Thursday, April 3, 2014

Murli-[3-4-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - यह वन्डरफुल पढ़ाई बेहद का बाप पढ़ाते हैं, बाप और उनकी पढ़ाई 
में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए, पहला निश्चय चाहिए कि हमें पढ़ाने वाला कौन'' 

प्रश्न:- तुम बच्चों को निरन्तर याद की यात्रा में रहने की श्रीमत क्यों मिली है? 
उत्तर:- क्योंकि माया दुश्मन अभी भी तुम्हारे पीछे है, जिसने तुमको गिराया है। अभी वह तुम्हारा 
पीछा नहीं छोड़ेगा इसलिए गफ़लत नहीं करना। भल तुम संगमयुग पर हो परन्तु आधाकल्प 
उसके रहे हो इसलिए जल्दी नहीं छोड़ेगा। याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए ख़बरदार 
रहना है। आसुरी मत पर नहीं चलना है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सदा नशा और निश्चय रहे कि हमें पढ़ाने वाला कोई जिस्मानी टीचर नहीं। स्वयं ज्ञान सागर निराकार 
बाप टीचर बन हमें पढ़ा रहे हैं। इस पढ़ाई से ही हमें सतोप्रधान बनना है। 

2) आत्मा रूपी दीपक में रोज़ ज्ञान का घृत डालना है। ज्ञान घृत से सदा ऐसा प्रज्जवलित रहना है 
जो माया का कोई भी तूफ़ान हिला न सके। पूरा परवाना बन शमा पर फ़िदा होना है। 

वरदान:- रूहानी अथॉरिटी के साथ निरहंकारी बन सत्य ज्ञान का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले सच्चे 
सेवाधारी भव 

जैसे वृक्ष में जब सम्पूर्ण फल की अथॉरिटी आ जाती है तो वृक्ष झुक जाता है अर्थात् निर्माण बनने की 
सेवा करता है। ऐसे रूहानी अथॉरिटी वाले बच्चे जितनी बड़ी अथॉरिटी उतने निर्माण और सर्व के स्नेही 
होंगे। अल्पकाल की अथॉरिटी वाले अंहकारी होते हैं लेकिन सत्यता की अथॉरिटी वाले अथॉरिटी के साथ 
निरंहकारी होते हैं - यही सत्य ज्ञान का प्रत्यक्ष स्वरूप है। सच्चे सेवाधारी की वृत्ति में जितनी अथॉरिटी 
होगी उसकी वाणी में उतना ही स्नेह और नम्रता होगी। 

स्लोगन:- बिना त्याग के भाग्य नहीं मिलता।