Saturday, August 2, 2014

Murli-(1-08-2014)-Hindi

मुरली सार:- “मीठे बच्चे - तुम यहाँ पढ़ाई पढ़ने के लिए आये हो, तुम्हें आंख बन्द करने 
की दरकार नहीं, पढ़ाई आंख खोलकर पढ़ी जाती है” 

प्रश्न:- भक्ति मार्ग में कौन-सी आदत भक्तों में होती है जो अब तुम बच्चों में नहीं होनी चाहिए? 
उत्तर:- भक्ति में किसी भी देवता की मूर्ति के आगे जाकर कुछ न कुछ मांगते रहते हैं। 
उन्हों में मांगने की ही आदत पड़ जाती है। लक्ष्मी के आगे जायेंगे तो धन मानेंगे, लेकिन 
मिलता कुछ नहीं। अब तुम बच्चों में यह आदत नहीं, तुम तो बाप के वर्से के अधिकारी हो। 
तुम सच्चे विचित्र बाप को देखते रहो, इसमें ही तुम्हारी सच्ची कमाई है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1. बाप जो ज्ञान श्रृंगार करते हैं, उसे कायम रखने का पुरूषार्थ करना है। माया की धूल 
में ज्ञान श्रृंगार बिगाड़ना नहीं है। पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर अविनाशी कमाई करनी है। 

2. इस चित्र अर्थात् देहधारी को सामने देखते हुए बुद्धि से विचित्र बाप को याद करना है। 
आंखे बन्द कर बैठने की आदत नहीं डालनी है। बेहद के बाप से कुछ भी मांगना नहीं है। 

वरदान:- समय के महत्व को जान फास्ट सो फर्स्ट आने वाले तीव्र गति के पुरूषार्थी भव 

अव्यक्त पार्ट में आई हुई आत्माओं को लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट आने का वरदान 
प्राप्त है। तो समय के महत्व को जान मिले हुए वरदान को स्वरूप में लाओ। यह अव्यक्त 
पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिए जितना आगे बढ़ना चाहो, बढ़ सकते 
हो। बापदादा और निमित्त आत्माओं की सर्व के प्रति सदा आगे उड़ने की दुआयें होने के 
कारण तीव्र गति के पुरूषार्थ का भाग्य सहज मिला हुआ है। 

स्लोगन:- “निराकार सो साकार” के महामन्त्र की स्मृति से निरन्तर योगी बनो।