मुरली सार:- “मीठे बच्चे - अब विकर्म करना बन्द करो क्योंकि अब तुम्हें
प्रश्न:- हर एक ब्राह्मण बच्चे को किस एक बात में बाप को फॉलो अवश्य करना है?
उत्तर:- जैसे बाप स्वयं टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं, ऐसे बाप के समान हर एक
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर उत्तम पुरूष बनने के लिए आत्म-अभिमानी बनने
2) माया के तूफानों से डरना नहीं है। सदा याद रहे सत की नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन
वरदान:- ईश्वरीय संग में रह उल्टे संग के वार से बचने वाले सदा के सतसंगी भव
कैसा भी खराब संग हो लेकिन आपका श्रेष्ठ संग उसके आगे कई गुणा शक्तिशाली है।
स्लोगन:- बुराई को भी अच्छाई में परिवर्तन करने वाले ही प्रसन्नचित्त रह सकते हैं।
विकर्माजीत संवत शुरू करना है’’
प्रश्न:- हर एक ब्राह्मण बच्चे को किस एक बात में बाप को फॉलो अवश्य करना है?
उत्तर:- जैसे बाप स्वयं टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं, ऐसे बाप के समान हर एक
को टीचर बनना है। जो पढ़ते हो उसे दूसरों को पढ़ाना है। तुम टीचर के बच्चे टीचर,
सतगुरू के बच्चे सतगुरू भी हो। तुम्हें सचखण्ड स्थापन करना है। तुम सच की
नैया पर हो, तुम्हारी नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन डूब नहीं सकती।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर उत्तम पुरूष बनने के लिए आत्म-अभिमानी बनने
का पुरूषार्थ करना है। सत् बाप मिला है तो कोई भी असत्य, अनराइटियस काम
नहीं करना है।
2) माया के तूफानों से डरना नहीं है। सदा याद रहे सत की नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन
डूबेगी नहीं। सतगुरू के बच्चे सतगुरू बन सबकी नैया पार लगानी है।
वरदान:- ईश्वरीय संग में रह उल्टे संग के वार से बचने वाले सदा के सतसंगी भव
कैसा भी खराब संग हो लेकिन आपका श्रेष्ठ संग उसके आगे कई गुणा शक्तिशाली है।
ईश्वरीय संग के आगे वह संग कुछ भी नहीं है। सब कमजोर है। लेकिन जब खुद
कमजोर बनते हो तब उल्टे संग का वार होता है। जो सदा एक बाप के संग में रहते हैं
अर्थात् सदा के सतसंगी हैं वह और किसी संग के रंग में प्रभावित नहीं हो सकते।
व्यर्थ बातें, व्यर्थ संग अर्थात् कुसंग उन्हें आकर्षित कर नहीं सकता।
स्लोगन:- बुराई को भी अच्छाई में परिवर्तन करने वाले ही प्रसन्नचित्त रह सकते हैं।