Tuesday, September 2, 2014

Murli-(2-09-2014)-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - ब्राह्मण हैं चोटी और शूद्र हैं पांव, जब शूद्र से ब्राह्मण 
बनें तब देवता बन सकेंगे'' 

प्रश्न:- तुम्हारी शुभ भावना कौन-सी है, जिसका भी मनुष्य विरोध करते हैं? 
उत्तर:- तुम्हारी शुभ भावना है कि यह पुरानी दुनिया खत्म हो नई दुनिया स्थापन 
हो जाए इसके लिए तुम कहते हो कि यह पुरानी दुनिया अब विनाश हुई कि हुई। 
इसका भी मनुष्य विरोध करते हैं। 

प्रश्न:- इस इन्द्रप्रस्थ का मुख्य कायदा क्या है? 
उत्तर:- कोई भी पतित शूद्र को इस इन्द्रप्रस्थ की सभा में नहीं ला सकते। अगर 
कोई ले आते हैं तो उस पर भी पाप लग जाता है। 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) फूलों के बगीचे में चलने के लिए अन्दर जो काम-क्रोध के कांटे हैं, उन्हें निकाल देना है। 
ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जिससे श्राप मिल जाए। 

2) सचखण्ड का मालिक बनने के लिए सत्य नारायण की सच्ची कथा सुननी और 
सुनानी है। इस झूठ खण्ड से किनारा कर लेना है। 

वरदान:- बाप के स्नेह को दिल में धारण कर सर्व आकर्षणों से मुक्त रहने वाले सच्चे स्नेही भव
 
बाप सभी बच्चों को एक जैसा स्नेह देते हैं लेकिन बच्चे अपनी शक्ति अनुसार स्नेह 
को धारण करते हैं। जो अमृतवेले के आदि समय पर बाप के स्नेह को धारण कर लेते हैं, 
तो दिल में परमात्म स्नेह समाया होने के कारण और कोई स्नेह उन्हें आकर्षित नहीं 
करता। अगर दिल में पूरा स्नेह धारण नहीं करते तो दिल में जगह होने के कारण माया 
भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह में आकर्षित कर लेती है इसलिए सच्चे स्नेही बन 
परमात्म प्यार से भरपूर रहो। 

स्लोगन:- व्यर्थ संकल्पों की हथौड़ी से समस्या के पत्थर को तोड़ने के बजाए हाई जम्प दे 
समस्या रूपी पहाड़ को पार करने वाले बनो।