मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सिविल चक्षु देने, तुम्हें ज्ञान का
प्रश्न:- तुम बेहद के सन्यासियों को बाप ने कौन-सी एक श्रीमत दी है?
उत्तर:- बाप की श्रीमत है तुम्हें नर्क और नर्कवासियों से बुद्धियोग हटाकर स्वर्ग
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सतगुरू बाप की याद से बुद्धि को सतोप्रधान बनाना है। सच्चा बनना है।
2) अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बेहद का सन्यासी बनकर, सबसे बुद्धियोग
वरदान:- ज्ञान धन द्वारा प्रकृति के सब साधन प्राप्त करने वाले पदमा-पदमपति भव
ज्ञान धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: कराता है। जहाँ ज्ञान धन है वहाँ प्रकृति स्वत:
स्लोगन:- ``कल्प-कल्प का विजयी हूँ'' - यह रूहानी नशा इमर्ज हो तो मायाजीत बन जायेंगे।
तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए यह आंखे कभी भी क्रिमिनल नहीं होनी चाहिए''
प्रश्न:- तुम बेहद के सन्यासियों को बाप ने कौन-सी एक श्रीमत दी है?
उत्तर:- बाप की श्रीमत है तुम्हें नर्क और नर्कवासियों से बुद्धियोग हटाकर स्वर्ग
को याद करना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते नर्क को बुद्धि से त्याग दो। नर्क है
पुरानी दुनिया। तुम्हें बुद्धि से पुरानी दुनिया को भूलना है। ऐसे नहीं, एक हद के
घर को त्याग कर दूसरी जगह चले जाना है। तुम्हारा बेहद का वैराग्य है,
अभी तुम्हारी वानप्रस्थ अवस्था है। सब कुछ छोड़ घर जाना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सतगुरू बाप की याद से बुद्धि को सतोप्रधान बनाना है। सच्चा बनना है।
आस्तिक बनकर आस्तिक बनाने की सेवा करनी है।
2) अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बेहद का सन्यासी बनकर, सबसे बुद्धियोग
हटा देना है। पावन बनना है और दैवीगुण धारण करने हैं।
वरदान:- ज्ञान धन द्वारा प्रकृति के सब साधन प्राप्त करने वाले पदमा-पदमपति भव
ज्ञान धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: कराता है। जहाँ ज्ञान धन है वहाँ प्रकृति स्वत:
दासी बन जाती है। ज्ञान धन से प्रकृति के सब साधन स्वत: प्राप्त हो जाते हैं इसलिए
ज्ञान धन सब धन का राजा है। जहाँ राजा है वहाँ सर्व पदार्थ स्वत: प्राप्त होते हैं।
यह ज्ञान धन ही पदमा-पदमपति बनाने वाला है, परमार्थ और व्यवहार को स्वत:
सिद्ध करता है। ज्ञान धन में इतनी शक्ति है जो अनेक जन्मों के लिए राजाओं का
राजा बना देती है।
स्लोगन:- ``कल्प-कल्प का विजयी हूँ'' - यह रूहानी नशा इमर्ज हो तो मायाजीत बन जायेंगे।