मीठे बच्चे - सतगुरू की पहली-पहली श्रीमत है देही-अभिमानी बनो, देह-अभिमान छोड़ दो''
प्रश्न:- इस समय तुम बच्चे कोई भी इच्छा वा चाहना नहीं रख सकते हो - क्यों?
उत्तर:- क्योंकि तुम सब वानप्रस्थी हो। तुम जानते हो इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखना है।
2) अपने आसुरी स्वभाव को बदल दैवी स्वभाव धारण करना है। एक-दो का मददगार
वरदान:- व्यर्थ वा माया से इनोसेंट बन दिव्यता का अनुभव करने वाले महान आत्मा भव
महान आत्मा अर्थात् सेन्ट उसे कहेंगे जो व्यर्थ वा माया से इनोसेंट हो। जैसे देवतायें
स्लोगन:- फर्स्ट डिवीजन में आना है तो ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो।
प्रश्न:- इस समय तुम बच्चे कोई भी इच्छा वा चाहना नहीं रख सकते हो - क्यों?
उत्तर:- क्योंकि तुम सब वानप्रस्थी हो। तुम जानते हो इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह
विनाश होना है। अब तुम्हें कुछ भी नहीं चाहिए, बिल्कुल बेगर बनना है। अगर ऐसी कोई
ऊंची चीज़ पहनेंगे तो खींचेगी, फिर देह-अभिमान में फंसते रहेंगे। इसमें ही मेहनत है।
जब मेहनत कर पूरे देही-अभिमानी बनो तब विश्व की बादशाही मिलेगी।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखना है।
इसमें मूँझना नहीं है। इस दुनिया की कोई भी चीज़ देखते हुए बुद्धि में याद न आये।
2) अपने आसुरी स्वभाव को बदल दैवी स्वभाव धारण करना है। एक-दो का मददगार
होकर चलना है, किसी को तंग नहीं करना है।
वरदान:- व्यर्थ वा माया से इनोसेंट बन दिव्यता का अनुभव करने वाले महान आत्मा भव
महान आत्मा अर्थात् सेन्ट उसे कहेंगे जो व्यर्थ वा माया से इनोसेंट हो। जैसे देवतायें
इससे इनोसेंट थे ऐसे अपने वो संस्कार इमर्ज करो, व्यर्थ के अविद्या स्वरूप बनो क्योंकि
यह व्यर्थ का जोश कई बार सत्यता का होश, यथार्थता का होश समाप्त कर देता है।
इसलिए समय, श्वास, बोल, कर्म, सबमें व्यर्थ से इनोसेंट बनो। जब व्यर्थ की अविद्या
होगी तो दिव्यता स्वत: अनुभव होगी और अनुभव करायेगी।
स्लोगन:- फर्स्ट डिवीजन में आना है तो ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो।