मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - विचार सागर मंथन कर एक ऐसी टॉपिक निकालो जो सब जगह
प्रश्न:- कौन-सी मेहनत करते-करते तुम बच्चे पास विद् ऑनर हो सकते हो?
उत्तर:- कर्म-बन्धन से अतीत बनो। जब किसी से बात करते हो तो आत्मा भाई समझ भाई
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा नशा रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच हैं क्योंकि अभी हम ईश्वरीय
2) जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखना है, बाकी कुछ भी सुनते हुए न सुनो, देखते हुए न देखो।
वरदान:- ईश्वरीय रस का अनुभव कर एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
जो बच्चे ईश्वरीय रस का अनुभव कर लेते हैं उनको दुनिया के सब रस फीके लगते हैं। जब है ही
स्लोगन:- किचड़े को समाकर रत्न देना ही मास्टर सागर बनना है।
एक ही टॉपिक पर भाषण चले, यही है तुम्हारी युनिटी''
प्रश्न:- कौन-सी मेहनत करते-करते तुम बच्चे पास विद् ऑनर हो सकते हो?
उत्तर:- कर्म-बन्धन से अतीत बनो। जब किसी से बात करते हो तो आत्मा भाई समझ भाई
को देखो। बाप से सुनते हो तो भी बाप को भृकुटी में देखो। भाई-भाई की दृष्टि से वह स्नेह और
सम्बन्ध पक्का हो जायेगा। यही मेहनत का काम है, इससे ही पास विद् आनर बनेंगे। ऊंच
पद पाने वाले बच्चे यह पुरूषार्थ अवश्य करेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा नशा रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच हैं क्योंकि अभी हम ईश्वरीय
औलाद हैं, हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। सभी खूबियां इस समय हमारे में भर रही हैं।
2) जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखना है, बाकी कुछ भी सुनते हुए न सुनो, देखते हुए न देखो।
हियर नो ईविल, सी नो ईविल...
वरदान:- ईश्वरीय रस का अनुभव कर एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
जो बच्चे ईश्वरीय रस का अनुभव कर लेते हैं उनको दुनिया के सब रस फीके लगते हैं। जब है ही
एक रस मीठा तो एक ही तरफ अटेन्शन जायेगा ना। सहज ही एक तरफ मन लग जाता है,
मेहनत नहीं लगती है। बाप का स्नेह, बाप की मदद, बाप का साथ, बाप द्वारा सर्व प्राप्तियां
सहज एकरस स्थिति बना देती हैं। ऐसी एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें ही श्रेष्ठ हैं।
स्लोगन:- किचड़े को समाकर रत्न देना ही मास्टर सागर बनना है।