मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - रात-दिन इसी चिन्तन में रहो कि सबको बाप का परिचय कैसे दें, फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर, इसी में बुद्धि लगानी है''
प्रश्न: ज्ञान जरा भी व्यर्थ न जाये उसके लिए किस बात का ध्यान रखना है?
उत्तर: ज्ञान धन देने के लिए पहले देखो कि यह हमारे ब्राह्मण कुल का है! जो शिवबाबा के वा देवताओं के भक्त हैं, कोशिश कर उनको ज्ञान धन दो। यह ज्ञान सब नहीं समझेंगे। समझ में उन्हें ही आयेगा जो शूद्र से ब्राह्मण बनने वाले हैं। तुम कोशिश कर एक बात तो सबको सुनाओ कि सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है, वह कहता है कि तुम अशरीरी बन मुझे याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।
गीत:- ओम् नमो शिवाए....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अशरीरी बन बाप को याद करना है। स्वधर्म में स्थित होने का अभ्यास करना है। ज्ञान की डांस करनी और करानी है।
2) माया के तूफानों से हिलना नहीं है। डरना नहीं है। पक्का बनकर माया के प्रेशर को खत्म करना है।
वरदान: सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोंटे पाप होते रहते हैं। कर्म फिलासाफी का सिद्धान्त है-यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।
स्लोगन: आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।
प्रश्न: ज्ञान जरा भी व्यर्थ न जाये उसके लिए किस बात का ध्यान रखना है?
उत्तर: ज्ञान धन देने के लिए पहले देखो कि यह हमारे ब्राह्मण कुल का है! जो शिवबाबा के वा देवताओं के भक्त हैं, कोशिश कर उनको ज्ञान धन दो। यह ज्ञान सब नहीं समझेंगे। समझ में उन्हें ही आयेगा जो शूद्र से ब्राह्मण बनने वाले हैं। तुम कोशिश कर एक बात तो सबको सुनाओ कि सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है, वह कहता है कि तुम अशरीरी बन मुझे याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।
गीत:- ओम् नमो शिवाए....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अशरीरी बन बाप को याद करना है। स्वधर्म में स्थित होने का अभ्यास करना है। ज्ञान की डांस करनी और करानी है।
2) माया के तूफानों से हिलना नहीं है। डरना नहीं है। पक्का बनकर माया के प्रेशर को खत्म करना है।
वरदान: सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोंटे पाप होते रहते हैं। कर्म फिलासाफी का सिद्धान्त है-यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।
स्लोगन: आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।