Friday, October 10, 2014

Murli-10/10/2014-Hindi

✿ 1O~ October ~ 2014 Sakar Hindi Murli ✿ ☆ God's Shivßaßa Word For Today ☆        प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन   “मीठे बच्चे - तुम जितना-जितना बाप को प्यार से याद करेंगे उतना आशीर्वाद मिलेगी, पाप कटते जायेंगे”                                 प्रश्न:-    बाप बच्चों को किस धर्म में टिकने की मत देते हैं? उत्तर:- बाबा कहते बच्चे - तुम अपने विचित्रता के धर्म में टिको चित्र के धर्म में नहीं । जैसे बाप विदेही, विचित्र है ऐसे बच्चे भी विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर) में आते हैं । अभी बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे विचित्र बनो, अपने स्वधर्म में टिको । देह-अभिमान में नहीं आओ ।   प्रश्न:-    भगवान भी ड्रामा अनुसार किस बात के लिए बंधायमान है? उत्तर:- ड्रामानुसार बच्चों को पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी बंधायमान है । उनको आना ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर ।   ओम् शान्ति | बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं जब ओम शान्ति कहा जाता है तो गोया अपनी आत्मा को स्वधर्म का परिचय दिया जाता है । तो जरूर बाप भी ऑटोमेटिकली याद आता है क्योंकि याद तो हरेक मनुष्य भगवान को ही करते हैं । सिर्फ भगवान का पूरा परिचय नहीं है । भगवान अपना और आत्मा का परिचय देने ही आते हैं । पतित-पावन कहा ही जाता है भगवान को । पतित से पावन बनाने के लिए भगवान भी ड्रामा अनुसार बंधायमान है । उनको भी आना है पुरूषोत्तम संगमयुग पर । संगमयुग की समझानी भी देते हैं । पुरानी दुनिया और नई दुनिया के बीच में ही बाप आते हैं । पुरानी दुनिया को मृत्युलोक, नई दुनिया को अमरलोक कहा जाता है । यह भी तुम समझते हो, मृत्युलोक में आयु कम होती है । अकाले मृत्यु होती रहती है । वह फिर है अमरलोक, जहाँ अकाले मृत्यु नहीं होती क्योंकि पवित्र हैं । अपवित्रता से व्यभिचारी बनते हैं और आयु भी कम होती है । बल भी कम हो जाता है । सतयुग में पवित्र होने कारण अव्यभिचारी हैं । बल भी जास्ती रहता है । बल बिगर सजाई कैसे प्राप्त की? जरूर बाप से उन्होंने आर्शीवाद ली होगी । बाप है सर्वशक्तिमान् । आर्शीवाद कैसे ली होगी? बाप कहते हैं मुझे याद करो । तो जिन्होंने जास्ती याद किया होगा उन्होंने ही आर्शीवाद ली होगी । आर्शीवाद कोई मांगने की चीज नहीं है । यह तो मेहनत करने की चीज़ है । जितना जास्ती याद करेंगे उतना जास्ती आर्शीवाद मिलेगी अर्थात् ऊंच पद मिलेगा । याद ही नहीं करेंगे तो आर्शीवाद भी नहीं मिलेगी । लौकिक बाप बच्चों को कभी यह नहीं कहते हैं कि मुझे याद करो । वह छोटेपन से आपेही मम्मा-बाबा करते रहते हैं । आरगन्स छोटे हैं, बड़े बच्चे कब ऐसे बाबा-बाबा, मम्मा-मम्मा नहीं कहेंगे । उन्हों की बुद्धि में रहता है - यह हमारे माँ-बाप हैं, जिनसे यह वर्सा मिलना है । कहने की वा याद करने की बात नहीं रहती है । यहाँ तो बाप कहते हैं मुझे और वर्से को याद करो । हद के सम्बन्ध को छोड़ अब बेहद के सम्बन्ध को याद करना है । सब मनुष्य चाहते हैं हमारी गति हो । गति कहा जाता है मुक्तिधाम को । सद्गति कहा जाता है फिर से सुखधाम में आने को । कोई भी पहले आयेगा तो जरूर सुख ही पायेगा । बाप सुख के लिए ही आते हैं । जरूर कोई बात डिफीकल्ट है इसलिए इनको ऊंच पढ़ाई कहा जाता है । जितनी ऊंच पढ़ाई उतनी डिफीकल्ट भी होगी । सभी तो पास कर न सकें । बड़े ते बड़ा इप्तहान बहुत थोड़े स्टूडेंट पास करते हैं क्योंकि बड़ा इम्तहान पास होने से फिर सरकार को पघार (नौकरी) भी बहुत देना पड़े ना । कई स्टूडेंट बड़ा इम्तहान पास करके भी ऐसे ही बैठे रहते हैं । सरकार के पास इतना पैसा नहीं है जो बड़ा पघार दे । यहाँ तो बाप कहते हैं जितना ऊंच पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे । ऐसे भी नहीं सब को ई राजायें वा साहूकार बनेंगे । सारा मदार पढ़ाई पर है । भक्ति को पढ़ाई नहीं कहा जाता । यह तो है रूहानी ज्ञान जो रूहानी बाप पढ़ाते हैं । कितनी ऊंच पढ़ाई है । बच्चों को डिफीकल्ट लगता है क्योंकि बाप को याद नहीं करते तो कैरेक्टर्स भी सुधरते नहीं हैं । जो अच्छा याद करते हैं उनके कैरेक्टर्स भी अच्छे होते जाते हैं । बहुत-बहुत मीठे सर्विसेबुल बनते जाते हैं । कैरेक्टर्स अच्छे नहीं है तो कोई को पसन्द भी नहीं आते हैं । जो नापास होते हैं तो जरूर कैरेक्टर्स में रोला है । श्री लक्ष्मी-नारायण के कैरेक्टर्स बहुत अच्छे हैं । राम को दो कला कम कहेंगे । भारत रावण राज्य में झूठ खण्ड हो पड़ता है । सचखण्ड में तो जरा भी झूठ हो न सके । रावण राज्य में है झूठ ही झूठ । झूठे मनुष्यों को दैवी गुणों वाला कह नहीं सकते । यह बेहद की बात है । अभी बाप कहते हैं ऐसी झूठी बातें किसी की न सुनो, न सुनाओ । एक ईश्वर की मत को ही लीगल मत कहा जाता है । मनुष्य मत को इलीगल मत कहा जाता ।लीगल मत से तुम ऊंच बनते हो । परन्तु सब नहीं चल सकते हैं तो इलीगल बन पड़ते हैं । कई बाप के साथ प्रतिज्ञा भी करते हें-बाबा इतनी आयु हमने इलीगल काम किये हैं, अभी नहीं करेंगे । सबसे इलीगल काम है विकार का भूत । देह-अभिमान का भूत तो सबमें है ही । मायावी पुरूष में देह-अभिमान ही होता है । बाप तो है ही विदेही, विचित्र । तो बच्चे भी विचित्र हैं । यह समझ की बात है । हम आत्मा विचित्र हैं फिर यहाँ चित्र (शरीर) में आते हैं । अभी बाप फिर कहते हैं विचित्र बनो । अपने स्वधर्म में टिको । चित्र के धर्म में नहीं टिको । विचित्रता के धर्म में टिको । देह-अभिमान में न आओ । बाप कितना समझाते हैं - इसमें याद की बहुत जरूरत है । बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो तुम सतोप्रधान, प्योर बनेंगे । इमप्योरिटी में जाने से बहुत दण्ड मिल जाता है । बाप का बनने के बाद अगर कोई भूल होती है तो फिर गायन है सतगुरू के निदक ठौर न पाये । अगर तुम मेरी मत पर चल पवित्र नहीं बनेंगे तो सौ गुणा दण्ड भोगना पड़ेगा । विवेक चलाना है । अगर हम याद नहीं कर सकते तो इतना ऊंच पद भी नहीं पा सकेंगे । पुरूषार्थ के लिए टाइम भी देते हैं । तुमको कहते हैं क्या सबूत है? बोलो, जिस तन में आते हैं वह प्रजापिता ब्रह्मा तो मनुष्य है ना । मनुष्य का नाम शरीर पर पड़ता है । शिवबाबा तो न मनुष्य है, न देवता है । उनको सुप्रीम आत्मा कहा जाता है । वह तो पतित वा पावन नहीं होता, वह समझाते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे पाप कट जायेंगे । बाप ही बैठ समझाते हैं तुम सतोप्रधान थे, अभी तमोप्रधान बने हो । फिर सतोप्रधान बनने के लिए मुझे याद करो । इन देवताओं की क्वालिफिकेशन देखो कैसी है और उन्हों से रहम मांगने वालों को भी देखो वन्डर लगता है - हम क्या थे! फिर 84 जन्मो में कितना गिरकर एकदम चट हो पड़े हैं । बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, तुम दैवी घराने के थे । अभी अपनी चाल को देखो यह (देवी-देवता) बन सकते हो? ऐसे नहीं, सब लक्ष्मी-नारायण बनेंगे । फिर तो सारा फूलों का बगीचा हो जाए । शिवबाबा को सिर्फ गुलाब के फूल ही चढ़ायें । परन्तु नहीं, फूल भी चढ़ाते हैं, अक भी चढ़ाते हैं । बाप के बच्चे कोई फूल भी बनते हैं, कोई अक भी बनते हैं । पास नापास तो होते ही हैं । खुद भी समझते हैं यह राजा तो बन नहीं सकेंगे । आप समान ही नहीं बनाते हैं, साहूकार कैसे, कौन बनेंगे वह तो बाप जाने । आगे चल तुम बच्चे भी समझ जायेंगे कि यह फलाना बाप का कैसा मददगार है । कल्प-कल्प जिन्होंने जो कुछ किया है वही करेंगे । इसमें फर्क नहीं पड़ सकता । बाप पॉइंट्स तो देते रहते हैं । ऐसे-ऐसे बाप को याद करना है और ट्रांसफर भी करना है । भक्ति मार्ग में तुम ईश्वर अर्थ करते हो । परन्तु ईश्वर को जानते नहीं हो । इतना समझते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है । ऐसे नहीं कि ऊंच ते ऊंच नाम रूप वाला है । वह है ही निराकार । फिर ऊंच ते ऊंच साकार यहाँ होते हैं । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है । ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: । तो परमात्मा बड़ा ठहरा ना । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे । मुख से कहते भी हैं शिव परमात्माए नम: तो जरूर परमात्मा एक हुआ ना । देवताओं को नमन करते हैं । मनुष्य लोक में मनुष्य को मनुष्य कहेंगे । उनको फिर परमात्माए नम: कहना-यह तो पूरा अज्ञान है । सबकी बुद्धि में यह है कि ईश्वर सर्वव्यापी है । अभी तुम बच्चे समझते हो भगवान तो एक है, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है । सबको पावन बनाना यह भगवान का ही काम है । जगत का गुरू कोई मनुष्य हो न सके । गुरू पावन होते हैं ना । यहाँ तो सब हैं विकार से पैदा होने वाले । ज्ञान को अमृत कहा जाता है । भक्ति को अमृत नहीं कहा जाता । भक्ति मार्ग में भक्ति ही चलती है । सब मनुष्य भक्ति में हैं । ज्ञान सागर, जगत का गुरू एक को कहा जाता है । अभी तुम जानते हो बाप क्या आकर करते हैं । तत्वों को भी पवित्र बनाते हैं । ड्रामा में उनका पार्ट है । बाप निमित्त बनते हैं सर्व का सद्गति दाता है । अब यह समझावें कैसे । आते तो बहुत हैं । उद्घाटन करने आते हैं तो तार दी जाती है कि होवनहार विनाश के पहले बेहद के बाप को जानकर उनसे ही वर्सा लो । यह है रूहानी बाप । जो भी मनुष्य मात्र हैं सब फादर कहते हैं । क्रियेटर है तो जरूर क्रियेशन को वर्सा मिलेगा । बेहद के बाप को कोई भी जानते नहीं । बाप को भूलना - यह भी ड्रामा में नूँध है । बेहद का बाप ऊंच ते ऊंच है, वह कोई हद का वर्सा तो नहीं देगा ना । लौकिक बाप होते भी बेहद के बाप को सब याद करते हैं । सतयुग में उनको कोई याद नहीं करते क्योंकि बेहद सुख का वर्सा मिला हुआ है । अभी तुम बाप को याद करते हो । आत्मा ही याद करती है फिर आत्मायें अपने को और अपने बाप को, ड्रामा को भूल जाती हैं । माया का परछाया पड़ जाता है । सतोप्रधान बुद्धि को फिर तमोप्रधान जरूर होना है । स्मृति में आता है, नई दुनिया में देवी-देवतायें सतोप्रधान थे, यह कोई भी नहीं जानते हैं । दुनिया ही सतोप्रधान गोल्डन एजड बनती है । उसको कहा जाता है न्यू वर्ल्ड । यह है आइरन एजड वर्ल्ड । यह सब बातें बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं । कल्प-कल्प जो वर्सा तुम लेते हो, पुरूषार्थ अनुसार वही मिलने का है । तुमकी भी अभी मालूम पड़ा है हम यह थे फिर ऐसे नीचे आ गये हैं । बाप ही बताते हैं कि ऐसे-ऐसे होगा । कोई कहते हैं कोशिश बहुत करते हैं परन्तु याद ठहरती नहीं है । इसमें बाप अथवा टीचर क्या करे, कोई पढ़ेंगे नहीं तो टीचर क्या करे । टीचर आर्शीवाद करे फिर सब पास हो जायें । पढ़ाई का फर्क तो बहुत रहता है । यह है बिल्कुल नई पढ़ाई । यहाँ तुम्हारे पास अक्सर करके गरीब दु:खी ही आयेंगे साहूकार नहीं आयेंगे । दु:खी हैं तब आते हैं । साहूकार समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं । तकदीर में नहीं है, जिनकी तकदीर में है, उनको झट निश्चय बैठ जाता है । निश्चय और संशय में देरी नहीं लगती है । माया झट भुला देती है । टाइम तो लगता है ना । इसमें मूँझने की दरकार नहीं है । अपने ऊपर रहम करना है । श्रीमत तो मिलती रहती है । कितना सहज बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । तुम जानते हो यह है ही मृत्युलोक । वह है अमरलोक । वहां अकाले मृत्यु नहीं होता । क्लास में स्टूडेंट नम्बरवार बैठते हैं ना । यह भी स्कूल है ना । ब्राह्मणी से पूछा जाता है तुम्हारे पास नम्बरवार होशियार बच्चे कौन से हैं? जो अच्छा पढ़ते हैं, वे राइट साइड में होने चाहिए । राइट हैण्ड का महत्व होता है ना । पूजा आदि भी राइट हैण्ड से की जाती है । बच्चे ख्याल करते रहें - सतयुग में क्या होगा । सतयुग याद पड़ेगा तो सत बाबा भी याद पड़ेगा । बाबा हमको सतयुग का मालिक बनाते हैं | वहाँ यह पता नहीं है कि हमको यह बादशाही कैसे मिली है । इसलिए बाबा कहते है हैं इन लक्ष्मी-नारायण में भी यह ज्ञान नहीं है । बाप हरेक बात अच्छी रीति समझाते रहते हैं जो कल्प पहले वाले समझे हैं वही जरूर समझेंगे । फिर भी पुरूषार्थ करना पड़ता है ना । बाप आते ही हैं पढ़ाने । यह पढ़ाई है, इसमें बड़ी समझ चाहिए । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. यह रूहानी पढ़ाई बहुत ऊंची और डिफीकल्ट है, इसमें पास होने के लिए बाप की याद से आशीर्वाद लेनी है । अपने कैरेक्टर्स सुधारने हैं ।   2. अभी कोई भी इलीगल काम नहीं करना है । विचित्र बन अपने स्वधर्म में टिकना है और विचित्र बाप की लीगल मत पर चलना है ।   वरदान:- दृढ़ निश्चय के आधार पर सदा विजयी बनने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही भव !     जो दृढ़ निश्चय रखते हैं, तो निश्चय की विजय कभी टल नहीं सकती । चाहे पांच ही तत्व या आत्मायें कितना भी सामना करें लेकिन वो सामना करेंगे और आप अटल निश्चय के आधार पर समाने की शक्ति से उस सामना को समा लेंगे । कभी निश्चय में हलचल नहीं हो सकती । ऐसे अचल रहने वाले विजयी बच्चे ही बाप के स्नेही हैं । स्नेही बच्चे सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहते हैं ।   स्लोगन:-  सर्व खजानों की चाबी प्राप्त करनी है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो ।      * * * ओम् शान्ति * * *