर्थात् शक्तिमान् वा महावीर । तो अन्दर में यह खुशी होती है कि हम आत्मा हैं । हम सब आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं । यह भी बाप जानते हैं कोई अपना चार्ट 25 परसेन्ट दिखाते हैं, कोई 100 परसेन्ट दिखाते हैं । कोई कहते हैं 24 घण्टे में आधा घण्टा याद ठहरती हैं तो कितना परसेन्ट हुआ? अपनी बड़ी सम्भाल रखनी है । धीरे- धीरे महावीर बनना है । फट से नहीं बन सकते हैं, मेहनत है । वह जो ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी है, ऐसे मत समझो वह अपने को कोई आत्मा समझते हैं । वह तो ब्रह्म घर को परमात्मा समझते हैं और स्वयं को कहते हैं अहम् ब्रह्मस्मि । अब घर से थोड़ेही योग लगाया जाता है । अभी तुम बच्चे अपने को आत्मा समझते हो । यह अपना चार्ट देखना है - 24 घण्टे में हम कितना समय अपने को आत्मा समझते हैं? अभी तुम बच्चे जानते हो हम ईश्वरीय सर्विस पर हैं, ऑन गॉडली सर्विस । यही सबको बताना है कि बाप सिर्फ कहते हैं मनमनाभव अर्थात् अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । यह है तुम्हारी सर्विस । जितनी तुम सर्विस करेंगे उतना फल भी मिलेगा । यह बातें अच्छी रीति समझने की हैं । अच्छे- अच्छे महारथी बच्चे भी इस बात को पूरा समझते नहीं हैं । इसमें बडी मेहनत है । मेहनत बिगर फल थोड़ेही मिल सकता है । बाबा देखते हैं कोई चार्ट बनाकर भेज देते हैं, कोई से तो चार्ट लिखना पहुँचता ही नहीं है । ज्ञान का अहंकार है । याद में बैठने की मेहनत पहुँचती नहीं । बाप समझाते हैं मूल बात है ही याद की । अपने पर नज़र रखनी है कि हमारा चार्ट कैसा रहता है? वह नोट करना है । कई कहते हैं चार्ट लिखने की फुर्सत नहीं । मूल बात तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ अल्फ को याद करो । यहाँ जितना समय बैठते हो तो बीच-बीच में अपने दिल से पूछो कि हम कितना समय याद में बैठे? यहाँ जब बैठते हो तो तुमको याद में ही रहना है और चक्र फिराओ तो भी हर्जा नहीं । हमको बाबा के पास जरूर जाना है । पवित्र सतोप्रधान होकर जाना है । इस बात को अच्छी रीति समझना है । कई तो फट से भूल जाते हैं । सच्चा- सच्चा चार्ट अपना बताते नहीं हैं । ऐसे बहुत महारथी हैं । सच तो कभी नहीं बतायेंगे । आधाकल्प झूठ दुनिया चली है तो झूठ जैसे अन्दर जम गया है । इसमें भी जो साधारण हैं वह तो झट चार्ट लिखेंगे | बाप कहते हैं तुम पापों को भस्म कर पावन होंगे, याद की यात्रा से । सिर्फ ज्ञान से तो पावन नहीं होंगे । बाकी फायदा क्या । पुकारते भी हो पावन बनने के लिए । उसके लिए चाहिए याद । हर एक को सच्चाई से अपना चार्ट बताना चाहिए । यहाँ तुम पौना घण्टा बैठे हो तो देखना है पौने घण्टे में हम कितना समय अपने को आत्मा समझ बाप की याद में थे? कइयों को तो सच बताने में लज्जा आती है । बाप को सच नहीं बताते । वह समाचार देंगे यह सर्विस की, इतनों को समझाया, यह किया । परन्तु याद की यात्रा का चार्ट नहीं लिखते । बाप कहते हैं याद की यात्रा में न रहने कारण ही तुम्हारा कोई को तीर नहीं लगता है । ज्ञान तलवार में जौहर नहीं भरता है । ज्ञान तो सुनाते हैं, बाकी योग का तीर लग जाए - वह बड़ा मुश्किल है । बाबा तो कहते हैं पौने घण्टे में 5 मिनट भी याद की यात्रा में नहीं बैठते होंगे । समझते ही नहीं हैं कि कैसे अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करें । कई तो कहते हैं हम निरन्तर याद में रहते हैं । बाबा कहते हैं यह अवस्था अभी हो नहीं सकती । अगर निरन्तर याद करते फिर तो कर्मातीत अवस्था आ जाए, ज्ञान की पराकाष्ठा हो जाए । थोड़ा ही किसको समझाने से बहुत तीर लग जाए । मेहनत है ना । विश्व का मालिक कोई ऐसे थोड़ेही बन जायेंगे । माया तुम्हारी बुद्धि का योग कहाँ का कहाँ ले जायेगी । मित्र- सम्बन्धी आदि याद आते रहेंगे । किसको विलायत जाना होगा तो सब मित्र-सम्बन्धी, स्टीमर, एरोप्लेन आदि ही याद आते रहेंगे । विलायत जाने की जो प्रैक्टिकल इच्छा है वह खींचती है । बुद्धि का योग बिल्कुल टूट जाता है । और कोई तरफ बुद्धि न जाए, इसमें बड़ी मेहनत की बात है । सिर्फ एक बाप की ही याद रहे । यह देह भी याद न आये । यह अवस्था तुम्हारी पिछाड़ी को होगी । दिन-प्रतिदिन जितना याद की यात्रा को बढ़ाते रहे, इसमें तुम्हारा ही कल्याण है । जितना याद में रहेंगे उतना तुम्हारी कमाई होगी । अगर शरीर छूट गया फिर यह कमाई तो कर नहीं सकेंगे । जाकर छोटा बच्चा बनेंगे । तो कमाई क्या कर सकेंगे । भल आत्मा यह संस्कार ले जायेगी परन्तु टीचर तो चाहिए ना जो फिर स्मृति दिलाये । बाप भी मति दिलाते हैं ना । बाप को याद करो-यह सिवाए तुम्हारे और कोई को पता नहीं है कि बाप की याद से ही पावन बनेंगे । वह तो गंगा स्नान को ही ऊंच मानते हैं इसलिए गंगा स्नान ही करते रहते हैं । बाबा तो इन सब बातों का अनुभवी है ना । इसने तो बहुत गुरू किये हैं । वह स्नान करने जाते हैं पानी का । यहाँ तुम्हारा स्नान होता है याद की यात्रा से । सिवाए बाप की याद के तुम्हारी आत्मा पावन बन ही नहीं सकती । इनका नाम ही है योग अर्थात् याद की यात्रा । ज्ञान को स्नान नहीं समझना । योग का स्नान है । ज्ञान तो पढ़ाई है, योग का स्नान है, जिससे पाप कटते हैं । ज्ञान और योग दो चीजें हैं । याद से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होते हैं । बाप कहते हैं इस याद की यात्रा से ही तुम पावन बन सतोप्रधान बन जायेंगे । बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं-मीठे- मीठे बच्चों इन बातों को अच्छी रीति समझो । यह भूलो नहीं । याद की यात्रा से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे, बाकी ज्ञान तो है कमाई । याद और पढ़ाई दोनों अलग चीज हैं । ज्ञान और विज्ञान-ज्ञान माना पढ़ाई, विज्ञान माना योग अथवा याद । किसको ऊंच रखेंगे-ज्ञान या योग? याद की यात्रा बहुत बड़ी है । इसमें ही मेहनत है । स्वर्ग में तो सब जायेंगे । सतयुग है स्वर्ग, त्रेता है सेमी स्वर्ग । वहाँ तो इस पढ़ाई अनुसार जाकर विराजमान होंगे । बाकी मुख्य है योग की बात । प्रदर्शनी वा म्युजियम आदि में भी तुम ज्ञान समझाते हो । योग थोड़ेही समझा सकेंगे । सिर्फ इतना कहेंगे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । बाकी ज्ञान तो बहुत देते हो । बाप कहते हैं पहले-पहले बात ही यह बताओ कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । इस ज्ञान देने के लिए ही तुम इतने चित्र आदि बनाते हो । योग के लिए कोई चित्र की दरकार नहीं है । चित्र सब ज्ञान की समझानी के लिए बनाये जाते हैं । अपने को आत्मा समझने से देह का अहंकार बिल्कुल टूट जाता है । ज्ञान में तो जरूर मुख चाहिए वर्णन करने के लिए । योग की तो एक ही बात है- अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । पढ़ाई में तो देह की दरकार है । शरीर बिगर कैसे पढ़ेंगे वा पढ़ायेंगे । पतित-पावन बाप है तो उनके साथ योग लगाना पड़े ना । परन्तु कोई जानते नहीं हैं । बाप खुद आकर सिखलाते हैं, मनुष्य- मनुष्य को कभी सिखला न सके । बाप ही कहते हैं मुझे याद करो, इसको कहा जाता है परमात्मा का ज्ञान । परमात्मा ही ज्ञान का सागर है । यह बड़ी समझने की बातें हैं । सबको यही बोलो कि बेहद के बाप को याद करो । वह बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं । वह समझते ही नहीं कि नई दुनिया स्थापन होनी है, जो भगवान को याद करें । ध्यान में भी नहीं है तो ख्याल करे ही क्यों । यह भी तुम जानते हो । परमपिता परमात्मा शिव भगवान एक ही है । कहते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम : फिर पिछाड़ी में कहते हैं शिव परमात्माए नम: । वह बाप है ही ऊंच ते ऊंच । परन्तु वह क्या है, यह भी नहीं समझते । अगर पत्थर ठिक्कर में है फिर नम: काहे की । अर्थ रहित बोलते रहते हैं । यहाँ तो तुमको आवाज से परे जाना है अर्थात् निर्वाणधाम, शान्तिधाम में जाना है । शान्तिधाम सुखधाम कहा जाता है । वह है स्वर्गधाम । नर्क को धाम नहीं कहेंगे । अक्षर बड़े सहज हैं । क्राइस्ट का धर्म कहाँ तक चलेगा? यह भी उन लोगों को कुछ पता नहीं । कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले पैराडाइज था अर्थात् देवी देवताओं का राज्य था तो फिर 2 हजार वर्ष क्रिस्चियन का हुआ, अब फिर देवता धर्म होना चाहिए ना । मनुष्यों की बुद्धि कुछ काम नहीं करती । ड्रामा के राज को न जानने कारण कितने प्लैन बनाते रहते हैं । यह बातें बड़ी अवस्था वाली बूढ़ी मातायें तो समझ न सके । बाप समझाते हैं अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है । वाणी से परे जाना है । वह भल कहते हैं निर्वाणधाम गया परन्तु जाता कोई नहीं है । पुनर्जन्म फिर भी लेते जरूर है । वापिस कोई भी जाता नहीं । वानप्रस्थ में जाने के लिए गुरू का संग करते हैं । बहुत वानप्रस्थ आश्रम हैं । मातायें भी बहुत हैं । वहाँ भी तुम सर्विस कर सकते हो । वानप्रस्थ का अर्थ क्या है, तुमको बाप बैठ समझाते हैं । अभी तुम सब वानप्रस्थी हो । सारी दुनिया वानप्रस्थी है । जो भी मनुष्य मात्र देखते हो सब वानप्रस्थी हैं । सर्व का सद्गति दाता एक ही सतगुरू है । सबको जाना ही है । जो अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं वह अपना ऊंच पद पाते हैं । इसको कहा ही जाता है - कयामत का समय । कयामत के अर्थ को भी वह लोग समझते नहीं हैं । तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं । बड़ी ऊंच मजिल है । सबको समझना है - अभी हमको घर जाना है जरूर । आत्माओं को वाणी से परे जाना है फिर पार्ट रिपीट करेंगे । परन्तु बाप को याद करते-करते जायेंगे तो ऊंच पद पायेंगे । दैवी गुण भी धारण करने हैं । कोई गन्दा काम चोरी आदि नहीं करना चाहिए । तुम पुण्य आत्मा बनेंगे ही योग से, ज्ञान से नहीं । आत्मा पवित्र चाहिए । शान्तिधाम में पवित्र आत्मायें ही जा सकती हैं । सब आत्मायें वहाँ रहती हैं । अभी आती रहती हैं । अब बाकी जो भी होगी वह यहाँ आती रहेगी । तुम बच्चों को याद की यात्रा में बहुत रहना है । यहाँ तुमको मदद अच्छी मिलेगी । एक-दो का बल मिलता है ना । तुम थोड़े बच्चों की ही ताकत काम करती हैं । गोवर्धन पहाड़ दिखाते हैं ना, अंगुली पर उठाया । तुम गोप-गोपियां हो ना । सतयुगी देवी-देवताओं को गोप-गोपियां नहीं कहा जाता है । अंगुली तुम देते हो । आइरन एज को गोल्डन एज वा नर्क को स्वर्ग बनाने के लिए तुम एक बाप के साथ बुद्धि का योग लगाते हो । योग से ही पवित्र होना है । इन बातों को भूलना नहीं है । यह ताकत तुमको यहाँ मिलती हैं । बाहर में तो आसुरी मनुष्यों का संग रहता है । वहाँ याद में रहना बड़ा मुश्किल है । इतना अडोल वहाँ तुम रह नहीं सकेंगे । संगठन चाहिए ना । यहाँ सब एकरस इकट्टे बैठते हैं तो मदद मिलेगी । यहाँ धन्धा आदि कुछ भी नहीं रहता है । बुद्धि कहाँ जायेगी! बाहर में रहने से धन्धा घर आदि खींचेगा जरूर । यहाँ तो कुछ है नहीं । यहाँ का वायुमण्डल अच्छा शुद्ध रहता है । ड्रामा अनुसार कितना दूर पहाड़ी पर आकर तुम बैठे हो । यादगार भी सामने एक्यूरेट खड़ा है । ऊपर में स्वर्ग दिखाया है । नहीं तो कहाँ बनावे । तो बाबा कहते हैं यहाँ आकर बैठते हो तो अपनी जांच रखो-हम बाप की याद में बैठते हैं? स्वदर्शन चक्र भी फिरता रहे । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. अपने याद के चार्ट पर पूरी नजर रखनी है, देखना है हम बाप को कितना समय याद करते हैं । याद के समय बुद्धि कहाँ-कहाँ भटकती हैं? 2.इस कयामत के समय में वाणी से परे जाने का पुरूषार्थ करना है । बाप की याद के साथ दैवीगुण भी जरूर धारण करने हैं । कोई गंदा काम चोरी आदि नहीं करना है । वरदान:- हर समय अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सेवा करने वाले पक्के सेवाधारी भव |  सेवाधारी अर्थात् हर समय श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करने वाले, जिसको भी श्रेष्ठ दृष्टि से देखते हो तो वह दृष्टि भी सेवा करती है । वृत्ति से वायुमण्डल बनता है । कोई भी कार्य याद में रहकर करते हो तो वायुमण्डल शुद्ध बनता है । ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही सेवा है, जैसे श्वांस न चलने से मूर्छित हो जाते हैं ऐसे ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है । इसलिए जितना स्नेही, उतना सहयोगी, उतना ही सेवाधारी बनी ।  स्लोगन:-  सेवा को खेल समझो तो थकेंगे नहीं, सदा लाइट रहेंगे ।  ओम् शान्ति |    

Murli-26/10/2014-English

26/10/14 Morning Murli Om Shanti Avyakt BapDada Madhuban 01/01/79 Determined thoughts the Father made you have for the New Year. Blessing: May you be knowledge-full while seeing the land, the pulse and the time and reveal the true knowledge. This new knowledge of the Father is true knowledge. The new world is established with this new knowledge. Let the authority and intoxication of this always be emerged in your form. However, this doesn’t mean that you speak about new things of this new knowledge to someone as soon as he comes, and you confuse him. Consider the land, the pulse and the time - and then give knowledge. This is a sign of being knowledge-full. Consider the desire of souls, feel their pulse, prepare the field, but, internally, definitely also keep the power of fearlessness of truth with you and you will then be able to reveal the true knowledge. Slogan: To say “mine” means to make a small thing big, whereas to say “Yours” means to make a situation as big as a mountain into cotton wool.

Murli-26/10/2014-Hindi

✿ 26 ~ October ~ 2014 Avyakt Hindi Murli ✿ ☆ God's Shivßaßa Word For Today ☆ प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:01-01-79 मधुबन “नए वर्ष के लिए बाप द्वारा कराया गया दृढ़ संकल्प” आज बापदादा सर्व बच्चों के नई उमंगों, नये दृढ़ संकल्पों, नई दुनिया को समीप लाने के सुहावने संकल्पों को सुनते हुए अति हर्षित हो रहे थे । हरेक बच्चे के अन्दर विशेष उमंग है - स्वयं को सम्पन्न बनाकर विश्व का कल्याण करने का । आज अपने अन्दर रही हुई कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई देने के दृढ़ संकल्प पर, बापदादा भी बधाई देते हैं । इसी विदाई की बधाई को हर रोज अमृतवेले स्मृति के द्वारा समर्थ बनाते रहना । इस वर्ष स्वयं के समर्थी स्वरूप के साथ-साथ सेवा में भी समर्थ स्वरूप लाना है । जैसे विनाशकारी ग्रुप बहुत तीव्र गति से अपने कार्य को आगे बढ़ाते जा रहे हैं । बहुत रिफाइन सेकेण्ड में शारीरिक बन्धन से मुक्त होने अर्थात् शारीरिक दुःख से सहज मुक्त होने, अनेक आत्माओं को बचाने के सहज साधन बना रहे हैं । किस आधार से? साइन्स की अथॉरिटी से । ऐसे स्थापना के कार्य में निमित्त बने हुए मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी ग्रुप, आत्माओं को जन्म-जन्मान्तर के लिए माया के बन्धन से, माया द्वारा प्राप्त हुए अनेक प्रकार के दु :खों से, एक सेकेण्ड में मुक्त करने वा सदाकाल के लिए सुख-शान्ति का वरदान देने, हरेक आत्मा को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो? विनाशकारी ग्रुप अब भी एवररेडी है सिर्फ आर्डर की देरी है । ऐसे स्थापना के निमित्त बने हुए ग्रुप एवररेडी हो? क्योंकि स्थापना का कार्य सम्पन्न होना अर्थात् विनाशकारियों को आर्डर मिलना है । जैसे समय समीप अर्थात् पूरा होने पर सुई आती है और घण्टे स्वत : ही बजते हैं । ऐसे बेहद की घड़ी में स्थापना की सम्पन्नता अर्थात् समय पर सुई (कांटा) का आना और विनाश के घण्टे बजना । तो बताओ सम्पन्नता में एवररेडी हो? आज बच्चों के अमृतवेले से नये वर्ष के नये उमंग सुनते बापदादा की भी एक नई टॉपिक पर रूहरिहान हुई । ब्रह्मा बोले - मुक्ति का गेट कब खोलना है? जब तक मुक्ति का गेट ब्रह्मा नहीं खोलते तब तक अन्य आत्माएं भी मुक्ति में जा नहीं सकती । ब्रह्मा बोले - अब चाबी लगायें? बाप बोले - उद्घाटन अकेला करना है या बच्चों के साथ? ब्रह्मा बोले - सौतेले और मातेले बच्चों के दु :ख के आलाप, तड़फने के आलाप सुनते-सुनते अब रहम आता है । बाप बोले - बच्चों में से सर्व श्रेष्ठ विजयी रत्न जो साथ-साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध और स्वरूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथी बनने वाले हैं, ऐसे साथी विजयी रत्नों की माला तैयार है? जिन्हों का आदि से यही संकल्प हैं कि साथ जियेंगे, साथ मरेंगे किसी भी भिन्न रूप वा सम्बन्ध में साथ रहेंगे, उन्हों से किए हुए वायदे के प्रमाण साथियों के बिना चाबी कैसे लगायेंगे! तो नये वर्ष का नया संकल्प ब्रह्मा का सुना? बाप के इस संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने वाले विजयी ग्रुप अब क्या करेंगे? श्रेष्ठ विजयी रत्न ही बाप के इस संकल्प को पूरा करने वाले हैं, इसलिए इस वर्ष में विशेष रूप से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के स्वरूप से सेकेण्ड में मुक्त करने की मशीनरी तीव करो । अभी मैजारटी आत्मायें प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से वा आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से अर्थात् परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से अब थक गए हैं, निराश हो गए हैं - समझते हैं सत्य कुछ और है । सत्यता की मंजिल की खोज में हैं । प्राप्ति के प्यासे हैं । ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी, इसलिए ज्ञान कलष धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ । अमृत कलष सदा साथ रहे । चलते फिरते सदा अमृत द्वारा अमर बनाते चलो, तब ही ब्रह्मा बाप के साथ-साथ मुक्ति के गेट का उद्घाटन कर सकेंगे । अभी तो भवनों का उद्घाटन कर रहे हो - अभी विशाल गेट का उद्घाटन करना है । उसके लिए सदा अमर बनो और अमर बनाओ । अमर भव के वरदानी मूर्त बनो । अब पुरूषार्थ करने वाली आत्माएं जो अन्तिम अति कमजोर आत्माएं हैं, ऐसी कमजोर आत्माओं में पुरुषार्थ करने की भी हिम्मत नहीं है, ऐसी आत्माओं को स्वयं की शक्तियों द्वारा समर्थ बनाकर प्राप्ति कराओ इसलिए ज्ञान मूर्त से ज्यादा अभी वरदानी मूर्त का पार्ट चाहिए । सुनने की शक्ति भी नहीं है । चलने की हिम्मत नहीं है । सिर्फ एक प्यास है कि कुछ मिल जाए - ऐसी अनेक आत्माएं विश्व में भटक रही हैं, चलने के पाँव अर्थात् हिम्मत भी आपको देनी पड़ेगी । तो हिम्मत का स्टाक जमा है? अमृत कलष सम्पन्न हैं? अखुट है? अखण्ड है? क्यू लगायें? स्वयं की क्यू समाप्त की है? अगर स्वयं की क्यू में बिजी होंगे तो अन्य आत्माओं को सम्पन्न कैसे बनायेंगे? इसलिए इस वर्ष में अपनी क्यू को समाप्त करो । क्यों, क्या की भाषा चेन्ज करो । एक ही भाषा हो, सर्व प्रति संकल्प से, वाणी से वरदानी भाषा हो, वरदानी मूर्त हो, वरदानों की वर्षा के भाषण हो । जो भी सुने वह अनुभव करे कि भाषण नहीं लेकिन वरदानों के पुष्पों की वर्षा हो रही है - तब उद्घाटन करेंगे । नये वर्ष की यही नवीनता करना । अच्छा । ऐसे सदा अमृत कलषधारी, हर संकल्प से वरदानी अनेक आत्माओं की हिम्मत बढ़ाने वाले, हिम्मते बच्चे मदद बाप, ऐसे एवररेडी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सदा साथ का पार्ट बजाने वाले ऐसे विजयी रत्नों को, सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते । दादियों से:- ब्रह्मा को यह संकल्प क्यों उठा? इसका रहस्य समझते हो? ब्रह्मा के संकल्प से सृष्टि रची और ब्रह्मा के संकल्प से ही गेट खुलेगा । अब शंकर कौन हुआ? यह भी गुह्य रहस्य है । जब ब्रह्मा ही विष्णु है तो शंकर कौन? इस पर भी रूहरिहान करना । अब तो वरदानी मूर्त ग्रुप, जिन्हों के इन स्थूल हाथों में नहीं लेकिन सदा स्मृति में, समर्थ स्वरूप में विजय का झण्डा हो - ऐसे विजय का झण्डा लहराने वाला ग्रुप हो । जिसको कहा जाता है रूहानी सोशल वर्कर ग्रुप । ऐसा ग्रुप अब स्टेज पर चाहिए । स्टेज पर आने वालों के ऊपर सभी की नजर आटोमेटिकली जाती है - अभी पर्दे के अन्दर है, स्वयं के पुरुषार्थ का पर्दा है । अभी इसी पर्दे से निकल सेवा की स्टेज पर आओ तो विश्व की आत्माएं - ऐसे हीरो पार्टधारियों को देख नजर से निहाल हो जायेंगे । ऐसे प्लान बनाओ, ऐसे ग्रुप के मुख से सत्यता की अथॉरिटी स्वत: ही बाप की प्रत्यक्षता करेगी । अभी तो बेबी बाम्ब फेंक रहे हैं, अभी परमात्म बाम्ब द्वारा धरनी को परिवर्तन करो । इसका सहज साधन है सदा मुख पर वा संकल्प में बापदादा-बापदादा की निरन्तर माला के समान स्मृति हो । सबकी एक ही धुन हो बापदादा । संकल्प, कर्म और वाणी में यही अखण्ड धुन हो । यही अजपाजाप हो । जब यह अजपाजाप हो जायेगा तो और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जायेगा क्योंकि इसमें ही बिजी रहेंगे । फुर्सत ही नहीं होती तो व्यर्थ स्वत: ही समाप्त हो जायेगा । तो अब सुना कि इस वर्ष में क्या करना है? आज के संकल्प से समय को जानना - सुई तो ब्रह्मा ही है ना । तो सुई कहाँ तक पहुँची है? सूक्ष्मवतन से आगे भी बढ़ेगी ना? अच्छा । विदेशी भाई-बहनों से - डबल विदेशी बच्चों के तीव्र पुरुषार्थ की रफ्तार को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं । विदेशी बच्चों ने अपने असली बाप को, अपने असली देश को, असली धर्म को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया है । जैसे कल्प पहले की बनी हुई धरनियों में सिर्फ बाप के परिचय का बीज पड़ने से फल स्वरूप प्रत्यक्ष हो गए । बापदादा जानते हैं कि इस ग्रुप में कई ऐसे रत्न हैं जो बापदादा के गले की माला के मणके हैं । ऐसे मणकों को बाप भी सदा विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने के वा विश्व के आगे बच्चों द्वारा बाप प्रत्यक्ष होने के कई दृश्य देख भी रहे हैं - अभी प्रत्यक्ष हो रहे हैं, और आगे चलकर भी होंगे । आप सभी अपने को ऐसे अमूल्य रत्न समझते हो? जो सबसे अमूल्य रत्न हैं, उन्हों का निवास स्थान कहाँ हैं? अमूल्य रत्नों का स्थान है ही दिल की डिब्बी । सदा दिल में रहने वाले अर्थात् सदा बाप की याद में रहने वाले सभी अपने को तीव्र पुरुषार्थी अनुभव करते हो? किस लाइन में हो? हाई जम्प लगाने वाले हो ना? डबल लाइट वाले सदा हाई जम्प देंगे । अगर किसी भी प्रकार का बोझ है तो हाई जम्प नहीं दे सकते । सभी सिकीलधे हो क्योंकि बाप का परिचय मिलते ही सहजयोग द्वारा बाप को सहज ही पहचान लिया । मुश्किल का अनुभव नहीं हुआ । मुश्किल को सहज करने का साधन है - बाप के सामने बैठ जाओ तो सदा वरदान का हाथ अपने ऊपर अनुभव करेंगे । सेकेण्ड में सर्व समस्याओं का हल मिल जायेगा । लेकिन बाप के सामने कौन बैठ सकेंगे? जिन्होंने बाप को जो है, जैसे है, वैसे दिव्य चक्षु द्वारा, बुद्धि द्वारा जान लिया और देख लिया । बाप जानते हैं कि इन आत्माओं ने विश्व के आगे एक एक़जेम्पुल बन अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए बहुत अच्छा कदम उठाया है । विश्व आपको फालो करेगी । अच्छा । अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात 1 - अन्तिम मंजिल के समीपता की निशानी - सर्व से किनारा सदा अपनी मंजिल अति समीप अनुभव करते हो? ऐसे समझते हो कि अपनी अन्तिम फरिश्ते जीवन की मंजिल पर अभी पहुँचने वाले ही हैं । जितना-जितना इस अन्तिम मंजिल के नजदीक आते जायेंगे उतना सब तरफ से न्यारे और बाप के प्यारे बनते जायेंगे । जैसे जब कोई चीज बनाते हो जब वह तैयार हो जाती है तो किनारा छोड़ देती है ना, जितना सम्पन्न स्टेज के समीप आते जायेंगे उतना सर्व से किनारा होता जायेगा । फरिश्ता अर्थात् एक के साथ सब रिश्ता । ऐसे अनुभव करते हो कि किनारा होता जाता है? जब कोई चीज़ पूरी नहीं बनती तो तले में लगती जाती है, जब बन जाती है तो किनारा छोड़ देती, किनारा नहीं छोड़ा माना अभी तैयार नहीं । तो सब बन्धनों से, सब तरफ से वृत्ति द्वारा किनारा होता जाता है कि अभी लगाव है? अगर स्पीड ढीली होगी तो समय पर पहुँच नहीं सकेंगे । समय के बाद पहुँचे तो प्राप्ति की लिस्ट में नहीं आ सकेंगे इसलिए यह चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं? अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं । जब एक तरफ सम्बन्ध का सुख प्राप्त हो सकता है तो भटकने की क्या जरूरत है, ठिकाने लग जाना चाहिए ना । एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना । सदा अपना अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जायेगी । 2. वाह ड्रामा वाह इसी मति से अनेकों की सेवा – सभी सदैव वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति में ड्रामा को देखते हुए चलते हो? कोई भी सीन को देखते हुए घबराते तो नहीं? जब ड्रामा का ज्ञान मिल गया तो वर्तमान समय कल्याणकारी युग है, जो भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है । वर्तमान न भी जान सको लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो जायेगा । वाह ड्रामा वाह याद रहे तो सदा खुश रहेंगे, पुरुषार्थ में कभी भी उदासी नहीं आयेगी, स्वत: ही आप द्वारा अनेकों की सेवा हो जायेगी । 3. सहयोगी आत्माओं को सदा सम्पन्न रहने का वरदान – जो आत्माएं दिल व जान सिक व प्रेम से यज्ञ को सम्पन्न बनाती हैं, जिन्होंने समय के अनुसार सहयोग की अंगुली दी उन्हों का एक से अनेक गुणा बन गया, समय की भी वैल्यू होती, आदि में आवश्यकता के समय जिन आत्माओं का अमूल्य, सहयोग स्थापना के कार्य में हुआ है, उन्हों को रिटर्न में सदा सम्पन्न रहने का वरदान प्राप्त हो गया । वह सदा भरपूर रहते आये हैं और रहेंगे । अच्छा - ओम् शान्ति । वरदान:- धरनी, नब्ज और समय को देख सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष करने वाले नॉलेजफुल भव ! बाप का यह नया ज्ञान, सत्य ज्ञान है, इस नये ज्ञान से ही नई दुनिया स्थापन होती है, यह अथॉरिटी और नशा स्वरूप में इमर्ज हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आते ही किसी को नये ज्ञान की नई बातें सुनाकर मुंझा दो । धरनी, नब्ज और समय सब देख करके ज्ञान देना - यह नॉलेजफुल की निशानी है । आत्मा की इच्छा देखो, नब्ज देखो, धरनी बनाओ लेकिन अन्दर सत्यता के निर्भयता की शक्ति जरूर हो, तब सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकेंगे । स्लोगन:- मेरा कहना माना छोटी बात को बड़ी बनाना, तेरा कहना माना पहाड़ जैसी बात को रूई बना देना । * * * ओम् शान्ति * * *

Saturday, October 25, 2014

Murli-25/10/2014-English

🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏 Essence of Murli (H&E): October 25, 2014: Essence: Sweet children, always remain happy and the pilgrimage of remembrance will become easy. It is only by having remembrance that you will become a pure and charitable souls for 21 births. Question: Who are your best servants and slaves(gulaam)? Answer: Natural calamities and the inventions of science, through which the rubbish of the whole world will be cleared away, are your best servants and slaves; they will become your helpers in cleansing everything. Then, all the elements of nature will be under your control. Essence for Dharna: 1. Do not have your deity clan (kul) defamed (kalank). Become beautiful flowers. Do service for the benefit of many souls and reveal the Father. 2. In order to become completely viceless, do not listen to or say dirty things. Hear no evil, speak no evil.... Don't perform any dirty actions under the influence of body consciousness. Blessing: May you light the fireworks of the spiritual bomb with the matchstick (tili) of determined thought and become constantly victorious. Nowadays, they make bombs with fireworks, but you can light the fireworks of the spiritual bomb with the matchstick of determined thought through which everything old will finish. Those people waste their money on fireworks whereas you would be earning. They use fireworks whereas yours is a deal of the flying stage. You become victorious through this. So, take double benefit. Burn and also earn. Adopt this method. Slogan: To become a helper in a special task is to take the lift of blessings. 🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏

Murli-25/10/2014-Hindi

✿ 25 ~ October ~ 2014 Sakar Hindi Murli ✿ ☆ God's Shivßaßa Word For Today ☆ प्रातःमुरली ओम् शान्ति  “बापदादा”  मधुबन   “मीठे बच्चे - सदा खुशी में रहो तो याद की यात्रा सहज हो जायेंगी, याद से ही 21 जन्मों के लिए पुण्य आत्मा बनेंगे ”                          प्रश्न:-    तुम्हारे सबसे अच्छे सर्वेंट वा गुलाम कौन हैं ? उत्तर:- नैचुरल कैलेमिटीज वा साइंस की इन्वेंशन, जिससे सारे विश्व का किचड़ा साफ होता है । यह तुम्हारे सबसे अच्छे सर्वेंट वा गुलाम हैं जो सफाई में मददगार बनते हैं । सारी प्रकृति तुम्हारे अधिकार में रहती है । ओम् शान्ति | मीठे-मीठे रूहानी बच्चे क्या कर रहे हैं? युद्ध के मैंदान में खड़े हैं । खड़े तो नहीं, तुम तो बैठे हो ना । तुम्हारी सेना कैसी अच्छी है । इनको कहा जाता है रूहानी बाप की रूहानी सेना । रूहानी बाप के साथ योग लगाकर रावण पर जीत पाने का कितना सहज पुरूषार्थ कराते हैं । तुमको कहा जाता है गुप्त वारियर्स, गुप्त महावीर । पांच विकारों पर तुम विजय पाते हो, उसमें भी पहले है देह- अभिमान । बाप विश्व पर जीत पाने वा विश्व में शान्ति स्थापन करने के लिए कितनी सहज युक्ति बताते हैं । तुम बच्चों बिगर और कोई नहीं जानते । तुम विश्व में शान्ति का राज्य स्थापन कर रहे हो । वहाँ अशान्ति, दु :ख, रोग का नाम-निशान नहीं होता । यह पढ़ाई तुमको नई दुनिया का मालिक बनाती है । बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, काम पर जीत पाने से तुम 21 जन्मों के लिए जगत जीत बनते हो । यह तो बहुत सहज है । तुम हो शिवबाबा की रूहानी सेना । राम की बात नहीं, कृष्ण की भी बात नहीं है । राम कहा जाता है परमपिता परमात्मा को । बाकी वह जो राम की सेना आदि दिखाते हैं, वह सब हैं रांग । गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश । कलियुग घोर अन्धियारा है । कितना लड़ाई-झगड़ा मारामारी है । सतयुग में यह होती नहीं । तुम अपना राज्य देखो कैसे स्थापन करते हो । कोई भी हाथ पांव इसमें नहीं चलाते हो, इसमें देह का भान तोड़ना है । घर में रहते हो तो भी पहले यह याद करो-हम आत्मा हैं, देह नहीं । तुम आत्मायें ही 84 जन्म भोगती हो । अभी तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है । पुरानी दुनिया खत्म होनी है । इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग का लीप युग । चोटी छोटी होती है ना । ब्राह्मणों की चोटी मशहूर है । बाप कितना सहज समझाते हैं । तुम हर 5 हजार वर्ष के बाद आकर बाप से यह पढ़ते हो, राजाई प्राप्त करने के लिए । एम ऑब्जेक्ट भी सामने है-शिवबाबा से हमको यह बनना है । हाँ बच्चों, क्यों नहीं । सिर्फ देह- अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो पाप कट जाएं । तुम जानते हो इस जन्म में पावन बनने से हम 21 जन्म पुण्य आत्मा बनते हैं फिर उतराई शुरू होती है । यह भी जानते हो हमारा ही 84 का चक्र है । सारी दुनिया तो नहीं आयेगी । 84 के चक्र वाले और इस धर्म वाले ही आयेंगे । सतयुग और त्रेता बाप ही स्थापन करते हैं, जो अब कर रहे हैं फिर द्वापर-कलियुग रावण की स्थापना है । रावण का चित्र भी है ना । ऊपर में गधे का शीश है । विकारी टट्टू बन जाते हैं । तुम समझते भी हो-हम क्या थे! यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया । पाप आत्माओं की दुनिया में करोड़ों आदमी हैं । पुण्य आत्माओं की दुनिया में होते हैं 9 लाख शुरू में । तुम अभी सारे विश्व के मालिक बनते हो । यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे ना । स्वर्ग की बादशाही तो जरूर बाप ही देंगे । बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व की बादशाही देने आया हूँ । अब पावन जरूर बनना पड़े । सो भी यह अन्तिम जन्म मृत्युलोक का पवित्र बनो । इस पुरानी दुनिया का विनाश सामने तैयार है । बामब्स आदि सब ऐसे तैयार कर रहे हैं जो वहॉ घर बैठे खलास कर देंगे । कहते भी हैं घर बैठे पुरानी दुनिया का विनाश कर देंगे । यह बाम्ब्स आदि घर बैठे ऐसे छोड़ेंगे जो सारी दुनिया को खत्म करेंगे । तुम बच्चे घर बैठे योगबल से विश्व के मालिक बन जाते हो । तुम शान्ति स्थापन कर रहे हो योगबल से । वह साइंस बल से सारी दुनिया खलास कर देंगे । वह तुम्हारे सर्वेंट हैं । तुम्हारी सर्विस कर रहे हैं । पुरानी दुनिया खत्म कर देते हैं । नैचुरल कैलेमिटीज आदि यह सब तुम्हारे गुलाम बनते हैं । सारी प्रकृति तुम्हारी गुलाम बन जाती है । सिर्फ तुम बाप से योग लगाते हो । तो तुम बच्चों के अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए । ऐसे बिलवेड बाप को कितना याद करना चाहिए । यही भारत पूरा शिवालय था । सतयुग में सम्पूर्ण निर्विकारी यहाँ हैं विकारी । अभी तुमको स्मृति आई है-बरोबर बाप ने हमें कहा है हियर नो ईविल... गन्दी बातें मत सुनो । मुख से बोलो भी नहीं । बाप समझाते हैं तुम कितने डर्टी बन गये हो । तुम्हारे पास तो अथाह धन था । तुम स्वर्ग के मालिक थे । अभी तुम स्वर्ग के बदले नर्क के मालिक बन पड़े हो । यह भी ड्रामा बना हुआ है । हर 5 हजार वर्ष बाद तुम बच्चों को हम रौरव नर्क से निकाल स्वर्ग में ले जाता हूँ । रूहानी बच्चे क्या तुम मेरी बात नहीं मानेंगे? परमात्मा कहते हैं तुम पवित्र दुनिया का मालिक बनो तो क्या नहीं बनेंगे? विनाश तो जरूर होगा । इस योगबल से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे । बाकी जन्म-जन्मान्तर के पाप कटने में टाइम लगता है । बच्चे शुरू से आये हुए हैं, 10 परसेंट भी योग नहीं लगता है इसलिए पाप कटते नहीं हैं । नये-नये बच्चे झट योगी बन जाते हैं तो पाप कट जाते हैं और सर्विस करने लग पड़ते हैं । तुम बच्चे समझते हो अब हमको वापिस जाना है । बाप आया हुआ है ले जाने । पाप- आत्मायें तो शान्तिधाम-सुखधाम में जा न सके । वह तो रहती हैं दु :खधाम में इसलिए अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जाएं । अरे बच्चे गुल-गुल (फूल) बन जाओ । दैवी कुल को कलंक नहीं लगाओ । तुम विकारी बनने के कारण कितने दुःखी हो गये हो । यह भी ड्रामा का खेल बना हुआ है । पवित्र नहीं बनेंगे तो पवित्र दुनिया स्वर्ग में नहीं आयेंगे । भारत स्वर्ग था, कृष्णपुरी में था, अभी नर्कवासी है । तो तुम बच्चों को तो खुशी से विकारों को छोड़ना चाहिए । विष पीना फट से छोड़ना है । विष पीते-पीते तुम वैकुण्ठ में थोड़ेही जा सकेंगे । अभी यह बनने के लिए तुमको पवित्र बनना है । तुम समझा सकते हो-इन्होंने यह राजाई कैसे प्राप्त की है? राजयोग से । यह पढ़ाई है ना । जैसे बैरिस्टरी योग, सर्जन योग होता है । सर्जन से योग तो सर्जन बनेंगे । यह फिर है भगवानुवाच । रथ में कैसे प्रवेश करते हैं? कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त में मैं इनमें बैठ तुम बच्चों को नॉलेज देता हूँ । जानता हूँ यह विश्व के मालिक पवित्र थे । अब पतित कंगाल बने हैं फिर पहले नम्बर में यह जायेंगे । इसमें ही प्रवेश कर तुम बच्चों को नॉलेज देते हैं । बेहद का बाप कहते हैं-बच्चे, पवित्र बनो तो तुम सदा सुखी बनेंगे । सतयुग है अमरलोक, द्वापर कलियुग है मृत्युलोक । कितना अच्छी रीति बच्चों को समझाते हैं । यहाँ देही- अभिमानी बनते हैं फिर देह- अभिमान में आकर माया से हार खा लेते हैं । माया की एक ही तोप ऐसी लगती है जो एकदम गटर में गिर पड़ते हैं । बाप कहते हैं यह गटर है । यह कोई सुख थोड़ेही है । स्वर्ग तो फिर क्या! इन देवताओं की रहनी-करनी देखो कैसी है । नाम ही है स्वर्ग । तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं फिर भी कहते हैं हम विष जरूर पियेंगे! तो स्वर्ग में आ नहीं सकेंगे । सजा भी बहुत खायेंगे । तुम बच्चों की माया से युद्ध है । देह- अभिमान में आकर बहुत छी-छी काम करते हैं । समझते हैं हमको कोई देखता थोड़ेही है । क्रोध-लोभ तो प्राइवेट नहीं होता । काम में प्राइवेसी चलती है । काला मुँह करते हैं । काला मुँह करते-करते तुम गोरे से सांवरे बन गये तो सारी दुनिया तुम्हारे पिछाड़ी आ गई । ऐसी पतित दुनिया को बदलना जरूर है । बाप कहते हैं-तुमको शर्म नहीं आती है, एक जन्म के लिए पवित्र नहीं बनते हो । भगवानुवाच - काम महाशत्रु है । वास्तव में तुम स्वर्गवासी थे तो बड़े धनवान थे । बात मत पूछो । बच्चे कहते हैं बाबा हमारे शहर में चलो । क्या काँटों के जंगल में बन्दरों को देखने चलूँ! तुम बच्चों को ड्रामा अनुसार सर्विस करनी ही है । गाया जाता है फादर शोज़ सन । बच्चों को ही जाकर सबका कल्याण करना है । बाप बच्चों को समझाते हैं-यह भूलो मत - हम युद्ध के मैंदान में हैं । तुम्हारी युद्ध हैं 5 विकारों से । यह ज्ञान मार्ग बिल्कुल अलग है । बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ 21 जन्मों के लिए, फिर तुमको नर्कवासी कौन बनाते हैं? रावण । फर्क तो देखते हो ना । जन्म-जन्मान्तर तुमने भक्ति मार्ग में गुरू कियें, मिला कुछ भी नहीं । इनको कहा जाता है सतगुरू । सिक्ख लोग कहते हैं ना-सतगुरू अकाल मूर्त । उनको कभी कोई काल खाता नहीं । वह सतगुरू तो कालों का काल है । बाप कहते हैं मैं तुम सब बच्चों को काल के पंजे से छुड़ाने आया हूँ । सतयुग में फिर काल आता ही नहीं है, उनको अमरलोक कहा जाता है । अभी तुम श्रीमत पर अमरलोक सतयुग के मालिक बन रहे हो । तुम्हारी लड़ाई देखो कैसी है । सारी दुनिया एक-दो में लड़ती-झगडती रहती है । तुम्हारी फिर है रावण 5 विकारों के साथ युद्ध । उन पर जीत पाते हो । यह है अन्तिम जन्म । बाप कहते हैं मैं गरीब निवाज हूँ । यहाँ आते ही गरीब हैं । साहूकारों की तो तकदीर में ही नहीं है । धन के नशे में ही मगरूर रहते हैं । यह सब खत्म हो जाने वाला है । बाकी थोड़ा समय है । ड्रामा का प्लैन है ना । यह इतने बाम्बस आदि बनाये हैं, वह काम में जरूर लाने हैं । पहले तो लड़ाई बाणों से, तलवारों से, बन्दूको आदि से चलती थी । अभी तो बाम्ब्स ऐसी चीज़ निकली है जो घर बैठे ही खलास कर देंगे । यह चीज़ें कोई रखने के लिए थोड़ेही बनाई हैं । कहाँ तक रखेंगे । बाप आयें हैं तो विनाश भी जरूर होना है । ड्रामा का चक्र फिरता रहता है, तुम्हारी राजाई जरूर स्थापन होनी है । यह लक्ष्मी-नारायण लड़ाई नहीं करते हैं । भल शास्त्रों में दिखाया है- असुरों और देवताओं की लड़ाई हुई परन्तु वह सतयुग के, वह असुर कलियुग के । दोनों मिलेंगे कैसे जो लड़ाई होगी । अभी तुम समझते हो हम 5 विकारों से युद्ध कर रहे हैं । इन पर जीत पाकर सम्पूर्ण निर्विकारी बन निर्विकारी दुनिया के मालिक बन जायेंगे । उठते-बैठते बाप को याद करना है । दैवीगुण धारण करने हैं । यह बना-बनाया ड्रामा है । कोई-कोई के नसीब में ही नहीं है । योगबल हो तब ही विकर्म विनाश हों । सम्पूर्ण बने तब तो सम्पूर्ण दुनिया में आ सके । बाप भी शंख ध्वनि करते रहते हैं । उन्होंने फिर भक्ति मार्ग में शंख व तुतारी आदि बैठ बनाई है । बाप तो इस मुख द्वारा समझाते हैं । यह पढ़ाई है राजयोग की । बहुत सहज पढ़ाई है । बाप को याद करो और राजाई को याद करो । बेहद के बाप को पहचानो और राजाई लो । इस दुनिया को भूल जाओ । तुम बेहद के सन्यासी हो । जानते हो पुरानी दुनिया सारी खत्म होनी है । इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में सिर्फ भारत ही था । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. अपने दैवी कुल को कलंक नहीं लगाना है । गुल-गुल बनना है । अनेक आत्माओं के कल्याण की सर्विस कर बाप का शो करना है ।   2. सम्पूर्ण निर्विकारी बनने के लिए गंदी बातें न तो सुननी है, न मुख से बोलनी है । हियर नो ईविल, टॉक नो ईविल.... देह- अभिमान के वश हो कोई छी-छी काम नहीं करने हैं ।   वरदान:- दृढ़ संकल्प की तीली से आत्मिक बाम्ब की आतिशबाजी जलाने वाले सदा विजयी भव !   आजकल आतिशबाजी में बाम्ब बनाते हैं लेकिन आप दृढ़ संकल्प की तीली से आत्मिक बाम्ब की आतिशबाजी जलाओ जिससे पुराना सब समाप्त हो जाए । वह लोग तो आतिशबाजी में पैसा गवायेंगे और आप कमायेंगे । वह आतिशबाजी है और आपकी उड़ती कला की बाजी है । इसमें आप विजयी बन जाते हो । तो डबल फायदा लो, जलाओ भी, कमाओ भी - यह विधि अपनाओ ।   स्लोगन:-  किसी विशेष कार्य में मददगार बनना ही दुआओं की लिपट लेना है ।   * * * ओम् शान्ति * * *

Friday, October 24, 2014

Murli-24/10/2014-Hindi

🎁🎉🎁🎉💥💥🎉🎁🎉🎁  24-10-14      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”       मधुबन “मीठे बच्चे - बाप आया है तुम्हें गुल-गुल (फूल) बनाने, तुम फूल बच्चे कभी किसी को दु :ख नहीं दे सकते, सदा सुख देते रहो ”  प्रश्न:-    किस एक बात में तुम बच्चों को बहुत-बहुत खबरदारी रखनी है ? उत्तर:- मन्सा-वाचा-कर्मणा अपनी जबान पर बड़ी खबरदारी रखनी है । बुद्धि से विकारी दुनिया की सब लोकलाज कुल की मर्यादायें भूलनी है । अपनी जांच करनी है कि हमने कितने दिव्यगुण धारण कियें हैं? लक्ष्मी- नारायण जैसे सिविलाइज्ड बने हैं? कहाँ तक गुल-गुल (फूल) बने हैं ? ओम् शान्ति | शिवबाबा जानते हैं यह हमारे बच्चे आत्मायें हैं । तुम बच्चों को आत्मा समझ शरीर को भूल शिवबाबा को याद करना है । शिवबाबा कहते हैं मैं तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ । शिवबाबा भी निराकार है, तुम आत्मायें भी निराकार हो । यहाँ आकर पार्ट बजाते हो । बाप भी आकर पार्ट बजाते हैं । यह भी तुम जानते हो ड्रामा प्लैन अनुसार बाप हमको आकर गुल- गुल बनाते हैं । तो सब अवगुणों को छोड़ गुणवान बनना चाहिए । गुणवान कभी किसको दु :ख नहीं देते । सुना- अनसुना नहीं करते । कोई दु :खी है तो उसका दुःख दूर करते हैं । बाप भी आते हैं तो सारी दुनिया के दु :ख जरूर दूर होने हैं । बाप तो श्रीमत देते हैं, जितना हो सके पुरूषार्थ कर सभी के दुःख दूर करते रहो । पुरूषार्थ से ही अच्छा पद मिलेगा । पुरूषार्थ न करने से पद कम हो जायेगा । वह फिर कल्प-कल्पान्तर का घाटा पड़ जाता है । बाप बच्चों को हर बात समझाते हैं । बच्चे अपने को घाटा डाले-यह बाप नहीं चाहता । दुनिया वाले फायदे और घाटे को नहीं जानते इसलिए बच्चों को अपने पर रहम करना है । श्रीमत पर चलते रहना है । भल बुद्धि इधर-उधर भागती है तो भी कोशिश करो हम ऐसे बेहद के बाप को क्यों नहीं याद करते हैं जिस याद से ही ऊंच पद मिलता है । कम से कम स्वर्ग में तो जाते हैं । परन्तु स्वर्ग में ऊंच पद पाना है । बच्चों के माँ-बाप कहते हैं ना-हमारा बच्चा स्कूल में पढ़कर ऊंच पद पाये । यहाँ तो किसको भी पता नहीं पड़ता । तुम्हारे सम्बन्धी यह नहीं जानते कि तुम क्या पढ़ाई पढ़ते हो । उस पढ़ाई में तो मित्र-सम्बन्धी सब जानते हैं, इसमें कोई जानते हैं, कोई नहीं जानते हैं । कोई का बाप जानता है तो भाई-बहन नहीं जानते । कोई की माँ जानती है तो बाप नहीं जानता क्योंकि यह विचित्र पढ़ाई और विचित्र पढ़ाने वाला है । नम्बरवार समझते हैं, बाप समझाते हैं भक्ति तो तुमने बहुत की है । सो भी नम्बरवार, जिन्होंने बहुत भक्ति की है वही फिर यह ज्ञान भी लेते हैं । अब भक्ति की रस्म-रिवाज पूरी होती है । आगे मीरा के लिए कहा जाता था उसने लोकलाज कुल की मर्यादा छोड़ी । यहाँ तो तुमको सारे विकारी कुल की मर्यादा छोड़नी हैं । बुद्धि से सबका सन्यास करना है । इस विकारी दुनिया का कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । विकर्म करने वाले बिल्कुल अच्छे नहीं लगते हैं । वह अपनी ही तकदीर को खराब करते हैं । ऐसा कोई बाप थोड़ेही होगा जो बच्चों को किसको तंग करता हुआ पसन्द करेगा वा न पड़ता पसन्द करेगा । तुम बच्चे जानते हो वहाँ ऐसे कोई बच्चे होते  नहीं । नाम ही है देवी-देवता । कितना पवित्र नाम है । अपनी जांच करनी है-हमारे में दैवीगुण हैं? सहनशील भी बनना होता है । बुद्धियोग की बात है । यह लड़ाई तो बहुत मीठी है । बाप को याद करने में कोई लड़ाई की बात नहीं है । बाकी हाँ, इसमें माया विघ्न डालती है । उनसे सम्भाल करनी होती है । माया पर विजय तो तुमको ही पानी है । तुम जानते हो कल्प-कल्प हम जो कुछ करते आये हैं, बिल्कुल एक्यूरेट वही पुरूषार्थ चलता है जो कल्प-कल्प चलता आया है । तुम जानते हो अभी हम पदमापदम भाग्यशाली बनते हैं फिर सतयुग में अथाह सुखी रहते हैं । कल्प-कल्प बाप ऐसे ही समझाते हैं । यह कोई नई बात नहीं, यह बहुत पुरानी बात है । बाप तो चाहते हैं बच्चे पूरा गुल-गुल बने । लौकिक बाप की भी दिल होगी ना-हमारे बच्चे गुल-गुल बने । पारलौकिक बाप तो आते ही हैं कांटों को फूल बनाने । तो ऐसा बनना चाहिए ना । मन्सा-वाचा-कर्मणा जबान पर भी बहुत खबरदारी चाहिए । हर एक कर्मेन्द्रिय पर बडी खबरदारी चाहिए । माया बहुत धोखा देने वाली है । उनसे पूरी सम्भाल रखनी है, बड़ी मंजिल है । आधाकल्प से क्रिमिनल दृष्टि बनी है । उनको एक जन्म में सिविल बनाना है । जैसे इन लक्ष्मी-नारायण की है । यह सर्वगुण सम्पन्न है ना । वहाँ क्रिमिनल दृष्टि होती नहीं । रावण ही नहीं । यह कोई नई बात नहीं । तुमने अनेक बार यह पद पाया है । दुनिया को तो बिल्कुल पता नहीं है कि यह क्या पढ़ते हैं । बाप तुम्हारी सब आशायें पूर्ण करने आते हैं । अशुभ आशायें रावण की होती हैं । तुम्हारी है शुभ आशायें । क्रिमिनल कोई भी आश नहीं होनी चाहिए । बच्चों को सुख की लहरों में लहराना है । तुम्हारे अथाह सुखों का वर्णन नहीं कर सकते, दुःखों का वर्णन होता है, सुख का वर्णन थोड़ेही होता है । तुम सब बच्चों की एक ही आशा है कि हम पावन बनें । कैसे पावन बनेंगे? सो तो तुम जानते हो कि पावन बनाने वाला एक बाप ही है, उसकी याद से ही पावन बनेंगे । फर्स्ट नम्बर नई दुनिया में पावन यह देवी-देवता ही हैं । पावन बनने में देखो ताकत कितनी है । तुम पावन बन पावन दुनिया का राज्य पाते हो इसलिए कहा जाता है इस देवता धर्म में ताकत बहुत है । यह ताकत कहाँ से मिलती है? सर्वशक्तिमान् बाप से । घर-घर में तुम मुख्य दो-चार चित्र रख बहुत सर्विस कर सकते हो । वह समय आयेगा, करफ्यू आदि ऐसे लग जायेगा, जो तुम कहाँ आ जा भी नहीं सकेंगे । तुम हो ब्राह्मण सच्ची गीता सुनाने वाले । नॉलेज तो बड़ी सहज है, जिनके घर वाले सब आते हैं, शान्ति लगी पड़ी है, उन्हों के लिए तो बहुत सहज है । दो-चार मुख्य चित्र घर में रखे हो । यह त्रिमूर्ति, गोला, झाड़ और सीढ़ी का चित्र भी काफी है । उनके साथ गीता का भगवान कृष्ण नहीं, वह भी चित्र अच्छा है । कितना सहज है, इनमें कोई पैसा खर्च नहीं होता । चित्र तो रखे हैं । चित्रों को देखने से ही ज्ञान स्मृति में आता रहेगा । कोठरी बनी पड़ी हो, उसमें भल तुम सो भी जाओ । अगर श्रीमत पर चलते रहो तो तुम बहुतों का कल्याण कर सकते हो । कल्याण करते भी होंगे फिर भी बाप रिमाइन्ड कराते हैं - ऐसे-ऐसे तुम कर सकते हो । ठाकुरजी की मूर्ति रखते हैं ना । इसमें तो फिर है समझाने की बातें । जन्म-जन्मान्तर तुम भक्ति मार्ग में मन्दिरों में भटकते रहते हो परन्तु यह पता नहीं है कि यह है कौन? मन्दिरों में देवियों की पूजा करते हैं, उनको ही फिर पानी में जाकर डुबोते हैं । कितना अज्ञान है । पूज्य की, पूजा कर फिर उनको उठाकर समुद्र में डाल देते हैं । गणेश को, माँ को, सरस्वती को भी डुबोते हैं । बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, कल्प-कल्प यह बातें समझाते हैं । रियलाइज कराते हैं-तुम यह क्या कर रहे हो! बच्चों को तो नफरत आनी चाहिए जबकि बाप इतना समझाते रहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, तुम यह क्या करते हो! इनको कहते ही हैं विषय वैतरणी नदी । ऐसे नहीं, वहाँ कोई क्षीर का सागर है परन्तु हर चीज़ वहाँ ढेर होती है । कोई चीज पर पैसे नहीं लगते । पैसे तो वहाँ होते ही नहीं हैं । सोने के ही सिक्के देखने में आते हैं जबकि मकानों में ही सोना लगता है, सोने की इट लगती हैं । तो सिद्ध होता है वहाँ सोने-चांदी का मूल्य ही नहीं । यहाँ तो देखो कितना मूल्य है । तुम जानते हो एक-एक बात में वन्डर है । मनुष्य तो मनुष्य ही हैं, यह देवता भी मनुष्य हैं परन्तु इनका नाम देवता है । इन्हों के आगे मनुष्य अपनी गन्दगी जाहिर करते हैं-हम पापी नींच हैं, हमारे में कोई गुण नहीं है । तुम बच्चों की बुद्धि में एम आब्जेक्ट है, हम यह मनुष्य से देवता बनते हैं । देवताओं में दैवीगुण हैं । यह तो समझते हैं मन्दिरों में जाते हैं परन्तु यह नहीं समझते कि यह भी मनुष्य ही हैं । हम भी मनुष्य हैं परन्तु यह दैवीगुण वाले हैं, हम आसुरी गुणों वाले हैं । अभी~ तुम्हारी बुद्धि में आता है हम कितने ना-लायक थे । इन्हों के आगे जाकर गाते थे आप सर्वगुण सम्पन्न अभी बाप समझाते हैं यह तो पास्ट होकर गयें हैं । इनमें दैवीगुण थे, अथाह सुख थे । वही फिर अथाह दुःखी बने हैं । इस समय सभी में 5 विकारों की प्रवेशता है । अभी तुम विचार करते हो, कैसे हम ऊपर से गिरते-गिरते एकदम पट आकर पड़े हैं । भारतवासी कितने साहूकार थे । अभी तो देखो कर्जा उठाते रहते हैं । तो यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते हैं और कोई बता न सके । ऋषि-मुनि भी नेती-नेती कहते थे अर्थात् हम नहीं जानते । अभी तुम समझते हो वह तो सच कहते थे । न बाप को, न रचना के आदि-मध्य- अन्त को जानते थे । अभी भी कोई नहीं जानते हैं, सिवाए तुम बच्चों के । बड़े-बड़े सन्यासी, महात्मायें कोई नहीं जानते । वास्तव में महान आत्मा तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं ना । एवर प्योर हैं । यह भी नहीं जानते थे तो और कोई कैसे जान सकते, कितनी सिम्पुल बातें बाप समझाते हैं परन्तु कई बच्चे भूल जाते हैं । कई अच्छी रीति गुण धारण करते हैं तो मीठे लगते हैं । जितना बच्चों में मीठा गुण देखते हैं तो दिल खुश होती है । कोई तो नाम बदनाम कर देते हैं । यहाँ तो फिर बाप टीचर सतगुरू हैं-तीनों की निंदा कराते हैं । सत बाप, सत टीचर और सतगुरू की निंदा कराने से फिर ट्रिबल दण्ड पड़ जाता है । परन्तु कई बच्चों में कुछ भी समझ नहीं है । बाप समझाते हैं ऐसे भी होंगे जरूर । माया भी कोई कम नहीं है । आधाकल्प पाप आत्मा बनाती है । बाप फिर आधाकल्प के लिए पुण्य आत्मा बनाते हैं । वह भी नम्बरवार बनते हैं । बनाने वाले भी दो हैं-राम और रावण । राम को परमात्मा कहते हैं । राम-राम कह फिर पिछाड़ी में शिव को नमस्कार करते हैं । वही परमात्मा है । परमात्मा के नाम गिनते हैं । तुमको तो गिनती की दरकार नहीं । यह लक्ष्मी-नारायण पवित्र थे ना । इन्हों की दुनिया थी, जो पास्ट हो गयी है । उसको स्वर्ग नई दुनिया कहा जाता है । फिर जैसे पुराना मकान होता है तो टूटने लायक बन जाता है । यह दुनिया भी ऐसे है । अभी है कलियुग की पिछाड़ी । कितनी सहज बातें हैं समझने की । धारण करनी और करानी है । बाप तो सबको समझाने के लिए नहीं जायेंगे । तुम बच्चे आन गॉडली सर्विस हो । बाप जो सर्विस सिखलाते हैं, वही सर्विस करनी है । तुम्हारी है गॉडली सर्विस ओनली । तुम्हारा नाम ऊंच करने लिए बाबा ने कलष तुम माताओं को दिया है । ऐसे नहीं कि पुरुषों को नहीं मिलता है । मिलता तो सबको है । अभी तुम बच्चे जानते हो हम कितने सुखी स्वर्गवासी थे, वहाँ कोई दु :खी नहीं थे । अभी है संगमयुग फिर हम उस नई दुनिया के मालिक बन रहे हैं । अभी है कलियुग पुरानी पतित दुनिया । बिल्कुल ही जैसे भैस बुद्धि मनुष्य हैं । अभी तो इन सब बातों को भूलना पड़ता है । देह सहित देह के सब सम्बन्धों को छोड़ अपने को आत्मा समझना है । शरीर में आत्मा नहीं है तो शरीर कुछ भी कर न सके । उस शरीर पर कितना मोह रखते हैं, शरीर जल गया, आत्मा ने जाकर दूसरा शरीर लिया तो भी 12 मास जैसे हाय हुसैन मचाते रहते हैं । अभी तुम्हारी आत्मा शरीर छोड़ेगी तो जरूर ऊंच घर में जन्म लेगी नम्बरवार । थोड़े ज्ञान वाला साधारण कुल में जन्म लेगा, ऊंच ज्ञान वाला ऊंच कुल में जन्म लेगा । वहाँ सुख भी बहुत होता है । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. बाप जो सुनाते हैं उसे सुना- अनसुना नहीं करना है । गुणवान बन सबको सुख देना है | पुरूषार्थ कर सबके दु:ख दूर करने हैं ।   2. विकारों के वश होकर कोई भी विकर्म नहीं करना है । सहनशील बनना है । कोई भी क्रिमिनल (अशुद्ध- विकारी) आश नहीं रखनी है । वरदान:- मनमनाभव हो अलौकिक विधि से मनोरंजन मनाने वाले बाप समान भव !    संगमयुग पर यादगार मनाना अर्थात् बाप समान बनना । यह संगमयुग के सुहेज हैं । खूब मनाओ लेकिन बाप से मिलन मनाते हुए मनाओ । सिर्फ मनोरंजन के रूप में नहीं लेकिन मन्मनाभव हो मनोरंजन मनाओ । अलौकिक विधि से अलौकिकता का मनोरंजन अविनाशी हो जाता है । संगमयुगी दीपमाला की विधि - पुराना खाता खत्म करना, हर संकल्प, हर घड़ी नया अर्थात् अलौकिक हो । पुराने संकल्प, संस्कार- स्वभाव, चाल-चलन यह रावण का कर्जा है इसे एक दृढ़ संकल्प से समाप्त करो ।   स्लोगन:-  बातों को देखने के बजाए स्वयं को और बाप को देखो ।   ओम् शान्ति | 🎁🎉🎁🎉💥💥🎉🎁🎉🎁I