Monday, June 4, 2012

Murli [4-06-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - इस शरीर रूपी रथ पर विराजमान आत्मा रथी है, रथी समझकर कर्म करो तो देह-अभिमान छूट जायेगा'' 
प्रश्न: बाप के बात करने का ढंग मनुष्यों के ढंग से बिल्कुल ही निराला है, कैसे? 
उत्तर: बाप इस रथ पर रथी होकर बात करते हैं और आत्माओं से ही बात करते हैं। शरीरों को नहीं देखते। मनुष्य न तो स्वयं को आत्मा समझते और न आत्मा से बात ही करते। तुम बच्चों को अब यह अभ्यास करना है। किसी भी आकारी वा साकारी चित्र को देखते भी नहीं देखो। आत्मा को देखो और एक विदेही को याद करो। 
गीत:- तुम्हीं हो माता-पिता... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) सतोप्रधान सन्यास करना है। इस पुरानी दुनिया में रहते इससे ममत्व मिटा देना है। देह सहित जो भी पुरानी चीज़ें हैं उनको भूल जाना है। 
2) अपना बुद्धियोग ऊपर लटकाना है। किसी भी चित्र वा देहधारी को याद नहीं करना है। एक बाप का ही सिमरण करना है। 
वरदान: भिन्न-भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठने वाले राजयोगी, स्वराज्य अधिकारी भव 
राजयोगी बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न स्थितियां ही आसन हैं, कभी स्वमान की स्थिति में स्थित हो जाओ तो कभी फरिश्ते स्थिति में, कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में, कभी प्यार स्वरूप लवलीन स्थिति में। जैसे आसन पर एकाग्र होकर बैठते हैं ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित हो वैराइटी स्थितियों का अनुभव करो। जब चाहो तब मन-बुद्धि को आर्डर करो और संकल्प करते ही उस स्थिति में स्थित हो जाओ तब कहेंगे राजयोगी स्वराज्य अधिकारी। 
स्लोगन: वफादार वह है जिसे संकल्प में भी कोई देहधारी आकर्षित न करे।